भोपाल: 100 से ज़्यादा बेसहारा कुत्ते रहते हैं यहाँ प्यार, सौहार्द और सम्मान से!

जब कुत्तों के बीच रहते हुए आप सुरक्षित रूप से बड़े हो गए, तो आपका बच्चा भी सुरक्षित है, क्योंकि कुत्ते बेवजह किसीको परेशान नहीं करते। प्रेम बांटने पर प्रेम ही मिलता है, नफरत नहीं।’

“हमें कभी नहीं सिखाया गया कि कुत्ते खतरनाक हैं उनसे दूर रहो, लेकिन आजकल के अधिकांश पैरेंट्स बच्चों में यह डर पैदा कर रहे हैं। नतीजतन, बच्चे या तो कुत्ते देखकर भयभीत हो जाते हैं या फिर उन्हें पत्थर मारकर भगाने का प्रयास करते हैं जो कि कहीं ज्यादा खतरनाक है। बच्चों को डराने की नहीं, बल्कि शिक्षित करने की ज़रूरत है कि कुत्तों के साथ कैसे सुरक्षित रहा जाए। लोगों को यह समझना होगा कि सड़क पर घूमते कुत्ते भी हमारी प्रकृति का हिस्सा हैं और मनुष्य के साथ उनका नाता सदियों पुराना है।”

यह कहना है भोपाल निवासी उमा शंकर नायडू का। उद्योग विभाग में ज्वाइंट डायरेक्टर के पद से रिटायर नायडू पिछले कई सालों से बेजुबानों के लिए काम करते आ रहे हैं। इतना ही नहीं उन्होंने लोगों द्वारा सताए गए जानवरों के लिए एक शेल्टर भी खोला है, जिसका नाम है ‘निर्भया’। शाहपुरा इलाके में स्थित इस शेल्टर में फ़िलहाल 100 से ज्यादा कुत्ते हैं, इनमें से कुछ ऐसे भी हैं जो न चल सकते हैं, न देख सकते हैं। इसके अलावा, इलाके में 20 पॉइंट ऐसे भी हैं, जहां वह रोजाना सुबह-शाम जाकर कुत्तों को खाना खिलाते हैं।

केवल आवारा कुत्ते ही नहीं, नायडू गायों की सेवा के लिए भी तत्पर रहते हैं। खासकर ऐसी गाय एवं बछड़े जिन्हें उनके मालिकों ने छोड़ दिया है, नायडू के शेल्टर में आश्रय पाते हैं। नायडू अपने शेल्टर से कुछ ही दूरी पर रहते हैं। सुबह होने के साथ ही उनके घर पर मेहमानों के आने-जाने का सिलसिला शुरू हो जाता है, लेकिन ये मेहमान इंसान नहीं बल्कि बेजुबान होते हैं। कुत्तों से लेकर गायों तक सभी को पता है कि भूख लगने पर किस घर का रुख करना है। ये मेहमानवाजी नायडू के घर की पहचान भी बन गई है। कहने का मतलब है कि शाहपुरा के इंडस एम्पायर में आपको जिस घर के सामने कुत्ते और गाय नज़र आएं, समझिये वो मिस्टर नायडू का निवास है। हालांकि, बात यहीं ख़त्म नहीं होती, नायडू जब मॉर्निंग वॉक पर निकलते हैं, तो उनके पीछे गार्ड की तरह कई कुत्ते भी चलते हैं। थोड़ी देर घूमने के बाद ये काफिला एक खाली जगह पर रुकता है, जहां नायडू कुत्तों को कुछ न कुछ खाने को देते हैं। पिछले कई सालों से ये सिलसिला यूँ ही चलता आ रहा है। बेजुबानों की सेवा के साथ-साथ नायडू की कोशिश लोगों को जानवरों के प्रति संवेदनशील बनाने की भी रहती है।

इस बारे में वह कहते हैं, “जानवर खासकर कुत्तों की बात जब आती है, तो लोग ऐसे आक्रामक हो जाते हैं जैसे उन्हें हमारे संहार के लिए पृथ्वी पर भेजा गया है। वो दैत्य हैं, जो हमारे बच्चों को हमसे छीन लेंगे, जबकि ऐसा कुछ नहीं है। कुत्ते बेवजह किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते। समस्या हमारे यहाँ यह है कि इंसान कुत्तों को मारे तो कोई बात नहीं, लेकिन यदि कुत्ते ने पलटकर भौंक दिया तो उसे खूंखार, पागल घोषित कर दिया जाता है। मैं लोगों को अपने शेल्टर का उदाहरण देता हूँ जहां 100 से ज्यादा कुत्ते आपस में प्रेमभाव के साथ रहते हैं। क्या इंसानों के मामले में यह मुमकिन है? हालांकि, लोगों को समझाना मुश्किल है, लेकिन मेरे प्रयास जारी हैं और कुछ अच्छे परिणाम भी सामने आये हैं।”

नायडू ईको सिस्टम और इंसानों के लिए बेजुबानों की अहमियत को खूबसूरत ढंग से रेखांकित करते हैं। उनका कहना है कि हमारे यहां कचरे के निपटान और वर्गीकरण की कोई सही प्रक्रिया नहीं है। भोपाल जैसे अधिकांश शहरों में सब कुछ कागजों पर ही है। एक जगह से कचरा उठाकर दूसरी जगह फेंका जाता है।

नायडू के मुताबिक जब अलग-अलग कचरा आपस में मिलता है, तो उससे कार्बन मोनोऑक्साइड, सीओ, सीओ2 और सल्फर-डाईऑक्साइड तुरंत निकलने लगती हैं। इन ज़हरीली गैसों के वातावरण में घुलने से आक्रामकता बढ़ रही है। आज हर छोटी सी बात पर लोग मरने-मारने को तैयार हो जाते हैं।

“आपको जानकर ताज्जुब होगा कि सूअर, गाय और कुत्ते मिलकर इस कचरे का 30 से 40 प्रतिशत भाग खा जाते हैं, यानी वह अपनी जिंदगी खतरे में डालकर अप्रत्यक्ष रूप से समाज और पर्यावरण के हित में काम करते हैं। मैं ऐसा किसी वैज्ञानिक रिपोर्ट के आधार पर नहीं कह रहा हूँ, ये मेरा अवलोकन है। अफ़सोस की बात यह है कि इसके बावजूद भी बेजुबानों के प्रति लोगों के मन में कोई सहानभूति नहीं है,” नायडू चिंता ज़ाहिर करते हुए कहते हैं।

जानवरों से लगाव बचपन से है या फिर किसी घटना से ह्रदय परिवर्तन हुआ? इस सवाल के जवाब में नायडू बताते हैं कि उन्हें बचपन से ही बेजुबानों से लगाव रहा है, फिर चाहे वह कुत्ता हो गाय या फिर कोई और। नौकरी के दौरान भी उन्होंने कई घायल बछड़ों को अपनी जीप में अस्पताल पहुँचाया था और आज भी उनकी सेवा कर रहे हैं।

जानवरों के प्रति उनके मन में जो संवेदनशीलता है, उसकी प्रमुख वजह वह अपनी परवरिश को मानते हैं।

अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए वह बताते हैं, “मेरे पैरेंट्स ने कभी मुझे कुत्तों से डरने को नहीं कहा, बल्कि जानवरों के प्रति करुणा-भाव रखने की सीख दी। यह देखकर अफ़सोस होता है कि आजकल आवारा कुत्तों को खलनायक माना जाता है। वैसे इसके लिए मीडिया भी कम ज़िम्मेदार नहीं है। हर खबर को बढ़ा-चढ़ाकर ऐसे प्रकाशित किया जाता है, जैसे ये निरही प्राणी मानव जाति का अंत करने पर उतारू हैं। भोपाल का एक अख़बार तो इस मामले में इतना आगे बढ़ गया है कि सड़क पर बैठे कुत्तों की फोटो खींचकर पूछता है ‘ये आतंक कब तक’?”

नायडू के ‘निर्भया’ शेल्टर में 100 से ज्यादा कुत्ते हैं जिन्हें हर रोज़ चावल, चिकन, दूध, ब्रेड आदि मिलता है।हर हफ्ते उनका चेकअप भी होता है, ताकि सभी स्वस्थ बने रहें।

 

पहले जब शेल्टर में 50 के आसपास कुत्ते थे, तब उनका खाना नायडू के घर पर ही बनता था, लेकिन संख्या बढ़ने पर इसकी व्यवस्था शेल्टर में ही कर दी गई है। कुत्तों का खाना, दवा, केयरटेकर की सैलरी आदि मिलाकर शेल्टर के संचालन में हर महीने भारी-भरकम खर्चा होता है, जिसका 95% हिस्सा नायडू खुद ही वहन करते हैं। बाकी पाँच प्रतिशत कुछ लोगों के सहयोग से होता है।

तो शेल्टर शुरू करने का विचार मन में कैसे आया? इस बारे में उन्होंने कहा की कुछ साल पहले जब वह शहर के बाहर गए थे, तो किसी ने 6-7 कुत्तों को ज़हर देकर मार दिया था। उस घटना से वह बेहद व्यथित हुए। इसके बाद उनकी अनुपस्थिति में उनके घरवाले कुत्तों का ख्याल रखने लगे।

“लेकिन 2016 में हुई एक और घटना के बाद मुझे लगा कि अब कुछ अलग करना ही होगा। हुआ यूँ कि हमारी कॉलोनी के पास ही एक फीमेल डॉग ने बच्चे दिए थे, जिन्हें लोग कहीं दूर फेंकना चाहते थे। जब यह संभव नहीं हो सका, तो किसी ने उस डॉग पर गाड़ी चढ़ा दी, जिससे उसके शरीर का पिछला हिस्सा बेकार हो गया। मैं फीमेल डॉग और उसके बच्चों को अपने घर तो ले आया, लेकिन मैं जानता था कि यह स्थायी समाधान नहीं है। लिहाजा मैंने शाहपुरा स्थित अपनी ज़मीन पर शेल्टर शुरू करने का फैसला लिया। शहर के पशु-प्रेमियों की मदद से मैं घायल जानवरों को वहां आश्रय देने लगा, आज स्थिति ये है कि आसपास के घायल जानवर अपने आप शेल्टर पहुँच जाते हैं,” नायडू ने कहा।

कुत्तों का मुद्दा वर्तमान में बेहद संवेदनशील है। डॉग लवर को समाज के दुश्मन की तरह देखा जाता है, तो क्या आपने कभी लोगों के विरोध का सामना नहीं किया?

इस पर नायडू मुस्कुराते हुए कहते हैं, “कई बार किया और सच कहूँ तो अभी भी करता रहता हूँ, अंतर बस इतना है कि उसकी तीव्रता कम हो गई है। लोगों को पता है कि मैं मानने वाला हूँ नहीं, इसलिए उन्होंने भी हथियार डाल दिए हैं, फिर भी जब कभी उन्हें मौका मिलता है वह विरोध करने से पीछे नहीं हटते। मेरी यही कोशिश रहती है कि उन्हें समझा सकूँ कि कुत्ते हमारे दुश्मन नहीं बल्कि साथी हैं। पिछले साल सर्दियों में मेरे घर के सामने बैठने वाले कुत्तों के चलते कॉलोनी में चोरी की वारदात टल गई थी। दरअसल, एक रात अचानक कुत्ते जोर-जोर से भौंकने लगे, मैंने बाहर निकलकर देखा कि कुछ लोग नकाब पहने घूम रहे हैं। जब मैंने उनसे सवाल-जवाब किये तो सभी भाग निकले, दूसरे दिन पुलिस से पता चला कि वो बैटरी चोर गैंग था। यह घटना मैंने रहवासियों को बताई, ताकि उन्हें पता चल सके कि असली रखवाले वही कुत्ते हैं, जिन्हें वह दुत्कारते हैं।”

‘द बेटर इंडिया’ के माध्यम से यूएस नायडू आजकल के पैरेंट्स से कहना चाहते हैं कि बच्चों में जानवरों के प्रति खौफ पैदा न करें। आप हर समय अपने बच्चे के साथ नहीं हो सकते, लिहाजा जब कभी वो कुत्तों के बीच खुद को अकेला पाएगा तो उसका डर उसके लिए नुकसानदायक होगा। इसके बजाये बच्चों को शिक्षित करें कि कुत्तों के साथ सुरक्षित रहने के लिए कैसा व्यवहार किया जाए। एक बार बच्चे के मन में डर बैठ गया, तो वह जिंदगी भर कायम रहता है। जब कुत्तों के बीच रहते हुए आप सुरक्षित रूप से बड़े हो गए, तो आपका बच्चा भी सुरक्षित है, क्योंकि कुत्ते बेवजह किसीको परेशान नहीं करते। प्रेम बांटने पर प्रेम ही मिलता है, नफरत नहीं।’

यदि आप भी यूएस नायडू के इस अभियान से जुड़ना चाहते हैं, तो उनसे 9425457866 पर संपर्क कर सकते हैं।

संपादन – मानबी कटोच 


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