राजस्थान के शाहपुरा त्रिवेणी गाँव के एक किसान परिवार से संबंध रखने वाले 28 वर्षीय अंगराज स्वामी को दिल्ली यूनिवर्सिटी में अपनी ग्रैजुएशन के दौरान ही समझ में आ गया था कि उन्हें वेस्ट-मैनेजमेंट से संबंधित कुछ करना है। साल 2014 में पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्होंने दिल्ली के चांदनी चौक में अपनी एक पेपर रिसायक्लिंग यूनिट शुरू की।
“मैंने पहले ही इस सेक्टर के बारे में अच्छी जानकारी हासिल कर ली थी। कहाँ से पेपर लेना है और कैसे इसे रिसायकल कर मार्केटिंग करनी है। मेरा बिज़नेस आइडिया चल भी गया। लेकिन फिर सरकार ने पेपर के इम्पोर्ट पर एक्साइज़ ड्यूटी बढ़ा दी तो हमारा काम काफी प्रभावित हुआ और मुझे 2016 में अपनी यूनिट बंद करनी पड़ी,” उन्होंने बताया।
इसके बाद, साल 2017 में उन्होंने जयपुर में वेस्ट मैनेजमेंट पर एक प्रोग्राम शुरू किया। उन्होंने कहा कि तब तक उन्हें समझ में आ गया था कि अगर सही ढंग से काम किया जाए तो वेस्ट मैनेजमेंट के सेक्टर में भी वे मुनाफा कमा सकते हैं। इसलिए, इस विषय पर उन्होंने अपनी स्टडी शुरू की।
“मुझे अपनी रिसर्च के दौरान पता चला कि हर साल हमारे यहाँ 1 लाख 30 हज़ार करोड़ रुपये का कचरा डंप होता है क्योंकि, भारत में कचरा अलग करके इकट्ठा करने का कोई कॉन्सेप्ट ही नहीं है। वहीं अन्य देशों में जैसे, जापान में 11 तरह का कचरा अलग-अलग किया जाता है, अमेरिका में 8 तो चीन में 4 तरह का कचरा अलग-अलग करके इकट्ठा होता है,” अंगराज ने बताया।
उन्हें अपनी रिसर्च से समझ में आ गया कि वेस्ट मैनेजमेंट का सेक्टर और मार्केट काफी बड़ा है। अगर ज़रूरत है तो सही प्लानिंग और प्रक्रिया की।
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अंगराज कहते हैं कि हमारे देश में लीनियर इकॉनमी पर काम हो रहा है। उदाहरण के लिए आपने प्लास्टिक की कुर्सी खरीदी, इसे इस्तेमाल किया और फिर टूटने के बाद उसे कचरे में फेंक दिया। जहाँ उसे डंप कर दिया गया और आपने नयी कुर्सी खरीद ली।
लेकिन अगर आप अपनी टूटी हुई कुर्सी को रिसायक्लिंग के लिए दें, तो ये एक सर्कुलर इकॉनमी बनेगी। इससे प्लास्टिक का कचरा लैंडफिल में नहीं जाएगा।
सर्कुलर इकॉनमी के उद्देश्य को ही ध्यान में रखकर अंगराज ने साल 2017 में ‘इको-रैप’ (Eco- Wrap) की नींव रखी। अपने संगठन के ज़रिए वे जयपुर के होटलों से कचरा इकट्ठा करते हैं और फिर इस कचरे को रिसायकल करने वालों के पास भेजते हैं। इसके अलावा, उनके पास कुछ ऐसा वेस्ट भी आता है जिसे वे अपसायकल करते हैं और नए प्रोडक्ट्स बनाते हैं।
अंगराज बताते हैं कि सबसे पहले उन्होंने इस सेक्टर की चुनौतियों को समझा। “ऐसा नहीं है कि सरकार इस बारे में कोई काम नहीं कर रही है। सरकार काम कर रही है लेकिन समस्या जनभागीदारी और जागरूकता की है। बहुत ही कम लोग हैं जो कि कचरे को अलग-अलग करके डस्टबिन में डालना अपना कर्तव्य समझते हैं। ज़्यादातर लोगों को यह बेकार का काम लगता है। फिर यदि कोई कुछ अच्छा करना चाहे तो भारत में इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी है। सोचिये अगर आपके घर में काफी प्लास्टिक वेस्ट है तो आप उसे कहाँ पर रिसायकल के लिए देंगे।” – अंगराज
इन सब समस्याओं को समझते हुए, अंगराज ने सबसे पहले होटल इंडस्ट्री को टारगेट किया। होटल इंडस्ट्री से काफी ज्यादा मात्रा में कचरा इकट्ठा होता है और उनके पास स्टाफ है, जिसे ट्रेनिंग देकर पूरी क्षमता से काम करवाया जा सकता है। इसलिए उन्होंने जयपुर के होटलों से सम्पर्क करना शुरू किया।
वह बताते हैं कि होटल वाले उन्हें अपना कचरा सही समय पर, सही से अलग-अलग करके दें, इसके लिए उन्होंने अपने मॉडल को कमर्शियल रखा। मतलब कि वह होटलों को उनके कचरे के बदले पैसे देते हैं। कचरे के हिसाब से उन्होंने उसकी कीमत तय की हुई है।
जैविक (बचा हुआ खाना आदि), कांच की बोतल और बर्तन, प्लास्टिक का कचरा (HDPE, PET), टेट्रापैक्स और रैपर्स जैसे 4 अलग-अलग तरह के कचरे को उनकी टीम इकट्ठा कर रही है। उन्होंने होटलों में अपने डस्टबिन रखवाए हुए हैं और जब ये डस्टबिन भर जाते हैं, होटल से उन्हें फ़ोन कर दिया जाता है। उनकी टीम जाकर कचरा इकट्ठा कर लेती है और इसका वजन करके होटल को पैसे दे दिए जाते हैं।
फ़िलहाल, वे जयपुर में 129 होटलों के साथ काम कर रहे हैं और हर दिन लगभग 120 मीट्रिक टन कचरा इकट्ठा करते हैं। इस कचरे को आगे वे 16 रिसायकलर्स को भेजते हैं। इस तरह से उनकी एक कोशिश इतने सारे कचरे को लैंडफिल में जाने से रोक रही है और साथ ही, वे कई लोगों को रोज़गार भी दे पा रहे हैं।
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“हम 95% कचरे को रिसायकलिंग के लिए भेज देते हैं। लेकिन बहुत बार हमारे पास कांच की बोतल, टायर आदि भी कचरे में आते हैं। इन्हें रिसायकल के लिए नहीं भेजा जा सकता तो हम अपसायकिलिंग करवाते हैं।”
अपसायकिलिंग के ज़रिए वे पुराने बेकार प्रोडक्ट्स को नए सजावट और काम में आने वाले प्रोडक्ट्स में तब्दील करवाते हैं। इस काम के लिए उन्होंने 12 ग्रामीण महिलाओं को ट्रेनिंग दिलाई है।
अंगराज की टीम में उनके अलावा, तीन और को-फाउंडर्स हैं। 27 वर्षीय चंद्रकांत दिल्ली यूनिवर्सिटी में उनके दोस्त थे। चन्द्रकांत इससे पहले गुजरात में लॉजिस्टिक्स का काम कर रहे थे और जब अंगराज ने उन्हें अपने साथ जुड़ने का ऑफर दिया तो उन्होंने स्वीकार कर लिया।
29 वर्षीय मनोज साहू से अंगराज की मुलाक़ात एक इवेंट के दौरान हुई। मनोज को सेल्स और मार्केटिंग में अच्छा अनुभव था और अंगराज को भी अपनी टीम में किसी ऐसे इंसान की ज़रूरत थी जो उनके स्टार्टअप की मार्केटिंग संभाल सके। चौथे को-फाउंडर, दीपक से अंगराज एक प्रदर्शनी में मिले थे। दीपक ने फाइन आर्ट्स में अपनी पढ़ाई की है और वह अपसायकलिंग के सेक्टर में अच्छा काम कर रहे थे।
“मैंने दीपक को हमारे साथ मिलकर काम करने के लिए कहा ताकि हम एक बड़े स्केल पर काम कर पाएं। उन्होंने ही महिलाओं को ट्रेनिंग देने और उनसे काम कराने का प्रोजेक्ट संभाला हुआ है। इनके अलावा, प्रमोद हमारे टीम के अहम सदस्य हैं जो जैविक कचरे के प्रबंधन को संभालते हैं,” उन्होंने बताया।
अपने स्टार्टअप की फंडिंग के लिए अंगराज ने खुद अपनी बचत के पैसे लगाए। वह कहते हैं कि उन्होंने अब तक जो भी इन्वेस्टमेंट की है वह खुद की है। फिर जैसे-जैसे वे आगे बढ़े, उनकी आय बढ़ने लगी। जिसके बाद उनके लिए स्टार्टअप को चलाए रखना थोड़ा आसान हो गया।
“बाहर से फंडिंग के लिए हमने काफी प्रयास किए हैं और अभी भी कर रहे हैं। समस्या यह है कि कोई भी इस सेक्टर में इन्वेस्ट नहीं करना चाहते क्योंकि यह बिज़नेस आपको मुनाफा दे सकता है इस बात पर आसानी से कोई भरोसा नहीं करता। इसलिए हम ऐसे निवेशक ढूंढ रहे हैं जो हमारे काम के महत्व को समझें और उसके लिए हमें फंडिंग दें,” उन्होंने कहा।
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आने वाले दो सालों में उनका उद्देश्य अपनी आय को सालाना 3 करोड़ रुपये तक ले जाना है और उन्हें यकीन है कि उस समय वे लगभग साढ़े 6 हज़ार मीट्रिक टन कचरा रिसायकलिंग के लिए भेज चुके होंगे। अंत में वह सिर्फ यही कहते हैं,
“लोगों को लगता है कि हमारे कुछ करने से या फिर नहीं करने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। लेकिन मेरा मानना है कि जिस प्रकृति में हम रह रहे हैं वहाँ हम पर हमारी भावी पीढ़ी का कर्ज है। अगर हम उन्हें उनके मूल के साथ ब्याज नहीं दे सकते तो कम से कम उनका मूल तो उन्हें सही-सलामत लौटा ही सकते हैं।”
अंगराज स्वामी से संपर्क करने के लिए आप 09269099901 पर कॉल कर सकते हैं!
संपादन – अर्चना गुप्ता
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