खेतों में मज़दूरी करके, बेटी से अंग्रेज़ी सीखके, 10वीं की परीक्षा फिर देने चली हैं यह महिला किसान!

यह कहानी है सविता डकले की, जिन्होंने न सिर्फ अपनी इस आम कहानी को अपनी मेहनत और लगन से ख़ास बनाया बल्कि अपने गाँव की दूसरी महिलाओं को भी अपने नक़्शे कदम पर चलने के लिए प्रेरित किया।

छोटे से शहर में जन्मी। मज़दूर पिता और सब्ज़ी बेचकर गुज़ारा करने वाली माँ। पाँच भाई-बहनों में से एक। घर की आर्थिक मदद के लिए महज़ 15 साल की उम्र में फैक्ट्री में काम और 17 साल की उम्र में एक गाँव के गरीब किसान परिवार में शादी।

यह कहानी किसी आम महिला की होती तो शायद आप इसके आगे की कहानी खुद ही समझ जाते। पर यह कहानी है सविता डकले की, जिन्होंने न सिर्फ अपनी इस आम कहानी को अपनी मेहनत और लगन से ख़ास बनाया, बल्कि अपने गाँव की दूसरी महिलाओं को भी अपने नक़्शेकदम पर चलने के लिए प्रेरित किया।

यदि आप सोच रहे हैं कि सविता ने अपनी मेहनत से कई एकड़ ज़मीन खरीद ली है या फिर लाखों कमातीं हैं, इसलिए वह हमारी इस कहानी की नायिका हैं, तो ऐसा नहीं है। पर जो बात उनके व्यक्तित्व को ख़ास बनाती है, वह है उनका आत्मविश्वास, जो लाख मुश्किलों के बावजूद कभी नहीं टूटा। तो, आईये जानते हैं सविता की कहानी।

सविता डकले

 

पढ़ाई छूटी, शहर छूटा, और किसान बन गयी सविता 

महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के एक छोटे से गाँव, धनोरा में जन्मी सविता पाँच भाई बहनों में तीसरी थीं। उनके भरण-पोषण के लिए उनके पिता औरंगाबाद जाकर बस गए और वहां एक फैक्ट्री में मज़दूरी करने लगे। पर उनके वेतन के थोड़े से पैसों से सात प्राणियों का पेट कैसे भरता? इसलिए उनकी माँ भी सब्जी बेचने लगीं। सविता ने जैसे-तैसे नौवीं तक पढ़ाई की, पर जब वह दसवीं में थीं तो अपनी बाकि भाई-बहनों की पढ़ाई जारी रखवाने के लिए उन्हें भी फैक्ट्री में काम करना पड़ा। पढ़ने-लिखने में तो सविता होशियार थीं, पर इस तरह काम के साथ-साथ दसवीं बोर्ड परीक्षा की तैयारी करना आसान नहीं था। नतीजतन सविता दसवीं में फेल हो गयीं। माता-पिता को भी एक-एक कर अपनी बेटियां ब्याहनी थी, ताकि जल्द से जल्द ज़िम्मेदारियों से मुक्त हो सके। ऐसे में 16-17 साल की होते न होते साल 2004 में सविता का ब्याह रचा दिया गया। दूल्हा किसान था और औरंगाबाद जिले के ही पेंडगाव में रहता था। सविता बचपन से ही औरंगाबाद शहर में पली बढ़ी थीं। उनके लिए इस तरह गाँव के माहौल में अचानक से चले जाना किसी बुरे सपने से कम नहीं था, ऊपर से आगे पढ़ने की इच्छा धरी की धरी रह गयी सो अलग। सविता के पति की सवा एकड़ ज़मीन है, जिस पर वे कपास ही उगाते थे। सविता ने भी धीरे-धीरे खेती-बाड़ी का सारा काम सीख लिया और थोड़े ही दिनों में हर काम में निपुण हो गयीं।

“मुझे गाँव का कोई काम नहीं आता था। खेती-बाड़ी का तो बिलकुल भी नहीं। गाँव की औरतें मुझ पर हंसती कि ‘इसे तो कोई काम ही नहीं आता’। कभी-कभी रोना आता था कि मेरे पिता ने मुझे ये कहाँ ब्याह दिया। पर फिर धीरे-धीरे मैं सब सीख गयी। कभी मैं एक दिन में 8-10 किलो कपास ही चुन पाती थी पर अब मैं 80 किलो कपास चुन लेती हूँ,” द बेटर इंडिया से बात करते हुए सविता ने हँसते हुए बताया।

सविता ने अपनी किस्मत से समझौता कर ही लिया था, कि तभी एक रोज़ उनके गाँव में अहमदाबाद की ‘सेल्फ एम्प्लॉयड वीमेन एसोसिएशन’ यानि की ‘सेवा’ (SEWA) संसथान का आना हुआ।

सेवा संसथान के साथ जुड़कर सविता के सपनों को जैसे पंख मिल गए

 

सपनों को जैसे मिल गए पंख!

सेवा की एक शाखा है ‘सेवा मैनेजर नी स्कूल’, जिसके तहत ग्रामीण महिलाओं को मैनेजेरियल स्किल्स व स्वरोजगार के अलग-अलग तरीकों की ट्रेनिंग दी जाती है। संस्था का एक ही उद्देश्य होता है कि ये महिलाएं इस तरह की ट्रेनिंग लेकर अपने पैरों पर खड़ी हो सके और पूरी तरह आत्मनिर्भर बन सके। इन स्वरोजगार योजनाओं में से एक जैविक खेती की ट्रेनिंग देना भी है। सविता के गाँव में यह टीम 2018 में इसी का प्रशिक्षण देने आयी थी।

“बाहर मुझे कुछ महिलाओं की आवाज़ें सुनाई दी। मैंने जाकर देखा तो शहर से आयीं कुछ मैडम हमारे गाँव की महिलाओं को कुछ समझा रहीं थीं। मैं भी उन्हीं में शामिल हो गयी। वहां हमें बताया गया कि किस तरह हम सिर्फ अपने ही नहीं बल्कि दूसरों के जीवन में भी बदलाव ला सकते हैं। मुझे दूसरों के लिए कुछ करना हमेशा से अच्छा लगता था, पर घर में सवाल उठने शुरू हो गए कि अपने ही घर के और खेत के इतने काम होते हैं, तो मैं दूसरों का काम कैसे करुँगी। पर इस समय मेरे पति ने मेरा पूरा साथ दिया,”  सविता ने बताया।

सेवा से जुड़ने के बाद शुरू हुआ सीखने का सिलसिला। सबसे पहले सविता ने जैविक खेती के बारे में सीखा। इस ट्रेनिंग के दौरान उन्हें समझ में आया कि केमिकल खाद और कीटनाशक डालकर किस तरह किसान दूसरों की सेहत के साथ तो खिलवाड़ करते ही हैं, साथ ही अपनी ज़मीन को भी नुकसान पहुंचाते हैं। इस ट्रेनिंग में जैविक खाद बनाना सीखकर सविता ने सबसे पहले अपने खेत में प्रयोग करने शुरू किये।

कड़ी मेहनत से कभी नहीं कतराई सविता

जब वह पूरी तरह जैविक खेती करने लगीं, तो अगला कदम था दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करना। पर सुबह तड़के उठकर बच्चों को स्कूल भेजना, खाना बनाना, बर्तन धोना, सफाई करना, फिर दिन भर खेतों पर काम करना, और फिर वापस आकर रात का खाना बनाना, कुछ इस तरह की  दिनचर्या के साथ सविता दूसरों को समझाने जाती भी तो कब?

“मैं सारे काम निपटा कर रात में बाकी महीलाओं को समझाने निकलती थी। उन्हें जाकर बताती थी कि रसायन का इस्तेमाल करना कितना हानिकारक है,” यह कहते हुए सविता की आवाज़ में एक अलग ही जोश था।

शुरू-शुरू में तो सबने सविता को ज़्यादा गंभीरता से नहीं लिया। पर सविता लगातार उनके पास जाती रहीं। अब वह कृषि-प्रदर्शनियों में भी जाने लगीं थीं। उन्हें खेती के नए-नए प्रयोगों का अनुभव होने लगा था। कभी औरंगाबाद से न निकलने वाली सविता अब अलग-अलग शहरों में आयोजित कार्यक्रमों में जाकर नयी-नयी बातें सीखने लगीं थीं। ये सारा ज्ञान उन्होंने अपनी खेती में लगाया और कुछ महीनों में ही नतीजा सामने था।

“मैंने और मेरे पति ने परंपरागत कपास की खेती छोड़कर अनार लगाने का फैसला किया था। हालाँकि, अनार पूरी तरह से जैविक नहीं हो सकता, पर जैविक खाद का भी इस्तेमाल होने की वजह से हमें एक बेहतरीन फसल मिली,” सविता ने बताया।

अब सविता सभी महिलाओं से बिनती करने लगीं कि अगर उन्हें सविता की बातों पर विश्वास नहीं होता तो बेशक वे उनके खेत पर आकर जैविक खेती के परिणाम देख सकतीं हैं। पहले एक….फिर दूसरी और फिर धीरे-धीरे गाँव की सभी 200 महिलाएं सविता के खेत पर आयीं और परिणाम देखकर उनकी आँखे खुल गयीं।

अब सविता इन सभी 200 महिलाओं को हर हफ्ते जैविक खेती की ट्रेनिंग देती हैं। साथ ही उन्होंने इस गाँव के पहले महिला बचत गट की शुरुआत भी की। धीरे-धीरे यह कारवां कुछ ऐसा बढ़ा कि आज इस गाँव में 10 महिला बचत गट हैं।

200 महिलाओं को देतीं हैं ट्रेनिंग

अब भी नहीं रुकी हैं सविता, अब भी नहीं थकी हैं सविता

सविता और सुनील के दो बच्चे हैं, 11 साल की बेटी कन्यश्री और 5 साल का बेटा आदित्य। अपनी बेटी का दाखिला इस दम्पति ने अंग्रेजी मीडियम स्कूल में करवाया है। इस वजह से खेती ठीक-ठाक होने के बावजूद घर का सारा खर्च इसीसे निकालना थोड़ा मुश्किल है। ऐसे में सविता दूसरों के खेतों में मज़दूरी भी करने जाती हैं। रात में लौटकर दूसरों के कपड़े भी सीलतीं हैं। और अगर आप इतने में ही हैरत में पड़ गए हैं, तो रुक जाईये! क्यूंकि सविता इतने में न रुकी हैं और न थकी हैं। सविता ने इस साल दुबारा दसवीं की परीक्षा भी दी है।

दूसरों के खेतों में मज़दूरी भी करतीं हैं

“लोग हँसते हैं मुझ पर कि ‘अब क्या ज़रूरत है पढ़ने की’ पर मुझे पढ़ना है। मैं पढ़ाई में अच्छी थी, मुझे पढ़ना अच्छा लगता था। मैं नर्स बनना चाहती थी। पर हालत ही कुछ ऐसे थे कि मैं दसवीं में फेल हो गयी। मेरी बड़ी बहन की शादी सिर पर थी, इसलिए मैं तब अपने पिता से नहीं कह सकती थी कि मुझे आगे पढ़ाएं। उनकी भी इच्छा थी कि मैं पढूं, पर वो भी मजबूर थे। पर अब मैं पढूंगी। सब कहते हैं 700 रूपये फीस है, क्यों कर रही है? पर मैं और काम कर सकती हूँ…. और पैसे जोड़ सकती हूँ। इन पैसों को देकर जो शिक्षा मुझे मिल रही है, वह अनमोल है,” यह कहते हुए सविता का आत्मविश्वास देखते बनता है।

सविता दसवीं में पिछली बार अंग्रेज़ी की परीक्षा में फेल हो गयी थीं। 2 जनवरी 2020 को उन्होंने अंग्रेज़ी की परीक्षा दुबारा दे दी है और उन्हें पूरा यकीन है कि इस बार वह ज़रूर पास हो जाएंगी। इसके बाद सविता ग्यारहवीं में एडमिशन लेंगी।

 

जिस अंग्रेजी ने हराया उसी ने दिलाई पहचान भी!

एक दिन यूँही मैं अपने फेसबुक के टाइमलाइन पर दोस्तों की तस्वीरें देख रही थी कि अचानक एक किसान दोस्त की शेयर की हुई एक तस्वीर पर नज़र पड़ी। तस्वीर एक महिला किसान की थी। तस्वीर में तो वह कड़कती धूप में अपने खेत पर काम कर रही किसी भी आम सी महिला किसान की तरह ही लग रहीं थीं, पर फोटो का डिस्क्रिप्शन पूरी तरह अंग्रेजी में था।
तस्वीर पर एक विदेशी किसान ने किसी विदेशी भाषा में कमेंट किया हुआ था, जिसका उत्तर भी बहुत सलीकेदार अंग्रेजी में दिया गया था। यह तस्वीर थी सविता डकले की!

फेसबुक पर मिलेंगी इनकी खेती की बेहद प्यारी तस्वीरें

मेरे मन में कई प्रश्न थे। ‘शायद सविता पढ़ी-लिखी हों, और अपनी इच्छा से किसानी करतीं हों?’, ‘शायद उनकी प्रोफाइल कोई और चला रहा हो?’, ‘हो सकता है कि वह किसीसे पूछकर ये जवाब लिखतीं हों?’
कई सवाल थे और जवाब सिर्फ सविता के पास थे। इसलिए मैंने उन्हीं से संपर्क किया। हमारी बातचीत की शुरुआत में ही सविता ने कहा था, ‘दीदी मेरी हिन्दी उतनी अच्छी नहीं है, चलेगा न?’

मैं एक बार फिर हैरान हुई और उनसे पूछा कि केवल मराठी बोलनेवाली सविता इतनी अच्छी अंग्रेजी कैसे लिख लेतीं हैं? तब उन्होंने बताया –

“मेरी बेटी अंग्रेजी मीडियम में जाती है न दीदी, मैं थोड़ा-थोड़ा उससे सीखती रहती हूँ। कभी कोई शब्द न आये तो उससे पूछ लेती हूँ।”

सुनकर सविता के लिए मेरे मन में इज़्ज़त और बढ़ गयी। सविता कहती हैं कि सोशल मिडिया केवल उनके लिए बातचीत का एक माध्यम ही नहीं है, बल्कि यहाँ से उन्हें बहुत ज़्यादा प्रोत्साहन मिलता है।

“मैं अपनी तस्वीरें फेसबुक पर डालती हूँ, तो कई लोग तारीफ़ करते हैं, देश के ही नहीं दुनिया भर के किसानों से बातचीत हो जाती है। ये बहुत बड़ी बात है मेरे लिए। इससे मुझे आगे बढ़ने का हौसला मिलता रहता है,” सविता कहती हैं।

सविता अब फेसबुक ही नहीं बल्कि ट्विटर पर भी अपने अनुभव दुनिया के साथ साझा करतीं हैं।

अपने पति सुनील डकले और बच्चे कन्याश्री और आदित्य के साथ

वह अपने खेत से लाखों नहीं कमातीं, दूसरों के खेतों में मज़दूरी करतीं हैं, रात-रात भर कपड़े सीलकर अपनी पढ़ाई के लिए पैसे जुटाती हैं, अपनी बेटी से पूछ-पूछकर अंग्रेज़ी लिखतीं हैं, लेकिन वह फिर भी हमारी इस कहानी की नायिका हैं! शायद आम होने के बावजूद ख़ास बनने की चाहत ही उनकी खासियत है। शायद भीड़ में रहकर भी भीड़ में गुम न हो जाना ही उनकी पहचान है। वह रूकती नहीं, थकती नहीं, लगी रहती हैं….  उनकी सबसे बड़ी खूबी है आनेवाले कल के लिए उनकी उम्मीद, जो हमें भी कहीं न कहीं यह उम्मीद दे गयी कि सविता जैसी महिलाओं के होते हुए यह देश कभी पिछड़ नहीं सकता!

“जीवन में कभी हार नहीं माननी चाहिए। जीवन में कैसा भी समय आये, उसका सामना हिम्मत से करना चाहिए। आप कुछ भी कर सकते हैं, कभी भी बदलाव ला सकते हैं। मैं नर्स नहीं बन पाई तो क्या, दूसरों की सेवा तो कर रही हूँ न? तब नहीं पढ़ पाई तो क्या? आप कभी भी पढ़ सकते हैं, आगे कुछ बन सकते हैं, ये ज़िद मन में होनी चाहिए,” ये कहते हुए सविता कपास चुनते हुए खेतों में कहीं खो गयीं।

सविता अब अपनी दसवीं की परीक्षा के रिजल्ट का बेसब्री से इंतज़ार कर रहीं हैं, ताकि आगे पढ़ सके, कुछ बन सके। क्या आप भी उन्हें अपनी शुभकामनाएं देना चाहेंगे? यदि हाँ तो उन्हें 7499782816 पर ज़रूर कॉल करें। उनकी खेती से जुड़ी जानकारियों के लिए आप उन्हें फेसबुक या ट्विटर पर फॉलो कर सकते हैं, या उन्हें savitadakle57@gmail.com पर ईमेल भी कर सकते हैं।

आशा है आपको यह कहानी अच्छी लगी होगी, यदि हाँ तो मुझे manabi@thebetterindia.com पर लिखकर ज़रूर बताएं। और हाँ सविता अपने उगाए अनार बेचना चाहतीं हैं। यदि आप इसमें उनकी मदद कर सकते हैं तो भी हमें ज़रूर बताएं। अभी के लिए आज्ञा लेती हूँ!

– मानबी


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