कोविड-19 के संक्रमण ने भारत समेत पूरे विश्व में जो माहौल बनाया है उससे हर कोई परेशान है, करोड़ों लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट है। आपदा की इस घड़ी में किसान भी लगातार दिक्कतों से जूझ रहे हैं। उत्पादन तो हुआ है, लेकिन कहीं ओला वृष्टि और बरसात के चलते फसल पर मार है तो कहीं उत्पादन तो अच्छा है पर खरीददार नहीं है।
मुश्किलों भरे इस समय को चुनौती मानकर झारखंड की किसान उत्पादक कंपनियां लगातार परेशान किसानों की मदद कर रही हैं। ये किसान उत्पादक कंपनी झारखंड सरकार के ग्रामीण विकास विभाग के ‘जोहार’ परियोजना के तहत गठित किए गए हैं।
किसान उत्पादक कंपनियां राज्य में गठित 3244 उत्पादक समूहों से जुड़े किसानों के उत्पादों को स्थानीय एवं थोक विक्रेताओं से जोड़ने के लिए लगातार प्रयासरत हैं। ये कंपनियां उत्पादक समूहों के जरिए किसानों की उपज को बर्बाद न होने से रोकने के लिए कई लिंकेज स्थापित कर चुकी हैं।
उत्पादक समूहों के अंतर्गत हजारों किसानों को कृषि संबंधी कार्य एवं बाजार उपलब्ध करने में सहयोग किया जा रहा है ताकि लॉकडाउन में किसानों की आय सुनिश्चित हो सके एवं मौसमी उत्पादों की बिक्री सुनिश्चित की जा सके।
शहरी इलाकों में सब्जियों की कमी को लेकर पूरा सप्लाई चेन अजीबोगरीब दौर से गुजर रहा है। ऐसी परिस्थिति में जोहार परियोजना के विशेष हस्तक्षेप से उत्पादक कंपनियों ने बड़े सब्जी विक्रेताओं से सीधा संपर्क कर और जिला प्रशासन से अनुमति लेकर, 335 उत्पादक समूहों से जुड़े किसानों के उपज को बाजार तक पहुंचाने का काम किया है। झारखंड के विभिन्न जिलों के 9 उत्पादक कम्पनियों के जरिए अब तक 825 मीट्रिक टन सब्जियों एवं फलों की बिक्री कर 80 लाख रुपये से ज्यादा का कारोबार किया गया है।
हर साल गर्मियों में झारखंड से तरबूज एवं खरबूज का बंपर उत्पादन होता है इस साल भी उत्पादन अच्छा हुआ है लेकिन किसानों के सामने लॉकडाउन की वजह से बिक्री की दिक्कत थी। इस पहल से अब तक 630 मीट्रिक टन तरबूज की बिक्री अच्छी कीमत पर की गई है जिससे करीब 26 लाख रुपये की आमदनी किसानों को हुई है।
रामगढ़ जिले के बरियातू उत्पादक समूह से जुड़ी नुनिबला देवी बताती हैं, “उत्पादक समूह के माध्यम से हमने तरबूज की खेती की थी। अब बाजार तो बंद है और गाँव के व्यापारी 5 रूपये का दाम लगा रहे थे, ऐसे मुश्किल समय में जब हमारे पास कोई रास्ता नहीं था तो राजरप्पा किसान उत्पादक कंपनी (RKPCL) ने हमारी मदद की और हमें 8 से 10 रूपये का भाव अपनी उपज का मिला। हमें कहीं जाने की जरूरत भी नहीं पड़ी।”
रांची के सरहुल आजीविका किसान उत्पादक कंपनी की बोर्ड ऑफ डायरेक्टर शशिबाला बताती हैं, “जोहार परियोजना से जुड़कर किसानों को लाभ मिला है। आज हम इस उत्पादक कंपनी के जरिए हजारों किसानों को लाभ पहुंचा रहे हैं। लॉकडाउन के दौरान केले की बिक्री स्थानीय स्तर पर 3 रुपये प्रति किलो हो रही थी, वहीं हमने उत्पादक कंपनी के जरिए थोक में बाहर उत्पाद भेजा और किसानों को प्रति किलो 8 रुपये प्राप्त हुए। उत्पादक समूह में जुड़ने से एक दूसरे के प्रति विश्वास की भावना भी मजबूत हुई है।”
सरायफूल महिला किसान उत्पादक कंपनी से जुड़ी किसान कलावती देवी का कहना है, “उत्पादक कंपनी ने हम किसानों को उम्मीदों का हौसला दिया है और आसमां छूने का जज्बा हमारे पास है। लॉकडाउन पीरियड में हमारी कमाई 10 से 15 फीसदी बढ़ी है क्योंकि हमें बिचौलिओं से छुटकारा मिला है। लॉकडाउन की इस सीख को हम आगे भी जारी रखेंगे।”
जोहार परियोजना के प्रोजेक्ट डायरेक्टर, बिपिन्न बिहारी बताते हैं कि लॉकडाउन के दौरान किसानों की उपज को अन्य राज्यों में भी भेजा गया है। उन्होंने कहा कि हमें कई संस्थागत रिटेलर के कॉल आ रहे है , जिनके जरिए उत्पादक कंपनी को आने वाले दिनो में और अच्छी आय होगी।
झारखंड के ग्रामीण विकास विभाग के विशेष सचिव राजीव कुमार ने बताया, “जोहार परियोजना के अंतर्गत सब्जी एवं फल के लिए तो हम बाजार उपलब्ध करा ही रहे हैं, हम झारखंड के वैसे ग्रामीण जो मछली पालन, अंडा उत्पादन से जुड़े कार्य कर रहे हैं उनको भी बाजार उपलब्ध करा रहे हैं ताकि किसी को भी लॉकडाउन में उत्पादों के खराब होने से आर्थिक परेशानी न झेलना पड़े।“
विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित जोहार परियोजना का क्रियान्वयन ग्रामीण विकास विभाग अंतर्गत झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाईटी के द्वारा राज्य में किया जा रहा है। जिसके अंतर्गत 17 जिलों में किसानों की आय दुगनी करने हेतु उत्पादक समूह में जोड़कर उन्हें विभिन्न प्रकार से उन्नत खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
लॉकडाउन में भी खेती-बाड़ी का काम कर रही उत्पादक समूहों की महिला किसानों को इस महामारी से बचने के लिए सरकार द्वारा जारी निर्देशों से अवगत कराया गया है। महिला किसान अपने खेतों में कृषि कार्य के दौरान मास्क का उपयोग एवं सोशल डिस्टेंसिंग का पूरी तरह से पालन करती हैं। अपने उपज की तोड़ाई, वज़न करने से लेकर पैकिंग तक स्वच्छता का पूरा ध्यान रखती हैं।
कल तक अपनी पहचान छुपाने वाले और बेबसी में जीवन व्यतीत कर रहे झारखंड के किसानों का आत्मविश्वास बढ़ा है।
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