शहीद के साथी: दुर्गा भाभी, भगत सिंह की इस सच्ची साथी की अनसुनी कहानी

Durga bhabhi

यह दुर्गा भाभी ही थीं जिन्होंने अपने पति के बम कारखाने पर छापा पड़ने के बाद, क्रांतिकारियों के लिए 'पोस्ट-बॉक्स' का काम किया।

हर सुख भूल, घर को छोड़, क्रांति की लौ जलाई थी
बरसों के संघर्ष से इस देश ने आज़ादी पाई थी
आज़ाद, भगत सिंह, और बिस्मिल की गाथाएं तो सदियाँ हैं गातीं
पर रह गए वक़्त के पन्नों में जो धुंधले, और भी थे इन शहीदों के साथी!
शहीद-ए-आज़म भगत सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल, चंद्र शेखर आज़ाद, रानी लक्ष्मी बाई और भी न जाने कितने नाम हमें मुंह-ज़ुबानी याद हैं। फिर भी ऐसे अनेक नाम इतिहास में धुंधला गए हैं जिन्होंने क्रांति की लौ को जलाए रखने के लिए दिन-रात संघर्ष किया। अपना सबकुछ त्याग खुद को भारत माँ के लिए समर्पित कर दिया। यही वो साथी थे, जिन्होंने शहीद होने वाले क्रांतिकारियों को देश में उनका सही मुकाम दिलाया और आज़ादी की लौ को कभी नहीं बुझने दिया।
इस #स्वतंत्रता_दिवस पर हमारे साथ जानिए कुछ ऐसे ही नायक-नायिकाओं के बारे में, जो थे शहीद के साथी!

19 दिसंबर, 1928 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने असिस्टेंट पुलिस अधीक्षक जॉन सॉंडर्स की हत्या कर दी थी। इसके बाद ब्रिटिश पुलिस इन तीनों क्रांतिवीरों को चप्पे-चप्पे पर ढूंढ रही थी। तीनों को आगे की गतिविधियों को अंजाम देने के लिए किसी सुरक्षित जगह की ज़रूरत थी और वह सुरक्षित छत उन्हें दी ‘दुर्गा भाभी’ ने।

लाहौर के कॉलेज में पढ़ने वाली दुर्गा देवी वोहरा, हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) की प्रमुख योजनाकार और गुप्तचर थीं। क्रांतिकारियों के लिए हथियारों की व्यवस्था करना और फिर उन तक उन हथियारों को पहुँचाना, उनका मुख्य काम था। भगत सिंह अपना वेश बदलकर जब उनके यहाँ पहुंचे तो उन्होंने तुरंत उन्हें छिपकर लखनऊ पहुंचाने की योजना बनाई।

उन्होनें भगत सिंह को अंग्रेजी कपड़े पहनाकर अलग रूप दिया और घर पर रखे सभी पैसे लेकर और अपने तीन साल के बेटे को गोद में उठाकर, वह भगत सिंह की पत्नी के रूप में ट्रेन में सवार हो गईं। राजगुरु को उन्होंने घर के नौकर का वेश दिया। लखनऊ से आगे वह कोलकाता पहुंचे, जहां भगवती चरण, दुर्गा देवी और वेश बदले हुए भगत सिंह ने कांग्रेस के कलकत्ता सत्र में भाग लिया और यहाँ उनकी कई बंगाली क्रांतिकारियों से मुलाकात हुई।

यह दुर्गा भाभी ही थीं जिन्होंने अपने पति के बम कारखाने पर छापा पड़ने के बाद, क्रांतिकारियों के लिए ‘पोस्ट-बॉक्स’ का काम किया। वह उनकी योजनाओं के पत्र एक-दूसरे को पहुंचातीं। यहाँ तक कि बम बनाने के दौरान जब उनके पति एक दुर्घटना में मारे गए तब भी वह शोक में नहीं डूबीं। बल्कि तब तो उनकी क्रांतिकारी गतिविधियाँ और तेज हो गईं। जुलाई 1929 में, उन्होंने भगत सिंह की तस्वीर के साथ लाहौर में जुलूस निकालकर उनकी की रिहाई की मांग की। जब 63 दिनों तक भूख हड़ताल के बाद जातिंद्र नाथ दास जेल में ही शहीद हो गए, तब दुर्गा भाभी ने ही उनका अंतिम संस्कार करवाया।

उसी वर्ष 8 अक्टूबर को उन्होंने एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी पर हमला किया। यह पहली बार था जब किसी महिला को ‘इस तरह से क्रन्तिकारी गतिविधियों में शामिल’ पाया गया था। इसके लिए, उन्हें तीन साल की जेल भी हुई। उनका योगदान सिर्फ आज़ादी तक ही नहीं था बल्कि लखनऊ में उत्तर भारत का पहला मोंटेसरी स्कूल भी उन्होंने ही खोला।

ताउम्र देश के लिए समर्पित रहीं, शहीद भगत सिंह की इस साथी को हमारा सलाम!

यह भी पढ़ें – दुर्गा भाभी की सहेली और भगत सिंह की क्रांतिकारी ‘दीदी’, सुशीला की अनसुनी कहानी!

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

Let us know how you felt

  • love
  • like
  • inspired
  • support
  • appreciate
X