बात 1998 की है, जब केरल के पलक्कड़ में रहने वाली सबीरा मोहम्मद एक गृहणी थीं और घर के काम निपटाने के बाद उनके पास काफी खाली समय बच जाता था और कभी-कभी वह काफी बोरियत महसूस करती थीं। इस बोरियत को दूर करने के लिए सबीरा ने अपने घर की टैरेस पर ऑर्किड(फूलों का एक प्रकार) उगाना शुरु किया।
1998 में जिस काम को बोरियत दूर करने के लिए सबीरा ने अपने घर के टैरेस से शुरु किया था वह अब एक एकड़ ज़मीन में फैल चुका है। ऑर्किड फूलों की खेती के साथ सबीरा अब नर्सरी के व्यवसाय में भी आ चुकी हैं। अपने इस काम को आगे बढ़ाने में सबीरा को फेसबुक और व्हाट्सएप के माध्यम से बहुत मदद मिली है। अपना फेसबुक पेज लॉन्च करने के केवल तीन वर्षों के भीतर, करीब 5,000 फॉलोअर्स पेज से जुड़ गए हैं।
ऑर्किड फूलों की खेती करने वाली 53 वर्षीय सबीरा वर्तमान में हर महीने 3 लाख रुपये तक कमाती हैं। अब सवाल यह है कि कैसे एक गृहिणी ने फूलों से अपने प्रेम को एक व्यवसाय में बदल दिया है?
जब फूल बन गए साथी
करीब 22 साल पहले सबीरा ने ऑर्किड फूलों की खेती करनी शुरु की थी और तब से उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा है।
सबीरा बताती हैं, 1982 में उन्होंने दसवीं की परीक्षा पास की और उसके बाद ही उनकी शादी हो गई। शादी के बाद वह अपने पति के साथ यूएई चली गईं। करीब सात साल वहाँ रहने के बाद, वह 1989 में त्रिशूर अपने घर लौटीं। उनके पति का अपना बिजनेस था। सबीरा बताती हैं कि उनके पति और तीन बच्चे सुबह ही काम और स्कूल के लिए निकल जाते थे। इसके बाद पूरा दिन उनके पास खाली समय रहता था।
अपने खाली समय में सबीरा ने बागवानी में हाथ आज़माने का सोचा। शुरुआत में, उन्होंने छत पर गमलों में चमेली और एंथुरियम जैसे फूल लगाए। जब बागीचे में फूल खिलने लगे तब उन्होंने ऑर्किड फूलों की खेती की ओर काम शुरु किया।
सबीरा बताती हैं, “समय के बीतने के साथ, मैं टैरेस की बागवानी को 1 एकड़ जमीन तक ले गई। मैंने कृषि भवन से सैपलिंग इकट्ठा करना शुरू किया और यहाँ तक कि थाईलैंड जैसी जगहों से उन्हें आयात करना शुरू कर दिया। हालाँकि, मैंने खेती को बड़े पैमाने पर बढ़ाया, फिर भी, मैं इससे संबंधित बिजनेस करने के बारे में निश्चित नहीं थी।”
जब आया महत्वपूर्ण मोड़…
सबीरा की ऑर्किड फूलों की खेती ने 2006 में काफी लोकप्रियता हासिल की जब उन्होंने बागवानी के क्षेत्र में अपने अद्भुत काम के लिए केरल राज्य सरकार द्वारा दिए जाने वाला उद्यान श्रेष्ठ पुरस्कार जीता था। उन्हें अपने क्षेत्र के कृषि भवन द्वारा इसके लिए नामांकित किया गया था। इस पुरस्कार ने उनके बगीचे को काफी ज़्यादा लोकप्रियता दिलाई और राज्य भर से कई लोग उसे देखने आने लगे।
सबीरा बताती हैं, “यह निश्चित रूप से मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। मैंने देखने आने वाले इच्छुक लोगों को पौधे बेचने शुरू किए और साथ ही दूर जिलों में रहने वालों को भी भेजना शुरु किया।”
सबीरा के बगीचे में करीब 500 किस्म में ऑर्किड है जिनमें डेन्ड्रोबियम, कैटेलस, वांदा, ऑन्सिडियम जैसे फूल शामिल हैं। उन्होंने बगीचे के साथ ग्रीनहाउस की भी स्थापना की है।
सबीरा कहती हैं कि उनके पति मुहम्मद और सबसे छोटे बेटे, सिबिन ने उनका बहुत समर्थन किया और उन्हें नर्सरी खोलने के लिए प्रेरित किया। आखिरकार 2017 में, त्रिशुर में पर्ल ऑर्किड्स नाम से उन्होंने एक नर्सरी खोली। बगीचे को शुरू करने के लिए शुरुआत में उन्होंने करीब 20 लाख रुपये का निवेश किया।
खेती को आसान बनाने के लिए उन्होंने मिस्ट सिंचाई प्रणाली के साथ एक ग्रीनहाउस की स्थापना की। इसी समय, उन्होंने एक फेसबुक पेज शुरू किया और ग्राहक के ऑर्डर के लिए व्हाट्सएप का उपयोग किया।
सबीरा कहती हैं कि नर्सरी के मार्केटिंग के लिए उन्होंने केवल अपने ऑर्किड फूलों की तस्वीरें ही पोस्ट की। लेकिन केवल तीन साल की अवधि में, यह राज्य का सबसे लोकप्रिय आर्किड नर्सरियों में से एक बन गया।
सुजन कुरियाचिरा पिछले एक साल से पर्ल ऑर्किड के ग्राहक हैं। वह कहते हैं, “ऑर्किड की कीमत 250 रुपये से शुरू होती हैं और पैकेजिंग शानदार होती है। बिना किसी उर्वरक के ये पौधे लगभग 6-7 दिनों तक ताजा रहते हैं। ”
हाल ही में, सबीरा ने ऑर्किड के लिए खाद के लिए एक गीर गाय में निवेश किया है। इसके अलावा, वह अपने फूलों को उगाने के लिए किसी भी तरह के केमिकल वाले खाद का इस्तेमाल नहीं करती है। पिछले तीन वर्षों से, हर महीने उनकी कमाई 3 लाख रुपये हो रही है जिसमें से 50,000 रुपये वह वापस इसकी खेती में लगाती हैं।
सबीरा कहती हैं कि कई लोगों ने उनसे बिजनेस टिप्स के लिए संपर्क किया है। लेकिन वह कहती हैं कि इसमें जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए। वह कहती हैं, “यहाँ तक पहुँचने में मुझे 22 साल लगे हैं। अगर आप अपना व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं, तो पहला कदम इसके प्रति रुचि पैदा करना है, बाकी सब अपने आप होगा।”
आप उनके फेसबुक पेज पर्ल ऑर्किड के माध्यम से ऑर्डर दे सकते हैं।
मूल लेख- SERENE SARAH ZACHARIAH
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