जिस गाँव में था बाल-विवाह का सबसे ज़्यादा दर, उसी गाँव में अब मीडिया की आवाज़ बनीं हैं ये ‘स्मार्ट बेटियां’!

"दसवीं के बाद मेरे घर वालों ने मुझे स्कूल भेजने से मना कर दिया जबकि मेरे भाई पढ़ने जाते थे। मुझसे और मेरी बहनों से कहा गया कि हम आखिर पढ़कर क्या कर लेंगी।"

त्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले के एक छोटे से गाँव की रहने वाली आँचल (14 वर्ष) ने स्मार्टफोन का इस्तेमाल पहले कभी नहीं किया था लेकिन 2014 में जब वह उनके गाँव में आई, इंटरनेट साथी अर्चना से मिली तो न सिर्फ स्मार्ट फ़ोन का सही इस्तेमाल करना सीख गई, बल्कि उसी फोन को उसने अपने गाँव के बदलाव का हथियार बना लिया।

आँचल जैसी यूपी की तमाम लड़कियां हैं जो अब स्मार्टफोन का इस्तेमाल करके वीडियो बनाना सीख रहीं हैं और अपने गाँव में हो रहे सकारात्मक बदलाव की कहानियों को एक सांचें में ढाल रही हैं।ये लड़कियां वीडियो शूट कर मीडिया तक भी पहुंचाती हैं। इनका पूरा गाँव अब इनको इनके नाम से नहीं बल्कि ‘स्मार्ट बेटी’ कहकर बुलाता है।

क्या है स्मार्ट बेटियां कार्यक्रम

स्मार्ट बेटियां कार्यक्रम यूनिसेफ व इंटरनेट साथी कार्यक्रम यूनिसेफ फ्रेन्ड (गूगल व टाटा ट्रस्ट द्वारा स्थापित की गई गैर सरकारी संस्था जो भारत में लगभग 65 हजार इंटरनेट साथियों की गतिविधियों कर नेतृत्व कर रही है) द्वारा संचालित किया जा रहा है।

बलरामपुर जिले की रहने वाली आंचल अब अपने गाँव के लोगों को जागरूक कर रही हैं

इसके तहत उत्तर प्रदेश के गाँवों की लड़कियां लंबे समय से चली आ रही मान्यताओं जैसे बालविवाह और लैंगिक भेदभावों में बदलाव कर रही हैं। इसके तहत इंटरनेट साथी व स्मार्ट बेटियां गाँव में हो रहे सकारात्मक बदलावों की वीडियो स्टोरी बनाती हैं और इन्हें प्रिंट व इलेक्ट्रानिक मीडिया की मदद से ज्यादा से ज्यादा लोगों के बीच पहुंचाया जाता है, जिससे दूसरे गाँवों में भी ये बदलाव आ सके। हर जिले में इंटरनेट साथियों को प्रशिक्षित किया गया है जिनकी पहुंच अब 300 गाँवों में है। अब तक कुल 1500 किशोरियों को वीडियो मेकिंग की ट्रेनिंग देकर स्मार्ट बेटियां बनाया गया है। इन स्मार्ट बेटियों को एक ट्राइपॉड और लेपल माइक दिया जाता है जिससे वो बेहतर क्वालिटी के वीडियो शूट कर सकें। इसके साथ ही वो अपनी कम्युनिटी में सकारात्मक बदलाव ला सकें।

बलरामपुर जिले की सीता अभी 15 साल की है और वह अपने गाँव में जागरुकता की अलख जगा रही है। सीता बताती हैं, ‘’मैं जब भी किताबें या अखबार पढ़ती थी, तो मुझे लगता था कि मैं भी अच्छी स्टोरी लिख सकती हूँ क्योंकि मुझे लिखने का शौक है। फिर गाँव की इंटरनेट दीदी ने मुझे बताया कि मैं अपने इस शौक को हकीकत में कैसे बदल सकती हूँ। अब मैं गाँव में हो रहे सकारात्मक बदलावों के बारे में लिखती हूँ और स्मार्टफोन के जरिए उसकी वीडियो स्टोरी भी शूट करती हूँ।’’

ये वो कहानियां होेती हैं जो हमारे आस-पास ही घट रही होती हैं और लोगों को प्रेरित कर सकती हैं, बस जरूरत होती है उनपर ध्यान देने की।

यूनिसेफ का मानना है कि ये लड़कियां पुरानी रूढ़िवादी मान्यताओं को तोड़कर बदलाव की कहानी खुद लिख सकती हैं क्योंकि इनमें कुछ कर गुजरने की चाह है, बस जरूरत है सही दिशा और मौके की। स्मार्ट बेटियां बालविवाह, ड्राप आउट व कुपोषण जैसे मुद्दों पर भी गाँव में बदलाव लाने की कोशिश कर रहीं हैं।

 

बाल-विवाह और ड्रापआउट में आई कमी

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार यूपी के दो जिलों में बालविवाह की दर सबसे ज्यादा है और वो जिले हैं – श्रावस्ती जिसमें बालविवाह का दर 68.5% है और बलरामपुर, जिसमें इसका दर  41.5% है। इसलिए इंटरनेटसाथी व स्मार्ट बेटियां इन्हीं जिलों में सक्रिय हैं। पिछले साल कई लड़कियों ने पितृसत्ता को चोट देते हुए कई बालविवाह को रोकने की हिम्मत दिखाई। इन्हीं में से एक है बलरामपुर जिले की सविता थरूआ, जो अभी 18 साल की हैं।

सविता ने बालविवाह न करके पढ़ाई करने का फैसला किया!

सविता ने बताया, “मैं सात भाई बहनों में सबसे छोटी हूँ। दसवीं के बाद मेरे घरवालों ने मुझे स्कूल भेजने से मना कर दिया जबकि मेरे भाई पढ़ने जाते थे। मुझसे और मेरी बहनों से कहा गया कि हम आखिर पढ़कर क्या कर लेंगी। मेरी बड़ी बहन की शादी भी दसवीं क्लास के बाद कर दी गई थी। वो 16 साल की थी, उसके बाद मेरे गाँव में भी इंटरनेट साथी आरती दीदी आईं उन्होंने हमें जेंडर भेदभाव के बारे में समझाया और हिम्मत दी कि हम अपने घरवालों को समझाएं। मैंने उसी दिन जाकर अपने पापा से कहा कि मैं अभी पढ़ना चाहती हूँ, उसके बाद ही शादी करूंगी। मैंने उनसे वो सब कहा जो मैंने मीटिंग में सीखा था और वह मान गए। मेरी जिंदगी अब दोबारा शुरू हुई। मैंने 11वीं में दाखिला लिया और स्कूल जाने के लिए मेरे पिताजी ने मेरे लिए एक साइकिल भी खरीदी।”

इस पहल ने सविता जैसी हजारों लड़कियों की जिंदगी बदली है। उन्हें न केवल जागरूक किया है बल्कि उन्होंने अपने साथ-साथ और भी कई लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव किए हैं। आज ये लड़कियां जब घरों से स्मार्ट फोन लेकर निकलती हैं तो कोई इन्हें ये नहीं कहता कि फोन लेकर कहां चली क्योंकि सबको पता है कि ये बदलाव की कहानियां बनाने जा रही हैं, बदलाव लाने जा रही हैं।

संपादन – मानबी कटोच 


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