जोनो-गोनो-मोनो अधिनायको जोयो हे..

जीवन के प्रत्येक मोड़ पर एक नयी ऊर्जा से भर देने वाला हमारा राष्ट्रगीत हर भारतवासी की रगों में संचरित है. हममें से कौन है जिसकी आँखों में कभी आँसू नहीं आ गए होंगे इसे सुन/गाकर. हममें से कौन है जिसके लहू में उबाल न आया हो, मुट्ठियाँ न तनी हों.

जीवन में ‘मछली जल की रानी है’ के बाद सबसे पहली अन्य पंक्तियाँ सीखी होंगी तो वे रही हैं ‘जन-मन-गण अधिनायक जय है’. जीवन के प्रत्येक मोड़ पर एक नयी ऊर्जा से भर देने वाला हमारा राष्ट्रगान (National Anthem) हर भारतवासी की रगों में संचरित है. हममें से कौन है जिसकी आँखों में कभी आँसू नहीं आ गए होंगे इसे सुन/गाकर. हममें से कौन है जिसके लहू में उबाल न आया हो, मुट्ठियाँ न तनी हों.

राष्ट्रगान किसने लिखा?
गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने बांग्ला भाषा में.

हूँ, तो इसका अनुवाद किसने किया है?
जवाब मिला कि भई कोई अनुवाद नहीं हुआ है. बस उच्चारण बदल दिया गया है.. ‘जोनो-गोनो-मोनो अधिनायको जोयो हे’ को गाया गया ‘जन-गण-मन अधिनायक जय हे’.

आज के युग में जब इतिहास के हर पन्ने पर प्रश्न-चिन्ह लगाए जा रहे हैं तो भला राष्ट्रगान कैसे अछूता रह जाता. और ये प्रश्न-चिन्ह लोग अपने को समझदार साबित करने के लिए लगाते हैं या उन्हें सचमुच में ऐसा लगता है इसके बारे में क्या कहा जा सकता है. जब 1950 में इसे राष्ट्रगीत घोषित किया जाना था तब भी बहुत से लोग इस बात के पक्षधर थे कि बंकिमचंद्र चटर्जी कृत ‘वन्दे-मातरम्’ को राष्ट्रगीत घोषित किया जाए.

बहरहाल, पिछले कुछ वर्षों में हमेशा से चले आ रहे एक तर्क ने बहुत ज़ोर पकड़ा है कि टैगोर ने इस गीत को जॉर्ज पंचम के सम्मान में लिखा था. उस वक़्त के ब्रिटेन के अखबारों में इस गीत को ब्रिटिश बादशाह की शान में प्रस्तुत गीत क़रार दिया था तो वहीं आनंद-बाज़ार पत्रिका और The Bengali ने उसे शाश्वत सारथी की अर्चना कहा. गीतांजली में शामिल इस कृति में पाँच स्टैंज़ा हैं जिसमें पहले को तो राष्ट्रगीत चुना गया आगे के स्टैंज़ा की पंक्तियाँ हैं :

हे चिरो सारोथी, तबो रथा चक्रे मुखोरितो पोथो दिनों रात्रि
ओ चिर सारथी, तुम्हारे रथ के चलने से हमारा पथ दिन-रात्रि मुखरित है..

अब ‘चिर सारथी’ कहकर क्या जॉर्ज पंचम को सम्बोधित किया होगा? मैं बताने वाला कौन होता हूँ, आप ही तय कीजिये. कॉन्ट्रोवर्सी थ्योरीज़ का रोमांच सबको भाता है. अब चाहे यह बात हो कि ‘क्राइस्ट’ असल में ‘कृष्ण’ थे. या इल्युमिनाती ने अमेरिका बनाया है और एक डॉलर के नोट पर पायी जाने वाली आँख (Eye of the God) सबको लगातार देख रही है. या मायन सभ्यता के कैलैंडर के अनुसार ब्रह्माण्ड का संतुलन बनाये रखने के लिए दुनिया 2012 में ख़त्म हो जाने वाली थी. अथवा चाँद पर मनुष्य पहुँचा ही नहीं है.. वह नासा की उड़ाई झूठी अफ़वाह है. या सीआईए के अनुसार इराक़ में WMD थे. और
अपने देश की विवादधर्मिता का आलम यह है कि अमर्त्य सेन ने ‘द आर्ग्युमेन्टेटिव इंडियन’ लिख दी है. तो हर तर्क के पीछे कई तर्क होते हैं / हो सकते हैं. सवाल उठाना किसी भी तौर पर ग़लत भी नहीं है. हमारे राष्ट्रगीत को ले कर यह भी तर्क उठा कि इसमें से ‘सिंध’ शब्द निकाल दिया जाए और ‘कश्मीर’ जोड़ लिया जाए. और यह भी कि इसमें राजस्थान, पूर्व की सात बहनें (प्रान्त) क्यों नहीं हैं?

कहते हैं कि टैगोर इस आक्षेप से अवसादग्रस्त थे कि उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य की चाटुकारिता की है. 1937 में पुलिनबिहारी सेन को लिखे पत्र में (मूलतः बांग्ला में है. प्रभातकुमार मुखर्जी द्वारा लिखी गयी ‘रविंद्रजीवनी’ के दूसरे भाग में पृष्ठ क्रमांक 339 पर यह पत्र छपा है) रवीन्द्रनाथ टैगोर ने लिखा है:

“मुझसे जॉर्ज पंचम के सम्मान में लिखने का आग्रह जब एक वरिष्ठ ब्रिटिश अधिकारी ने किया तो मुझे अत्यधिक मानसिक अशांति हुई. इसके विरुद्ध मैंने भारत के भाग्य-विधाता, चिर-सारथी जो युगों युगों से भारत का देव है, चिरकाल से मार्गदर्शक रहा है की स्तुति लिखी. वह कभी भी जॉर्ज पंचम, षष्ठम या कोई और जॉर्ज नहीं हो सकता.”

बहस फिर भी शायद ख़त्म नहीं हुई होगी तब उन्होंने 19 मार्च, 1939 को पुनः एक ख़त में लिखा:
“यह मेरा अपमान होगा कि मैं इस असीम मूर्खता का जवाब भी दूँ कि मैंने जॉर्ज चौथे या पाँचवे को अनंतकाल से इंसानियत के सैलाब को राह दिखाने वाले चिर-सारथी की तरह प्रस्तुत किया है..” 

प्रस्तुत वीडियो में हमारे राष्ट्रगान के दो स्टैंज़ा प्रस्तुत हैं. बहस कौन सी करवट बैठती है यह तो वक़्त बताएगा. आप एक चिर-उत्साही धुन का आनंद लें जो हमारे आपके अणु-अणु में हमारे बचपन से ही विद्यमान है.


लेखक –  मनीष गुप्ता

फिल्म निर्माता निर्देशक मनीष गुप्ता कई साल विदेश में रहने के बाद भारत केवल हिंदी साहित्य का प्रचार प्रसार करने हेतु लौट आये! आप ने अपने यूट्यूब चैनल ‘हिंदी कविता’ के ज़रिये हिंदी साहित्य को एक नयी पहचान प्रदान की हैं!


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