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किसानों की कमजोरियों को भांप, इस युवा ने मदद के लिए छोड़ी जमी जमाई नौकरी!

जब राहुल को बतौर आईटी इंजीनियर नौकरी मिली, तो सभी बेहद खुश थे, लेकिन राहुल पहले ही अपनी अलग राह चुन चुके थे।

न्नदाता यानी किसानों की दुर्दशा से जुड़ी खबरें देखकर हम और आप भी परेशान हो जाते हैं, लेकिन हमारी ‘परेशानी’ महज चंद मिनटों की होती है। शायद हम सोचते हैं कि ये ज़िम्मेदारी सरकार की है। लेकिन, भोपाल निवासी राहुल राज की सोच थोड़ी अलग है। वह न केवल किसानों की परेशानी से परेशान होते हैं, बल्कि पूरी शिद्दत के साथ उसका हल तलाशने का प्रयास भी करते हैं। यूँ कहें कि उन्होंने अपना पूरा जीवन किसानों के नाम समर्पित कर दिया है। 30 वर्षीय राहुल के पास ऐशोआराम से जिंदगी गुजारने के तमाम मौके थे, लेकिन फिर भी उन्होंने किसानों के लिए काम करना चुना। किसानों की आत्महत्या के बढ़ते मामले और उनका शोषण देखकर राहुल इतने व्यथित हुए कि अपनी जमी-जमाई नौकरी छोड़कर मुंबई से भोपाल लौटे और प्रदेश के अन्नदाताओं के उत्थान में खुद को झोंक दिया। ये उनके प्रयासों का ही नतीजा है कि किसान न केवल अपने हक़ के प्रति सजग हो रहे बल्कि खेती से जुड़ी नई-नई तकनीकों के महत्व को भी समझने लगे हैं। 

राहुल राज किसानों को स्वावलंबी बनाने के साथ-साथ इस बात पर भी जोर देते हैं कि वह जनभागीदारी समितियों का हिस्सा बनें, ताकि खुद से जुड़ी नीतियों में अहम भूमिका निभा सकें। इसके अलावा, वह किसानों को उन्नत खेती के लिए नई तकनीकों और सरकार की योजनाओं से भी अवगत कराते हैं। पिछले तीन सालों से राहुल इस काम में लगे हैं और अब उन्हें इसके सकारात्मक परिणाम मिल रहे हैं। यूँ तो मूलरूप से मध्यप्रदेश के राघोगढ़ निवासी राहुल का किसानों से पुराना नाता है, लेकिन उन्हें किसानों को करीब से समझने का मौका तब मिला जब वह 2016 में कुछ दिनों की छुट्टी पर अपने गाँव आये। उन्होंने देखा कि किसानों को किस तरह हर कदम पर परेशानी का सामना करना पड़ता है। उन्हें न तो उपज का सही दाम मिलता है और न ही ज़रूरी संसाधन। हालाँकि राहुल उस वक़्त किसानों के लिए कुछ खास नहीं कर सके। उन्हें वापस दिल्ली अपनी इंजीनियरिंग की नौकरी में लौटना पड़ा, कुछ समय बाद उन्होंने मायानगरी को अपनी नई कार्यस्थली बनाया, मगर उनका दिल हर पल किसानों के लिए धड़कता रहा।

 

इस बीच, उन्हें एक चुनावी अभियान से जुड़ने का मौका मिला और यहीं से उनकी जिंदगी अचानक पलट गई। इस बारे में बताते हुए राहुल कहते हैं, ‘राघोगढ़ प्रदेश की राजनीति का केंद्र रहा है। निर्भया कांड के समय जब सब अपना-अपना गुस्सा व्यक्त कर रहे थे, तब मैंने भी अपनी बात कही, जिससे प्रदेश के एक वरिष्ठ नेता काफी प्रभावित हुए। उन्होंने मुझे राजनीति में आने का सुझाव दिया, मगर मैं किसानों के लिए कुछ करना चाहता था। लिहाजा बात आई-गई हो गई। मुंबई से जब मैं कुछ दिनों के लिए घर आया, तो यहां एक चुनावी अभियान का पता चला। मैं यह सोचकर उसमें शामिल हो गया कि इस बहाने प्रदेश भर के किसानों से संवाद का मौका मिलेगा। इस दौरान मैंने जाना कि किसान बेहद बुरी स्थिति से गुजर रहे हैं। उनके नाम पर केवल वोटबैंक की राजनीति होती आई है। तब मैंने फैसला किया कि अब मैं नौकरी नहीं बल्कि किसानों के लिए कुछ करूँगा।’ 

राहुल किसानों की लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए पूरी तैयारी के साथ ही मैदान में नहीं कूदे, बल्कि उन्होंने बाकायदा गहन अध्ययन किया। वह राष्ट्रीय किसान संगठन से जुड़े, ताकि किसानों से संबंधित छोटे-बड़े हर पहलू को समझा जा सके। उन्होंने किसान संगठन की 75 दिन चलने वाली यात्रा में सक्रिय भूमिका निभाई और जाना कि आखिर किसान कहाँ मात खा रहा है। इसके बाद उन्होंने रूपरेखा तैयार की और फिर अपने अभियान में जी-जान से जुट गए।  राहुल राज कहते हैं-

‘किसानों की बदहाली की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वे आज भी जातिगत राजनीति में उलझे हुए हैं। खासकर अधिकांश बुजुर्ग राजनीतिक-मानसिक गुलामी के शिकार हैं। लिहाजा मैंने यहीं से शुरुआत की। मैंने किसानों को समझाया कि अपना भला वह खुद ही कर सकते हैं। जात-पात की राजनीति से केवल नेताओं का भला होगा आपका नहीं। पहले तो उन्होंने मेरी बातों को गंभीरता से नहीं लिया, लेकिन अब उन्हें समझ आने लगा है कि मैं सिर्फ उनके हित की बात करता हूँ।’

राहुल उन लोगों में से हैं, जो दूसरों को कोई सीख देने से पहले खुद उदाहरण पेश करने में विश्वास रखते हैं। यही वजह है कि वह अपने नाम के साथ कुलनाम नहीं लगाते, ताकि किसानों को जात-पात से ऊपर उठकर सोचने की सीख दे सकें। उनका फोकस मुख्यत: युवाओं पर रहता है, क्योंकि उनका मानना है कि युवा किसान ही खेती का भविष्य बदल सकते हैं। एक घटना का जिक्र करते हुए वह बताते हैं,

‘मैं हमेशा किसानों को प्रेरित करता हूँ कि वह नेताओं से सवाल पूछें। कुछ वक़्त पहले चुनाव के दौरान युवाओं ने ऐसे-ऐसे सवाल पूछे कि नेताओं के लिए जवाब देना मुश्किल हो गया। ये दर्शाता है कि युवा किसान हालात बदलना चाहते हैं, इसलिए मैं यूथ पर खास ध्यान केंद्रित करता हूँ’। 

राहुल केवल किसानों की बात करते हैं और उनके हक़ की आवाज़ बुलंद करने के लिए वह किसी से भी टकराने को तैयार रहते हैं, फिर वह सरकार ही क्यों न हो। यही वजह है कि उनके विरोधियों की फेहरिस्त दिन पर दिन लंबी होती जा रही है। ऐसी स्थिति में काम करना कितना चुनौतीपूर्ण है? इस सवाल के जवाब में राहुल कहते हैं, ‘मुझे शुरुआत में ही पता चल गया था कि ये काम आसान नहीं है। अधिकांश नेताओं के लिए किसान वोटबैंक हैं और जो कोई उन्हें सही राह दिखाने का प्रयास करेगा, वह उनका दुश्मन हो जाएगा। मैं हवा-हवाई बातें नहीं करता, तथ्यों के आधार पर अपनी बात कहता हूँ। इसलिए अक्सर विरोधियों के गुस्से का शिकार होना पड़ता है। मेरी आजीविका छीनने के भी कई बार प्रयास हुए हैं, लेकिन मेरा मानना है कि अच्छी सोच के साथ आगे बढ़ने वाले के लिए भगवान कोई न कोई दरवाजा खोल ही देता है।

नर्मदा बचाओ अभियान के दौरान सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर के साथ राहुल

राजनीतिक और प्रशासनिक अड़चनों के साथ ही आर्थिक मोर्चे पर भी राहुल राज के लिए परेशानियाँ कम नहीं हैं। समय-समय पर प्रदेश भर के गाँव का दौरा करना, किसानों के लिए लाभकारी कार्यक्रम आदि करने में भारी-भरकम खर्चा होता है, जिसे वह खुद ही वहन करते हैं। उदाहरण के तौर पर नई तकनीकों को अपनाने के लिए प्रशिक्षण देना, आदर्श किसानों के यहां बाकी किसानों की यात्राएँ आयोजित करना जिससे किसान उन्नत खेती के तौर-तरीकों के बारे में समझ सकें। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो जो काम कृषि विभाग को करना चाहिए वह राहुल कर रहे हैं। अमूमन जब आप कुछ अलग करने का प्रयास करते हैं, तो अपने भी कई बार साथ नहीं देते। इस संबंध में ‘द बेटर इंडिया’ से बात करते हुए राहुल राज कहते हैं, ‘मेरी माँ को हमारे पालन पोषण के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा था, लिहाजा जब मुझे बतौर आईटी इंजीनियर नौकरी मिली, तो सभी बेहद खुश थे। लेकिन जब मैंने उन्हें किसानों के लिए काम करने के अपने फैसले से अवगत कराया तो माँ बहुत नाराज़ हुईं, रिश्तेदारों ने कहा कि मैं अपना जीवन बर्बाद कर रहा हूँ पर अब जब माँ मेरे काम की सराहना होते देखती हैं, तो उन्हें मेरे फैसले पर गर्व होता है। वैसे मैं खुद को खुशनसीब मानता हूँ कि मेरी पत्नी भी हर कदम पर मेरे साथ है। परिवार के साथ के बिना कुछ भी संभव नहीं हो सकता।’

धान तौलने के दौरान गड़बड़ी की शिकायत के बाद वजन कांटे की जांच करते राहुल

 राहुल ज़्यादातर समय गाँव में होते हैं और जो कुछ समय बचता है उसमें सरकार की किसानों से जुड़ी नीतियों-योजनाओं का अध्ययन करते हैं। खेती से जुड़ी नई तकनीकों को समझते हैं, ऐसे में उन्हें परिवार के साथ समय व्यतीत करने का अवसर कम ही मिलता है, लेकिन उन्हें इसका कोई अफ़सोस नहीं है। ‘द बेटर इंडिया’ के माध्यम से राहुल राज देश के युवाओं को संदेश देना चाहते हैं, वह कहते हैं – ‘आपको जो सही लगता है, करें, फिर चाहे वह किसी को सही लगे या न लगे। यदि आप अपने पैशन को फॉलो करते हैं, तो आप ज़रूर सफल होंगे।’

अगर आपको राहुल की कहानी आकर्षित करती है और आप उनसे जुड़ना चाहते हैं, तो 9926259382 पर संपर्क कर सकते हैं या फेसबुक पेज https://www.facebook.com/rahulrajrkms/ के माध्यम से उनसे जुड़ सकते हैं।

संपादन- अर्चना गुप्ता

 


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