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चिड़िया का टूटा घोंसला और अंडा देख शुरू की मुहिम, 6 सालों में उगाए 55 जंगल!

हाल ही में, उन्होंने पुलवामा शहीद वन भी तैयार किया है, जहां 40 शहीदों के नाम पर 40 हज़ार पेड़ लगाए गए हैं!

बहुत बार हम और आप पक्षियों के घोसलों को गिरते हुए और उनमें रखे उनके अंडे को टूटते हुए देखते हैं। हम सिर्फ देखते हैं और फिर भूल जाते हैं। क्यों पक्षियों के घोंसले कम हो रहे हैं और क्यों पक्षी कम हो रहे हैं? यह सवाल मन में उठता ही नहीं।

कोई अगर पूछे तो हम कहेंगे कि हम क्या कर सकते हैं? लेकिन यह भी सच है कि हमलोगों को ही कुछ करना होगा। हम ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगा सकते हैं। अपने स्वार्थ में जिस प्रकृति को बर्बाद किया है उसे फिर से आबाद करने के कदम उठा सकते हैं। आज आपका एक कदम, कल की बड़ी मुहिम बन सकता है।

जैसा कि दो व्यवसायी- राधाकृष्णन नायर और दीपेन जैन कर रहे हैं। नायर और जैन की दोस्ती 10 साल पुरानी है। दोनों पिछले 6 साल से साथ में काम कर रहे हैं। इनका काम है- जंगल उगाना।

RK Nair and Dipen Jain, Founders of Forest Creators

सही पढ़ा आपने, नायर और जैन, साथ में मिलकर मियावाकी तकनीक से जंगल उगा रहे हैं। कम समय में घने जंगल विकसित करने की यह काफी सफल तकनीक है। उन्होंने अब तक लगभग 9 लाख पौधे लगाए हैं और ये पौधे, आज वृक्ष बन चुके हैं।

द बेटर इंडिया ने इन दोनों पर्यावरणविदों से इनके सफ़र के बारे में बात की। नायर ने बताया कि वह मूल रूप से केरल के हैं। शुरूआत में ही उनका परिवार कर्नाटक आ गया। बाद में वह काम की तलाश में मुंबई पहुंचे और फिर वहां से गुजरात के उमरगाँव आ गए। जहां उन्होंने खुद अपना कपड़ों का व्यवसाय शुरू किया।

दूसरी ओर दीपेन जैन मुंबई में पले-बढ़े हैं और एक व्यवसायी परिवार से ताल्लुक रखते हैं। इन दोनों की मुलाक़ात व्यवसाय के चलते ही हुई। हमेशा से ही सामाजिक कार्यों से जुड़े रहे नायर कहते हैं कि कई साल पहले उमरगाँव में सड़कों को चौड़ा करने के लिए सैकड़ों पेड़ों को काटा गया। उन्होंने इसे रोकने के लिए काफी जद्दोजहद भी की लेकिन कुछ हो नहीं पाया।

Growing Forest

एक दिन नायर अपनी गाड़ी से गुजर रहे थे तो उन्होंने देखा कि एक चिड़िया सड़क किनारे घूम रही है और आवाज दे रही है। उन्होंने गौर किया तो पता चला कि नीचे अंडे फूटे पड़े हैं। नायर ने कहा, “वह चिड़िया बार-बार ऊपर के पेड़ों में जाती और फिर नीचे उन टूटे अंडों के पास आती। उसे देखकर मुझे लगा कि मानो वह हम सबसे मदद मांग रही हो। हमसे पूछ रही हो कि हमने क्या बिगाड़ा था? उस घटना ने मुझे बहुत प्रभावित किया।”

नायर सोचते रहे कि आखिर वह क्या कर सकते हैं? फिर इस बारे में उनकी बात उनके साथी दीपेन जैन से हुई। दीपेन बताते हैं कि जब नायर ने उन्हें इस बारे में बताया तो उन्हें भी लगा कि वाकई हम सबको कुछ करना चाहिए।

जैन ने कहा, “अपने व्यवसाय के सिलसिले में मेरा अक्सर जापान जाना होता है। वहां के हमारे कई क्लाइंट हैं। वहीं मुझे ‘मियावाकी तकनीक’ के बारे में पता चला। ‘मियावाकी’ कम जगह में अलग-अलग किस्म के ज्यादा-ज्यादा पेड़-पौधे लगाने की तकनीक है। इसे हमने ‘सघन वन’ नाम भी दिया है।”

Umargaon Project

नायर और जैन ने जापान के मियावाकी संस्थान में संपर्क करके यह तकनीक सीखी। नायर का बचपन पेड़-पौधों के बीच गुजरा क्योंकि उनका परिवार कृषि से जुड़ा हुआ था। इसलिए उनके लिए इस तकनीक को समझना और इस पर काम करना मुश्किल नहीं रहा।

इन दोनों ने मिलकर उमरगाँव में एक ज़मीन का छोटा-सा टुकड़ा खरीदा और वहां पर सबसे पहले अपना एक मियावाकी जंगल लगाया। मात्र दो-ढाई साल में ही लगातार देख-रेख के चलते यह जंगल बहुत अच्छे से पनप गया। इस जंगल की सफलता ने उनके काम को पूरे इलाके में पहचान दिला दी।

“नायर जी पहले से ही काफी सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं। इसके चलते इलाके के स्कूल-कॉलेज उन्हें पहचानते हैं। उनके जंगल के बारे में जानकर उन्हें स्कूल और कॉलेजों में भी पेड़-पौधे लगाने का मौका मिला। फिर धीरे-धीरे हमें इंडस्ट्री से भी ऑफर आने लगे और तब हमने एनवायरो क्रिएटर फाउंडेशन बनाई। इसके अंतर्गत, हमने ‘फारेस्ट क्रिएटर्स’ की शुरूआत की,” जैन ने बताया।

फारेस्ट क्रिएटर्स की टीम अब तक 12 राज्यों में 55 मियावाकी जंगल तैयार कर चुकी है। इनमें से कोई जंगल कम जगह में है तो कोई काफी बड़ी जगह में। हर एक प्रोजेक्ट को उन्होंने अलग-अलग लोगों के साथ किया है। कोई इंडस्ट्रियल कंपनी के लिए है तो बहुत से प्रोजेक्ट उन्होंने बड़ी-बड़ी कंपनी के सीएसआर की मदद से किए हैं।

हाल ही में उन्होंने उमरगाँव में एक और प्रोजेक्ट पूरा किया है। इस मियावाकी जंगल का नाम है ‘पुलवामा शहीद वन’- यह पुलवामा हमले में शहीद हुए सिपाहियों की याद में उगाया गया है।

“हमने 40 शहीदों के नाम पर 40 हज़ार पेड़ लगाए हैं। मतलब एक शहीद के नाम पर 1000 पेड़। इन्हें अलग-अलग पैच में लगाया गया है। कुछ समय पहले ही हमने यह प्रोजेक्ट पूरा किया है और अब हम अपने अगले प्रोजेक्ट की तैयारी में हैं,” नायर ने बताया।

उनके द्वारा लगाए गए पौधों के पेड़ बनने की सफलता दर 99% है क्योंकि वे सिर्फ पेड़ नहीं लगाते हैं बल्कि इन जंगलों को शुरू के तीन साल तक बच्चों की तरह पालते-पोषते हैं।

In December 2019, they have completed the plantation of Shaheed Pulwama Van

जैन के मुताबिक, उनकी टीम बहुत ही सिस्टेमेटिक ढंग से काम करती है-

1. सबसे पहले जगह चुनी जाती है और पता किया जाता है कि यह ज़मीन पौधे लगाने के लिए उपयुक्त है या नहीं।

2. यदि ज़मीन बंजर है तो वहां पर खाद, कृषि अपशिष्ट और केंचुयें जैसे सूक्ष्म जीव डालकर उपजाऊ बनाई जाती है।

3. इसके बाद, हम उस इलाके की वनस्पति को समझते हैं, मतलब कि हम देखते हैं कि कौन-से स्थानीय पेड़-पौधे हम लगा सकते हैं। मियावाकी जंगल तभी कामयाब होते हैं यदि इलाके की स्थानीय किस्में लगाईं जाएं।

4. ज़मीन तैयार करने के बाद, 30 से 40 किस्म के अलग-अलग पेड़ बहुत ही पास-पास लगाए जाते हैं और फिर इनके ऊपर सूखे पत्तों से मल्चिंग की जाती है।

5. इसके बाद हर सुबह-शाम पानी दिया जाता है। मात्र छह महीने में ही पेड़ अच्छा विकास करने लगते हैं। लेकिन फिर भी कम से कम तीन साल तक आपको इनकी सिंचाई करनी होती है।

Step by step Guide

6. इसके बाद जैसे-जैसे पेड़ बढ़ते हैं तो ये एक सघन वन का रूप ले लेते हैं। पेड़ों के बीच की दूरी एकदम कम होने से सूरज की धूप इनकी जड़ों पर बिल्कुल नहीं पड़ती।

7. तीन साल के भीतर ही इन पेड़ों की जड़ें बारिश के पानी को स्टोर करना शुरू कर देती हैं। जिस वजह से भूजल स्तर भी काफी बढ़ता है।

नायर के मुताबिक, तीन साल बाद इन जंगलों को किसी बाहरी रख-रखाव की ज़रूरत नहीं होती बल्कि ये खुद अपनी सभी ज़रूरतें पूरी कर लेते हैं। मियावाकी तकनीक से लगाए गए जंगल बड़े शहरों में काफी कारगर साबित हो रहे हैं।

जैसे कि मुंबई में जगह की काफी कमी है ऐसे में अगर छोटे-छोटे ज़मीन के टुकड़ों पर भी ये जंगल विकसित किए जाएं तो शहर को प्रकृति के करीब लाया जा सकता है। हालांकि, एक बात जो दीपेन जैन बहुत स्पष्ट रूप से कहते हैं और वह है कि मियावाकी जंगल हमारे प्राकृतिक जंगलों की कोई रिप्लेसमेंट नहीं हैं।

मियावाकी तकनीक से जंगल लगाने का यह बिल्कुल भी मतलब नहीं है आपको प्राकृतिक रूप से बढ़े हमारे पेड़ों को काटने का हक मिल गया।

They involved the community in the process

“प्राकृतिक जंगलों को काटने का अधिकार किसी को नहीं है। अगर कोई कहता है कि हम प्राकृतिक रूप से उगे बरसों पुराने आपके 50 पेड़ काट दें और इसके बदले में आपको 1000 पेड़ों का मियावाकी जंगल तैयार कर देंगे तो यह बिल्कुल भी सही नहीं है। क्योंकि प्राकृतिक रूप से जो पेड़ उगते हैं, जो प्रकृति खुद हमें देती है, उसका मुकाबला कोई तकनीक नहीं कर सकती है। बाकी मियावाकी तकनीक एक ज़रिया है कम समय में अपने शहरों को हरियाली से भरने का,” उन्होंने आगे कहा।

अंत में वह सिर्फ इतना कहते हैं कि आने वाले 10 सालों में उनकी योजना 100 करोड़ पेड़ लगाने की है। हमें उम्मीद है कि आरके नायर और दीपेन जैन का यह सपना ज़रूर पूरा होगा। इस मुहिम को जन-जन से जोड़ने के लिए वे इच्छुक लोगों को मुफ्त में मियावाकी की ऑनलाइन ट्रेनिंग भी देते हैं। साथ ही, जब भी वे कोई जंगल लगाते हैं तो इलाके के स्कूल और कॉलेज से बच्चों को अपने साथ लेते हैं ताकि आने वाली पीढ़ी को यह गुर सिखाया जा सके।

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