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राजस्थान का एक गाँव, जहाँ सालाना इक्ट्ठा होते हैं 10 हजार से भी ज्यादा कलाकर!

मोमसार केवल दीपावाली तक ही सीमित नहीं है। साल भर में विनोद की यह संस्था अलग-अलग त्योहारों पर 34 उत्सवों का आयोजन करवाती है। जिससे साल भर क्षेत्रीय कलाकारों के पास काम रहता है।

ब हम उत्सवों की बात करते हैं तो उनमें रंग होते हैं, रौशनी होती है, तरह-तरह के पकवान होते हैं, बहुत सारा उत्साह होता है। भारत में हमेशा से ही उत्सवों के नए-नए रंग देखने को मिलते हैं, फिर वो यहाँ के गाँव हो या शहर। ऐसा ही एक गाँव है  राजस्थान के शेखावाटी इलाके में बसा मोमसार गाँव। जैसे ही कोई उत्सव आता है,यह गाँव तारों की तरह जगमगाने लगता है। लगभग 250 साल पुराने इस गाँव में हर एक त्योहार लोक कलाकारों के साथ धूमधाम से मनाया जाता है। 200 से भी ज्यादा कलाकार इन कार्यक्रमों का हिस्सा बनते हैं, जो भिन्न-भिन्न प्रकार की कलाओं से लबरेज रहते हैं, जैसे किसी ने एक ही थाली में हजारों रंग रख दिए हों। और इनकी कलाओं के इस रंग को हजारों की तादाद में लोग देखने आते हैं।

अभी एक और उत्सव आने वाला है, दीपावली। दीपावाली मतलब रौशनी, दीये, मिठाईयां और उल्लास। राजस्थान का मतलब किले, संस्कृति और लोक कलाएं। कल्पना करिए कि कैसा हो यदि इन दोनों को मिलाकर एक उत्सव मनाया जाए और उसमें लोक कलाकार शामिल हों, पर्यटक शामिल हों और शामिल हो भारतीय संस्कृति की विविधता!

ऐसा ही एक प्रयास है मोमसार उत्सव। मोमसार उत्सव की नींव 2011 में विनोद जोशी ने रखी थी। विनोद इस दीपावाली पर भी इस उत्सव का आयोजन करवाने जा रहे हैं। यह उत्सव नवीं बार आयोजित किया जा रहा है। इस उत्सव में न केवल क्षेत्रीय कलाकर बढ़-चढ़ कर भाग लेते हैं बल्कि बड़ी संख्या में विदेशों से भी लोग आते हैं। इस बार के आयोजन में जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया के कलाकार आ रहे हैं।

बातचीत के दौरान हमने विनोद जोशी से पूछा कि आप क्षेत्रीय कलाकारों को ही ज्यादा तवज्जों क्यों देते हैं। तो उन्होंने बड़ी ही सरलता के साथ जवाब दिया, “सार्वजनिक तौर पर ज्यादातर लोग पहले से ही प्रसिद्ध गिने-चुने कलाकारों को जानते हैं, गिनी-चुनी लोक कलाओं को भी। कोई भी कार्यक्रम होने पर सहूलियत के हिसाब से उन्हीं चुनिंदा कलाकारों को बुलाया जाता है, जिससे बाकी के अन्य कलाकारों का मनोबल गिरता है। पर ये अन्य कलाकार भी उन प्रसिद्ध कलाकारों जितना ही गुणवान होते हैं। इसके आलावा क्षेत्रीय स्तर पर कई लोक कलाएं हैं जिनके बारे में लोग बहुत कम ही जानते हैं। मोमसार उत्सव कोशिश कर रहा है कि सभी कलाकारों को समान मौका और आमदनी मिले। साथ ही सभी लोक कलाओं को मंच प्रदान हो। जिससे ये सभी कलाकार अपनी-अपनी कला से प्रेम कर सकें और इसे आगे बढ़ाएं।”

स्थानीय कलाकारों के साथ विनोद जोशी (मध्य)

 

विनोद इन कलाकारों को लोगों से बातचीत करना सिखाते हैं, मंच पर कैसे जाएं, लोगों से कैसे डील करें, पहनावा कैसा हो। अपने हक के अनुसार आमदनी कैसे तय करें। एक रूप से वह कलाकार का पूरा पैकेज तैयार करते हैं, जिससे उनके जीवन स्तर में बढ़ोत्तरी के साथ-साथ सम्मान की भी प्राप्ति हो। उनके बच्चे अपने माता-पिता को सम्मान मिलता देखें और अपने सुधरते जीवन को देख, इस कला को अपनाएं। साथ ही इसे आगे भी बढ़ाएं।

मोमसार केवल दीपावाली तक ही सीमित नहीं है। साल भर में विनोद की यह संस्था अलग-अलग त्योहारों पर 34 उत्सवों का आयोजन करवाती है। जिससे साल भर क्षेत्रीय कलाकारों के पास काम रहता है।

 

विनोद  बताते हैं, “हम अब तक तकरीबन 10 हजार से भी ज्यादा कलाकारों को अपने इस नेक्सस के साथ जोड़ चुके हैं। पहले हम टैलेंट हंट करते हैं। वहां से नगीनों को ढूंढकर उन्हें ये विस्तृत मंच देते हैं। जो नए आर्टिस्ट हैं, उन्हें प्लैटफॉर्म मिल रहा है। क्या होता है, कलबेलिया, भँवई, झूमर आदि नृत्यों के जो चर्चित कलाकार होते हैं, उन्हें ही हर जगह से इनविटेशन मिलता है। ऐसे में अन्य उभरते हुए टैलेंट्स को भी मंच मिलना बहुत जरूरी है। ताकि उनको प्रोत्साहन और रोजगार मिलता रहे। जब वो हमारे मंच पर परफॉर्म करते हैं, उनके अंदर आत्मविश्वास आता है। उन्हें अन्य जगहों से भी परफॉर्मेंस के ऑफर आने लगते हैं। हम खुद हर एक परफॉर्मेंस के लिए धनराशि देते हैं। उनको अच्छा करते देख उनके आस-पड़ोस के अन्य कलाकार भी प्रेरणा पाते हैं। यह एक चैनल बन जाता है। और एक लोककला उपेक्षा का शिकार होने से बच जाती है।”

बातचीत के इस क्रम में विनोद एक बहुत ही जरूरी बात भी रेखांकित करते हैं, कि ये जो सारी लोककलाएं हैं, वो गाँव-कस्बों से होकर ही आ रही होती हैं। जो सारी जनजातियां हैं, उनकी संस्कृतियों, त्योहारों, पूजा-पाठ और दैनिक गतिविधियों से निकल कर आई हैं। इन सबके पीछे सदियों पुरानी विरासत है। इस पहल से उनका प्रयास है कि ग्लैमर की चकाचौंध में ये आर्ट फॉर्म्स केवल मनोरंजन का ही साधन बनकर न रह जाए। उनके पीछे के इतिहास व कहानियों का महत्व भी लोग जानें। यह एक ऐसा फेस्टिवल है, जो अपनी जड़ों से जुड़ा है। यहाँ के खेत-खलिहानों में, इमारतों में बैठकर लोग संगीत का रस लेते हैं।

विनोद कहते हैं, “यह बहुत जरूरी है। हम आधुनिकता की राह पर आगे जरूर बढ़ें लेकिन हम आए कहां से हैं, यह न भूलें। हम चाहते हैं कि आज से दस साल बाद अगर कोई राजस्थान की असली रंगत व रागों से परिचित होना चाहे तो उसे भटकना न पड़े।”

आने वाले दिनों में विनोद एक मंच बनाना चाहते हैं, जहां सभी कलाकार एक हो जाएं। देश विदेश से कलाकार इकट्ठा हो। एक दूसरे की कला को देखे-सुने, उसका आनंद लें, उसका सम्मान करें और अपनी जड़ों से लोगों की पहचान कराएं।

अंत में विनोद कहते हैं, “हम चाहते हैं और कोशिश कर रहे हैं कि इस प्लेटफार्म के माध्यम से देश-विदेश हर जगह के संगीतकार और गायक आए और आपस में जुड़कर अलहदा संगीत रचें। ग्लोबल विलेज की एक परिकल्पना ये भी तो हो सकती है ना।”

इस उत्सव की अधिक जानकारी के लिए आप उनकी वेबसाइट पर जा सकते हैं!

संपादन – मानबी कटोच 


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