इस प्रोफेसर ने अपने घर में ही 700 रुपये से शुरू की थी भारत की पहली फार्मा कंपनी!

2 अगस्त 1861 को बंगाल के खुलना जिले में जन्मे प्रफुल्ल अपने माता-पिता की तीसरी संतान थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही हुई।

साल 1922 में उत्तर बंगाल में आई बाढ़ ने यहाँ सब-कुछ तबाह कर दिया। लाखों लोग बेघर होकर भूखे मरने की कगार पर आ गए। इन हालातों में एक रिटायर्ड भारतीय केमिस्ट और शिक्षाविद् इन लोगों के लिए आशा की किरण बनकर आए। बंगाल रिलीफ समिति के ज़रिये उन्होंने बाढ़-पीड़ितों के लिए 25 लाख रुपए इकट्ठा किए। उनके प्रयासों की बदौलत कई जगहों से पीड़ितों के लिए कपड़े और खाने-पीने के सामान की भी मदद पहुंची।

ये शख्स और कोई नहीं बल्कि आचार्य प्रफुल्ल चन्द्र राय थे। भारत के पहले केमिस्ट्री रिसर्च स्कूल के संस्थापक। जिन्हें भारत में केमिकल साइंस का जनक कहा जाता है।

आचार्य प्रफुल्ल चन्द्र राय (साभार: विकिपीडिया)

2 अगस्त 1861 को बंगाल के खुलना जिले में जन्मे प्रफुल्ल अपने माता-पिता की तीसरी संतान थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही हुई। यह स्कूल उनके पिता द्वारा ही चलाया जाता था। 10 साल की उम्र में उन्हें पढ़ने के लिए कोलकाता भेज दिया गया। यहाँ जब वे चौथी कक्षा में थे तब गंभीर बीमार पड़ गए। बीमारी के चलते उन्हें वापस गाँव लौटना पड़ा।

गाँव लौटने पर पहले तो उन्हें काफ़ी निराशा हुई। उन्होंने अपने इस समय का उपयोग प्रेरणात्मक आत्मकथा, साइंस से संबंधित आर्टिकल, इतिहास, भूगोल, बंगाली साहित्य के साथ ही ग्रीक, फ्रेंच, संस्कृत आदि भाषाओं को पढ़ने में किया।

साल 1876 में राय एक बार फिर कोलकाता लौटे और उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए एल्बर्ट स्कूल में दाखिला लिया। इस स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने विद्यासागर कॉलेज से आगे की पढ़ाई की। कॉलेज में उन्हें विज्ञान के विषय पढ़ने के लिए प्रेसीडेंसी कॉलेज जाना पड़ता था। यहीं पर आर्ट विषय में दिलचस्पी रखने वाले राय का झुकाव विज्ञान की तरफ हुआ।

युवा प्रफुल्ल चन्द्र राय (साभार: विकिपीडिया)

यहाँ उनके एक लेक्चरर सर ऐलेक्जैंडर पेडलर का उन पर काफी प्रभाव पड़ा। पेडलर भारत के शुरुआती रिसर्च केमिस्ट्स में से एक थे। राय को उन्होंने इस कदर प्रभावित किया कि उन्होंने अपने हॉस्टल के कमरे में एक छोटी-सी लैब तक बना ली।

साल 1882 में 21 साल की उम्र में गिल्क्राइस्ट छात्रवृत्ति मिलने पर उन्हें इंग्लैंड की एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी में जाकर पढ़ने का मौका मिला। यहाँ से उन्होंने अपनी बीएससी और डीएससी की डिग्री पूरी की। जिस समय ऑर्गेनिक केमिस्ट्री में रिसर्च पर काम हो रहा था। उस समय राय ने इसके विपरित इनऑर्गेनिक केमिस्ट्री में अपनी दिलचस्पी दिखाई। उन्होंने इस विषय पर कई शोध पत्र लिखे जिससे रसायन जगत में लोग उन्हें जानने लगे।

राय चाहते थे तो विदेश में रहकर अच्छी नौकरी कर अपनी ज़िंदगी आराम से गुज़ार सकते थे। लेकिन उन्होंने भारत वापस आने का फ़ैसला किया। उन्होंने लगभग एक साल तक अपने क़रीबी दोस्त आचार्य जगदीश चंद्र बोस के साथ भी काम किया था।

1889 में राय कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में केमिस्ट्री के असिस्टेंट प्रोफेसर नियुक्त हुए। यहीं पर रहते हुए उन्होंने केमिस्ट्री में कई महत्वपूर्ण शोध किए। जिसके चलते उस समय युवाओं का रुझान इस विषय की तरफ आया। मेघनाद साहा और शांति स्वरुप भटनागर जैसे वैज्ञानिक भी राय के मार्गदर्शन की ही देन है।

राय हमेशा से ही आगे की सोचते थे इसलिए उन्होंने अपने छोटे से घर से ही भारत की पहली केमिकल फैक्ट्री या फिर कहें कि फार्मा कंपनी की नींव रख दी थी। बंगाल केमिकल एंड फार्मास्यूटिकल वर्क्स लिमिटेड कंपनी की शुरुआत कोलकाता में राय के घर की चारदीवारी से ही हुई थी। सिर्फ़ 700 रुपये की इन्वेस्टमेंट से शुरू हुई इस कंपनी से राय ने उस समय भारतीयों के मन में स्वयं उद्यमी बनने की भावना जागृत की। ये राय ही थे जिन्होंने भारतीय युवाओं को विश्वास दिलाया कि उन्हें सिर्फ़ अंग्रेजी कंपनियों में ही नौकरी तलाशने की ज़रूरत नहीं है। वे स्वयं भी अपनी कम्पनी स्थापित कर सकते हैं या उनके रोजगार के लिए स्वदेशी कम्पनियों की शुरूआत हो गई है।

उनकी जन्मतिथि पर कोलकाता की साइंस सिटी में प्रदर्शनी लगाई गयी (साभार: विकिपीडिया)

भारत के इतिहास में यह पहली कंपनी थी जो उस समय स्वदेशी तकनीक, स्किल, मैटेरियल का इस्तेमाल कर केमिकल, दवाइयां और घर में इस्तेमाल होने वाले प्रोडक्ट्स जैसे पाउडर, टूथपेस्ट, ग्लिसरीन, साबुन, कार्बोलिक साबुन आदि बना रही थी।

जब राय 60 वर्ष के हो गए तो उन्होंने अपनी पूरी सैलरी यूनिवर्सिटी के केमिस्ट्री विभाग के विकास के लिए दे दी। इस मदद से वहां दो रिसर्च फ़ेलोशिप भी शुरू हो गई। उन्होंने कई बार अंतरराष्ट्रीय सेमिनार और कॉन्फ्रेंस में भारतीय विश्वविद्यालयों का प्रतिनिधित्व किया। 1920 में उन्हें इंडिया साइंस कांग्रेस का प्रेसिडेंट चुना गया।

1936 में, 75 वर्ष की आयु में वे प्रोफेसर के पद से रिटायर हुए। उन्होंने अपने जीवनकाल के दौरान केमिस्ट्री के क्षेत्र में कई छात्रों का मार्गदर्शन किया। उनके इन्हीं छात्रों ने उनकी विरासत को आगे बढ़ाया। 16 जून 1944 को उन्होंने 82 साल की उम्र में आख़िरी सांस ली।

कोलकाता में लगी उनकी प्रतिमा

2011 में, रॉयल सोसाइटी ऑफ केमिस्ट्री (आरएससी) ने राय को केमिकल लैंडमार्क प्लाक के साथ सम्मानित किया। यह पहली बार था जब एक नॉन-यूरोपियन को यह सम्मान मिला। यह सम्मान देते वक़्त कहा गया था कि यह राय की महान उपलब्धियों का छोटा-सा हिस्सा है। उन्हें ख़ुशी है कि वे पहली बार यूरोप के बाहर किसी साइंटिस्ट को यह सम्मान दे रहे हैं।

मूल लेख: जोविटा अरान्हा


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