मुंबई एक ऐसी जगह है जहां गगनचुंबी इमारतें हैं लेकिन हरियाली बस नाम की है। इस महानगर में हरियाली खोज पाना बेहद कठिन काम है। लेकिन इस शहर कि एक सच्चाई यह भी है कि जहां कोई भीड़ पेड़ों को काट कर हरे भरे पर्यावरण की उम्मीदों को तोड़ रहा है वहीं कुछ मुट्ठी भर लोग अपनी कोशिशों से इस उम्मीद को टूटने से बचा रहे हैं।
आज हम ऐसे ही एक ग्रुप के बारे में बताएंगे जो मुंबई में कचरों से जैविक सब्जियां उगा रहा है। बांद्रा का यह ग्रुप जिससे जुड़ कर बच्चे व बड़े, एमसीजीएम के 800 वर्ग फीट में फैले डी’मोंटे पार्क, जो कभी वहां के स्थानीय लोगों के लिए कूड़ेदान था, को वापस हरा करने में जुटे हैं।
कचरे से उगा रहे जैविक सब्जियां
अपनी दो साल की कोशिशों से ड्रीम ग्रोव नाम के इस ग्रुप ने इस जगह की तस्वीर ही बदल दी है। अब यहां करीब 200 तरह के फल व सब्जियां उगाई जाती हैं।
इस ग्रुप की सदस्य व पर्यावरण मामलों की जानकार प्रमिला मारटिस ने द बेटर इंडिया को बताया, “ हमने प्राकृतिक इको-फ़ार्मिंग के बिन्दु पर काम किया जो पौधों के जीवन चक्र को पूरा करती है। हमने झड़े पत्तों, नारियल के भूसे , बगीचे और सब्जियों के कचरों से बायो-मास ( पोषकतत्व युक्त मिट्टी) तैयार किया।”
काम की शुरुआत
आज हरियाली फैले हुए जिस बगीचे की बात हम कर रहे हैं वह करीब 10 साल पहले कूड़े का ढेर हुआ करता था। कुछ साल पहले ड्रीम ग्रोव की संस्थापक मेरी पॉल ने बीएमसी के साथ साझेदारी की और इस जगह को एक खूबसूरत बगीचे में बदल दिया।
हालांकि कुछ दिनों बाद ही लोगों ने वापस यहां कचरा फेंकना शुरू कर दिया। मेरी और प्रमिला ने इस समस्या पर चर्चा की और इस कचरे को बीएमसी और पार्क के आसपास रहने वाले लोगों की मदद से साफ करने का फैसला किया।
हर सप्ताह करीब तीन किलो जैविक सब्जियों की उपज
इस बदलाव की शुरुआत की गयी पलवार प्रक्रिया से जिसमें ज़मीन को सूखे पत्तों, गोबर व गौ-मूत्र से ढका गया। इस मिट्टी में इन्होंने गीले कचरे और नारियल भूसा भी डाला । एक महीने के अंदर बदलाव दिखा और अंकुर फूटने लगे।
प्रमिला बताती हैं, “ शहतूत के पौधे को देख कर हम सभी दंग रह गए। यह हमने पिछले 15 साल में कभी नहीं देखा था! यह न सिर्फ इस बात का प्रमाण था कि हमारी मेहनत सफल हो रही है,बल्कि हमें और पेड़ लगाने के लिए प्रोत्साहित भी कर रहा था । बच्चों से ले कर बड़ों तक सभी इस बात से उत्साहित थे कि यह बगीचा हमें और खाने लायक पौधे दे सकता है”।
आज, ड्रीम ग्रोव के करीब 20 वॉलंटियर सप्ताह के अंत में पार्क में आ कर बोने, रोपने, काटने और पानी देने के काम में हिस्सा लेते हैं। इस ग्रुप के जोश और लगन ने आज इस बगीचे की तस्वीर ही बदल दी है जिसमें हर सप्ताह मूली, सेम, सहजन,पालक, नीम पत्ते, मिर्च, शिमला मिर्च, टमाटर, खीरा,बैंगन, पुदीना, हल्दी, अदरक, अन्नानास, केला, पपीता आदि तैयार हो जाती हैं।
दिलचस्प बात है कि 2018 मार्च को शुरू किया गया यह प्रोजेक्ट, लॉककडाउन के कठिन वक्त में रख रखाव करने वाले यहां के स्टॉफ के लिए मददगार सिद्ध हो रहा है। यहां तैनात माली और सुरक्षाकर्मियों को इस बगीचे की ताज़ी सब्जियां आसानी से मिल जाती है।
प्रमिला बताती हैं, “इस फार्म के नए सदस्य घर लौटते समय अपने साथ ताज़े पत्ते, थोड़े टमाटर-मिर्च ले जाते हैं। केले और बिलम्बी की हमेशा मांग रहती है। जिनका झुकाव पौष्टिक खान पान की ओर है वे अपने साथ औषधि और जड़ी-बूटी संबन्धित पौधे जैसे सागवान, इंसुलिन के पत्ते, जवाकुसुम के फूल आदि ले जाते है । कुछ अपने निजी बगीचे के लिए बीज या टहनी ले जाते हैं। कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता।”
धरती को बचाने की यह छोटी व सरल, पर महत्वपूर्ण कोशिश प्रशंसनीय है। हम ड्रीम ग्रोव की टीम के साथ ही इससे जुड़े हर व्यक्ति के जज़्बे को सलाम करते हैं।
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