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विकलांग, नेत्रहीन समेत हज़ारों लोगों को तैरना और डूबते को बचाना सिखाया है इस गोताखोर ने!

अभी दाऊलाल की सांसें नॉर्मल भी नहीं हुई थी कि उन्हें फिर से छलांग लगानी पड़ी। वे जहां कूदे, वहां जल विभाग ने एक बड़ा पाइप डाल रखा था। उनका घुटना उस पाइप से जा टकराया। वे दर्द से कराह उठे, देखा पानी लाल हो रहा है। यह उनका ही खून था।

टना 30 जुलाई, 2006 सुबह 9 बजे की है। 14 वर्षीय समीर पानी में डूब गया। एक ग़ोताखोर ने अपनी जान जोखिम में डालकर उसे पानी से बाहर निकाला। ‘फर्स्ट एड’ देने के बाद वह समीर को खुद की एम्बुलेंस में नजदीकी अस्पताल ले गया। इस दौरान समीर के घर वालों को भी सूचना करवा दी गई। एकाएक अस्पताल में डॉक्टर्स ने समीर को डूबने से ब्रेन डेमेज होने की बात कहते हुए मृत्यु की पुष्टि कर दी। उसे बचाने की रही सही उम्मीद भी उसके साथ ही डूब गई। अपने बेटे की मौत से बौखलाए परिजनों ने होश खो दिए।

इधर, वर्षों के अनुभव को साथ लेकर चलने वाले इस ग़ोताखोर का अनुभवी दिमाग इस बात से इन्कार कर रहा था, कि बच्चे की मौत हो गई है। उन्होंने अपनी टीम की मदद से समीर के पैर के तलवों में सिर की तरफ सरसों के तेल से दो घंटो तक मालिश की। तत्पश्चात उसके सिर में हल्के-हल्के झटके दिए, नाक के पास किसी नस को दबाया। समीर के मुंह से एक चीख निकली, वह बोला ‘माँ’! आज समीर उस घटना के 13 साल बाद भी उनके उपकार को भुला नहीं है। जोधपुर के घंटाघर के बाहर अपने पिता और अंकल के साथ जूते-चप्पलों की दुकान पर काम कर रहा है और अपने इस जीवनदाता को याद करता है।

 

इस ग़ोताखोर का नाम है दाऊलाल मालवीय। दाऊलाल को गोताख़ोरी अपने पिता विष्णुदास से विरासत में मिली। विष्णुदास उस समय के नामी ग़ोताखोर थे।

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लोगों को तैरना सिखाते दाऊलाल।

जोधपुर में 1910 में जन्मे विष्णुदास ने 1995 में दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन विष्णुदास ने अपनी ज़िंदगी में जो कार्य किए वो ऐतिहासिक थे। उन्होंने न केवल जोधपुर के बल्कि राज्यभर के कई जलाशयों से लगभग 800 लोगों के शवों को बाहर निकाला। 100 लोगों को तो जिंदा भी बचाया।

‛द बेटर इंडिया’ से बात करते हुए दाऊलाल बताते हैं, ‘‘डूबतों को ज़िंदा बचाने और डूबकर मर गए अभागों के शवों को निकालने की यह कला मुझे विरासत में मिली। पिताजी की वो वसीयत जो लिखित में है, में जिक्र था कि मेरे बाद मेरे पुत्र इस काम को निस्वार्थ करे। बिना किसी लोभ-लालच के, किसी से बिना रुपए-पैसे लिए। तभी तो मैं अपनी संस्थान की एम्बुलेंस सेवा के लिए पीड़ित व्यक्ति से पेट्रोल का एक रुपया तक चार्ज नहीं लेता। एम्बुलेंस पर भी ‘निःशुल्क’ लिखवा रखा है, ताकि भूले से ड्राइवर भी बदमाशी न करे”

3 जनवरी,1957 को जन्मे दाऊलाल को दूसरों की जान बचाने में कई बार चोटें भी आई। आज से 27 साल पहले की बात है, 1992 में गुलाब सागर नामक जलाशय में दाऊलाल शव खोज रहे थे। किनारे पर लोगों की भीड़ थी। शव निकालकर जैसे ही वे बाहर लाए, शव को देखने के चक्कर में धक्का-मुक्की शुरू हो गई। इसी धक्का-मुक्की में जयसिंह नामक व्यक्ति जिसे तैरना नहीं आता था, गुलाब सागर में गिर गया और डूबने लगा।

दाऊलाल की सांसे नॉर्मल भी नहीं हुई थी कि उन्हें फिर से छलांग लगानी पड़ी। वे जहां कूदे, वहां जल विभाग ने एक बड़ा पाइप डाल रखा था, जिससे स्थानीय चिड़ियाघर को पानी जाता था। उनका घुटना उस पाइप से जा टकराया। वे दर्द से कराह उठे, देखा पानी लाल हो रहा है। यह उनका ही खून था। पाइप का कोई नुकीला हिस्सा उनकी पिंडली में जा धंसा, जो उनके लिए असहनीय था। इधर, जयसिंह उनके सामने ही डूब रहा था। किसी तरह खुद को संभालकर तैरते हुए वे जयसिंह के पास पहुंचे। जयसिंह ने उन्हें देखा तो लिपट गया। अब दाऊलाल भी उसके साथ तेजी से पानी में गहरे डूबने लगे…

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पानी के डूबे व्यक्ति को बाहर निकालते दाऊलाल व उनकी टीम।

तट पर खड़े उनके सहयोगियों ने अनहोनी की आशंका के चलते ऊपर से बिलाई फेंकी। जयसिंह को उन्होंने बिलाई पकड़वा दी और उन्हें ऊपर खींचने लगे।

इधर, दाऊलाल से तैरना तो दूर, खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था। पांव सुन्न हो रहे थे, काफी खून बह गया था। पानी में कुछ भी करना दाऊलाल के लिए संभव नहीं था। साथियों ने फिर एक बिलाई फेंकी जिसे दाऊलाल ने लपक कर पकड़ा और जोर-जोर से हिलाने लगे। बार-बार बिलाई को हिलाना, उनके मुसीबत के समय इस्तेमाल किया जाने वाला कोडवर्ड था, जिसे साथियों ने समझ लिया। बिलाई की सहायता से उन्हें ऊपर खींचा गया, वे ऊपर आ गए लेकिन उन्हें कुछ भी होश नहीं था। दाऊलाल को सीधे अस्पताल पहुंचाया गया, जहाँ उन्हें कई टांके लगे।

उस घटना को याद कर सिहर उठने वाले दाऊलाल के सिर पर 5 से ज्यादा टांके लगे हैं, बाएं हाथ की हथेली में 6 हड्डियां टूटी हैं, पिण्डली की हड्डी भी टूटी हुई है। रीढ़ की हड्डी में भी क्रेक है, ज़ख्म अभी तक ताज़ा है। यह सब ज़ख्म डूबतों को बचाने, शव को निकालने के दौरान जलाशयों में मिले हैं। दाऊलाल लोगों को बचाने का यह काम निशुल्क करते हैं।

दाऊलाल और उनकी टीम अब तक करीब सौ से ज़्यादा लोगों को पानी से जिन्दा निकाल चुकी है। दाऊलाल को जोधपुर में कभी भी किसी परिचय की जरूरत नहीं पड़ी। बाढ़, आग, दुर्घटना से लेकर रक्तदान, जरूरतमंदों को चिकित्सा-सुविधा, गरीब-अपाहिज, बेसहारा लोगों के लिए रैन-बसेरा, भूखों के लिए मुफ्त भोजन-पानी, अभावग्रस्त इलाकों में टैंकर से पानी पहुंचाना, एंबुलेंस सेवा आदि में मालवीय बंधु सदैव आगे रहे हैं। दाऊलाल और उनकी टीम को जोधपुर में मालवीय बंधु के नाम से जाना जाता है। उनकी टीम में इसी खानदान के सुनील मालवीय, जितेंद्र मालवीय, भरत मालवीय, राघव मालवीय सहित रवि गोयल, कमलेश सैन, शैलेश मीणा, हरिसिंह इंदा, महेंद्र आदि शामिल है।

10 साल की उम्र से ग़ोताखोर का काम करने वाले दाऊलाल 12वीं तक पढ़े हैं और किसान है। वे राजस्थान पुलिस की कई मामलों में मदद भी कर चुके हैं।

वे अब तक करीब 30 हज़ार से भी ज्यादा लोगों को तैरना और डूबते हुए लोगों को बचाना सीखा चुके हैं। उनके शिष्यों में नेत्रहीन, विकलांग, आरपीटीसी (शस्त्र पुलिस), पीटीएस (पुलिस ट्रेनिंग सेंटर स्कूल के जवान), आरएसी (जवान), स्पेशल टास्क फोर्स कमाण्डो, आर्मी आदि के जवान भी शामिल है, जो नियमित रूप से जोधपुर में इनके निजी स्विमिंग पूल या कायलाना झील में प्रशिक्षण की बारीकियां सीखने आते रहते हैं।

दाऊलाल जी से फ़ेसबुक पर जुड़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें। उनसे 09829027048 पर भी संपर्क किया जा सकता है।

संपादन – भगवती लाल तेली 


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