किसी भी शहर के बाज़ार में हम चले जाएँ, वहाँ के दुकानों के साइन बोर्ड पर ‘संस’ या ‘ब्रदर्स’ लिखा हुआ आसानी से दिख जाएगा। अपने देश में लंबे समय से इस तरह के नाम लिखने की परंपरा सी चली आ रही है। दरअसल यह संपत्ति के स्वामित्व को दर्शाता है, जहाँ सबकुछ बेटे के नाम रखने की परंपरा रह है। लेकिन लुधियाना के रहने वाले मनोज कुमार गुप्ता ने इन मानदंडों को तोड़ते हुए अपनी फार्मेसी का नाम अपनी बेटी, अकांक्षा के साथ जोड़ते हुए ‘गुप्ता एंड डॉटर्स’ रखा है।
54 वर्षीय मनोज गुप्ता ने अपना करियर एक बिल्डिंग कॉन्ट्रैक्टर के रूप में शुरू किया था और वह ‘गुप्ता एंड संस’ नाम की एक कंस्ट्रक्शन कंपनी के मालिक हैं। 2017 में, उन्होंने एक दूसरे उद्यम में कदम रखा और एक फार्मेसी शुरू की। वह फार्मेसी के एक दिलचस्प नाम की तलाश में थे।
वह बताते हैं, “हम नामों की तलाश में थे और प्रधानमंत्री के ‘बेटी बचाओ, बेटी पढाओ’ के नारे से बहुत ज़्यादा प्रेरित थे और फिर हमने ऐसा करने का फैसला किया। हालाँकि, परिवार के कुछ सदस्यों की इससे असहमति थी लेकिन मेरी पत्नी और बच्चों को ये आईडिया बहुत पसंद आया। मैं चाहता हूँ कि मेरे स्टोर का नाम लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण का प्रतीक हो। ”
कुछ समय बाद, लुधियाना में एक मेडिकल पेशेवर, अमन कश्यप ने ट्विटर पर मेडिकल स्टोर के साइनबोर्ड की एक तस्वीर साझा की। कुछ ही समय में, ट्वीट को 6000 से अधिक लाइक मिले और इसे एक हजार से ज़्यादा बार रीट्वीट किया गया। कई लोगों ने अन्य व्यवसायों की तस्वीरें भी साझा कीं, जहाँ दुकानों के नाम बेटों की बजाय बेटियों के नाम पर रखे गए थे। यहाँ कुछ उदाहरण हैं।
Breaking the stereotypes…
Felt good to see that common people have started having faith and confidence in there daughters that too in a place like haryana! 🙂
Kudos to goyal & daughters!!! #BetiBachaoBetiPadhao pic.twitter.com/0O1Upf9MVb— Harshita 🌻 (@ami_Harshita) June 2, 2019
Gupta nd daughters …. 👏🏽👏🏽 Unlike all the shops opened in the name of Sons, a medicine shop in association with “Gupta & Daughters” spotted in Ludhiana.
Be the change you want to see in this world ♥️ pic.twitter.com/rRE2JiYHpK— Dr Aman kashyap (@DrAmankashyap) May 22, 2020
सही उदाहरण सेट करना
मनोज गुप्ता के बच्चे, आकांक्षा और रोशन को अपने माता-पिता पर गर्व है कि उन्होंने स्टीरियोटाइप को तोड़ने का फैसला लिया और समाज के लिए एक मिसाल कायम की। रोशन एमबीए ग्रेजुएट हैं और आकांक्षा लॉ स्टूडेंट हैं।
रोशन बताते हैं, “मैं आकांक्षा से बड़ा हूँ और बचपन से ही मेरे पिता ने हमें बताया है कि हम बराबर हैं। वह हमेशा इस बात पर जोर देते थे कि हम एक-दूसरे के साथ सम्मान से पेश आएँ।”
गुप्ता सही मान और संस्कार के लिए माता-पिता को और परिवार का मुखिया बनने और नाम ऊँचा रखने के लिए पत्नी को श्रेय देते हैं। कुछ दिनों पहले, ‘गुप्ता एंड डॉटर्स’ ने लुधियाना में एक गैर-लाभकारी संगठन, सिख कल्याण परिषद के साथ पार्टनरशिप शुरू की है। ये मिलकर गरीबों को सस्ते दाम पर दवाइयाँ उपलब्ध करा रहे हैं।
दुकान पर पिता की मदद करने वाले रोशन कहते हैं, “यह काम बिना किसी मुनाफे के किया जा रहा है, जहाँ दवाएँ खुदरा विक्रेताओं से खरीदी जाती हैं और ग्राहकों को लागत मूल्य पर बेची जाती हैं। कोविड-19 महामारी को देखते हुए, जब हर कोई आय के नुकसान पर है और उनके पास खर्च करने के लिए कम पैसा है, हमने न्यूनतम दर पर दवाइयाँ उपलब्ध कराने का फैसला किया है।”
जबकि गुप्ता की पहल निश्चित रूप से पितृसत्तात्मक मानदंडों को चुनौती दे रही है, लेकिन ऐसा करने वाले एकमात्र यही नहीं है।
निश्चित रूप से, समाज में जो परिवर्तन हम देखना चाहते हैं, हमें वह परिवर्तन लाने का प्रयास करना चाहिए।
मूल लेख-ROSHINI MUTHUKUMAR
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