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‘एक रुपया मुहिम’ से 3 साल में जोड़े 2 लाख रुपये, भर रही हैं 33 बच्चों की फीस!

"मैंने अपने कानों से लोगों को मुझे 'भिखारी' कहते हुए सुना है। कोई कहता कि देखते हैं कितने दिन तक यह मुहिम चलती है। भला एक रुपये में ऐसी क्या दुनिया बदल देगी।"

गर नीयत नेक हो और दिल में किसी के लिए कुछ अच्छा करने का इरादा, तो आपका एक छोटा-सा कदम भी बड़े बदलाव की शुरुआत बन जाता है। छत्तीसगढ़ में बिलासपुर की रहने वाली 27 वर्षीया सीमा वर्मा इसका सटीक उदाहरण हैं, जो अपनी ‘एक रुपया मुहिम’ से 33 बच्चों का जीवन संवार रही हैं।

मूल रूप से, अंबिकापुर से आने वाली सीमा, फिलहाल कानून की पढ़ाई कर रही हैं। साथ ही, वे पिछले तीन सालों से सामाजिक बदलाव के कार्यों में जुटी हुई हैं। उनकी ‘एक रुपया मुहिम’ धीरे-धीरे ही सही लेकिन एक बड़े अभियान का रूप ले रही हैं। आखिर क्या है यह एक रुपया मुहिम?

द बेटर इंडिया से बात करते हुए सीमा ने बताया, “इस मुहिम के अंतर्गत, मैं अलग-अलग स्कूल, कॉलेज और अन्य कई संस्थानों में जाकर, वहां पर छात्र-छात्राओं, शिक्षकों और अन्य लोगों को समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियां समझने के लिए जागरूक करती हूँ। मैं उन सबसे सिर्फ एक-एक रुपया किसी के भले के लिए दान करने के लिए कहती हूँ। जहां से भी, मुझे एक-एक रुपया करके, जितने भी पैसे मिलते हैं, उन्हें इकट्ठा करके किसी न किसी ज़रूरतमंद की मदद की जाती है।”

सीमा ने 10 अगस्त 2016 को दोपहर के 12 बजे सीएमडी कॉलेज से यह मुहिम शुरू की थी। उस दिन उन्होंने सिर्फ 395 रुपये इकट्ठा किये थे। यह राशि हमें और आपको भले ही छोटी लगे, लेकिन इस चंद राशि से सीमा ने एक सरकारी स्कूल की छात्रा की फीस भरी और उसे कुछ स्टेशनरी खरीद कर दी।

Seema Verma started ‘Ek Rupya Muhim’

वह कहती हैं कि उस दिन उस छात्रा की मदद करते समय उन्हें अहसास हुआ कि कोई भी योगदान छोटा नहीं होता। क्योंकि ज़रूरी नहीं कि कुछ बड़ा करके ही अच्छा किया जाये, कभी-कभी छोटी-सी कोशिश का भी बड़ा असर हो जाता है।

कैसे हुई शुरुआत:

“मैं ग्रेजुएशन में थी, जब मैंने अपनी एक दिव्यांग दोस्त के लिए ट्रायसाइकिल खरीदने में कॉलेज प्रशासन से मदद मांगी। कॉलेज ने कहा तो था कि वे व्यवस्था कर देंगे, लेकिन कई बार ऑफिस के चक्कर काटने पर भी यह नहीं हुआ। ऐसे में, मैने सोचा कि पहले जाकर देख आती हूँ कि कितने पैसों में इसे ख़रीदा जा सकता है। इसलिए मैं बिलासपुर के कई साइकिल शॉप में गयी और वहां मुझे कहा गया कि यह खास मेडिसिनल साइकिल है तो सामान्य दुकानों में नहीं मिलेगी,” उन्होंने बताया।

इसके बाद, सीमा ने एक-दो जगह और पता किया, लेकिन उन्हें कुछ नहीं पता चला। सीमा हर हाल में अपनी दोस्त की मदद करना चाहती थीं और इसलिए उन्होंने हार नहीं मानी। किस्मत से, एक दिन उनकी बात किसी कारणवश एक मैकेनिक से हुई और बातों-बातों में उन्होंने ट्रायसाइकिल के बारे में पूछ लिया।

उस मैकेनिक से सीमा को पता चला कि सरकार की एक योजना के तहत दिव्यांगों को यह साइकिल मुफ्त में मिलती है। हमें बस एक एप्लीकेशन फॉर्म भरना होता है। सीमा बताती हैं कि उस मैकेनिक ने उनसे कटाक्ष में कहा, “आप ग्रेजुएशन कर रही हैं और आपको इतना भी नहीं पता।”

Seema with her friend

इस बात ने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया कि वाकई हमारे समाज में, हमारे देश में, यहाँ तक कि हमारे अपने घर में जागरूकता की कितनी कमी है। “मैंने दूसरे ही दिन, इस बारे में सभी जानकारी इकट्ठा की और प्रक्रिया पूरी की। चंद दिनों में मेरी दोस्त को ट्रायसाइकिल मिल गयी। लेकिन उस आदमी की बात मेरे मन में घर कर गयी कि बिल्कुल सही कहा उन्होंने। सरकारी योजनायें तो क्या, हमें तो हमारे अपने अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में तक ढंग से पता नहीं है।”

यहाँ से सीमा को एक नयी दिशा मिली। अपने शिक्षकों के सपोर्ट से उन्होंने जगह-जगह जाकर, खासकर कि शिक्षण संस्थानों में अलग-अलग विषयों पर बात करके युवाओं को सजग बनाने की योजना पर काम किया। सबसे पहले, इस तरह का सेमिनार उन्होंने अपने खुद के कॉलेज में ही किया।

“मैंने अपने साथी विद्यार्थियों से अपनी सोच और नजरिया थोड़ा बदलने के बारे में बात की। उनसे पूछा कि उनमें से कितनों के परिवारों को उनके प्रोफेशनल कोर्स के बारे में अच्छे से पता है। कितनी बार हम अपने घर में बैठकर, सामाजिक मुद्दों पर बात करते हैं। उस डिस्कशन में और भी कई ऐसे मुद्दे सामने आये, जिन पर बात होना, जानकारी होना ज़रूरी होता है,” उन्होंने आगे कहा।

इस इवेंट में आने वाले सारे बच्चों से उन्होंने एक-एक रुपया दान करने के लिए कहा। वैसे तो यह सिर्फ एक विचार था कि इस तरह से सभी छात्रों को यह सेमिनार याद रहेगा कि उन्होंने एक रुपया यहाँ दान दिया है। लेकिन एक छोटे-से विचार को सीमा ने मुहिम बना दिया।

33 बच्चों की मदद:

जब सीमा ने यह पहल की, तब उन्हें नहीं पता था कि वे किस तरह से इन पैसों का इस्तेमाल करेंगी। बस एक बात उनके ज़ेहन में थी कि इन पैसों से किसी ज़रूरतमंद की मदद होनी चाहिए। उसी साल, सितम्बर में उन्हें जब एक छात्रा की फीस भरने का मौका मिला, तो उन्हें लगा कि उन्हें उनके जीवन का मकसद मिला गया।

इसके बाद, उन्होंने अपने कॉलेज से अलग कॉलेज में जाकर वहां पर शिक्षकों से, छात्र-छात्राओं से बात की। कहीं पर विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध सरकारी योजनाओं, तो कहीं पर पोक्सो एक्ट पर बात हुई। हर जगह, उनकी कोशिश यही रहती कि वे युवाओं में एक जिज्ञासा जगाएं, अपने समाज को, अपने कानून को, अपनी शिक्षा को जानने की।

साथ ही, स्कूलों में जाकर वे मोटिवेशनल स्पीच भी देती हैं। सीमा ने बताया कि पिछले तीन सालों में उन्होंने इस तरह के सेमिनार और अभियान में, एक-एक रुपया करके, दो लाख रुपये इकट्ठा किये हैं। इन रुपयों से वे 33 ज़रूरतमंद बच्चों की स्कूल की फीस के साथ-साथ उनकी किताब-कॉपी आदि का खर्च भी सम्भाल रही हैं।

“ये सभी बच्चे अलग-अलग स्कूलों से हैं। मुझे कभी सामने से तो, कभी सोशल मीडिया पर अलग-अलग लोगों से इनके बारे में पता चला। ये सभी बच्चे बहुत ही गरीब परिवारों से आते हैं। पहले एक, फिर दो, तीन… ऐसा करते-करते अब कुल 33 बच्चे हैं, जिनकी फीस मैं भर रही हूँ। यह बहुत नेकी का काम है और जिंदगीभर ये करते रहना चाहती हूँ,” उन्होंने बताया।

सफ़र में मिली चुनौतियाँ भी:

जब आप कुछ अलग-हटकर अच्छा करने की कोशिश करते हैं तो आपका हौसला बढ़ाने वालों से ज्यादा आपको नीचा दिखाने वाले लोग मिलते हैं। सीमा को भी इस तरह के लोग शुरू से ही मिले। अभी भले ही उन तानों, छींटाकसी के बारे में बात करना आसान हो, लेकिन एक वक़्त था जब लोगों की बातें उनका मनोबल तोड़ देती थीं।

अपने कॉलेज में जब उन्होंने सेमिनार किया तो अपने ही क्लास के छात्र-छात्राओं से उन्हें आलोचना सुननी पड़ी। वे बताती हैं कि उन्हें शुरू से ही सबने ‘अटेंशन सीकर’ का टैग दे दिया। कोई भी उनकी अच्छी नीयत को नहीं देख रहा था, बस उन्हें लग रहा था कि वह पॉपुलैरिटी के लिए यह सब कर रही हैं।

“मैंने अपने कानों से लोगों को मुझे ‘भिखारी’ कहते हुए सुना है। कोई कहता कि देखते हैं कितने दिन तक यह मुहिम चलती है। भला एक रुपये में ऐसी क्या दुनिया बदल देगी। इस तरह की बातें परेशान तो बहुत करती थीं, लेकिन फिर मैं उन बच्चों के बारे में सोचती, जिनकी उम्मीदें मुझसे बंध रही थीं कि उनकी पढ़ाई नहीं छूटेगी। बस इसी एक मोटिवेशन ने मुझे यहाँ तक पहुँचाया है और मैं आगे भी कभी नहीं रुकूंगी,” उन्होंने कहा।

देशभर में पहुंची यह मुहिम:

सीमा बताती हैं कि जैसे-जैसे उन्होंने सोशल मीडिया पर इस मुहिम के बारे में लिखना शुरू किया तो खुद-ब-खुद नेक नीयत के लोग उनसे जुड़ने लगे। मदद मांगने वालों से लेकर मदद करने वालों तक, उन्हें सभी तरह के लोग एप्रोच करते हैं।

“पर मैं लोगों से यही कहती हूँ कि मुझे पैसे भेजने की ज़रूरत नहीं है। आप जहां हैं वहीं किसी ज़रूरतमंद की मदद करें। थोड़ा-सा, बस थोड़ा-सा अपने आसपास के लोगों पर ध्यान दें। आपको हर दिन कोई न कोई ज़रूरतमंद मिलेगा, जिसकी किसी न किसी तरह आप मदद कर सकते हैं। तो बस बिना हिचकिचाए, उनकी मदद करें, यही सच्ची सेवा है।”

द बेटर इंडिया, सीमा वर्मा की इस पहल और उनके जज़्बे की सराहना करता है। उम्मीद है कि हमारे पाठकों में भी इस कहानी को पढ़कर एक जागरूकता आये और आप भी आज ही किसी न किसी की मदद करने का संकल्प लें!

सीमा वर्मा से जुड़ने के लिए आप उनके फेसबुक पेज पर सम्पर्क कर सकते हैं!

संपादन – मानबी कटोच 


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