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पूरे गाँव की मदद से एक दिहाड़ी मजदूर के बेटे ने IIT में पढ़ाई की और आज है गूगल में इंजीनियर!

राजस्थान के छोटे से कस्बे से गूगल अमेरिका मे इंजीनीयर बनने तक, रामचंद्र के संघर्ष व इस गाँव के लोगों में बसी एक दूसरे की मदद की भावना की कहानी।

जब एक दिहाड़ी मजदूर के बेटे को भारत के प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान में प्रवेश का अवसर मिला तो पूरे कस्बे ने आगे आकार उनकी मदद की; और आज वह गूगल के सिएटल स्थित कार्यालय में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है।

तेजा राम संखला और उनकी पत्नी रामी देवी राजस्थान के पाली जिले के एक छोटे से कस्बे सोजत में सब्जी बेचा करते थे। वे अपने पैतृक मकान में अपनी तीन संतानों के साथ संयुक्त परिवार में रहते थे। अपने साथ तीन बच्चों के परिवार के कारण उन्हें जल्द ही यह महसूस हो गया कि सब्जी बेचने से होने वाली आय पाँच सदस्यों के परिवार में काफी नहीं है, इसीलिए तेजा राम जी ने मेहँदी बनाने के कारखाने में काम शुरू कर दिया जहां उनका काम मेहँदी व उससे बनने वाले उत्पादों के बक्सों की ढुलाई था। रामी देवी ने भी अपने पति का हाथ बटाना निश्चित किया व एक निर्माण स्थल पर कार्य करना शुरू किया। तेजा राम और रामी देवी दोनों का ही एक सपना था कि उनका अपना एक घर हो। इसी दिशा में कदम बढ़ाते हुये उन्होंने एक साहूकार से कुछ पैसा उधार लेते हुये एक ज़मीन खरीद ली।

अब दिन में दोनों कठोर परिश्रम करते और रातों में एक-एक ईंट जोड़कर अपने सपनो के घर को बनाने में लग जाते।

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तेजा राम संखला एवम रामी देवी

तीन बच्चों में सबसे बड़े रामचंद्र इतने बड़े हो चुके थे कि वे परिवार के लिए किये जा रहे माता-पिता के कठोर प्रयत्नों व परिश्रम को समझ सके।

“माँ और पापा रात को देरी से घर आते। भाई-बहनों में सबसे बड़ा होने के नाते मैं हमारे रसोईघर में सभी के लिए खाना पकाता था,राम याद करते हुये बताते हैं।

उनका रसोईघर हम में से ज़्यादातर लोगों की तरह सुविधाओं से सुसज्जित कोई आधुनिक रसोईघर नहीं था, रसोईघर के नाम पे था तो सिर्फ उनके दो कमरो के बाहर बना एक मिट्टी का चूल्हा। राम एक प्रतिभाशाली छात्र थे पर अपनी सीमित आय के चलते उनके माता-पिता उन्हे सिर्फ वहाँ के सरकारी स्कूल में ही पढ़ा सकते थे।

प्रतिभाशाली छात्र, राम को जब सैकंडरी बोर्ड की परीक्षा में 90 प्रतिशत से ऊपर अंक मिले तो उनके परिवार को पहली आशा की किरण दिखाई दी।

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राम चन्द्र संखला कक्षा 10 का मेरिट प्रमाण पत्र प्राप्त करते हुये।

“जब राम ने दसवीं कक्षा की परीक्षा में मेरिट में स्थान प्राप्त किया तभी मुझे लगने लगा था कि राम अपने जीवन में कुछ अच्छा करने वाला है,” राम की माँ, रामी देवी गर्व से बताती है।

अपनी प्रतिभा के चलते राम को राजस्थान सरकार से छात्रवृति स्वीकृति का पत्र भी मिला पर छात्रवृति की राशि कभी नहीं मिल पायी।

“हमें स्कालरशिप का पत्र देरी से मिला। पिताजी और मैं कई बार छात्रवृति का पैसे लेने जोधपुर गए परंतु सरकारी अधिकारी हमेशा वापस आने को कहते। हमने तकरीबन दो हज़ार रुपये इस प्रक्रिया में ख़र्च कर दिये पर हमें छात्रवृति का पैसे कभी नहीं मिले,” राम बताते हैं।

उसके बाद अपनी आगे की पढ़ाई के लिए राम सोजत से 40 किलोमीटर दूर पाली में रहने लगे। उनके माता-पिता उनके लिए खाना बनाकर बस में पाली भेजते जिसे राम पाली में बस से ले लेते। हालाँकि  राम बारवीं  कक्षा की परीक्षा में बहुत अच्छा नहीं कर पाये परं पाली जैसे शहर में रहने से उन्हें आगे की पढाई के बारे में जानकारी मिली और उन्हें ये भी समझ में आ गया कि वो आगे क्या करना चाहते हैं। उन्होंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) की प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए कई अन्य छात्रों की तरह कोटा के एक कोचिंग सेंटर में दाखिला लिया।

राम के परिवार ने उनकी प्रतिभा को देखते हुये उनके इस निर्णय में उनका पूरा साथ दिया हालांकि उन्हे फीस व अन्य खर्चो के लिए क़र्ज़ लेना पड़ा।

अपने माता-पिता व परिवार के संघर्ष को राम ने व्यर्थ नहीं जाने दिया और उन्होंने आइआइटी, रुड़की में प्रवेश प्राप्त कर अपने निर्णय को सही साबित किया।

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राम (दायें से तीसरे) आईआईटी रुड़की प्रांगण मे।

राम के पिता ने टीबीआई  से बातचीत के दौरान बताया,“इस दौरान मैं उसे अपने साथ काम करने के लिए खेत पर ले कर गया, पर उसने कहा कि उसे पढ़ना है और फिर कभी वह खेत पर वापस नहीं आया, तब मैंने निर्णय लिया कि मैं उसे पढ़ने से बिल्कुल नहीं रोकूँगा वह जब तक चाहे  तब तक मैं उसे ज़रूर पढ़ाऊंगा। 

रामचन्द्र ने आइआइटी की प्रवेश परीक्षा में तो सफलता प्राप्त कर ली थी पर अब सवाल था कि आई॰ आई॰ टी॰ की फीस व कॉउंसलिंग  में लगने वाले शुल्क की व्यवस्था कैसे हो?

मेरे लिए यह एक चमत्कार की तरह था। मेरे बचपन का एक दोस्त था, जिसके साथ मैं खेला करता था। मैं ना ही कभी उसके घर गया था ना ही कभी उसके माता-पिता से मिला। जब उन्होंने मेरे आइआइटी प्रवेश परीक्षा में सफल होने की खबर सुनी तो वे मेरे घर आए और हमें एक चैक दिया, उस चैक की राशि मेरे कॉउंसलिंग  व प्रथम सेमेस्टर की फीस की भुगतान के लिए पर्याप्त थी।”

इस परिवार ने राम की फीस की समस्या ही दूर नहीं की अपितु इस नई शुरुआत के लिए उन्हें कपड़े व सूटकेस लेने में भी मदद की।

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रामचन्द्र अपनी माता, रामी देवी के साथ।

“उन्होंने जो मेरे लिए किया मैं वह कभी नहीं भूल सकता। नौकरी लगते ही, जब मैं उनके द्वारा मदद के रूप में दिये गए पैसे चुकाने गया तो उन्होंने उसे लेने से मना कर दिया इसके बदले उन्होंने मुझे किसी और छात्र की मदद करने को कहा।

कहानी यहीं खत्म नहीं होती, अपने आइआइटी प्रवेश के बाद जब राम दीपावली की छुट्टियों में घर आए तो यहाँ एक और अप्रत्याशित घटना उनका इंतज़ार कर रही थी। उनके एक पड़ोसी उनके पास आए और उन्हें अपने साथ एक सामुदायिक सभा में चलने के लिए कहा।

“वहाँ कई ऐसे लोग थे जिन्हें मैं जानता तक नहीं था, जिनसे शायद कभी मिला भी नहीं था; फिर भी हैरत की बात है कि उन सब ने मिलकर मेरे लिए 30,000 रुपये इकट्ठे किए ताकि मैं एक लैपटॉप खरीद सकूँ।”

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“मैं कम्प्युटर साइन्स का छात्र था। मुझे मिलने वाले कॉलेज के आइस्न्मेंट को करने के लिए मेरे पास एक लैपटाप का होना बहुत ज़रूरी था पर मेरे लिए लैपटॉप लेना संभव नहीं था। ऐसे मे इस तरह अनजान लोगो से इस उपहार का मिलना मेरे लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था। मैं अपने आपको बहुत भाग्यशाली मानता हूँ कि मुझे अपने जीवन में ऐसे लोग मिले।”

दूसरे सेमिस्टर की शुरुआत उनके लिए कठिनाइयाँ लेकर के आई। उन्हे दूसरे सेमिस्टर की फीस भरनी थी और इसके लिए उन्होंने अपने कस्बे सोजत में स्थित बैंक से एजुकेशन लोन लेने का निश्चय किया पर बैंक ने उन्हें यह लोन नहीं दिया ऐसे में फिर से एक बार उनके पिताजी को साहूकारो से ज्यादा ब्याज पर कर्जा लेना पड़ा ताकि रामचंद्र की पढ़ाई में कोई बाधा ना आ सके।

“पापा ने कभी किसी से कुछ नहीं मांगा, जब भी हमें जरूरत पड़ी उन्होंने कर्ज लिया और उसे पुरे ब्याज के साथ चुकाया। दुर्भाग्य से हमारी व्यवस्था ही कुछ ऐसी है कि वह आर्थिक रूप से कमजोर तबके के छात्रों को जिंदगी में आगे बढ़ने से रोकती है।

 आखिरकार किसी तरह उन्हें दूसरे वर्ष में एजुकेशन लोन मिल गया। पढाई में अपने बेहतरीन प्रदर्शन की वजह से  उन्हें 30,000 रुपये वार्षिक की स्कालरशिप (छात्रवृति) भी मिली। अपनी पहली छात्रवृति से उन्होंने अपने पिता के लिए एक मोपेड़ खरीदी जिसे आज भी उनके पिता गर्व से चलाते हैं। अगले दो सालो की छात्रवृति के पैसो से उन्होंने अपने घर में रसोईघर और शौचालय बनवाया।

2013 में रामचंद्र ने आइआइटी से बी॰टेक कम्प्युटर साइंस की डिग्री हासिल की और साथ ही एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में बैंगलुरु स्थित गूगल इंडिया के कार्यालय में नौकरी प्राप्त की।

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रामचन्द्र (दायें) गूगल यूएसए के सिएटल स्थित कार्यालय मे।

इसी वर्ष अप्रैल से रामचन्द्र अमेरिका में गूगल के सिएटल  स्थित कार्यालय में कार्यरत हैं, उनके पिता स्वैच्छिक रूप से आज भी मेहँदी के कारखाने में काम करते हैं और उनकी माता अपने परिवार की देखभाल करती हैं।

“मुझे अपने बेटे पर गर्व है। वो मुझे बार बार कहता है  कि अब समय मेरे काम करने का नहीं है, अब मुझे आराम करना चाहिए। पर मुझे काम करना पसंद है यह मुझे  लगता है ये मेरी सेहत के लिए भी अच्छा है,” अपने बेटे पर गर्व के साथ तेजा राम जी कहते है।

मूल लेख: मानबी कटोच

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