शिल्पा “हल्ली माने रोटी” की मालकिन हैं। यह मंगलुरू का एक लोकप्रिय फास्ट फूड ट्रक है। फूड ट्रक चलाने वाली शिल्पा साधारण उद्यमी नहीं हैं। 2015 में जब शिल्पा ने यह फूड ट्रक शुरू किया था तब उसके पास बहुत थोड़े पैसे थे। उनके पास बिजनेस और हास्पिटिलिटि में डिग्री तो नहीं थी लेकिन वह अपने संघर्षों को पीछे छोड़ आगे बढ़ना और कुछ करना चाहती थी।
पिछले पांच वर्षों में, शिल्पा का व्यवसाय एक के बाद एक सफलता की सीढ़ी पर चढ़ता गया है और आज की तारीख में, वह एक सफल उद्यमी हैं। उन्हें अपनी प्रेरणादायक कहानी साझा करने और बिजनेस पर बात करने के लिए वेलकमग्रुप ग्रेजुएट स्कूल ऑफ़ होटल एडमिनिस्ट्रेशन जैसे प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों द्वारा भी आमंत्रित किया जा चुका है।
हमेशा मुस्कुराने और जीवन के प्रति आशा रखने वाली शिल्पा को देख कर यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि 2009 में उसके पति के लापता हो जाने के बाद से उसने कितनी मुश्किलों का सामना किया है।
द बेटर इंडिया को 36 वर्षीया शिल्पा बताती हैं, “मेरे पास पैसे नहीं थे और बचत भी बहुत कम थी। मैं घर नहीं जाना चाहती थी। लेकिन ना तो मैं बहुत शिक्षित थी और ना ही काम का अनुभव था। और इसका साफ मतलब था कि एक अच्छी नौकरी पाने के लिए मुझे काफी संघर्ष करना होगा। ऐसा भी समय था जब अपने बच्चे का पेट भरने के लिए मैं उसे दूध में पानी मिला कर पिलाती थी।”
नीचे से ऊपर उठना
पति के लापता होने जाने जैसे दुखद घटना से वह पहले से जूझ रही थी। साथ ही दूर के रिश्तेदारों और पड़ोसियों के ताने और नौकरी मिलने में कठिनाई होने से उनका जीवन और संघर्षपूर्ण हो रहा था।
वह समय याद करते हुए शिल्पा बताती हैं , “जब भी मैं रिसेप्शनिस्ट, कुक, क्लीनर या सेल्सवुमन के लिए जॉब इंटरव्यू के लिए जाती थी, तो लोग मुझसे मेरे पति के बारे में पूछते थे। सहानुभूति के बजाय मुझे ताने मिले। मेरे कौशल को नजरअंदाज कर दिया गया और कलंक के कारण मुझे नौकरी नहीं दी गई। ”
शिल्पा के वित्तीय बोझ को कम करने के लिए, उनके भाई, चिरंजीवी, मंगलुरू में रहने आ गए और एक सुरक्षा गार्ड की नौकरी पकड़ ली। धीरे-धीरे, शिल्पा को भी सैलून, साइबर कैफे और कारखाने जैसी जगहों में छोटी-मोटी नौकरियां मिलने लगी। लेकिन यह काफी नहीं था।
शिल्पा को कठिनाइयों के साथ जीवन जीना मंजूर नहीं था। उन्होंने ऐसे विकल्पों की खोज शुरू की जो उनकी आय में वृद्धि कर सकें और बस एक दिन मां के साथ किए गए बातचीत के दौरान उन्हें ये विचार सूझा।
2015 में हुई बातचीत को याद करते हुए, शिल्पा कहती हैं, “मेरी माँ को हमेशा मेरे हाथ का बना खाना बहुत पसंद था और कई बार मजाक में कामना करती को कोई ऐसा होटल हो जहां मेरी स्टाईल का खाना मिले। मेरे पास ज्यादा आइडिया नहीं थे, इसलिए मैंने सोचा, क्यों न मैं अपने पाक कौशल को आजमाऊं?”
हालांकि, शिल्पा के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह अपने खाने के आउटलेट के लिए जमीन पट्टे पर या किराए पर ले सकें। इसलिए, उन्होंने एक सेकेंड हैंड ट्रक खरीदने का फैसला किया और इसके लिए उन्होंने अपनी एक लाख रुपये की फिक्स्ड डिपॉजिट तोड़ी जो उन्होंने अपने बेटे की पढ़ाई के लिए रखा था।
वह बताती हैं, “एक व्यावसायिक उद्यम के लिए अपनी अंतिम बचत का उपयोग करना, एक बड़ा जोखिम था जो मैंने लिया। हालांकि मुझे अपने खाना पकाने के कौशल पर संदेह नहीं था, मुझे इस बात की चिंता थी कि मंगलुरू में उत्तरी कर्नाटक भोजन स्वीकार किया जाएगा या नहीं। लेकिन मैंने विश्वास बनाए रखा। यह अज्ञात क्षेत्र था, लेकिन मेरे पास खोने के लिए कुछ भी नहीं बचा था। ”
स्वाद की सफलता
शिल्पा ने 2015 में मोबाइल कैंटीन खोली जिसे वह शिक्षण संस्थानों, कार्यालयों और मॉल के पास चलाती थी। चिरंजीवी ने भी अपनी नौकरी छोड़ दी और शिल्पा के साथ जुड़ गए।
पहले ही दिन, उनके फूड ट्रक ने मुनाफा कमाया। उसने होटलों की तुलना में दरों को कम रखा ताकि हर कोई वहां खाने का खर्च उठा सके। समय के साथ, ग्राहकों और फूड ट्रक की लोकप्रियता में वृद्धि हुई और आज, उसके अधिकांश ग्राहक आईटी क्षेत्र, डॉक्टरों पेशेवर और छात्र हैं। वह हर दिन 5000 रुपये तक कमाती है और हर महीने लगभग कुछ लाख की कमाई होती है।
शिल्पा बताती हैं कि फूड ट्रक की यूएसपी स्वास्थ्य से भरपूर खाना है, जो बिना किसी एडिटिव्स या कलर के बनाया जाता है। उन्होंने कहा, “हम ज्वार, चावल और बाजरे से बनी रोटी, रागी मडडे, चावल और पारंपरिक मसालेदार ग्रेवी बनाते हैं जो उत्तर कर्नाटक में लोकप्रिय है।”
उनकी लोकप्रियता के कारण एक स्थानीय समाचार पत्र ने उनकी जीवन कहानी को कवर किया, और यह उनके लिए जीवन बदलने वाला क्षण बन गया।
शिल्पा बताती हैं, “उस कहानी के बाद कई समाचार पत्र में मेरी कहानी प्रकाशित हुई। आनंद महिंद्रा ने हमारे बारे में एक समाचार पत्र में पढ़ा और इतने भावुक हो गए। मेरी कहानी से प्रभावित होकर उन्होंने मुझे एक बोलेरो मैक्सी ट्रक प्लस उपहार में दिया।”
यह भी पढ़ें: कैंटीन से लेकर चप्पल और मसाला फैक्ट्री तक संभाल रही हैं इन गांवों की महिलाएं!
मंगलुरू की शिल्पा अब सबकी आदर्श बन गई हैं। उनके खाद्य उद्यम से जुड़ने के लिए कई सहयोग प्रस्ताव मिले हैं, लेकिन वह स्वतंत्र रहकर काम करना चाहती हैं।
शिल्पा कहती हैं, “भगवान की कृपा और कड़ी मेहनत के साथ, मैं आज बेहतर स्थिति में पहुंच गई हूं। मैंने अपने 12 वर्षीय बेटे के वित्तीय भविष्य को सुरक्षित कर लिया है। मेरी एकमात्र इच्छा अब किसी दिन अपना खुद का एक होटल खोलना है। अपने इस सपने को साकार करने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हूं।”
तस्वीर साभार: शिल्पा
यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com(opens in new tab) पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर व्हाट्सएप कर सकते हैं।
We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons: