20 साल की मेहनत से घर को बनाया पहाड़ों का संग्रहालय; आज देश-विदेश से आते हैं टूरिस्ट!

यहाँ आपको हिमालय से संबंधित दुर्लभ छाया चित्रों के अलावा खान-पान, कला-संस्कृति, तीज-त्योहार, वेश-भूषा और लोक संस्कृति के हर वह रंग देखने को मिल जाते हैं, जिन्हें अब लोग भूलते जा रहे हैं।

खनऊ के समीर शुक्ला और उनकी पत्नी डॉ. कविता शुक्ला 1996 में अपने घर से हज़ारों किमी दूर हिमालय के पहाड़ों की सैर करने निकले। इस दौरान उन्हें पहाड़ और यहाँ की सांस्कृतिक विरासत इतनी पसंद आई कि उन्होंने यहीं बसने का फैसला कर लिया। इसके बाद वे यहीं के होकर रह गए। इस दंपत्ति ने लखनऊ का अपना मकान बेच कर उत्तराखंड के मसूरी में रहने का फैसला किया। मसूरी से तीन किमी की दूरी पर धनोल्टी रोड पर चामुंडा पीठ मंदिर रोड स्थित बिग बैंड वाला हिसार में इन्होंने अपना आशियाना बनाया। इसे आज लोग सोहम हेरिटेज एवं आर्ट सेंटर और समाज के गरीब व वंचित तबके के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा प्रदान करने वाले शक्ति केंद्र के रूप में जानते हैं।

 

समीर शुक्ला और डॉ. कविता शुक्ला

 

हिमालय से बेइंतिहा प्यार, हिमालय के हर कोने की सैर, यादों के लिए हर जगह से लाते हैं एक पत्थर!

हिमालय से बेइंतिहा प्यार करने वाले शुक्ला दंपत्ति 23 साल पहले जब पहाड़ की सैर करने निकले तो पहाड़ों की सुंदरता और संस्कृति को देख कर अभिभूत हो गए। उन्होंने पहाड़ में ही रहने का फैसला कर लिया। तब से लेकर आज तक शुक्ला दंपत्ति ने हिमालय के कोने-कोने की सैर कर डाली। गढ़वाल हिमालय से लेकर कुमाऊँ, जौनसार, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, कन्याकुमारी, कैलाश-मानसरोवर सहित पूरे हिमालय क्षेत्र की सैर कर डाली। इन सब यात्राओं के दौरान वे यादगार के रूप में कुछ छोटे-छोटे पत्थर ले आते हैं। सोहम हेरिटेज म्यूजियम में आपको इन पत्थरों का संग्रह देखने को मिलेगा। कुछ वर्ष पहले बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा के साथ 50 हिमालयन हीरो के रूप में शुक्ला दंपत्ति का भी चयन किया गया था। 

 

म्यूजियम ही नहीं, साक्षात पहाड़ बसता है यहाँ

म्यूजियम में लगी एक तस्वीर

कस्टम अधिकारी के पद से त्यागपत्र देने वाले समीर शुक्ला की पत्नी डॉ. कविता शुक्ला ड्राइंग और पेंटिंग में डॉक्टरेट  हैं और कॉलेज में बेहतरीन खिलाड़ी भी रह चुकी हैं। डॉ. कविता जहाँ एक बेहतरीन चित्रकार हैं तो वहीं हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक में बनने वाले हर पकवान की जानकार भी हैं। उन्हें इन पकवानों को बनाने में महारत हासिल है। शायद ही देश का कोई ऐसा पकवान हो, जिन्हें बनाना ये न जानती हों। सोहम म्यूजियम की सारी पेंटिंग्स इनकी ख़ुद की बनाई हुई है। इन्होंने अब तक सैकड़ों पेंटिंग्स बनाई हैं, जिनमें उत्तराखंड की लोक संस्कृति और सांस्कृतिक विरासत की झलक देखने को मिलती है। पहाड़ के लोगों की इष्ट देवी माँ नंदा देवी और नंदा राजजात यात्रा की शानदार पेंटिंग हो, चाहे कुमाऊँ की लोक संस्कृति की बानगी ऐपण और बूढ़ी दीपावली पर बनाई गई उनकी पेंटिंग उन्हें अलग पहचान दिलाती है।

 

सोहम एक म्यूजियम ही नहीं है, बल्कि यहाँ साक्षात पहाड़ बसता है। यहाँ मूर्तियों को इस तरह रखा गया है, जिससे वो बारिश और धूप से खराब नहीं होती हैं। इन मूर्तियों को शुक्ला दंपत्ति ने ख़ुद बनवाया है।

म्यूजियम के अंदर पहला हिस्सा पेंटिंग का है, जिसमें उत्तराखंड की लोक संस्कृति, लोक जीवन, मेले कौथिग और लोक यात्राओं से जुड़ी बेशकीमती पेंटिंग्स हैं। वहीं, उत्तराखंड के लोक गायकों के बारे में भी बहुत कुछ जानने को मिलता है।

 

दूसरे भाग में फोटोग्राफी सेक्शन है। इसमें 1947 से पहले और अब तक के उत्तराखंड, कश्मीर, लद्दाख और तिब्बत को फोटोग्राफी के ज़रिये दिखाया गया है।

कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और कैलाश-मानसरोवर तक की बहुत सारी तस्वीरें यहाँ देखने को मिलती है। इसी हिस्से में हिमालय की बहुमूल्य जड़ी-बूटियों को भी दिखाया गया है, ताकि आज की युवा पीढ़ी इनके बारे में जान सके और इनका उत्पादन कर रोजगार-सृजन कर सके। यहीं आपको पहाड़ की टोपी के कई प्रकारों के बारे में जानकारी मिलती है। इस भाग में मसूरी की दुर्लभ तस्वीरें भी देखी जा सकती हैं।

 

इसी गैलरी में हिमालय, मध्य हिमालय और मैदानी इलाकों में पाए जाने वाले पक्षियों के बारे में जानकारी मिलती है। म्यूजियम के तीसरे भाग में पहाड़ के लोक जीवन से जुड़ी वस्तुओं, आभूषणों, देवी-देवताओं के चित्र, पहाड़ी वाद्य यंत्रों, रिंगाल, लकड़ी के सामान, बर्तन, पहाड़ के लोक जीवन से जुड़ी चीजें और पहाड़ी टोपी को संजोकर रखा गया है।

 

यहाँ आपको हिमालय से संबंधित दुर्लभ छाया चित्रों के अलावा खान-पान, कला-संस्कृति, तीज-त्योहार, वेश-भूषा और लोक संस्कृति के हर वह रंग देखने को मिल जाते हैं, जिन्हें अब लोग भूलते जा रहे हैं। वहीं, उनके प्रयासों से बनायी गई पहाड़ी टोपी आज लोगों की पहली पसंद बन गई है। रोज़ ही यहाँ पर्यटकों का तांता लगा रहता है। देश ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी लोग इस म्यूजियम को देखने आते हैं।

 

घर को बना दिया पाठशाला, पढ़ाई से वंचित छात्र-छात्राओं को मिलती है शिक्षा की रौशनी!

यहाँ आते ही यहाँ की संस्कृति को सहेजने के साथ-साथ डॉ. कविता शुक्ला ने अपने पति के सहयोग से अपने ही घर को पाठशाला बना दिया और शक्ति केंद्र की नींव रखी। इस पाठशाला में वे समाज के गरीब व वंचित बच्चों को निःशुल्क शिक्षा प्रदान कर उनके जीवन में रौशनी बिखेर रही हैं। अभी तक 400 से अधिक विद्यार्थी यहाँ से शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं।

 

 इस केंद्र में बच्चों को स्कूली पाठ्यक्रम के साथ-साथ व्यावहारिक शिक्षा, रोजगारपरक ज्ञान, आर्ट-क्राफ्ट और खेल-कूद की जानकारी भी दी जाती है। यहाँ उनके व्यक्तित्व के समग्र विकास पर ध्यान दिया जाता है। साथ ही, बच्चों के लिए सामान्य ज्ञान और लेखन प्रतियोगिता भी आयोजित की जाती है। यहां बड़ी क्लास के बच्चे छोटी क्लास के बच्चों को पढ़ाते हैं और एक-दूसरे की मदद करते हैं। यहां तक कि जो बच्चे यहाँ से पढ़ कर कॉलेज में पहुँच चुके हैं, वे भी समय निकालकर बच्चों को पढ़ाने आते हैं। यहाँ से शिक्षा ग्रहण कर चुके कई बच्चे आज खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं। इस अनोखे स्कूल में मसूरी के निकट कैरकुली, भट्टा गांव, बर्लोगंज, बाला हिसार और आस-पास के हर उम्र के बच्चे स्कूल के बाद यहां आते हैं। डॉ. कविता शुक्ला का ध्यान ड्रॉप आउट लड़कियों पर ज्यादा रहता है। उन्होंने कई ड्रॉप आउट बच्चियों को ढूंढ-ढूंढ कर फिर से स्कूल में दाखिला दिलाया। इस अनोखे स्कूल ‘शक्ति’ इम्पावरमेंट थ्रू एजूकेशन केंद्र के संचालन का खर्च शुक्ला दंपति अपने कुछ मित्रों के सहयोग से उठाते हैं।

समीर शुक्ला कहते हैं, “पहाड़ की सांस्कृतिक विरासत बेहद समृद्ध है। लेकिन इसके संरक्षण और संवर्धन के लिए अभी तक ज़मीनी प्रयास नहीं हुए हैं। कोशिश की जानी चाहिए कि हिमालय की सांस्कृतिक विरासत और लोक संस्कृति को बचाने के लिए एक दीर्घकालीन कार्य योजना बनाई जाए, ताकि आने वाली पीढ़ी अपनी संस्कृति के बारे में जान सके। इसके अलावा, जो लोग इस क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं, उन्हें भी प्रोत्साहित किया जाए, ताकि वे और बेहतर तरीके से काम कर सकें।”



अगर आप पहाड़ और यहाँ की सांस्कृतिक विरासत  के बारे में जानना चाहते हैं तो प्रख्यात लोक गायक गढ़ रत्न नरेंद्र सिंह नेगी जी के गीतों को सुनने के अलावा शुक्ला दंपत्ति के मसूरी सोहम हेरिटेज एवं आर्ट सेंटर व शक्ति केंद्र को देखने जरूर आएं। यहाँ आपको पहाड़ और उसकी संस्कृति से रू-ब-रू होने का अवसर मिलेगा। एक बार आने पर आप बार-बार यहाँ आना चाहेंगे।

पता – Chamunda Peeth Temple Road, Big Bend Bala Hisar, Mussoorie, Uttarakhand 248179

फ़ोन नंबर – 098972 41261

 

संपादन – मनोज झा


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter पर संपर्क करे। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर भेज सकते हैं।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

X