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आदिवासी पहनावे को बनाया फैशन की दुनिया का हिस्सा, हाथ की ठप्पा छपाई ने किया कमाल

गाँव में ब्लॉक प्रिंट का काम करने वाले लोग ख़त्म हो चुके थे और युवा इसे करना नहीं चाहते थे। लेकिन मुहम्मद युसूफ अपने अब्बा से मिली विरासत को इस तरह खोना नहीं चाहते थे। उन्होंने ठान लिया था कि कुछ भी हो जाए वह इस कला को मरने नहीं देंगे।

विंध्याचल पर्वतों की खूबसूरती केवल प्राकृतिक खजाने तक सीमित नहीं है। यह यहाँ के लोगों के जीवन में भी बहुत गहराई से बसी है। यहाँ के आदिवासी समाज आज भी अपने हजारों साल पुरानी कला विधियों पर भरोसा करते हैं। जहाँ पूरी दुनिया केमिकल से रंगे कपड़े पहन रही है, वहीं मध्य प्रदेश के धार जिले के बाग गाँव में एक हुनरमंद आज भी प्राकृतिक रंगों से रिश्ता जोड़े हुए है। मैं बात कर रही हूँ एलिजरीन हैण्ड ब्लॉक प्रिंटिंग करने वाले मास्टर क्राफ्टमैन मोहम्मद युसूफ खत्री की।

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युसूफ खत्री का परिवार सातवीं शताब्दी से परंपरागत एलिजरीन बाग प्रिंट का कार्य कर रहा है। मोहम्मद युसूफ खत्री को बाग हाथ ठप्पा छपाई करने का करीब 40 वर्षों का व्यापक अनुभव है। द बेटर इंडिया से बात करते हुए वह बाग गाँव के बाहर बनी अपनी वर्कशॉप में ब्लॉक प्रिंटिंग करते हुए बताते हैं कि, किस तरह उन्होंने बचपन से ही इस कला से दोस्ती कर ली थी। उनके अब्बा मरहूम इसमाईल खत्री और अम्मी हज्जानी जेतुन बी ने उन्हें इस कला से खेल-खेल में जोड़ दिया था। उन्हें अच्छी तरह से याद है कि साल 1980 से पहले तक बाग प्रिंट के कपड़े सिर्फ आदिवासी लोगों तक ही सीमित थे। इसकी एक वजह थी, इस कला में लगने वाला मेहनताना।

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गाँव में ब्लॉक प्रिंट का काम करने वाले लोग ख़त्म हो चुके थे और युवा इसे करना नहीं चाहते थे। लेकिन मुहम्मद युसूफ अपने अब्बा से मिली विरासत को इस तरह खोना नहीं चाहते थे। उन्होंने ठान लिया था कि कुछ भी हो जाए वह इस कला को मरने नहीं देंगे। उन्होंने युवाओं को सिखाना शुरू किया और इस कला को आदिवासी हाट बाज़ार से उठाकर पूरी दुनिया के सामने प्रदर्शनियों द्वारा रखा। उनकी कोशिश रंग लाई और लोगों को यह कला भाने लगी। इसके फलस्वरूप बाग हाथ ठप्पा छपाई से निर्मित वस्त्रों की मांग देश-विदेशों में बढ़ गई। इस कला के प्रचार से बाग क्षेत्र के लोगों को रोजगार मिला और उनके जीवन स्तर में भी सुधार हुआ।

गणतंत्र दिवस समारोह वर्ष 2011 की परेड में बाग प्रिंट की झांकी राजपथ से लाल किले तक दिखाई गई, यह पूरी झांकी बाग प्रिंट के प्रदर्शन पर आधारित थी। इस झांकी में युसूफ खत्री ने बाग प्रिंट कला का प्रत्यक्ष प्रदर्शन किया। इसके बाद मोहम्मद युसूफ खत्री ने इस कला को नए आयाम देने के लिए कई शोध कार्य किए। उन्होंने कई वनस्पतियों से रंग निकालाकर वेजीटेबल कलर डाई का प्रयोग किया।

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प्राकृतिक तरीके से की जाती है प्रिंटिंग

इस प्रिंट के लिए धावड़े के पत्ते, धावड़ी के फूल, अनार के छिल्के, धावड़े की गोंद, आल की जड़, कसुमल के फूल, हारसंगर के फूल, नीम के पत्ते, गुड़, इमली के बीज, गेहूँ के आटे, मजीट जैसी और भी कई वनस्पतियों से रंग निकालकर हस्तनिर्मित कपड़ा, साड़ियां व सूट जैसी चीजें बनाई जाती हैं। जैसे, चांपा (छत्तीसगढ़) का हस्तनिर्मित टसर, मध्य प्रदेश की हस्तनिर्मित मलबरी शिल्क, महेश्वरी और चंदेरी साडियां, आन्ध्रप्रदेश के हस्तनिर्मित सूती खादी साड़ियां और दुपट्टे, मंगलगिरी (आन्ध्रप्रदेश) की निजाम साड़ी, मुंग्गा और दुपट्टा। इन सारे प्रोडक्ट पर परम्परागत बाग हाथ ठप्पा छपाई के लिए वेजीटेबल डाईयों का प्रयोग किया जाता है।

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बन रहा है रोजगार का जरिया

युसूफ खत्री की मेहनत और निरन्तर शोध कार्य करने से भारतीय और विदेशी बाजारों में परम्परागत बाग हाथ ठप्पा छपाई से निर्मित वस्त्रों की मांग बढ़ी है। फिलहाल, बाग क्षेत्र के सैंकड़ों आदिवासी, हरिजन, पिछड़ा वर्ग व बेरोजगार युवाओं को निरंतर प्रशिक्षित किया जा रहा है। इस लुप्त होती कला को एक नई उम्मीद मिली है और इससे बाग गाँव में प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष रूप से 7000-8000 लोगों को रोजगार मिल रहा है। मोहम्मद युसूफ ने आधुनिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए  विभिन्न प्रकार के प्रयोग किये ताकि इस पारम्परिक बाग हाथ ठप्पा छपाई कला का लम्बे समय तक संरक्षण हो सके और बाग हाथ ठप्पा छपाई कला की राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय एवं महत्वपूर्ण स्थिति बनी रहे।

मिले कई सम्मान और पुरस्कार

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मोहम्मद युसूफ खत्री, बाग प्रिंट के लिए पूरी दुनिया में मशहूर हैं। इस कला के लिए उन्हें यूनेस्को द्वारा अर्वाड ऑफ एक्सिलेन्स फॉर हैण्डिक्राफ्ट के अति प्रतिष्ठित सम्मान से भी नवाज़ा जा चुका है। युसूफ देश के एक मात्र ऐसे कारीगर हैं, जिन्हें दो राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव प्राप्त है। साथ ही इन्हें यूनेस्को से सात पुरस्कार प्राप्त है। इन्हें मध्य प्रदेश सरकार द्वारा भी पुरस्कार और सम्मान मिलते रहते हैं।

मोहम्मद युसूफ खत्री ने वंशानुगत कला को अपने तक ही सीमित नहीं रखा, वरन कई माध्यमों से छात्र-छात्राओं से सिखाया। उन्होंने कार्यालय विकास आयुक्त हस्तशिल्प की गुरू शिष्य परम्परा के अंतर्गत साल 2012 में 10 छात्रों को बाग प्रिंट छपाई सीखाने के लिए 6 महीने का प्रशिक्षण दिया। वह मध्य प्रदेश हस्तशिल्प एवं हाथकरघा विकास निगम के माध्यम से भी कई छात्रों को प्रशिक्षण देते हैं, जिससे प्रतिवर्ष 25 से 35 छात्रों को भारतीय और विदेशी कंपनियों में रोजगार मिल रहा है। यह कला कई शिष्यों की अजीविका का माध्यम बन गई है। वह विदेशी लोगों को भी प्रशिक्षण देते हैं।

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नए प्रयोग किये

पहले मध्यप्रदेश के धार जिले के आदिवासी बहुल बाग विकास खण्ड क्षेत्र में रहने वाले विभिन्न समुदाय जैसे मारू, जाट, मेघवाल, भील, भिलाला की पहचान उनके पहनावे से होती थी। युसूफ खत्री का परिवार पहले उनके पारम्परिक परिधान लुगड़े, लहंगे और अलग-अलग जातियों के लिए अलग-अलग परिधान बनाया करते थे।

साल 1990 के बाद मोहम्मद युसूफ खत्री ने शहरी बाज़ार के लिए कपड़ों पर नए-नए प्रयोग कर हाथ से ठप्पा छपाई की और सर्वप्रथम चादर, तकिये का कवर, टेबल कवर, कॉटन साड़ी, सूट बनाये। उसके बाद शिल्क साड़ी, टसर, शिल्क दुपट्टा, सिल्क स्टाल, स्कार्फ आदि भी बनाये। मोहम्मद युसूफ खत्री ने लकड़ी के छापो और रंगो में आधुनिकता का समावेश करते हुए विभिन्न प्रकार के प्रयोग  किए। कपड़े के अलावा भी बांस की चीक (चटाई) बम्बू मेट, चमड़ा, टाट (जूट) आदि पर भी कलाकारी कर अपनी कल्पना को सच कर दिखाया। बांस की चीक पर प्राकृतिक रंगो से बाग प्रिंट को उकेरना विश्व का पहला प्रयोग था। ज्ञात हो कि विश्व में प्रसिद्ध होने के बाद और इससे पूर्व तक इस तरह का कोई उदाहरण सामने नहीं आया है। इसलिए विश्व में इस प्रकार की शिल्प कला का यह पहला नमूना है। हमारे देश के लिए वाकई यह एक क्रांतिकारी अविष्कार है।

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मास्टर क्राफ्टमैन मोहम्मद युसूफ खत्री से पूछने पर कि बाग प्रिंट इतना खास क्यों है, वह इस कला की बारीकियां विस्तार से बताते हैं। वह कहते हैं,

“इस बाग प्रिंट छपाई की सारी प्रक्रिया में किसी भी प्रकार के रासायनिक पदार्थों का प्रयोग नहीं किया जाता हैं, यह कार्य पूर्णतः प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हैं। यह शरीर को किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुचता हैं। हम आज भी इसे रंगाई की हजारों सालों पहले से चली आ रही प्राचीन प्रक्रियाओं द्वारा ही रंग रहे हैं जिसमें रंग प्राकृतिक स्त्रोतों से लिए जाते हैं। हम उस परंपरा का वैसा ही अनुकरण करते हैं।”

परम्परागत बाग प्रिंट कार्यविधि

बाग प्रिंट अपने आप में अत्यन्त तकनीकी व श्रम साध्य प्रक्रिया हैं, लंबे प्रशिक्षण व कार्य करने के पश्चात ही इसमें परिपक्वता प्राप्त की जा सकती हैं, बाग प्रिंट वस्त्र छपाई की तकनीक को कई हिस्सों में बांटा गया हैं।

छपाई के लिए सबसे पहले कपड़े का चयन सबसे महत्पपूर्ण हैं, चूंकि इस शिल्प में रंगाई करने हेतु कपड़े को उबाला जाता है। इसलिए यह अनिवार्य है कि छपाई में प्रयोग होने वाल कपड़ा प्राकृतिक रेशे से ही निर्मित हो। इसके पश्चात वस्त्र के उपयोग को ध्यान में रखते हुए साड़ी, सूट, चादर, ड्रेस मटेरियल, स्टॉल, दुपट्टे आदि के लिए ब्लॉक का चयन किया जाता है।

छपाई की प्रक्रिया में अनेक विधियों द्वारा रंग चढ़ाए जाते हैं जैसे, खारा विधि, पीला विधि, लाल रंग बनाने की विधि, काला रंग बनाने की विधि, विछलियां विधी, भट्टी विधि, भट्टी  विधि, इण्डिगों नीला,खाकी, हरा रंग बनाने की विधि आदि। सराहनीय बात यह है कि मोहम्मद युसूफ यह रंग शुद्ध प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त करते हैं जैसे, बकरी की मेंगनी, अरण्डी का तेल, हरड़ का पाउडर, फिटकरी, अनार के छिलके, गुड़, चुना, गेहूँ का आटा , इमली के बीज या धावड़े की गोंद की लेई और इण्डिगो के पत्ते आदि। मोहम्मद युसूफ कहते हैं -इस प्रक्रिया में नदी के पानी का बहुत महत्त्व है, इसलिए ज़रूरी है कि रंग और छपाई में जो भी पदार्थ प्रयोग किया जाए वह केमिकल वाला नहीं होना चाहिए। इससे हमारी नदियों को भी कोई नुकसान नहीं होगा।

बाग प्रिंट पर वर्तमान में शोध कार्य जारी है। मोहम्मद युसूफ समय-समय पर कई विश्वविद्यालयों और पत्र-पत्रिकाओं द्वारा किये गये शोध कार्यों में महत्वपूर्ण योगदान देते रहते हैं। इनके द्वारा बताई गई जानकारियों का उल्लेख विश्व की कई पत्र-पत्रिकाओं में शोधार्थी छात्र-छात्राओं द्वारा प्रकाशित भी होते हैं। इसके अलावा उनके बनाए परिधान लैक्मे फैशन वीक विंटर कलेक्शन 2017 का भी हिस्सा रह चुके हैं।

यदि आप भी मोहम्मद युसूफ खत्री से संपर्क करना चाहते हैं फेसबुक और इंस्टाग्राम पर जुड़ सकते हैं साथ ही आप इन मोबाइल नंबरों पर कॉल कर सकते हैं – 09425486307, 09009815786

संपादन – अर्चना गुप्ता


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