“रात पर क्यों हो सिर्फ पुरुषों का अधिकार?” मिलिए पुणे की महिला बाउंसर्स से!

'रणरागिनी' दीपा द्वारा बनाया गया देश का पहला महिला बाउंसर ग्रुप है, जो लोगों की सुरक्षा का ज़िम्मा उठाए हुए है।

‘रण-रागिनी’, रण की रागिनी, रण का राग गानेवाली, कितनी सुन्दर कल्पना होगी इस नाम के पीछे! लेकिन सच तो यह है कि यह नाम किसी कल्पना से नहीं, बल्कि ज़िन्दगी के रण को रागिनी में परिवर्तित करते संघर्ष की देन है। ऐसा संघर्ष, जो समाज से है, जो पितृसत्तात्मक सोच से है, जो औरतों के कामों पर संदेह से है। यह कहानी है समाज के रण की रागिनी बन अपना अस्तित्व बनाती महिलाओं की, जो पुरुषों से दो-दो हाथ करने को तैयार हैं।

पुणे की दीपा परब, जिन्होंने समाज के नियमों और सोच के अनुसार न चलकर अपने लिए एक अलग पहचान बनाई है। ‘रणरागिनी‘ दीपा द्वारा बनाया गया देश का पहला महिला बाउंसर ग्रुप है, जो लोगों की सुरक्षा का ज़िम्मा उठाए हुए है। आइये जानते हैं राणरागिनी दीपा परब की कहानी।

क्यों हुई रणरागिनी की शुरुआत?

दीपा परब

दीपा हमेशा से ही अपने लिए एक करियर का निर्माण करना चाहती थीं। लेकिन समाज और खुद के परिवार से उन्हें इसकी इजाज़त नहीं मिली। दीपा वो दिन नहीं भूलतीं, जब उनकी आँखों के सामने पुलिस में भर्ती का फार्म फाड़ दिया गया था। वे पुलिस कॉन्स्टेबल बनना चाहती थीं और किरण बेदी, इंदिरा गाँधी जैसी महान महिलाओं के नक़्शे कदम पर चल कर समाज में बदलाव लाना चाहती थीं। लेकिन उन्हें इसका मौका नहीं मिला।

पर उन्होंने हार नहीं मानी और महिला बाउंसर ग्रुप की शुरुआत करने की ठानी। वह उन सभी महिलाओं तक पहुंची, जो पुलिस में भर्ती की परीक्षा को पार नहीं कर पाईं थीं। उन्होंने उन महिलाओं को एकत्र किया और उन्हें रणरागिनी बन कर लोगों की सुरक्षा का ज़िम्मा उठाने का साहस दिया। पहले 3 या 4 महिलाओं से शुरू हुआ यह ग्रुप, अब दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। आपको जान कर हैरानी होगी कि अब इस ग्रुप में 60 से भी ज़्यादा सक्रीय रणरागिनियां हैं।

यह भी पढ़ें – 5000 किमी का सफ़र तय किया बाइक से, रास्ते में नज़र आ रहे कूड़े-कचरे को भी लगातीं हैं ठिकाने!

लोगों के मखौल का किया सामना

दीपा परब हम में से ही एक महिला है, जो लीक से हटकर काम करना चाहती थीं, लेकिन इसके लिए उन्हें समाज से लगातार आलोचना का सामना करना पड़ा।

दीपा कहती हैं, ‘पहले-पहल जब हमने प्रोजेक्ट लेने शुरू किये, तो लोगों की आलोचना हर कदम पर रोड़ा बनी हुई थी। एक मंदिर में भोज के दौरान हमें बुलाया गया था। लेकिन लोगों की आँखों में हमारे लिए मखौल था। हमने कई लोगों को ये कहते सुना- क्या ये औरतें बाउंसर का काम कर भी पाएंगी? ये क्या भीड़ को रोकेंगी! ऐसे कई सवालों की बारिश हम पर हुई। पर हमने इससे हार नहीं मानी और खुद को साबित करके दिखाया।”

महिलाओं के घरवालों को मानना चुनौतीपूर्ण

रणरागिनी ग्रुप में महिलाओं का आगमन तो उनकी इच्छा से होता है, लेकिन इसके लिए उन्हें घरवालों के विरोध को पार करना पड़ता है।

दीपा कहती हैं, “रणरागिनी का हिस्सा बनने के लिए हमें महिला का बैकग्राउंड चेक करना पड़ता है। हम पुलिस वैरिफिकेशन के बाद ही उस महिला को हमारे साथ जोड़ते हैं। साथ ही उन्हें उनके वज़न और लम्बाई को लेकर भी कुछ परीक्षाएं पास करनी पड़ती है। ये सब तो व्यक्तिगत चुनौतियाँ हैं। जिसे महिलाऐं आसानी से पार कर लेती हैं। लेकिन इससे कई गुना बड़ी चुनौती होती है उनके परिवारवालों को समझाने की। मैं खुद जाकर उनके परिवार की काउंसलिंग करती हूँ। यदि मैं इसमें सफल हो जाती हूँ, तो महिला को रणरागिनी बनने का मौका मिल जाता है।”

रात पर सिर्फ पुरुषों का अधिकार क्यों?

दीपा परब महिलाओं और पुरुषों के बीच होने वाले इस फर्क को मिटाना चाहती हैं। दीपा कहती हैं, “क्या रात पर पुरुषों का एकाधिकार है? क्यों महिलाऐं रात में बाहर नहीं जा सकतीं? और अगर वो ऐसा करती हैं, तो उसकी नैतिकता और चरित्र पर सवाल क्यों उठाए जाते हैं? इन सवालों का जवाब मैं रणरागिनी बन कर देना चाहती हूँ। मैं लोगों के दिमाग से ये बात निकालना चाहती हूँ कि रात को घर से बाहर निकलकर काम करनेवाली औरतों का उनके चरित्र से कोई सम्बन्ध नहीं होता। लोगों को अपनी इस गिरी हुई मानसिकता को बदलना होगा और ये बदलाव सिर्फ महिलाऐं ही ला सकती हैं।”

यह भी पढ़ें – पद्म श्री विजेता इस महिला कोच ने जितवाए हैं टीम को 7 अंतरराष्ट्रीय गोल्ड मेडल!

केवल 100 रूपए है फीस, जिससे  बेबस महिलाओं की करतीं हैं मदद!

 

दीपा परब अपना घर चलाने के लिए अपने पति के बिज़नस में हाथ बटातीं हैं। रणरागिनी के एक प्रोजेक्ट से वह सिर्फ 100 रूपए की फीस अपने लिए लेती हैं। और इन पैसों को भी वो सामाजिक कल्याण के कामों में लगा देती हैं।

एक घटना का विवरण देते हुए दीपा कहती हैं, “एक दिन पुलिस स्टेशन में एक केस के दौरान मैंने देखा कि एक लड़की के घरवाले उसे घर से बाहर निकालने पर उतारू हो गए थे। लड़की की माँ उसे छोड़कर चली गई थी और उसके घरवाले चाहते थे कि वो भी घर छोड़ कर कहीं चली जाए। मैंने आगे बढ़ कर कहा कि यदि तुम्हे कोई नहीं अपनाएगा, तो आज से मुझे अपनी माँ मान लो। जिस पर पुलिस वालों ने मुझसे कहा कि इसकी पढ़ाई से लेकर शादी तक की ज़िम्मेदारी मुझे उठानी पड़ेगी। मैंने तुरंत हामी भर दी और उस लड़की को गोद ले लिया। आज उसके 2 बच्चे हैं और वो अपने पति के साथ अपने संसार में खुश है। उसने पढ़ाई की, शादी की और आज अपने परिवार को संभाल रही है। रणरागिनी से मिलनेवाले उन 100 रुपयों को जमा कर मैंने अब तक कई लड़कियों की शादी करवाई है।”

पति ने दिया पूरा साथ 

“औरतें मर्दों से ज़्यादा बुद्धिमान होती हैं!” ये हम नहीं कह रहे, बल्कि ये शब्द हैं दीपा परब के पति दीपक परब के, जिनकी मदद के बिना रणरागिनी का अस्तित्व नहीं होता।

दीपक कहते हैं, “औरतों को हमेशा यह कह कर रोक दिया जाता है कि वे बाहर जाकर काम नहीं कर पाएंगी। लेकिन सच तो ये है कि औरतें मर्दों से कई ज़्यादा बुद्धिमान होती हैं। वे हर समस्या का समाधान मिनटों में निकाल लेती हैं, जिसे करने के लिए शायद किसी पुरुष को कई दिन लग जाएं। इतिहास में हुए अच्छे कामों और बदलाव के पीछे हमेशा आपको औरतें ही दिखाई देंगी। इसलिए उन्हें रोकने की बजाय हमें उनका साथ देना चाहिए। वो हर काम करने में सक्षम हैं और अपने साथ-साथ कई लोगों को आगे बढ़ा सकती हैं।”
इन्ही खूबसूरत शब्दों से आप जान सकते हैं कि दीपा परब की रणरागिनी को आगे बढ़ाने में दीपक का कितना बड़ा हाथ है। दीपा परब अपने पति को अपना गुरु मानती हैं और रणरागिनी की नींव भी।

दीपा परब की इस खूबसूरत, लेकिन चुनौतीपूर्ण कहानी को सुनकर हर व्यक्ति जोश से लबरेज़ हो सकता है। यदि आप भी दीपा की रणरागिनियों से जुड़ना चाहते हैं, तो उनके फेसबुक पेज के ज़रिये उनसे संपर्क साध सकते हैं। हो सकता है दीपा परब का साथ देकर आप भी अपने अंदर छुपी हुई रणरागिनी से मिल पाएं!

संपादन – मानबी कटोच 

यह भी पढ़े – शूटर दादी: मिलिए दुनिया की ओल्डेस्ट शार्प शूटर चंद्रो तोमर से!

Summary – Deepa Deepak Parab is the founder of ‘Ranragini’, a Women Bouncers’ group in Pune, Maharashtra.


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर व्हाट्सएप कर सकते हैं।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

X