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कंक्रीट जंगल के बीच हरियाली, 19 वर्षीय छात्र ने बदल दी भोपाल की काया!

ज़ुबेर ने 36 स्क्वायर फीट की छोटी-सी जगह में भी लोगों के लिए गार्डन तैयार किए हैं। उनका उद्देश्य लोगों को अर्बन गार्डनिंग की सुविधाएं देना है!

पने घर में हरियाली किसे अच्छी नहीं लगती। सोनीपत में रहने वाले राजेंद्र सिंह कहते हैं कि गार्डनिंग करने से उन्हें बहुत शांति और सुकून मिलता है। सिंह का टेरेस गार्डन किसी हरे-भरे जंगल से कम नहीं है। यूके की एक रिसर्च के मुताबिक, पेड़-पौधों के बीच में रहना आपके मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी काफी अच्छा है।

गाँवों और छोटे शहरों में तो फिर भी आपको घरों में पेड़-पौधे देखने को मिल जाएंगे, लेकिन बड़े शहरों को देखकर लगता है कि सिर्फ इमारतें ही इमारतें खड़ी हैं। बदलते वक़्त के साथ ज़रूरी है कि अब हम लोग भी अपनी गलती को सुधारें और शहरों में जितना हो सके ज्यादा से ज्यादा पेड़-पौधे लगाएं। अन्यथा हमारी गलतियों की कीमत हमारी भावी पीढ़ी को चुकानी पड़ेगी।

19 वर्षीय इंजीनियरिंग छात्र, ज़ुबेर मुहम्मद को यह बात बहुत ही कम उम्र में समझ में आ गई। वह कहते हैं, “हमारे पूर्वजों के जमाने में बड़े-बड़े घर हुआ करते थे जिनमें गार्डन के लिए अलग से जगह होती थी। अब वक़्त बदल गया है, खासकर शहरों में, जहाँ लोगों को बड़ा घर मिलना भी मुश्किल बात है। इमारतों के बढ़ते निर्माण से, हरियाली एकदम कम हो गयी है।”

Paradise Gardens will transform free space at home into a beautiful garden.

इन बड़ी-बड़ी इमारतों में रहने वाले बहुत से लोग हैं जो कि हरियाली के लिए तरसते हैं और चाहते हैं कि उनके घरों में ढेर सरे पेड़ हों। विडंबना यह है कि उनकी कॉर्पोरेट लाइफ उन्हें खुद के लिए ज्यादा वक़्त नहीं देती और हमारे यहाँ कम जगहों में अर्बन गार्डनिंग की सर्विस देने वाले लोगों को खोजना भी बहुत मुश्किल है।

लोगों की ज़रूरतों के हिसाब से सर्विस न मिल पाने के इस गैप को देखते हुए उन्होंने जुलाई 2019 में ‘पैराडाइस गार्डन्स’ की नींव रखी। भोपाल में स्थित यह अर्बन गार्डनिंग स्टार्टअप लोगों को उनकी ज़रूरत के हिसाब से सर्विस देता है।

बहुत ही कम वक़्त में उन्होंने काफी सफलता हासिल कर ली है। भोपाल में उन्हें अब तक 100 प्रोजेक्ट मिल चुके हैं। ज़ुबेर के मुताबिक उन्होंने 22,680 स्क्वायर फीट जगह को अब तक हरियाली में बदल दिया है और 33,600 स्क्वायर फीट जगह पर काम जारी है।

कम उम्र में बने बड़े उद्यमी:

साल 2015 में ज़ुबेर को गार्डनिंग का शौक चढ़ा और उस समय वह दसवीं कक्षा में थे। वह बताते हैं कि उनके एक दोस्त को किसी की तलाश थी जो उनके घर में अर्बन गार्डन लगा सके, लेकिन उन्हें ऐसा कोई नहीं मिला। उस समय उन्हें अहसास हुआ कि भोपाल में यह एक अच्छा और सफल बिज़नेस आइडिया हो सकता है।

जोश से भरे हुए ज़ुबेर ने अपना एक फेसबुक पेज बनाया और उन्होंने अपना यह आइडिया अपने माता-पिता को भी बताया।

Nineteen-year-old Zuber is the founder of Paradise Gardens.

ज़ुबेर आगे बताते हैं, “मैंने उन्हें अपने आइडिया के बारे में बताया लेकिन वे मुझे ख्याली दुनिया से हक़ीकत में लेकर आए। मैं अभी भी स्कूल में था और ऐसा कोई बिज़नेस नहीं संभाल सकता था। उससे भी बड़ी बात मेरे पास कोई बिज़नेस प्लान नहीं था और न ही मैं गार्डनिंग के बारे में ज्यादा कुछ जानता था। इसलिए मैंने इस आइडिया को सिर्फ अपने दिमाग में रखा कि मैं एक न एक दिन इस पर काम करूँगा।”

एक बात जिसके लिए ज़ुबेर बहुत स्पष्ट थे कि वह कभी भी 9 से 5 की जॉब नहीं करेंगे। उन्होंने 2017 में 12वीं कक्षा पास की और अपना एक छोटा-सा बिज़नेस शुरू किया- ‘भोपाली फ़ूड’ – यह एक ऑनलाइन फ़ूड डिलीवरी मैनेजमेंट सिस्टम था।

उनकी शुरुआती सफलता जल्दी ही खत्म हो गयी क्योंकि उन्हें लॉजिस्टिक्स को लेकर काफी परेशानियाँ हो रही थीं और इसलिए उन्होंने यह बिज़नेस बंद कर दिया।

“हमारे पास बहुत से ऑर्डर्स थे लेकिन उन्हें पूरा करने के लिए सही लॉजिस्टिक्स नहीं था और इसलिए हम असफल हो रहे थे। अपने इस वेंचर को बंद करने के बाद मैंने सोचा कि मुझे सफल होने के लिए एक अच्छा बिज़नेस प्लान चाहिए,” ज़ुबेर ने आगे कहा।

इसी बीच उन्होंने सागर ग्रुप ऑफ़ इंस्टिट्यूशन- SISTec में इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में दाखिला ले लिया। हालांकि, उनके दिमाग में गार्डनिंग का अपना बिज़नेस करने का ख्याल हमेशा रहा। एक साल तक उन्होंने पेड़-पौधों और गार्डनिंग के बारे में बहुत कुछ पढ़ा।

“मेरे परिवार में इससे पहले किसी ने भी व्यवसाय के बारे में नहीं सोचा था। लेकिन, मुझे खुद पर भरोसा था कि अगर मुझे सही ज्ञान है तो मैं ज़रूर सफलता से व्यवसाय कर सकता हूँ। जब मुझे लगा कि मैंने बहुत कुछ जान-समझ लिया है तो मैंने अपने पहले बिज़नेस की बचत के 7 हज़ार रुपयों से पैराडाइस गार्डन की शुरुआत की,” उन्होंने कहा।

गार्डनिंग को आपके घर तक पहुँचाना:

ज़ुबेर ने अपने स्टार्टअप को औपचारिक तौर पर शुरू करने से पहले, माली/गार्डनर्स और सुपरवाइजर्स की एक छोटी-सी टीम बनाई और फिर सोशल मीडिया के ज़रिए अपनी मार्केटिंग की।

ज़ुबेर कहते हैं कि उनकी टीम ने मिलकर एक वेबसाइट बनाई और इस पर एक ऑनलाइन फॉर्म डाला। उन्हें काफी लोगों ने संपर्क किया और तब उन्हें लगा कि वह एक सफल व्यवसाय की शुरुआत कर रहे हैं।

The gardeners working at a client’s plot.

इन्हीं लोगों ने पैराडाइस गार्डन को अपने घरों में पेड़-पौधे लगाने का काम दिया। ग्राहक जब उनसे संपर्क करते हैं तो उनकी टीम सबसे पहले उनकी जगह का दौरा करती है। ज़ुबेर बताते हैं कि जगह देखने के बाद हम उनसे पूछते हैं कि उन्हें किस तरह का सेट-अप चाहिए। कौन-से पेड़-पौधे, घास, खाद से लेकर गमले आदि- सभी कुछ के बारे में उन्हें विस्तार से पूछा जाता है। फिर उनकी ज़रूरत जानने के बाद, उसी आधार पर उन्हें सेटअप करने के रेट बताए जाते हैं।

पेड़-पौधों से जुड़ी हर तरह की सुविधाएँ यह स्टार्टअप देता है। फूलों वाले पेड़, इंडोर प्लांट, किचन गार्डन या फिर बड़े बागान, हर तरह की सर्विस उनके पास है। वे लोगों को उनकी छोटी से छोटी बालकनी में भी पेड़ लगाने में मदद करते हैं। उन्होंने अपने क्लाइंट के लिए 36 स्क्वायर फीट की छोटी-सी जगह में भी पेड़ लगाएं हैं और अब अपार्टमेंट में रहने वाले लोग भी उनसे संपर्क करने लगे हैं।

ज़ुबेर को आज तक अपना पहला क्लाइंट याद है। “उन्हें अपने घर के परिसर में खाली पड़ी 800 स्क्वायर फीट जगह में गार्डन लगवाना था। इस काम में हमारे ऊपर भी काफी दबाव था। हमने इस काम के लिए 30 हज़ार रुपये मांगे और इस जगह को हरियाली से भर दिया। हमने इसमें घास लगाई, झाड़ियाँ और फूलों के काफी पेड़ लगाए। हमारे ग्राहक को हमारा काम काफी पसंद आया और हमें भी आगे बढ़ने का हौसला मिला,” उन्होंने कहा।

The startup ensures they get everything right starting from the type of grass to the kind of plants.

इस तरह के और भी उदहारण हैं। एक ट्रैवल कंपनी चलाने वाले 27 वर्षीय शाहवर हसन बताते हैं कि उनके घर में पहले से पेड़-पौधे थे। उनकी माँ चाहतीं थीं कि उनकी 400 स्क्वायर फीट की जो ज़मीन बंजर पड़ी है, वहां बाग लगाया जाए। हसन ने इस बारे में अपनी रिसर्च की और उन्हें पैराडाइस गार्डन के बारे में पता चला। हसन कहते हैं कि उन्हें ज़ुबेर की टीम का काम काफी पसंद आया और वे अपने हर जानने वाले को उनसे काम कराने की सलाह देते हैं।

ज़ुबेर का स्टार्टअप गार्डन के रख-रखाव की सुविधाएँ भी देता है और इसके लिए उनकी फीस 2000 रुपये से शुरू होती है।

चुनौतियाँ और आगे की योजना:

ज़ुबेर का दिन अपनी पढ़ाई से शुरू होता है और फिर साथ में, वह कुछ फाइनेंस और बिज़नेस डेवलपमेंट की किताबें भी पढ़ते रहते हैं ताकि उनके व्यवसाय में यह ज्ञान काम आए। फिर वह दिन का अपना एजेंडा देखते हैं और अपने काम के लिए अलग-अलग जगहों का दौरा करते हैं।

वह बताते हैं कि उन्होंने अपने स्टार्टअप में अपनी बचत का पैसा लगाया है और इसलिए खुद को मैनेज करना काफी मुश्किल काम है। फिलहाल, उन्हें लाभ मिल रहा है और कई इन्वेस्टर ने भी उन्हें संपर्क किया है, लेकिन उन्हें अभी बाहर से कोई फंडिंग नहीं चाहिए।

अपने इस काम की चुनौतियों के बारे में वह कहते हैं कि टीम के लिए सही लोग मिलना बहुत ही परेशानी भरा काम है, चाहे माली हों या फिर सुपरवाइज़र। इन मालियों को ट्रेनिंग देना भी एक चुनौती है क्योंकि वे गार्डनिंग के अपने पारंपरिक तरीकों को छोड़ना नहीं चाहते।

Gardeners from Paradise gardens at work.

इस सबके बावजूद, ज़ुबेर यह सुनिश्चित करते हैं कि उनकी टीम में सही और काबिल लोग हों ताकि उनके ग्राहकों का विश्वास उन पर बना रहे।

इसके अलावा, अपने जैसे युवा उद्यमियों के लिए वह सिर्फ इतना कहते हैं, “कोई भी काम छोटा नहीं है। राह में बहुत से लोग मिलेंगे जो आपको निराश करेंगे लेकिन आपको सिर्फ मेहनत करनी है। हो सकता है आपको कुछ दिन, महीने और साल लगें, लेकिन अंत में आप ज़रूर सफल होंगे। आपको कुछ भी शुरू करने के लिए बहुत ज्यादा पैसा नहीं चाहिए बल्कि सफलता की कुंजी दृढ़-विश्वास है।”

अपनी आगे की योजना पर बात करते हुए वह कहते हैं कि अब वह कुछ सरकारी प्रोजेक्ट की तरफ भी ध्यान दे रहे हैं। आगे उनकी योजना है कि उनकी वेबसाइट और भी ज्यादा आकर्षक दिखे और एक एप्लीकेशन शुरू करने पर भी वह विचार कर रहे हैं। इससे उन्हें जगह को देखने और अपनी फीस बताने में आसानी होगी और उन्हें शुरू में ही हर जगह खुद नहीं जाना पड़ेगा।

“शहरों को हरियाली की ज़रूरत है, हमने विकास के चक्कर में जो खोया है उसे वापस लाना बहुत ज़रूरी है। अगले साल तक, हम अपने काम को और 10 शहरों में फैलाना चाहते हैं। मेरा उद्देश्य हरियाली फैलाना है ताकि हम एक अच्छी और स्वस्थ ज़िंदगी जी सकें,” उन्होंने अंत में कहा।

मूल लेख: अंगारिका गोगोई

संपादन – अर्चना गुप्ता


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