भारत की 8 मशहूर कवयित्रियाँ, जिनकी रचनाओ से और रौशन हुई हमारी संस्कृति !

भारत के खजाने में कई काबिल और महान कवयित्रियाँ भी रहीं हैं जिनकी कविताओं ने पाठकों के दिलों में जगह बनाई है। जानिए ऐसी ही ८ भारतीय कवयित्रियों के बारे में!

भारत हमेशा से ही रचनाकारों का घर रहा है। यहां के लेखक, कलाकार, कवि, मूर्तिकार, गीतकार आदि लोगों ने ही तो यहाँ की संस्कृति और इतिहास को आज तक अपनी रचनाओं द्वारा जीवित रखा है।

कविता की बात होती है तो तुरंत हमारे जहन में रबिंद्रनाथ टैगोर, सुमित्रानंदन पंत जैसे महान कवियों के नाम आ जाते हैं। लेकिन भारतीय कवयित्रियों के नाम लेने में हम अक्सर डगमगा जाते हैं।

भारत के खजाने में कई काबिल और महान कवयित्रियाँ भी रहीं हैं जिनकी कविताओं ने पाठकों के दिलों में जगह बनाई है। जानिए ऐसी ही ८ भारतीय कवयित्रियों के बारे में –

१. कमला सुरैया

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कमला सुरैया को माधवी दास और कमला दास के नाम से भी जाना जाता है। वो मलयालम की लेखिका थीं और कविताएँ अंग्रेजी में लिखती थीं। कमला सुरैया १९३४ में केरल के पुन्नयुरकुलम में पैदा हुईं थीं। महिलाओं की लैंगिकता पर उनके रवैये की खूब चर्चा और सराहना होती थी। कम ही औरतें इस मुद्दे पर खुलकर बोल सकती थीं। “समर इन कैलकटा” और “द डिसेंडेंट्स” उनकी सबसे
लोकप्रिय कविता संग्रह में से हैं।

“Don’t write in English, they said, English is

Not your mother-tongue.Why not leave

Me alone, critics, friends, visiting cousins,

Every one of you? Why not let me speak in

Any language I like? The language I speak,

Becomes mine, its distortions, its queernesses

All mine, mine alone.” –  from An Introduction, Kamala Das.

अनुवाद

उन्होंने कहा अंग्रेजी में मत लिखो, अंग्रेजी तुम्हारी मातृभाषा नहीं है।

मुझे अकेला क्यों नहीं छोड़ देते, आलोचक, मित्र,

मिलने आने वाले दूर के भाई-बहन, आप सब?

मुझे बोलने क्यों नहीं देते, उस भाषा में जिसमें मैं चाहूँ?

जिस भाषा में मैं बोलती हूँ, वो मेरी बन जाती है।

उसकी खूबियाँ-खामियाँ, सब मेरी हैं, सिर्फ मेरी।

 

२.   सरोजिनी नायडू

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नाइटिंगेल ऑफ इंडिया- सरोजिनी नायडू, स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ-साथ प्रतिष्ठित कवि भी थीं। सरोजिनी भारत की पहली महिला राज्यपाल थीं। १८७९ को उनका जन्म हैदराबाद में हुआ था। उनकी कविताएँ लय से सजी होतीं हैं। “अ गोल्डेन थ्रेशोल्ड” और “ द फेदर ऑफ डॉन” उनकी चर्चित किताबों में से हैं।

The new hath come and now the old retires:

And so the past becomes a mountain-cell,
Where lone, apart, old hermit-memories dwell
In consecrated calm, forgotten yet
Of the keen heart that hastens to forget
Old longings in fulfilling new desires” – from Past and Future, Sarojini Naidu.

अनुवाद:

 नए आ चुके हैं, पुराने जा रहे हैं।

अतीत एक पर्वतकोष बन जाता है, जहाँ एकांत में यादें बसती हैं।
प्रतिष्ठित, शांत, भूली हुईं लेकिन उत्सुक दिलों की, जो नई आकाँक्षाओं को
पूरा करने के लिए पुरानी आकाँक्षाएँ भूलने को बेताब है।

३. महादेवी वर्मा

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महादेवी वर्मा स्वतंत्रता सेनानी और एक कुशल कवयित्री थीं। वो छायावादी युग के चार प्रमुख कवियों में से एक थीं। महादेवी का जन्म १९०७, में फर्ऱुखाबाद में हुआ था। साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए उनको पद्म विभूषण, साहित्य अकादमी फेलोशिप समेत कई सम्मानों से नवाजा गया। उनकी
कविताओं में मनुष्यों और पशुओं के लिए प्रेम दिखता है।

“मधुर-मधुर मेरे दीपक जल!

युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल

प्रियतम का पथ आलोकित कर!” – महादेवी वर्मा द्वारा रचित ‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल’ से !

४. बालमणि अम्मा

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बालमणि अम्मा प्रतिष्ठित भारतीय कवयित्री हैं। अम्मा मलयालम में लिखती थीं। उनको लोग “पोयटेस ऑफ मदरहुड” कहते थे, यानि कि “मातृत्व की कवयित्री”। अम्मा का जन्म १९०९ में केरल के पुन्नयुरकुलम में हुआ था। वैसे तो अम्मा ने औपचारिक रूप से किसी प्रकार की शिक्षा नहीं ली थी,
लेकिन उनके मामा के किताबों के संग्रह ने उन्हें कवि बना दिया। उन्होंने साहित्य अकादमी फेलोशिप समेत कई पुरस्कार जीते थे। उनकी दो प्रसिद्ध रचनाएँ “अम्मा मुथास्सी” और “मज़्हुविन्ते कथा” है।

“तुम्हारी दादी जानती हैं

कुछ भी समाप्त नहीं हुआ है।

मनुष्य के भीतर सबकुछ सदा के लिए रहता है।

मेरे बूढ़े दिल में

इतनी समृद्धि है कि

अब भी तुम्हारे हाथ उसके साथ खेल सकें.” – मुथास्सी से अनुवाद

५.  मीरा बाई

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मीराबाई सोलवीं सदी की हिन्दू कवयित्री थीं। मीरा श्रीकृष्ण की परम भक्त थीं। वो भक्तिकाल की सबसे चर्चित कवयित्री हैं। मीरा के पदों में कृष्ण भक्ति ही झलकती थी। कृष्ण को वे अपना स्वामी (पति) मानती थीं। मीराबाई का जन्म राजस्थान के पाली में हुआ था। वे सामाज की रूढ़िवादी परंपराओं की मुखर विरोधी रहीं।

“ए री मैं तो प्रेम दिवानी,

मेरा दर्द न जाने कोय।

घायल की गती घायल जाने,

जो कोई घायल होय।” – मीरा बाई की पदावली से अनुवादित कुछ अंश।

६.  नन्दिनी साहू

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नन्दिनी साहू भारत की जानी मानी कवयित्री, लेखिका और आलोचक हैं। उन्होंने अंग्रेजी में कई किताबें और कविताएं लिखी हैं। नन्दिनी इंदिरा गांधी ओपन युनिवर्सिटी में अंग्रेजी की एसोसिएट प्रोफेसर हैं। उन्होंने इंग्लिश लिट्रेचर में दो गोल्ड मेडल और शिक्षा रत्न पुरस्कार भी जीता है। नन्दिनी का जन्म १९७३ में उड़ीसा में हुआ था। “द अदर वॉयस” और “द साइलेंस” उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में शुमार हैं।

Does your laugh tear your shrunken lips?
Open your wardrobe, cover the breast of the poor,
apply on your lips the balm of a millennium’s rebellion.

Who says death is the only truth?
See, your body of fog is still seated on the throne.
You still shine in the firmament of stars.” – from Death Stands at a Distance, Nandini Sahu.

अनुवाद:

क्या तुम्हारी हँसी तुम्हारे संकुचित होंठों को चीर रही है?

अपनी भरी हुई अलमारी खोलो, और उन गरीबो की नंगी छातियो को ढँको।

अपने सूखे होंठों पर इस सदी के विद्रोहोयियों के विद्रोह का लेप लगाओ।

कौन कहता है कि मृत्यु ही एकमात्र सत्य है?

देखो, तुम्हारा शरीर धुँआ बनकर भी तख्त पर विराजमान है।

और तुम अब भी सितारों के इस नभमंडल में चमक रहे हो।

 

७.  सुभद्रा कुमारी चौहान

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सुभद्रा कुमारी चौहान भारत की सबसे लोकप्रिय कवयित्रियों में से एक हैं। इनकी कविता “झाँसी की रानी” बच्चे-बच्चे को मुँहजबानी याद रहती है। सुभद्रा कुमारी अंग्रेजी शासन के खिलाफ आवाज उठाती थीं। इनकी कविताएं भी वीर रस की हैं। अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में कई बार वो जेल भी गईं। सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म १९०४ में निहालपुर गाँव में हुआ था। “वीरों
का कैसा हो बसंत” इनकी लोकप्रिय रचनाओं में से एक है।

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी। – सुभद्रा कुमारी चौहान

८. अमृता प्रीतम

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अमृता प्रीतम प्रतिष्ठित पंजाबी लेखिका थीं। वो बीसवीं सदी की सबसे लोकप्रिय पंजाबी कवयित्री थीं। इनका जन्म पंजाब के गुजरनवाला में हुआ था। अपने 6 दशक के करियर में उन्होंने १०० से ज्यादा किताबें और कविताएँ लिखीं। १९५६ में उनको साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया। उनकी लोकप्रिय रचनाएँ “आज आखाँ वारिस शाह नू” और “पिंजर” है।

 

“जब शरीर नष्ट होता है तो सब नष्ट हो जाता है।

लेकिन यादों के धागों में स्थाई कण बुने होते हैं।

मैं इन कणों को चुनूँगी और धागों में बुनकर..

…तुमसे फिर मिलूँगी। ”

– अमृता प्रीतम द्वारा रचित ‘मैं तैनू फिर मिलांगी” से अनुवादित कुछ अंश।

मूल लेख वरुण जडिया द्वारा लिखित !

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