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सुबह 4 बजे उठकर सब्जी बेचनेवाली ललिता बन गई हैं एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की स्टेट टॉपर!

ललिता, इसरो के चीफ, के. सिवान को अपना रोल मॉडल मानती हैं। उनका सपना है कि वह अंतरिक्ष वैज्ञानिक बनें।

जिला चित्रदुर्ग (कर्नाटक) के अंतर्गत आने वाले तहसील हिरियुर में एक बेटी की लगन ने सपने को हकीकत में बदल दिया है। किसने सोचा था कि यहाँ रहने वाले एक सब्जी विक्रेता की 22 साल की बेटी, आर ललिता एक दिन एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की परिक्षा में स्टेट टॉपर बनेगी। जी हाँ, चाहत हो तो इंसान क्या नहीं कर सकता, इस कथन को सच किया है आर ललिता ने, जो पिछले 4 सालों से सुबह होते ही सब्जी बेचने जाया करती थीं।

“मैं सुबह 4 बजे उठकर हिरियुर के नेहरू मार्केट जाती थी, जहाँ मेरे माता-पिता सब्जी बेचा करते हैं। मैं अपने साथ किताबें लेकर जाती थी और माता-पिता को काम में हाथ बंटाने के दौरान जब भी मौका मिलता था मैं पढ़ने की पूरी कोशिश करती थी।” – ललिता

रोज सुबह सब्जी बेचने के बाद वह कॉलेज जाया करती थीं। इस भाग-दौड़ के साथ पढ़ाई करना काफी मुश्किल रहा होगा लेकिन ललिता को पढ़ाई के सामने कोई थकान महसूस नहीं होती थी। उनके निरंतर प्रयास और निश्चय का परिणाम निकला की वह परीक्षा में इतने अच्छे अंकों से पास हुईं। ललिता, येलहनका (बंगलुरु का एक उपनगर) में ईस्ट वेस्ट कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग की विद्यार्थी हैं। वह डिपार्टमेंट ऑफ एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग से बी.ई. (बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग) की डिग्री ले रहीं हैं। ये कॉलेज, विश्वेश्वरैया टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (VTU), बेलागावी के अंतर्गत आता है।

1 फरवरी, 2020 को एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में 9.7 पर्सेंटाइल मिलने पर जब उन्हें स्टेट टॉपर की रैंक मिली तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ। उनकी इस उपलब्धि के लिए उन्हें गोल्ड मेडल प्राप्त हुआ है। सिर्फ यहींं नहीं, GATE की परीक्षा में भी उन्हें 707 अंक मिले हैं।

“मुझे बहुत गर्व महसूस हो रहा है। मेरे परिवार में भी सभी लोग काफी उत्साहित हैं। मैं अपने परिवार में ग्रैजुएशन पूरी करने वाली पहली इंसान हूँ। पूरे जिले में मेरी उपलब्धि का जश्न मनाया जा रहा है।” – ललिता

ललिता अपनी इस सफलता का श्रेय अपने माता-पिता को देती हैं। द बेटर इंडिया से बात करते हुए ललिता कहती हैं,

“ज़िंदगी में परेशानियों की कोई कमी नहीं थी। मेरे माता-पिता परिवार चलाने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं। फिर भी, उन्होंने हमें अच्छी शिक्षा देने की ज़िम्मेदारी संभाली। मैं हमेशा उनकी आभारी रहूंगी।”

ललिता की माँ, श्रीमती चित्रा और पिता श्री राजेंद्र अपनी बेटी की सफतला से फूले नहीं समा रहे हैं। वे आर्थिक हालातों के कारण अपनी स्कूली शिक्षा तक पूरी नहीं कर पाए थे। अपने पुरखों के 40 साल के व्यवसाय को आगे बढ़ाते हुए वे भी सब्जी विक्रेता बन गए थे। लेकिन उन्होंने ये ठान लिया था कि वे अपनी तीनों बेटियों को अच्छी शिक्षा देंगे और आगे बढ़ाएंगे।

ललिता अपने कॉलेज के शिक्षकों और क्लासमेट्स को भी उन्हें सपोर्ट करने के लिए धन्यवाद देती हैं। कॉलेज प्रबंधन ने ललिता के अच्छे परिणामों से प्रभावित होकर उन्हें निशुल्क हॉस्टल में रहने की सुविधा दी थी ताकि रोज बस से आने जाने का समय और परिश्रम बच सके और ललिता पढ़ाई में ज्यादा ध्यान दे सकें।

ललिता का फ्यूचर प्लान

ललिता, इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाईजेशन(इसरो) के चीफ, के. सिवान को अपना रोल मॉडल मानती हैं। वह एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में  IIT या IISc. जैसे नामी संस्थान से मास्टर्स की डिग्री हासिल करना चाहती हैं। ललिता से भविष्य के बारे में पूछने पर एक बड़ी सी मुस्कान के साथ वह कहती हैं –

“मेरा सपना है कि मैं भारत में अंतरिक्ष वैज्ञानिक बनूं। मैं यह भी चाहती हूँ कि मैं इसरो या डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (DRDO) के साथ काम करूं।”

उम्मीद है ललिता की इस प्रेरणादायक सफलता से बहुत से विद्यार्थी सीख लेगें और चुनौतियों का सामना कर आगे बढ़ेंगे।

संपादन – मानबी कटोच 

मूल लेख – सयंतनी नाथ


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