Placeholder canvas

24 की उम्र में नौकरी छोड़ कर की मशरूम की खेती, लाखों की कमाई और एक दर्जन को रोजगार भी!

एक टेक्निकल डिग्री पास होने से किसी भी तरह की समस्या के बारे में सोचने और उसे हल करने का तरीका और अंदाज बदल जाता है।

म तौर पर लोगों का सपना पढ़-लिखकर बढ़िया नौकरी हासिल करना और लग्जरी जीवन जीना होता है, लेकिन कुछ लोग लीक से हटकर काम करते हैं। अपने मन का काम करने के साथ ही साथ वह औरों के लिए भी बेहतर जीवन जीने की राह प्रशस्त करते हैं। मोनिका पंवार एक ऐसा ही नाम है।

उत्तराखंड राज्य के टिहरी जिले में स्थित चंबा ब्लॉक के नागणी गाँव की रहने वाली केवल 24 साल की मोनिका आज स्थानीय युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनी हुई हैं। पढ़ाई में तेज मोनिका बीटेक की डिग्री लेकर नोएडा की मल्टीनेशनल इंफोटेक कंपनी में जॉब कर रहीं थीं। सब कुछ बढ़िया चल रहा था, लेकिन अपनी जड़ों की तरफ लौटने और अपने लोगों के लिए कुछ करने की चाह उन पर इस कदर सवार थी कि उन्होंने डेढ़ साल के भीतर ही नौकरी छोड़कर गाँव लौटने और मशरूम की खेती करने का फैसला कर लिया।

मोनिका पंवार

मोनिका ने इसके लिए बेसिक ट्रेनिंग भी ली। शुरुआती संघर्ष को देखते हुए उनका यह निर्णय कठिन जरूर था, लेकिन उनकी मेहनत रंग लाई। दिसंबर, 2017 से आज काम शुरू करने के दो साल के भीतर मोनिका अपने तीन कमरों के प्लांट से 250 किलोग्राम मशरूम का रोज उत्पादन कर रही हैं, जो 120 रूपये प्रति किलोग्राम बिक रहा है। साफ है कि एक माह में वह करीब सवा चार लाख रूपये का मशरूम उगा रही हैं। लागत काटकर भी वह लाखों की कमाई कर रही हैं।

उन्होंने अपने प्लांट के जरिये गाँव के ही करीब एक दर्जन लोगों को रोजगार दिया है। अन्य महिलाओं के लिए वह प्रशिक्षण कार्यक्रम चला रही हैं। उन्हें उनके पैरों पर खड़ा कर रही हैं। बकौल मोनिका आने वाले जनवरी महीने तक उनका चार और कमरों का कोल्ड स्टोरेज युक्त प्लांट तैयार हो जाएगा, इसके बाद वह उत्पादन में और बढ़ोतरी करने के साथ ही और बहुत लोगों को भी रोजगार देने में सक्षम हो पाएंगी। द बेटर इंडिया के साथ मोेनिका ने अपने सफर की दास्तां साझा की।

नौकरी छोड़ने के बाद आसान नहीं था सफर

मोनिका अपने उगाये मशरुम के साथ

बकौल मोनिका वह नौकरी जरूर कर रही थीं, लेकिन दिमाग में यही चल रहा था कि अपने लोगों के बीच पहाड़ पर लौटा जाए, उनके लिए भी कुछ किया जाए। ऐसे में मशरूम की खेती का विचार मन में आया। मशरूम उत्पादन के लिए निवेश, परिस्थिति सब कुछ आदर्श थीं। लिहाजा, कदम इस दिशा में बढ़ा दिया। जिस वक्त नौकरी छोड़कर अपना काम करने की सोची उस वक्त मुश्किलात का अंदाजा जरूर था, लेकिन वह अंदाजे से ज्यादा आईं।

“स्किल्ड लेबर न मिलना एक बड़ी समस्या थी। ऐसे में मैंने लोगों को ट्रेनिंग देकर साथ लगाया। मशरूम तो अच्छा पैदा हुआ, लेकिन एक बड़ी समस्या ट्रांसपोर्टेशन की सामने आई। ट्रांसपोर्टेशन मैदान के मुकाबले पहाड़ में महंगा है। इसके अलावा पहाड़ी क्षेत्र में अक्सर लैंडस्लाइड हो जाता है और रास्ते बंद हो जाते हैं, जिससे मशरूम खराब हो जाता है,” मोनिका ने बताया।

लेकिन इन समस्याओं ने उनका रास्ता नहीं रोका। इस वक्त पूरे गढ़वाल में उनका मशरूम सप्लाई हो रहा है। टिहरी जिले से लेकर श्रीनगर, उत्तरकाशी के होटलों तक उनका मशरूम सप्लाई हो रहा है। अब उनकी नजर एक्सपोर्ट पर है। कुछ आर्डर पर बात चल रही है। इतना सब तब हो पा रहा है, जबकि फिलहाल केवल नौ महीने काम होता है। तीन महीने कमरों को स्टरलाइज किया जाता है ताकि फंगस का संक्रमण न रहे।

 

 टेक्निकल डिग्री से मिली मदद 


खेती के शौक के बावजूद बीटेक करने की बात पर मोनिका बताती हैं कि खेती में दिलचस्पी के चलते ही उन्होंने भरसार कृषि विश्वविद्यालय के लिए भी पेपर दिया था। उसमें बेहतरीन प्रदर्शन किया और ऑल इंडिया 29वीं रैंक हासिल की। मोनिका के मुताबिक ऐसे में उनके सामने वहां जाने का भी मौका था। लेकिन कुछ समय सोच विचार के लिए भी लिया। और अंततः उन्होंने बीटेक करने को प्राथमिकता दी। इसके लिए रूड़की कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग को तरजीह दी। क्योंकि बकौल मोनिका उनको लगा कि एक टेक्निकल डिग्री पास होने से किसी भी तरह की समस्या के बारे में सोचने और उसे हल करने का तरीका और अंदाज बदल जाता है। वह मानती हैं कि यह डिग्री प्लांट से जुड़ी मशीनों को जानने और काम को बेहतर करने में उनकी मदद कर रही है। मोनिका के अनुसार काम बेहतर चल रहा है, लेकिन वह यहीं नहीं रूकना चाहतीं। काम को और पंख लगा कर इतना फैलाना चाहती हैं कि सबको यहीं काम दे सकें। और किसी को भी अपना घर छोड़ कर नौकरी या बिजनेस के लिए कहीं और जाने को मजबूर न होना पड़े।

 

उम्र कम होने की वजह से लोग गंभीरता से नहीं लेते थे


चंबा के सेंटृस स्कूल से स्कूलिंग करने वाली मोनिका हंसते हुए बताती हैं, “जिस वक्त मैं अपना काम करने के लिए निकलीं तो एक दिक्कत यह भी पेश आई कि उम्र कम होने की वजह से लोग प्रोफेशनली सीरियसली नहीं लेते थे, लेकिन जब मैंने उन्हेें अपना प्रोजेक्ट आत्मविश्वास के साथ बताया तो लोगों का भी मुझ पर विश्वास बढ़ा और नतीजा सुखद रहा।”

आज गाँव की युवतियां मोनिका की राह पर चलकर उनकी तरह बनना चाहती हैं। गाँव के लोगों को पहले खेती फायदे का सौदा नहीं लगती थी। वह अपने बच्चों को इससे जोड़ना भी नहीं चाहते थे, लेकिन अब मोनिका पंवार की कामयाबी से उनके विचार बदल रहे हैं।

महिलाओं को प्रशिक्षण से दिखाई स्वावलंबन की राह


मोनिका के पिता की 2014 में मूत्यु हो गई थी। वह ज्वेलरी का कारोबार करते थे। ऐसे में उनकी माँ शुचिता ने कारोबार को बिखरने नहीं दिया। उन्होंने खुद आगे बढ़कर पिता का कारोबार संभाला। मोनिका के पास ज्वेलरी के व्यवसाय को भी आगे बढ़ाने का मौका था। उन्हें डांस का शौक था, लिहाजा कुछ समय उन्होंने उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में कोरियाग्राफी भी की, लेकिन अंततः जब जीवन और करियर की बात आई तो उन्होंने खेती को ही चुना।

उन्हें यह लगता था कि यही क्षेत्र है, जिसमें वह बड़े पैमाने पर पहाड़ की आर्थिकी के लिए कुछ कर सकती हैं। अपने गाँव में रह सकती हैं और वहां की महिलाओं को भी साथ लेकर आगे बढ़ा सकती हैं। आखिरकार उनकी पहल रंग लाई। उनके दिए प्रशिक्षण के बाद महिलाएं स्वावलंबी बनी हैं। छोटे निवेश से इसके उत्पादन से जुड़ गई हैं।

 

छोटे निवेश से भी अच्छी आय संभव


मोनिका इस वक्त शिटाके मशरूम के साथ कुल तीन तरह के मशरूम की प्रजातियां उगा रही हैं। बकौल मोनिका छोटे निवेश से भी मशरूम के जरिये अच्छी आय संभव है, जिससे पहाड़ की आर्थिकी बदल सकती है। उनके अनुसार मशरूम के औसतन पाँच टन तक के उत्पादन में करीब डेढ़ लाख रूपये से लेकर दो लाख रूपये तक की लागत आती है, लेकिन अगर कोई छोटे पैमाने पर काम शुरू करना चाहता है तो महज पाँच हजार रूपये के निवेश से महीने में तीस हजार रूपये तक कमा सकता है।

 

सपने देखें और किसी की परवाह न करें


मोनिका के अनुसार बहुत सारे युवा ऐसे हैं जो अपने क्षेत्र के लिए कुछ करना चाहते हैं। लेकिन वह समाज के दबाव में आकर अपनी यह इच्छा पूरी नहीं कर पाते। उनके मुताबिक युवा सपने जरूर देखें और अगर समाज को बेहतर बनाने का कोई आईडिया उनके पास है तो उसे अप्लाई जरूर करें। आज का एक बेहतरीन कदम कल की तस्वीर बदल सकता है इसलिए सबसे पहले अपने मन की सुनें। अपनी उपलब्धियों के लिए हाल ही में मोनिका को उन्हीं के संस्थान में प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सम्मानित भी किया है।

मोनिका से संपर्क करने के लिए आप उन्हें monikapanwar3333@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं!

संपादन – मानबी कटोच 


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर व्हाट्सएप कर सकते हैं।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

X