इंसान के जीवन में सबसे ज्यादा देखभाल की जरूरत दो ही अवस्था में होती है पहला जब वह इस दुनिया में आता है यानी बचपन और दूसरा जब वह अपने बच्चों को उनके पांव पर खड़ा होना सिखाने के बाद जीवन के अंतिम पड़ाव पर होता है यानी बुढ़ापा। आमतौर पर बचपन में तो परिवारिक हैसियत के हिसाब से लालन-पालन में माता-पिता कोई कसर नहीं छोड़ते, लेकिन आए दिन कई ऐसे मामले भी मिलते हैं कि लोग बुजुर्ग माता-पिता को ओल्ड एज होम की चौखट पर छोड़ आते हैं।
डॉक्टरों को भले ही भगवान का दूसरा रूप कहा जाता है। दिल्ली स्थित एम्स में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. प्रसून चटर्जी अपने पेशे के साथ-साथ सामाजिक कर्तव्य का निर्वहन करते हए ओल्ड एज होम में रहनेवाले इन बुजुर्गों के स्वास्थ्य की देखभाल कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने ‘हेल्दी एजिंग इंडिया’ की कल्पना को भी साकार कर दिखाया। दो बच्चों के पिता डॉ. प्रसून इसे अपनी तीसरी संतान मानते हैं।
डॉ. प्रसून चटर्जी ने द बेटर इंडिया को बताया, “शुरूआती दौर में जब ओल्ड एज होम में बुजुर्गों के इलाज के लिए कैंप लगाने का मौका मिलता था तो वहां की स्थिति देखकर दुःख होता था। मुझे ओल्ड एज होम के हेल्थ केयर को सुधारने की जरूरत महसूस हुई। दरअसल वहां ऐसे ही लोग आते हैं जिन्हें उनके परिवार वालों ने अकेला छोड़ दिया है। ऐसे बुजुर्गों के स्वास्थ्य जांच के साथ-साथ उनके काउंसलिंग की भी जरूरत होती है।”
एक घटना का जिक्र करते हुए डॉ. प्रसून बताते हैं, “एक बुजुर्ग को उनकी पत्नी ओल्ड एज होम तक छोड़ गई थी। जब मुझे पता चला तो मैंने दोनों से बात की। काउंसलिंग के बाद आज दोनों साथ रह रहे हैं।“
बुजुर्गों के लिए कैंप लगाने के दौरान डॉ. प्रसून को लगा कि इसके लिए कोई स्थायी व्यवस्था करनी चाहिए। फिर उन्होंने मोबाइल यूनिट के बार में सोचा। रोटरी क्लब और ओएनजीसी की मदद से आज उनके पास दो मोबाइल क्लीनिक हैं, जो रोजाना ओल्ड एज होम का दौरा करती है और बुजुर्गों का इलाज करती है।
दिल्ली में फिलहाल 74 ओल्ड ऐज होम चल रहे हैं। डॉ. प्रसून ने 74 में से उन ओल्ड एज होम को चुना, जहां मौजूद 70 प्रतिशत लोगों के पास स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं हैं। ऐसी जगहों पर हेल्दी एजिंग इंडिया की टीम रोज जाती है। उनकी बीमारियों का उपचार किया जाता है। जब भी कोई गंभीर बीमारी की नौबत आती है तो वे एम्स में लाकर उनका इलाज करते हैं। इस मोबाइल क्लीनिक में एमबीबीएस डॉक्टर, फीजीओ थैरेपिस्ट और ड्राइवर की टीम काम करती है।
हेल्दी एजिंग इंडिया
यह एक नॉन प्रॉफिट एनजीओ है। इसकी स्थापना 19 अगस्त 2013 में की गई थी। उसी साल 19 अगस्त को इसे मान्यता मिली। मोबाइल हेल्थकेयर वैन की अगर बात करें तो इसकी शुरूआत एक अक्टूबर 2018 को दिल्ली स्थित एम्स के कैंपस से हुई थी।
मोबाइल क्लीनिक में क्या-क्या सुविधाएं होती हैं?
ओल्ड एज होम में जाकर बुजुर्गों के स्वास्थ्य की जांच करने वाले इस वैन में सारी सुविधाएं फ्री में दी जाती हैं। उनका फ्री हेल्थ चेकअप किया जाता है। छोटे-छोटे जांच के लिए पैसे नहीं लिए जाते हैं। इसके अलावा उन्हें एक महीने की दवाई फ्री में दी जाती है। अगर कोई बुजुर्ग गंभीर रूप से बीमार होते हैं तो उन्हें AIIMS लाया जाता है।
हेल्दी एजिंग इंडिया की मदद से अभी तक दिल्ली के 29 ओल्ड एज होम के 1800 से अधिक लोगों को मदद की जा चुकी है। मोबाइल क्लीनिक रोजाना 100 से अधिक लोगों का इलाज करती है। इस सामाजिक काम में कॉलेज के वालेंटियर भी हाथ बंटाते हैं।
कोरोना संकट में भी लोगों तक मदद पहुंचा रहे हैं डॉ. प्रसून
डॉ. प्रसून और उनकी टीम कोरोना महामारी के बीच दिल्ली की झुग्गियों में लोगों को खाना खिलाने के साथ-साथ राशन बांटने का काम कर रही है। इस दौरान वह अंडरपास में जीवन बसर करने वालों की भी सुधि ले रहे हैं। अभी तक लगभग 1000 से अधिक परिवारों को खाना पहुंचाया जा रहा है। इसके लिए दो-दो किचन बनाये गए हैं। इतना ही नहीं इनकी टीम एम्स के अटेंडेंट को भी इस समय खाना खिला रही है। इनकी टीम दिल्ली के करीब 10 झुग्गियों में काम कर रही है।
खाना के साथ-साथ रोजगार की भी व्यवस्था
डॉ. प्रसून को सीआरपीएफ के डीजी की तरफ से 10 ट्रेलर मशीनें मिली हैं। उन्होंने झुग्गी में रहने वाले लोगों के बीच इसे बांटा है। साथ ही उन्हें मास्क बनाने के लिए कपड़े भी दिए जा रहे हैं। इसके अलावा मास्क बनाने वालों को 2.5 रुपए प्रति मास्क की दर से मेहनताना दिया जाएगा।
डॉ. प्रसून बताते हैं, “महामारी के कारण इन लोगों का रोजगार खत्म हो गया है। हमने एक लाख मास्क बनवाने का लक्ष्य रखा है। इससे इन्हें रोजाना करीब 300 से 500 रुपए तक की कमाई हो जा रही है। हम अब इससे आगे बढ़ते हुए सिलाई मशीन की ट्रेनिंग देने के लिए भी प्रोत्साहित कर रहे हैं।”
जाहिर सी बात है कि इतने बड़े पैमाने पर काम करते हुए फंड की भी जरूरत होती होगी। इस संबंध में डॉ. प्रसून कहते हैं, “अगर आप सच्चे मन से समाज के लिए कुछ कहना चाहते हैं तो पैसों की कमी कभी महसूस नहीं होती है। यह बात सही है कि हमारे पास फंडिंग का कोई फिक्स या बड़ा माध्यम नहीं है। लेकिन लोग हमें व्यक्तिगत स्तर पर इस काम में मदद करते हैं। जैसे कि कोई पैसे डोनेट करते हैं तो कोई बुजुर्गों के लिए जरूरी उपकरण जैसे कि व्हीलचेयर दे देते हैं। इसी की बदौलत हम निरंतर बुजुर्गों के स्वास्थ्य की देखभाल कर रहे हैं।“
डॉ. प्रसून चटर्जी के इस काम में अगर आप भी सहयोग करना चाहते हैं तो उनसे contact.healthyaging@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।
यह भी पढ़ें – गाली सुनकर भी आपा नहीं खोया, सुनिए सेवा के प्रति समर्पित एक आईपीएस अधिकारी की कहानी
यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com(opens in new tab) पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर व्हाट्सएप कर सकते हैं।
We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons: