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मिलिए लखनऊ की शबा बानो से; सपेरों से छीनकर अब तक 1500 सांपों को कर चुकी हैं आज़ाद!

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इन जानवरों को भी चोट लगने, बीमारी या भूख में उतनी ही तकलीफ होती है जितनी हम इंसानों को। जानवरों से अगर प्यार करो तो वो बदले में आपसे उतनी ही वफादारी से प्यार करते हैं। इसलिए इनके प्रति क्रूरता और अपराध को रोकना चाहिए। - शबा बानो

प्रेम की भाषा हर किसी के समझ में आती है फिर वो चाहे इंसान हो या जानवर। हम बेजुबान जानवरों पर आए दिन क्रूरता की खबरें पढ़ते हैं लेकिन इन सबके बीच ऐसे भी कई लोग हैं जिनका पशु प्रेम सबसे बढ़कर है, वे न सिर्फ जानवरों को प्यार से पालते हैं बल्कि उन्हें अपने परिवार के सदस्यों की तरह रखते भी हैं। लखनऊ की रहने वाली शबा बानो भी एक ऐसी पशु प्रेमी हैं, जो जानवरों की मदद के लिए 24 घंटे तैयार मिलती हैं।

पालतू जानवरों की देखभाल पर हम में से कई लोग हर महीने हजारों रुपए खर्च कर देते हैं, लेकिन जब बात सड़कों पर घूम रहे वाले आवारा पशुओं की होती है तो ज्यादातर लोगों की नाक-भौं सिकुड़ जाती है। न कोई इन्हें छूना चाहता है और न इनकी तरफ देखना। लेकिन शबा बानो को जैसे ही खबर मिलती है कि कोई आवारा पशु बीमार है, कहीं कोई पशु घायल हो गया है या किसी जानवर को कहीं कैद कर लिया गया है, तो वह तुरंत सहायता के लिए निकल पड़ती हैं।

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आवारा पशुओं की मसीहा सबा।

शबा बानो हर तरह के पशुओं की मदद करती हैं जिनका कोई मालिक नहीं होता। पहले शबा एक संस्था से जुड़ी थीं जो आवारा पशुओं पर काम करता था लेकिन अब उन्होंने और उनके कुछ साथियों ने मिलकर सोसाइटी फॉर एनिमल वेलफेयर नाम की संस्था शुरू की है जिसके जरिए वे पशुओं के हक के लिए आवाज उठा रहे हैं।

शबा बानो के मन में ये नेक काम करने का ख्याल अपने पड़ोस में एक कुत्ते को देखकर आया।

शबा बताती हैं, “नौ साल पहले मैं जहां शिफ्ट हुई वहां बगल में एक किरायेदार रहती थीं वह कुत्ते को खाने में एकदम बचे-खुचे चिकन की हड्डी वगैरह डाल देती थीं, तो बेचारा कुत्ता खाकर हमेशा वहीं पड़ा रहता था चाहे कितनी भी बारिश हो या धूप हो। फिर मेरे पिताजी ने कहा कि इसे खाना दे दिया करो।”

धीरे-धीरे शबा ने उसे रोज खाना देना शुरू किया और दो-चार कुत्ते और भी आने लगे, धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ती गई। इन सबका भी खाना घर में अलग से बनने लगा। धीरे-धीरे 15-20 कुत्ते घर के पास ही रहने लगे। शबा के इस नेक काम में मदद करने वाले तो आगे नहीं आए लेकिन रूकावट डालने वाले जरूर आए। पड़ोसियों ने विरोध किया कि इतने सारे कुत्ते वो घर के पास नहीं रख सकती हैं। तब उन्होंने आवारा पशुओं के अधिकारों के बारे में जानने के लिए एक संस्था जॉइन की। शबा को पता चला कि इनको भी संविधान में अधिकार मिले हैं, इन्हें भी जीने का उतना ही हक है जितना हमें।

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कुत्तों को प्राथमिक उपचार देती शबा बानो।

शबा को पशुओं से लगाव और प्रेम तो था लेकिन उन्होंने कभी कोई ट्रेनिंग नहीं ली थी कि इनका इलाज कैसे हो, या इनकी देख-रेख में क्या सावधानी बरतनी चाहिए।

शबा बताती हैं, “मुझे वो दिन आज भी याद आता है तो तकलीफ ताजा हो जाती है, जब मेरी एक पालतू कुत्ते की जान चली गई थी। मेरे यहां एक कुत्ते का बच्चा था जो बहुत कमजोर था और उसकी पूरी देख-रेख करके हमने उसे बचा लिया था। लेकिन एक दिन उसने गलती से चूहे मारने वाली दवा कहीं से खा ली और उसकी हालत बहुत बिगड़ गई।”

ऐसे में शबा ने शहर के कई पशु चिकित्सकों और संस्थाओं से मदद मांगी, लेकिन कोई भी नहीं आया। पूरी रात वह बच्चा दर्द से तड़पता रहा, रोता रहा। दूसरे दिन एक पशु डॉक्टर मदद के लिए आए लेकिन तब तक बहुत देर हो गई थी। उन्होंने कहा ये पूरी तरह पागल हो गया है, इसलिए इसे जहर का इंजेक्शन देना पड़ेगा।

बस, शबा ने उसी दिन ठान लिया था कि अब मैं किसी जानवर को इतने दर्दनाक तरीके से मरने नहीं दूंगी। उन्होंने कई संस्थाओं में जाकर प्राथमिक चिकित्सा की ट्रेनिंग ली। अब शबा छोटी-मोटी बीमारी होने पर खुद ही इलाज कर लेती हैं। उन्हें यह भी नहीं पता था कि इन जानवरों की नसबंदी भी होती है और उनके घर का ये हाल था कि बड़ी फैमिली होने के बाद उनके यहां 22 से 24 कुत्ते भी इकट्ठा हो रहे थे लेकिन ये सब भी उनके घर के सदस्य की तरह ही थे। शबा इन्हें बच्चा और बच्ची कहकर पुकारती हैं।

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शबा के घर में इस समय भी 30 से 35 कुत्तों का खाना बनता है।

शबा के आस-पास के इलाकों में शुरुआती समय में पशुओं को लेकर क्रूरता इतनी थी कि लोग इन बच्चों के पूंछ में पटाखे तक बांध देते थे। ऐसे में शबा पुलिस की मदद लेती थीं। उन्होंने अपने मोहल्ले में पोस्टर छपवाकर चिपकाए कि ऐसा करने वाले के खिलाफ शिकायत दर्ज होगी, तो थोड़ी क्रूरता तो कम हुई हैं। उनके दरवाजे पर जब कोई आकर कहता था कि इन गली के कुत्तों को यहां से हटाइए ये मुझे पसंद नहीं है, तो शबा उनसे बस इतना कहती थीं कि आप भी चली जाइए, मुझे आप पसंद नहीं हैं। उन्होंने इन जानवरों के हक के लिए लड़ना शुरू कर दिया था।

कई रिश्तेदारों को भी ये पसंद नहीं था कि वह दिन भर जानवरों को छूती हैं, उनके साथ रहती हैं लेकिन इसका उन पर पर कोई असर नहीं पड़ा। उन्होंने ठान लिया था कि इन जानवरों को बेसहारा नहीं छोड़ेंगी। शबा के लिए इन जानवरों का खाना-पीना, बीमार होने पर इलाज का खर्च उठाना मुश्किल था क्योंकि कहीं से कोई आर्थिक मदद नहीं थी।

“मैं अपनी सेविंग्स से इन जानवरों का खर्चा निकालती थीं। ईद में मुझे जो ईदी मिली उसमें से पैसे बचाकर जानवरों के लिए स्कैचर लाई थीं,” शबा ने कहा।

2017 में दिवाली के दिन शबा ने कहीं पढ़ा कि सांप पकड़ना या धन कमाने के लिए उनका इस्तेमाल करना अपराध है। इत्तफ़ाक से, उसी दिन उनके घर एक संपेरा सांप लेकर भीख मांगने आ गया।

शबा बताती हैं, “वो पहला दिन था जब मैंने संपेरे से सांप छीना था। वो सांप मैंने संस्था के हेड को ले जाकर दिया कि सर ये दिवाली गिफ्ट है, इसे आजाद कीजिए।”

तब से लेकर शबा अब तक 300 से ज्यादा सांपों को अकेले और संस्थाओं के साथ मिलकर लगभग 1500 सांपों को छीनकर उनको आजाद किया है। इसके अलावा उनका ‘घोड़ा’ अभियान भी चल रहा है, जिसमें घायल घोड़ों से काम नहीं लेना, घोड़ा मालिकों को बाध्य करना, उनका इलाज करवाना आदि शामिल है। शबा व उनके कुछ साथी, बंदरों को लेकर जो लोग करतब दिखाते हैं, उनसे भी बंदर छीनकर उन्हें मंदिरों के पास छोड़ आते हैं।

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जानवरों के साथ शबा घायल पक्षियों की भी मदद करती हैं।

शबा ने जानवरों की जान बचाने और उनके इलाज के लिए सोशल मीडिया पर एक ग्रुप भी बनाया है, जिसमें लोग तस्वीर डालकर समस्या बताते हैं कि उनके घर के पास या जानकारी में ये जानवर घायल पड़ा है, या बीमार है तो शबा खुद या उनकी टीम के लोग मदद के लिए पहुंच जाते हैं। जानवर को कई बार गाड़ी से लादकर वो खुद अस्पताल पहुंचाते हैं और इलाज करवाते हैं।

जानवरों को लेकर भले ही सरकार कई कानून बना रही हैं लेकिन अभी भी उनके लिए सुविधाएं कम हैं।

शबा ने बताया, “कई बार हम जानवरों को इलाज के लिए खुद का किराया देकर लादकर ले जाते हैं पर वहां भी डॉक्टर 500 रुपए फीस मांगते हैं। ऐसे में कोई कैसे मदद के लिए आगे आए? अभी हाल ही में एक स्ट्रीट डॉग को चोट लगी थी लेकिन कोई भी अस्पताल उसे एडमिट नहीं करना चाह रहा था। इनकी नसबंदी का चार्ज प्राइवेट अस्पतालों में 3000 रुपए प्रति जानवर है जबकि कुछ संस्थाएं 1500 रुपए प्रति जानवर भी करती हैं। अब अगर इतना पैसा इस पर जाएगा तो हम इनके बाकी खाने-पीने और इलाज का पैसा कहां से लाएंगे। कम से कम आवारा पशुओं के लिए तो इन्हें निशुल्क करना चाहिए जिससे लोग कम से कम मदद के लिए आगे आएं।”

शबा का कहना है कि इन जानवरों को भी चोट लगने, बीमारी या भूख में उतनी ही तकलीफ होती है जितनी हम इंसानों को। जानवरों से अगर प्यार करो तो वो बदले में आपसे उतनी ही वफादारी से प्यार करते हैं। इसलिए इनके प्रति क्रूरता और अपराध को रोकना चाहिए।

शबा के इस नेक काम को सलाम!

 

अगर शबा की इस नेक काम में मदद करना चाहते हैं या उनकी प्रोत्साहन देना चाहते हैं, तो उनसे 7275634434 पर बात कर सकते हैं।

 

 संपादन – भगवती लाल तेली 


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