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हरियाणा का यह किसान दुनिया के कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हो चुका है सम्मानित!

यह वह दौर जब आर्गेनिक खेती प्रचलन में नही थी। इस शब्द की ईश्वर को भी जानकारी नही थी। उन्होंने तो बस निर्णय कर लिया था कि देशी-तरीकों से खेती करनी है।

फलता की यह कहानी है प्रगतिशील किसान ईश्वर सिंह कुंडू की, जो हरियाणा के छोटे से गाँव कैलरम में रहते हुए भी अपनी अंतरराष्ट्रीय उपलब्धियों के चलते पूरी दुनिया के किसानों के लिए एक मिसाल बन गए हैं। कभी मुश्किल से गुज़र-बसर करने वाले कुंडू आज  ‘कृषिको हर्बोलिक लैबोरेटरी’ नामक कंपनी के मालिक हैं, जो किसानों के लिए विभिन्न उत्पादों पर शोध तथा निर्माण करती है।

ईश्वर सिंह का जन्म 1961 में हरियाणा के कैथल जिले के कैलरम गाँव में किसान परिवार में हुआ था। ईश्वरसिंह ने अपने गाँव के हाईस्कूल से दसवीं की परीक्षा पास की और उसके बाद कैथल की आईटीआई में नक़्शानवीश (ड्राफ्ट्समैन) कोर्स में दाखिला लिया। 1984 में कोर्स पूरा करने के बाद वह नौकरी की तलाश में जुट गए पर असफल रहे।

कोर्स के दौरान ही उनकी शादी भी कर दी गयी थी। संयुक्त परिवार था, खेतीबाड़ी की अच्छी ख़ासी ज़मीन थी, पर बंटवारा होते-होते उनके हिस्से में सिर्फ़ पौने दौ एकड़ ज़मीन ही आई जिससे गुज़ारा करना मुश्किल था। ऐसे में आर्थिक संबल के लिए उन्होंने दूसरी तरह के कई कामों में किस्मत आज़माई। दिल्ली में चाय की दुकान चलाई, गाँव में खेतीबाड़ी के औज़ारों की मरम्मत के साथ ही उन्हें बेचने का काम किया, एक साल तक छत्तीसगढ़ में किसी के यहां नक़्शानवीश की नौकरी की और फिर कैथल में बीज-कीटनाशक बेचने की दुकान खोली। पेस्टिसाइड्स बेचते हुए उन्हें इसके दुष्प्रभावों का गहरा अनुभव हुआ। इन्हें बेचने के दौरान ही ईश्वर को एक क़िस्म की एलर्जी सी हो गई थी। ईश्वर उनकी बू तक सहन नहीं कर पाते थे। उन्हें यह समझने में देर नहीं लगी कि इन रसायनों से किसानों की सेहत और ज़मीन दोनों की कितनी दुर्दशा हो रही है।

 

ऐसे में वह इस काम को छोड़कर 1993 में अपने गाँव चले आये और उन्होंने अपने खेतों में जैविक खेती करने की ठानी।

ईश्वर सिंह कुंडू

यह वह दौर जब आर्गेनिक खेती प्रचलन में नही थी। इस शब्द की ईश्वर को भी जानकारी नही थी। उन्होंने तो बस निर्णय कर लिया था कि देशी-तरीकों से खेती करनी है। देशी खेती का कोई ज्ञान भी नहीं था, कोई सुझाने वाला, कोई बताने वाला भी नही था। ईश्वर ने अपनी लगन के चलते जैसे अंधेरे में सुई तलाशने का काम शुरू कर दिया था। पर उन्हें इस बात का बिलकुल अंदाज़ा नहीं था कि उस वक़्त उनके द्वारा यूंही की जा रही यह शुरुआत उन्हें एक रोज़ दुनिया में अंतरराष्ट्रीय स्तर का किसान बना देगी।

उन्होंने अपने आस-पास उपलब्ध संसाधनों से ही नवाचारी प्रयोग शुरू किए। पहला प्रयोग नीम से शुरू हुआ। फिर उनके दिमाग में ख़याल आया कि आक और धतूरा जैसी वनस्पतियों की ओर न तो किसान देखता है और न पशु इन्हें खाना पसंद करते हैं। इसी विचार से बदलाव की एक शुरुआत हुई।

द बेटर इंडिया से बात करते हुए कुंडू उन दिनों में खो जाते हैं, जब उस समय में वे दिल्ली गए थे। उस दौर में लाल किले के पीछे पुरानी चीज़ों का एक बाज़ार लगता था। वहां खोजबीन के दौरान उन्हें एक किताब मिली, जिसमें आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों के बारे में जानकारियां थी। उन्होंने उसका अध्ययन किया। कुछ जड़ी बूटियों को चिन्हित किया। इस सिलेक्शन में उन्होंने अपनी अक्ल भी लगाई। जो जड़ी बूटियां मानव सेहत के लिए लाभदायक हैं, वे खेती और फसलों के लिए भी तो लाभदायक हो सकती हैं। यहीं से आयुर्वेदिक नुस्खों को खेती में प्रयोग किये जाने का एक दौर शुरू हुआ।

ईश्वरसिंह ने इन जड़ी बूटियों की छंटाई करनी शुरू कर दी। कसेली, कड़वी और जीभ को ना सुहाने वाली, अति तेज गंध वाली वनस्पतियों को उन्होंने अलग किया। शोध और प्रयोग शुरू हुए। आसपास के पड़ोसी किसान कहते, “कुंडू पागल हो गया है। अब इसके बच्चों को कौन पालेगा?”

ईश्वरसिंह बताते हैं, “मैं धीरे-धीरे प्रयोग करता चला गया, थोड़ी बहुत सफलता भी मिलती रही, रास्ता सूझता रहा, मैं लगा रहा क्योंकि मंज़िल अभी दूर थी। मुझे और प्रयास करने थे। देखते ही देखते 5 साल पूरे हो गए। मेहनत और पागलपन का जुनून ऐसा रंग लाया कि यक़ीन ही नहीं हुआ। एक ऐसे फॉर्मूले का जन्म हो चुका था जो मेरी सोच और समझ से भी बाहर था। सबसे पहले उसे मैंने अपनी ही फसलों पर आजमाया। गाँव के लोग तो मेरा मज़ाक ही उड़ाते रहते थे, इसलिए मैंने इसे दूसरे गांवों में रह रहे अपने दोस्तों को दिया और आजमाने को कहा। उन्होंने कहा,‘वाक़ई कमाल है यह तो!”

 

ईश्वर के मुताबिक उन्हें कोई व्यापार नहीं करना था,  बल्कि उन्हें तो बस किसानों को यह समझाने की धुन थी कि जो कीटनाशक वे प्रयोग कर रहे हैं, उसके प्रयोग से केवल नुकसान ही होगा, लाभ नहीं। ईश्वर अपना बनाया कीटनाशक मुफ्त में ही किसानों को देना चाहते थे। उन्होंने कई किसानों से कहा भी कि वह इसका फार्मूला बता देंगे जिसके बाद वे घर पर ही इसे बना सकते हैं। पर किसीने इसमें दिलचस्पी नहीं ली।

 ईश्वर बताते हैं, “जिन किसान मित्रों के खेतों में इसका सफलतापूर्वक इस्तेमाल हुआ था, वे बोले कि इस फॉर्मूले को बोतल में बंद करके कोई नाम देकर 100-50 रुपये की कीमत रख के देना शुरू करो तो यह मानेंगे। मुफ्त की चीज़ काम नहीं करती।”

अपने दोस्तों की इस सलाह को मानकर ईश्वर ने अपना बनाया हुआ कीटनाशक बेचना शुरू कर दिया। बस फिर क्या था? धीरे-धीरे किसानों को कुंडू के इस नवाचार पर भरोसा होने लगा।

 

ईश्वर ने कभी किसी से नहीं कहा कि उनके उत्पाद ऑर्गेनिक या बायो हैं। किसानों को इतना जरूर समझाया कि जो क्लोरपायरीफॉस और एंडोसल्फान या फोरेट आप खेतों में डाल रहे हो, उसकी जगह इसे डालकर देखो। उन्होंने खेतों में घूम-घूमकर ख़तरनाक और ज़हरीले कीटनाशकों के बारे में किसानों को जागरूक करने का अभियान चलाया और किसान समझने लगे। जब ये देखा कि किसान भाई उनकी इन बातों को अब समझ रहे हैं तो ईश्वर ने उनको सिखाने के भी प्रयास शुरू किए।

 

कीटनाशक कंपनियों ने किया मुकदमा 

ईश्वर को अब लगने लगा था कि वह इन ज़हरीले रसायनों से लड़ सकते हैं, पर नियति को कुछ और ही मंजूर था। 2004 में एक वक़्त ऐसा भी आया जब कुछ कंपनियों और लोगों को ईश्वर सिंह के प्रयास ठीक नही लगे।

वह कहते हैं, “इन असरदार और रसूखदार लोगों ने पुलिस को मेरे पीछे लगा दिया, चार-सौ बीसी का मुकदमा दर्ज करवाया, किसानों को गुमराह करने का आरोप लगाया पर गनीमत रही कि राज्य के कृषि विभाग ने उन लोगों का साथ नही दिया, बल्कि मेरा हौसला बढ़ाया। 6 साल तक मैंने मुक़दमा लड़ा और जीत हासिल कर अपनी खोई हुई इज़्ज़त फिर से हासिल की।”

मुक़दमे की इसी भागमभाग में उनकी मुलाकात एक व्यक्ति से हुई, जिसने उन्हें एक मैगज़ीन दी जो नवीन खोज करने वालों के बारे में थी। मैगज़ीन राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान, अहमदाबाद की थी। ईश्वर ने उनके पते पर अपनी खोज के बारे में विस्तार से एक पत्र लिखा, बदले में उन्होंने कई सारी जानकारियां मांगी। एक टीम ईश्वरसिंह के गाँव आई और उनके फार्मूले और फसलों का लैब टेस्ट कवाया गया , जिसमें हर पैमाने पर उनकी खोज खरी उतरी।

 

डॉ. कलाम ने न सिर्फ सम्मानित किया बल्कि सहयोग भी किया

 

2007 में राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने ईश्वर सिंह को सम्मानित किया। कलाम साहब ने इनकी खोज को सराहा और इस बारे में उनसे कई सवाल भी पूछे। इसके बाद उन्होने अपने ओएसडी डॉ. बृह्मसिंह को निर्देश दिए कि इनकी हरसंभव सहायता की जाए और उन्होंने पूरी मदद भी की। इस दिन के बाद से इनके उत्पाद राष्ट्रपति भवन के बाग़ों में भी प्रयोग किए जा रहे हैं।

 

ईश्वर सिंह की यह खोज पूरी तरह जड़ी बूटियों पर आधारित है। आईये जानते हैं उनके कुछ विशेष उत्पादों के बारे में –

1 . पहला उत्पाद ‛कमाल 505’ फसलों को दीमक इत्यादि से बचाने के लिए बनाया गया है। यह ज़मीन की उर्वरकशक्ति बढ़ाने के साथ ही ज़मीन में सूक्ष्मजीवों की वृद्धि में भी सहायक है।

2. दूसरी खोज ‛कमाल क्लैंप’ गाढ़े पावडर की शक्ल में है, जो ऑर्गेनिक कार्बन का भी स्त्रोत है। यह आर्सेनिक, पारा इत्यादि भारी तत्वों से पूरी तरह मुक्त है। फसलों में जड़गलन, फफूंदी जनित रोग, रूट रॉट आदि से बचाव में यह कारगर साबित हुआ है। साथ ही लगातार फसलें लेने, ज़्यादा उर्वरकों, कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग के कारण
भूमि की जो परत कठोर हो जाती है, उसमें भी यह कारगर है।

इसके उपयोग से यूरिया, डीएपी जैसे रसायनिक उर्वरकों की खपत में भी 20 से 25% तक कमी आती है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना ने इस खोज पर 3 साल तक परीक्षण किया और बहुत कारगर पाया। उनकी बनाई रिपोर्ट के मुताबिक़ इसके प्रयोग से फसल उत्पादन में भी 7 से 18% तक वृद्धि दर्ज की गई है।

3 . ‛के-55’ नामक कीटनाशक को ईश्वर ने बाग़, पॉली हाउस, कपास, मिर्च तथा सब्जियों को वायरसजनित रोगों, सफेद मक्खी व रस चूसने वाले कीटों से बचाव करने के लिए बनाया है।

4 . ‛कमाल केसरी’ भी उनका एक उत्पाद है जो उन बेहद ख़तरनाक कीटनाशी आधारित बीजोपचार उत्पादों के स्थान पर बीजोपचार के लिए बनाया गया है।

ईश्वर की इन खोजों का पेटेंट 2008 में ही भारत सरकार के पेटेंट कार्यालय द्वारा जर्नल संख्या 51 में छप चुका है। इतना ही नहीं खेतों के वैज्ञानिक, जगजीवनराम अभिनव कृषि पुरस्कार, इनोवेटिव फार्मर अवार्ड, उत्तम स्टाल अवार्ड, इएमपीआई इंडियन एक्सप्रेस इनोवेशन अवार्ड, इंडिया बुक रिकॉर्ड, लिम्का बुक रिकॉर्ड जैसे 3 दर्ज़न से अधिक पुरस्कार उनके खाते में हैं। इसके अलावा भी कई देशों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया है जिसमें इंटरनेशनल इनोवेशन फेस्टिवल, जकार्ता में मिला 1000 डॉलर का ईनाम प्रमुख है।

ईश्वर को वर्ष 2013 में ‘महिंद्रा एंड महिंद्रा’ द्वारा मुंबई में आयोजित ‘स्पार्क द राइज’ राष्ट्रीय प्रतियोगिता में 44 लाख रूपये का पुरस्कार-अनुदान भी मिला है।

इसी साल वे भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अपने कार्यक्रम (जो राष्ट्रपति भवन द्वारा In-Residence Program for Innovators के नाम से संचालित होता है) में भी 150 प्रतिभागी इनोवेशन स्कॉलर्स में से चुने गए 10 स्कॉलर्स में शामिल किए गए।

यहाँ तक पहुँचने के बाद भी किसानों को जागरूक करने का अभियान उन्होंने अभी तक बन्द नहीं किया है। 100 से अधिक प्रशिक्षण शिविर आयोजित कर वह किसानों को अपने आसपास मौजूद वनस्पतियों से कारगर उत्पाद बनाने की तालीम दे चुके हैं।

आज हजारों किसान ईश्वर सिंह कुंडू और उनकी ‘कृषिको हर्बोलिक लैबोरेटरी’ से सीधे संपर्क में हैं, क्योंकि वे उनके उत्पादों की सहायता से आधे से भी कम खर्च में खेती कर अपने खेत खलिहानों से मुनाफ़ा कमा सफलता की इबारत लिख रहे हैं।

यदि आप भी ईश्वर सिंह कुंडू से संपर्क करना चाहते हैं तो उन्हें 09813128514/ 07015621521 पर कॉल कर सकते हैं या उन्हें kisan.kamaal@gmail.com पर ईमेल कर सकते हैं।

संपादन – मानबी कटोच 


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