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एक अधिकारी ऐसी भी: महिला ऑफिसर के नाम पर लोगों ने रखा गाँव का नाम!

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दिव्या ने प्रशासनिक कार्यालय तक आम लोगों की पहुँच आसान बनाने और खुद भाषा सीखने की पूरी कोशिश की और जल्द की वह "अधिकारी मैडम" से लोगों के परिवार का एक हिस्सा बन गईं।

दिव्या देवराजन 2010 बैच की आईएएस अधिकारी हैं। 2017 में आदिवासी संघर्ष की घटनाएं सामने आ रही थी। इसी बीच दिव्या की पोस्टिंग तेलंगाना के आदिलाबाद में हुई। इस पोस्टिंग के बारे में याद करते हुए दिव्या बताती हैं, “इन झड़पों ने हिंसक रूप ले लिया था, इसलिए मेरी पोस्टिंग जल्दबाज़ी में की गई थी। मैं करीब एक रात में वहाँ पहुंची। जब मैंने कार्यभार संभाला तो वहाँ के लोगों में अविश्वास चरम पर था। मुद्दा संवेदनशील था और इसे काफी समझदारी और परिपक्व तरीके से संभालने की जरूरत थी।”

दिव्या को विश्वास था कि संवाद और बातचीत के ज़रिए स्थिति ठीक की जा सकती है। इसी विश्वास के साथ उन्होंने वहाँ का कार्यभार संभाला। वह जानती थीं कि समुदाय के माध्यम से उन्हें एक रास्ते की तलाश करनी है ताकि प्रभावी तरीके से काम किया जा सके। तीन महीने के भीतर, दिव्या ने गोंडी भाषा सीख ली जो लोगों के साथ बातचीत के लिए पर्याप्त था। उनकी मेहनत रंग लाई।

जनता केवल चाहती थी कि उनकी बात सुनी जाए और उन्होंने ऐसा ही किया।

दिव्या बताती हैं, “एक बार जब उन्हें अहसास हुआ कि मैं उनकी भाषा बोल सकती हूँ, तो उन्होंने अपन दिल की बात कहनी शुरू की। तीन महीने के भीतर, जहाँ पंचायत की बैठकों में एकदम चुप्पी छाई रहती थी वहीं खुल कर बातचीत होने लगी।”

सरकारी अस्पतालों में, विशेष आदिवासी समन्वयकों, भाषा अनुवादकों को नियुक्त करने से लेकर दिव्या ने प्रशासनिक कार्यालय तक आम लोगों की पहुँच आसान बनाने और खुद भाषा सीखने की पूरी कोशिश की और जल्द की वह “अधिकारी मैडम” से लोगों के परिवार का एक हिस्सा बन गईं। ग्रामीणों ने उनके सम्मान में, उनके ही नाम पर गाँव का नाम रखा है।

आईएएस अधिकारी के सम्मान में गांव का नाम दिव्यगुड़ा रखा गया है 

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दिव्या देवराजन, आईएएस ऑफिसर 2010 बैच

हाल ही में, आदिलाबाद के लोगों ने दिव्या के सम्मान में गाँव का नाम “दिव्यगुड़ा” रखा है। हालाँकि आदिलाबाद से दिव्या का तबादला हो चुका है। फरवरी 2020 में दिव्या की नियुक्ति महिला, बाल, विकलांग और वरिष्ठ नागरिकों के लिए सचिव और आयुक्त के रूप में हुई है। वह कहती हैं, “अगर मैं अभी भी जिले में होती, तो मैं उन्हें ऐसा न करने के लिए मना लेती।”

दिव्या ने जिस समुदाय के साथ मिलकर काम किया, वह उस सक्रिय महिला को नहीं भूलेगी, जो कई मुद्दों का तुरंत समाधान प्रदान करने में विश्वास करती थी। क्षेत्र में कई तरह की मूल समस्याएँ थीं जैसे कि अशिक्षा, बेरोजगारी, स्वच्छता, सिंचाई स्वास्थ्य और बाढ़ की उच्च दर। इन मुद्दों पर काम करने के साथ दिव्या ने क्षेत्र में होने वाले संघर्षों को हल करने के लिए भी लगातार काम किया।

दिव्या बताती हैं, “मैंने विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूहों के कल्याण के लिए एक विशेष अधिकारी नियुक्त किया ताकि उनसे जुड़े मुद्दों को बेहतर तरीके से संबोधित किया जा सके। मेरी अपनी समझ से बदलाव करने से बेहतर उनके दृष्टिकोण से उनके मुद्दों को समझना था।”

आदिलाबाद एक ऐसा क्षेत्र है, जहाँ अंतरजातीय हिंसा का इतिहास है। कर्फ्यू से लेकर डेटा कनेक्टिविटी बंद करने तक, क्षेत्र ऐसी घटनाओं का गवाह रहा है। ऐसी स्थिति में, खुले विचारों वाले और मृदुभाषी दिव्या आदिवासियों का विश्वास जीतने और उनके दिलों में जगह बनाने में कामयाब रहीं।

एक विशेष रूप से कमजोर वर्ग,थोटी समुदाय के एक आदिवासी नेता मारूति, जिन्होंने गाँव का नाम, दिव्यगुड़ा रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, द बेटर इंडिया से बात करते हुए कहते हैं, “हमारे यहाँ कई कलेक्टर आए और उन्होंने पदभार संभाला – क्या आप यकीन करेंगे कि मैंने पहली बार कलेक्टर कार्यालय में तब कदम रखा था, जब दिव्या मैडम ने पदभार संभाला था? इससे पहले कोई परवाह नहीं करता था।” 

जब उनसे पूछा गया कि आईएएस अधिकारी ने उनके जीवन में क्या प्रभाव डाला, तो उन्होंने कहा, “सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने कार्यालय तक हमारी पहुँच आसान बनाई। उन्होंने गाँव के प्रत्येक घर का दौरा किया और हम सभी को हमारे नामों से जानती थीं।”

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मारुति

जिस क्षेत्र में मारुति रहते हैं, वहाँ हर साल बाढ़ आने की संभावना रहती है। दिव्या के कार्यभार संभालने के बाद, भूमि को समतल करने के लिए कदम उठाए, जिससे काफी हद तक मदद मिली। वह कहते हैं, “हम आदिवासी हैं, हमारे पास बड़े उपहार देने के साधन नहीं है, लेकिन यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि मेरे बाद की पीढ़ियाँ भी उस काम के लिए धन्यवाद दें जो दिव्या मैडम ने हमारे लिए किया था और इसलिए हमने उनके नाम पर अपने गाँव का नाम रखा।”

उनकी भाषा सीखना, उनका विश्वास जीतना

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लोगों के लिए एक उदाहरण : दिव्या

दिव्या के पहले कई अफसरों ने आदिलाबाद में बोली जाने वाली जनजातीय भाषाओं में से एक गोंडी सीखने की कोशिश की थी ताकि लोगों के साथ प्रभावी ढंग से संवाद किया जा सके। हालाँकि, ज़्यादातर अधिकारियों ने भाषा की बुनियादी जानकारी के बाद यह सीखना बंद कर दिया लेकिन दिव्या ने सीखना जारी रखा और भाषा पर इतनी पकड़ बनाई कि लोगों ने साथ सार्थक बातचीत करने में सक्षम हो सकें। 

दिव्या कहती हैं, “मैं उनके साथ कनेक्शन बनाना चाहती थी और यह कनेक्शन केवल उनके साथ अभिवादन करने में सक्षम के लिए नहीं था।” प्रत्येक दिन, काम के बाद, दिव्या ने बड़ी लगन के साथ आदिलाबाद में ऑल इंडिया रेडियो स्टेशन के वरिष्ठ अनाउंसर, दुर्वा भुमन्ना के साथ भाषा सीखने पर समय बिताया।

यह सच है कि दिव्या ने जो भाषा सीखी, उससे उन्हें बहुत फायदा हुआ क्योंकि लोगों के मुद्दे उनके सामने आने लगे। लोगों ने उन पर भरोसा करना शुरू कर दिया, क्योंकि उन्हें लगने लगा कि दिव्या उन लोगों को समझने के लिए सच्ची कोशिश कर रही हैं। उन्होंने आदिवासियों के पक्ष में कुछ लंबे समय से लंबित भूमि मुद्दों को सुलझाने में मदद की, जिसे सोमवार शिकायत निवारण सत्रों में प्रस्तुत किया गया था। इसके अलावा, उसने कपास की खरीद को सुव्यवस्थित किया और साथ ही आदिवासियों को उनकी उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य तक पहुँचने के लिए मंच बनाया।

दिव्या कहती हैं, “हमारे लिए समूहों के साथ एक सार्थक बातचीत शुरू करना महत्वपूर्ण था। उनके भरोसे को हासिल करना मुश्किल था, हमें ऐसे लोगों के रूप में देखा जाता था जो उनके अधिकारों को छीनने आए थे, लेकिन हम बीच का रास्ता निकालने में कामयाब रहे।”

दिव्या ने महसूस किया कि भाषा ग्रामीणों के साथ संचार में अड़चन साबित हो सकती है, आईएएस अधिकारी ने उपचार के लिए बेहतर पहुँच सुनिश्चित करने के लिए जिला अस्पताल (RIMS) में एक विशेष जनजातीय समन्वयक और गोंडी भाषा अनुवादकों की नियुक्ति की।

लोगों को उनके अधिकार जानने में मदद करना

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लोगों की चहेती

आदिलाबाद में दिव्या का प्राथमिक जोर असंतुष्ट जनजातियों को उनकी समस्याओं के समाधान खोजने के लिए कानूनी और संवैधानिक साधनों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना था।

इसके लिए उन्होंने ग्राम पंचायत स्तर पर पीईएसए (पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों के लिए विस्तार, 1996) पर समन्वयक नियुक्त किया और उनके अधिकारों पर जागरूकता पैदा करने और उनका उपयोग करने के लिए रिक्त पदों को भरा। उन्होंने राय केंद्र नामक पारंपरिक पंचायतों को पुनर्जीवित करने और उन्हें विकास गतिविधियों में शामिल करने में भी मदद की।

इसके अलावा, आदिवासी समुदायों की संस्कृति का सम्मान और संरक्षण करने के लिए, दिव्या ने आधिकारिक रूप से उनके मुख्य त्योहारों जैसे डंडारी-गुसाड़ी और नागोबा जात्रा का समर्थन करने और एक वृत्तचित्र के रूप में उनकी परंपराओं का दस्तावेजीकरण करने की कोशिश की।

मैंने बिट्स पिलानी से इंजीनियरिंग करने वाली दिव्या से आईएएस अधिकारी बनने की प्रेरणा के बारे में पूछा और इस सवाल के जवाब में वह मुझे अपने बचपन में वापस ले गई।

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ज़मीन से जुड़ी हुई ऑफिसर

दिव्या अपने दादा के बारे में बताती हैं, जो तमिलनाडु में एक किसान थे। वह कहती हैं, “मैंने देखा कि ऋण प्रणाली कैसे काम करती है और जाने-अनजाने में वे सभी (किसान) इसमें खिंचे चले जाते हैं और फिर इसमें ही खो जाते हैं। मैंने अपने दादा को अधिकारियों के आने पर डर कर मंदिरों में छिपते हुए देखा है।”

इस घटना ने उन्हें अहसास दिलाया कि प्रशासन किसानों की कितनी ज़्यादा मदद कर सकता है और उनकी समस्याओं को सुनकर, उनके ठोस समाधान देकर उनका जीवन बदल सकता है। आदिलाबाद में, उन्होंने उन आदिवासी रोगियों को आर्थिक और एम्बुलेंस सहायता प्रदान की जिन्हें हैदराबाद में सर्जरी और बेहतर उपचार की जरूरत होती थी।

यह करियर चुनने के पीछे एक और कारण दिव्या के पिता थे, जिन्होंने तमिलनाडु बिजली बोर्ड (TNEB) के साथ काम किया था। दिव्या बताती हैं, “वह अक्सर लोगों की सेवा करने में महसूस किए जाने वाले आनंद के बारे में कहा करते थे। 60 के दशक में जब उन्होंने गाँवों को विद्युतीकृत करने में मदद की, तो किसानों के चेहरे पर जो खुशी देखी गई, वह उनकी नौकरी की संतुष्टि थी और मैं भी यह महसूस करना चाहती थी।”

दिव्या ने जल्दी ही महसूस किया कि सेवा का हिस्सा होने से वह बड़े पैमाने पर प्रभाव डाल सकती है। गाँव वालों का दिव्या के प्रति प्यार देख कर लगता है कि आईएएस अधिकारी अपने प्रयास के सही रास्ते पर हैं। आखिर कितने आईएएस अधिकारियों के नाम पर गाँव का नाम रखा जाता है?

दिव्या कहती हैं, “मेरे कुछ दोस्तों ने मुझे फोन किया है और एक छोटी सी गली का नाम भी उनके नाम पर रखने का अनुरोध किया है।” दिव्या कहती हैं, उन्हें अभी काफी कुछ करना है, काफी लोगों की मदद करनी है। 

मूल लेख-

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