यह कहानी है एक ऐसी सोच की जिसने घर पर बैठकर एक आम लड़की की तरह जीने के बजाय खुले आसमान में साँस लेने और सोलो ट्रेवलिंग के जरिये देश को जानना, समझना और प्रकृति के खूबसूरत नज़ारों को देखना चुना। वह चाहती तो किसी मल्टीनेशनल कम्पनी में काम करके घर पर बैठकर आराम कर सकती थीं लेकिन वे उन सभी लड़कियों के लिए एक उदाहरण बनना चाहती थीं जो डर और खुद को कमज़ोर समझकर घर से बाहर नहीं निकलती हैं। क़ायनात क़ाज़ी नाम की यह महिला आज उन हज़ारों लड़कियों के लिए प्रेरणा हैं जो घरों से बाहर निकलकर इस दुनिया के खूबसूरत नज़ारों को देखना चाहती हैं।
देश की महिलाओं को आगे आकर खुद को साबित करने और अपनी जगह खुद बनाने के लिए सालों से काम कर रहीं डॉ क़ायनात काज़ी की सोच है,“यह देश महिलाओं का भी उतना ही है जितना पुरुषों का है। दरअसल, हम बेटियों को इतना प्रोटेक्ट करते हैं कि वे खुद की असली ताकत को ही भूल बैठती हैं और रही बात भय की तो वो हक़ीक़त से ज्यादा दिमाग़ों में भरा है।”
डॉ. क़ायनात ग्रेटर नोएडा की शिव नाडर यूनिवर्सिटी में कार्यरत होने के साथ ही विभिन्न कामों के लिए जानी जाती हैं। सोलो ट्रेवलर, जर्नलिस्ट, राइटर, फोटोग्राफ़र, ब्लॉगर और मोटिवेशनल स्पीकर होना उनके व्यक्तित्व के दूसरे आयाम हैं।
उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद में एक मुस्लिम परिवार में जन्मी क़ायनात सरकारी स्कूल में पढ़ीं। स्नातक तक की पढ़ाई वहीं कस्बे के कन्या विद्यालय में की। घर में अनुशासन के साथ ही शिक्षा पर भी जोर था। बचपन से ही उन्हें भूगोल का शौक़ रहा। जब क्लास के सारे बच्चे नक़्शे भरने में थक जाते, वहीं क़ायनात मज़े-मज़े में सबके नक़्शे तैयार कर देती थीं।
सामाजिक विज्ञान की किताब में छपे चीनी यात्री फ़ाहियान – ह्वेनसांग की तस्वीरें देखकर आश्चर्य से भर जाया करती थीं। उसी समय फैसला कर लिया था कि बड़ी होकर यायावर बनेंगी। उस छोटे से शहर में किताबें ही उनकी दोस्त हुआ करती थी।
पढ़ने के शौक़ ने उन्हें लिखना भी सिखा दिया। छोटी उम्र से ही कहानियां लिखती रहीं। हिंदी और बंगला साहित्य ने भाषा को परिमार्जित किया तो किसी तरह उनकी कहानियां आकाशवाणी केंद्र, आगरा तक पहुंची। पहली सोलो यात्रा घर से आगरा (40 किमी) की तय की। 12वीं में आते-आते आकाशवाणी के ‛युवावाणी’ कार्यक्रम में नियमित कहानियां पढ़ने लगीं।
स्नातक में हिंदी साहित्य का दामन थाम लिया, फिर स्नातकोत्तर और पीएचडी भी हो गई। इसके बाद नोएडा के ‛जागरण इंस्टिट्यूट ऑफ़ मास कम्युनिकेशन’ से पत्रकारिता में डिप्लोमा किया। इसी बीच विवाह हो गया और एक आम लड़की जैसी ज़िन्दगी जीने लग गई, ऐसी ज़िंदगी जिसमें दुनिया पति के इर्दगिर्द घूमती है।
उस दौरान वह बड़े कॉर्पोरेट में जॉब भी कर रही थीं, लेकिन ख़ुद को खोजने के चलते अन्दर से खुश नहीं थीं। एक काबिल दोस्त ने सलाह दी, आत्म-मंथन करो, खुद से पूछो? किसमें ख़ुशी मिलती है? अभी यह मत सोचो की जो चाहती हो, वो कैसे होगा?
दो दिन की मशक्क़त के बाद जवाब मिला, फोटोग्राफी और घूमना पसंद है, यही काम है जो ख़ुशी देता है। पहुंच गई फोटोग्राफी सीखने ओपी शर्मा जी के चरणों में, इन्हीं को गुरू बना फोटोग्राफी सीखी।
वे अब तक अकेली महिला यात्री के तौर पर देश के 19 राज्यों को नाप चुकी हैं।
भारत को अपने नज़रिये से देखने की उनकी यात्रा आज भी बदस्तूर जारी है। उत्तर में कश्मीर और लद्दाख से लेकर पश्चिम में गुजरात और पूर्व में मणिपुर, दक्षिण में तमिलनाडु, केरल और आंध्रप्रदेश तक घूमी हैं।
अपने बचपन को याद करती हुई वह कहती हैं, “उस दौर में हम लोग ट्रेन से लम्बी यात्राएं करते थे। अभी भी यात्राओं के लिए ट्रेन ही मेरा पसंदीदा माध्यम है, लेकिन कई बार समय के अभाव में लम्बी दूरी की यात्राएं हवाई जहाज़ से करती हूँ। भारत के अलावा नीदरलैंड, पेरिस और स्वीडन देखा है। एम्स्टर्डम बहुत पसंद है।”
वे एक बात को बड़ी ही ईमानदारी के साथ शेयर करती हैं। जब वे ट्रेवल करना शुरू कर ही रहीं थीं, तब सोचती थीं ट्रेवल के लिए बहुत सारे पैसे चाहिए होते होंगे, लेकिन उनकी नज़र में यह सच नहीं है।
अगर आप ट्रेवल करने का जुनून रखते हैं तो आपको रास्ते खुद-ब-खुद बुला लेते हैं।
डॉ. को इस सवाल का जवाब हिंदी साहित्य में मिला, जब उन्होंने राहुल सांकृत्यायन जी को पढ़ा। वे कोई रईस नहीं थे, फिर भी उन्होंने दूर देश की यात्राएं की। आप खुद से पूछिए, आपको क्या चाहिए? बहुत सारा सुख-संतोष? या बहुत सारे पैसे? अगर आपका जवाब पहला वाला है तो आपको ट्रेवल से बेहतर कोई दूसरा माध्यम नहीं मिल सकता सुखी होने का।
अपनी प्रेग्नेंसी के दौरान भी यात्राओं का सिलसिला जारी रखने वाली क़ायनात इसका श्रेय अपने पति को देती हैं, जिन्होंने इनमें साहस भरा और समझाया,“तुम प्रेग्नेंट हो, बीमार नहीं। यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, इसको लेकर चिंतित होने की ज़रुरत नहीं, यह खुशी का अवसर है। तुम जितनी यात्रा करोगी, बच्चा उतना स्वस्थ होगा। तुम जंगल में नहीं, लोगों के बीच जा रही हो। कुछ भी प्रॉब्लम होगी तो रास्ते चलता इंसान तुम्हारी मदद को आगे आएगा।”
इसी सोच से मिले संबल के चलते उन्होंने गोवा और कश्मीर की यात्राएं की। गोवा में उन्होंने बाइक टैक्सी का प्रयोग किया। कश्मीर में स्नो स्टॉर्म में फंस गई थीं, कश्मीरी लोगों ने बहुत संभलकर बर्फ की मोटी चादर पार करवाई।
क़ायनात पर्यटन को सबसे बेहतर मेडिटेशन मानती हैं। अपने कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकलकर देश-दुनिया को देखना ही उनके लिए पर्यटन है। उनकी सोच है कि यात्राएं आपके भीतर की नकारात्मक उर्जा को ख़त्म कर आपको सकारात्मक बनाने में अहम भूमिका निभाती हैं। यात्राएं आपके भीतर के कृतज्ञता भाव को जगाती हैं, लोगों पर भरोसा करना सिखाती हैं, फलस्वरुप आप प्रकृति का सम्मान करना सीखते हैं।
यात्राएं हम सबको बहुत कुछ सिखलाती हैं, इसलिए यात्रा से बड़ी कोई यूनिवर्सिटी इस दुनिया में हो ही नहीं सकती। जो अनुभव यात्राओं के चलते मिले हों, उसे दुनिया की कोई डिग्री नहीं सीखा सकती।
क़ायनात मानती हैं कि यह खुशी की बात है कि एक तरफ पर्यटन का बाज़ार बढ़ रहा है, लेकिन इसके विपरीत दुःख इस बात का भी है कि उसी अनुपात में हमारे यहां डेस्टिनेशन विकसित नहीं हो पा रहे हैं। कब तक हम घिसी-पिटी परिपाटी पर डोलते रहेंगे? कब तक गोल्डन ट्राइंगल बेचते रहेंगे? देश में रुटीन ट्रेवल डेस्टिनेशन्स से हटकर कुछ नई जगहें भी विकसित किए जाने की ज़रुरत है। उदाहरण के लिए छुट्टियों में, ख़ासकर पहाड़ों पर शिमला, मसूरी, नैनीताल की बुरी हालत हो जाती है। अब जरुरत है इन जगहों का बोझ हल्का किया जाए, कुछ नई जगहों को आबाद किया जाए जिसकी वजह से उस क्षेत्र के व्यापार को भी बढ़ावा मिले।
क़ायनात बताती हैं, “भारतीय पर्यटन इंडस्ट्री के इस साल के आंकड़े देखें तो हमें ख़ुशी होती है। देश में इस साल 28 करोड़ 88 लाख 60 हज़ार 600 देशी-विदेशी पर्यटक आए, जो पिछले वर्ष की तुलना में 21.60% अधिक हैं।”
क़ायनात की मानें तो यदि आपको एक अच्छा राहगीर बनना है तो सबसे पहले आपको एक ग्रुप में ट्रेवल करना चाहिए। एक दिन ऐसा आता है, जब आपको यह एहसास होता है कि अब आपको ग्रुप में यात्रा नहीं करनी, तब आप सही अर्थों में सोलो ट्रेवल के क़ाबिल बनते हैं। एक बात हमेशा याद रखें, आज़ादी हमेशा ज़िम्मेदारी को साथ लेकर लाती है। जब आप अकेले यात्रा कर रहे होते हैं, आपकी और आपके सामान की पूरी ज़िम्मेदारी आपकी होती है। सही फैसले लें और उन फैसलों पर कायम रहकर खुद को सही साबित करें।
क़ायनात कहती हैं, “महिलाओं को सिर्फ साक्षर होने की ज़रुरत है, स्वावलम्बी तो वह खुद हो जाएंगी। अपनी बेटियों को अकेले यात्रा करना सिखाएं, उनमें इतना साहस आ जाएगा कि वे जीवनभर सर उठाकर जी सकेंगी। यह देवियों का देश है। हमें देश की महिलाओं में शक्ति का संचार करना होगा। पूरे देश में अकेली घूमती हूँ, मेरे साथ अब तक कोई अप्रिय घटना नहीं हुई। इन यात्राओं का उद्देश्य ही यह साबित करना है कि देश की सड़कें महिलाओं के लिए भी उतनी ही सुरक्षित है, जितनी किसी भी बड़े देश की होती है।”
क़ायनात मात्र 3 साल में 1 लाख किलोमीटर की यात्रा करने वाली देश की पहली महिला यात्री हैं। उन्होंने बाकायदा किलोमीटर की लोग बुक बना रखी है। ‛उत्तरप्रदेश बुक ऑफ़ रिकॉर्ड’ ने इसके लिए भी उन्हें सम्मानित भी किया है। साथ ही एबीपी न्यूज ने सर्वश्रेष्ठ हिंदी ब्लॉगर अवार्ड दिया है। वुमन अचीवर्स अवार्ड, युवा पत्रकार पुरस्कार, मीडिया एक्सीलेंस अवार्ड, इंटरनेशनल चैंबर ऑफ मीडिया एंड एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री द्वारा फोटोग्राफी में नेशनल अचीवमेंट अवार्ड भी उनके खाते में हैं। ‛जोश टॉक’ के माध्यम से भी उन्होंने अपनी बात कही है।
वे ‛एसोसिएशन ऑफ डोमेस्टिक टूर ऑपरेटर्स ऑफ इंडिया’ और ‛इंडियन एसोसिएशन ऑफ टूर ऑपरेटर्स’ में ट्रेवल एक्सपर्ट के तौर पर आनरेरी मेम्बर भी हैं। ‛भारतीय रिजर्व बैंक’ की स्थानीय कला समिति में भी बाहरी विशेषज्ञ के तौर पर जुड़ी हैं।
यात्रा वृतांत पर लिखे उनके लेख ‘द बेटर इंडिया’, ‛दैनिक जागरण’ और ‛प्रभात ख़बर’ के राष्ट्रीय संस्करणों में नियमित छपते हैं।
‛कृष्णा सोबती का साहित्य और समाज’ और कहानी संग्रह ‛बोगनवेलिया’ सहित उनकी 2 पुस्तकें प्रकाशित हुई है। ‛सुदामा चरित्र’ जो कि बृज भाषा में है (संपादित), शीघ्र ही आएगी।
यात्राओं से मिले सुखद अनुभव उन्हीं की जुबानी, ऐसा देश है मेरा…
◆ केरल के फोर्ट कोच्ची में घूमने के दौरान एक मित्र मिलने आए जो काउच सर्फिंग के माध्यम से जुड़े थे। ज़बरदस्ती अपने घर ले गए क्योंकि वे शुद्ध केरली खाना खिलाना चाहते थे।
◆ एक बार लेह लद्दाख में हाई एल्टीट्यूड सिकनेस का शिकार भी हुई, ऑक्सीजन की कमी के कारण 2 दिनों तक अस्पताल में रही, ऑक्सीजन लगाई गई। अस्पताल में अकेली थी, देखभाल फ़ौज के एक जवान ने की, जिससे मेरा कोई नाता नहीं था।
◆ एक बार में मणिपुर में इमा मार्किट की तस्वीरें लेने निकल पड़ी पर रास्ता भटक गई। एक मणिपुरी लड़की से पता पूछा जिसके दोनों हाथों में भारी सामान था, उसने मुझे अपने पीछे आने को कहा। लगा कि वह उसी दिशा में जा रही होगी, इसलिए उसके पीछे चल दी। करीब 500 मीटर बाद उसने इमा मार्किट छोड़ा और पलटकर वापस उसी रास्ते पर जाने लगी तो अहसास हुआ की सिर्फ मुझे छोड़ने की खातिर वह यहां तक आई। उसे हिंदी और अंग्रेजी नहीं आती थी और मुझे मणिपुरी। मैंने उसे गले लगाकर आभार व्यक्त किया।
अंत में देश की हर लड़की के नाम उनका यही संदेश है कि अपने सपनों को पालो, खुद को इस लायक़ बनाओ कि उन्हें पूरा कर सको। मत सोचो कि कोई दूसरा तुम्हारे लिए खुशियां लेकर आएगा, यह सोचो कि तुम कितनों के होठों पर मुस्कान लाने में कामयाब हो सकती हो।
अगर आपको डॉ. क़ायनात की इस कहानी से प्रेरणा मिली है और आप उनसे संपर्क करना चाहते हैं तो 9810971518 पर बात कर सकते हैं। आप उनसे उनके फेसबुक पर भी जुड़ सकते हैं। उनकी वेबसाइट भी विजिट कर सकते हैं।
संपादन – भगवती लाल तेली
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