Placeholder canvas

वी. आर लक्ष्मीनारायण : वह आईपीएस अफ़सर, जिसने अपने कर्तव्य को हमेशा सर्वोपरि रखा!

क्रिमिनल लॉ में स्पेशलाइजेशन करने वाले वीआरएल साल 1951 में भारतीय पुलिस सेवा में भर्ती हुए थे।

मिलनाडु के पूर्व डायरेक्टर जनरल ऑफ़ पुलिस और महान आईपीएस अफ़सर, वीआर लक्ष्मीनारायण (उन्हें सब वीआरएल कहते थे) को ज़्यादातर लोग उस अफ़सर के तौर पर जानते हैं, जिसने देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को अरेस्ट किया। पर उनकी पहचान इससे कहीं ज़्यादा और बड़ी थी।

शायद इसलिए, 23 जून 2019 को 91 वर्षीय वीआरएल के निधन के बाद, उनके लिए देश के कोने-कोने से श्रद्धांजलि के सुमन अर्पित किये जा रहे हैं।

क्रिमिनल लॉ में स्पेशलाइजेशन करने वाले वीआरएल साल 1951 में भारतीय पुलिस सेवा में भर्ती हुए थे। लेकिन अगर उन्होंने वकालत में भी अपना करियर बनाया होता, तब भी शायद वे अपने भाई, जस्टिस वीआर कृष्ण अय्यर की तरह ही भारतीय संविधान का गौरव बढ़ाते। जस्टिस अय्यर ने अपने कार्यकाल में समय-समय पर भारतीय कानूनो में ज़रूरी संशोधन करके एक मिसाल पेश की।

वीआरएल ने भी हर हाल में अपनी ड्यूटी करते हुए, कानून को सर्वोपरि रखा। वे किसी भी परिस्थिति में कानून का सही इस्तेमाल करते हुए अपना कर्तव्य निभाने से नहीं चूके। लेकिन साथ ही उन्होंने इंसानियत की मर्यादा को भी बनाये रखा।

वीआर लक्ष्मीनारायण (साभार)

साल 1977 में जब उन्हें इंदिरा गाँधी को अरेस्ट करने के आर्डर मिले तो बेशक उन्हें अपनी ड्यूटी निभानी थी, लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री रह चुकी इंदिरा को वीआरएल किसी भी कारण से शर्मिंदा नहीं करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने राजीव गाँधी से बात की और कहा कि मैं नहीं चाहता कि एक पुलिस वाले के सख्त हाथ, उस शख्सियत को छुए जो कि भारत की प्रधानमंत्री रह चुकी हैं और नेहरू जी की बेटी हैं।

यह सुनकर इंदिरा गाँधी खुद कमरे से बाहर आ गयीं और कहा, ‘कहाँ है हथकड़ी’!

इस पर वीआरएल ने जवाब दिया कि ‘मैंने पूरी ईमानदारी से आपके लिए ड्यूटी की है और अपनी सर्विस के लिए दो बार आपके हाथों से मेडल भी लिया है और शायद इसलिए थोड़ा आलसी हो गया हूँ। तभी तो हथकड़ी लाना भूल गया।’

इन सब वाकयों के बारे में, वीआरएल ने अपने संस्मरण ‘अपॉइंटमेंट्स एंड डिसअपॉइंटमेंट्स’ में लिखा है।

यह जानते हुए भी कि अगर इंदिरा गाँधी फिर से सत्ता में आ गयीं तो उनके लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं, वीआरएल ने बेधड़क अपनी ड्यूटी की। उन्होंने किसी परिणाम की परवाह नहीं की।

और जैसा कि सबने सोचा था आगे आने वाले सालों में जब इंदिरा गाँधी फिर से सत्ता में आयीं, तो वीआरएल को उनकी योग्यता के अनुसार सीबीआई के प्रमुख के पद पर प्रोमोट करने की बजाय, उन्हें तमिलनाडु राज्य पुलिस में वापिस भेज दिया गया। हालाँकि, तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एमजीआर को वीआरएल की कीमत अच्छे से पता थी। तभी तो उन्होंने वीआरएल को डीजीपी बनाया, वह भी ये जानते हुए कि इस बात से केंद्र में कई राजनेता खफा हो जायेंगें।

यहां भी वीआरएल ने पूरी ईमानदारी से अपना कर्तव्य निभाया और अपने भावी अफसरों के लिए एक प्रेरणा बनें। उनकी रिटायरमेंट के बाद भी उनके जूनियर अफसर उनसे सलाह और मदद के लिए आते थे। उन्होंने अपने सभी अफसरों को कानून को ध्यान में रखते हुए, दूसरे इंसान के सम्मान का ख्याल रखना भी सिखाया।

अपनी ड्यूटी के अलावा उन्हें उनके सामाजिक कार्यों के लिए भी जाना जाता है। उनके भतीजे ए. रंगनाथन बताते हैं कि जब रिटायरमेंट के बाद उन्हें पेंशन मिलनी शुरू हुई, तो उनकी पेंशन उनकी तनख्वाह से भी ज़्यादा थी। और वीआरएल को लगा कि यह सही नहीं है। इसलिए वे अपनी ज़्यादातर तनख्वाह दान कर देते थे। उन्होंने केरल में बाढ़ के दौरान भी बहुत दान किया था।

बेशक, वीआरएल को उनकी ईमानदारी और निष्पक्षता के लिए भारतीय पुलिस सेवा के इतिहास में हमेशा याद रखा जायेगा।

मूल लेख


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter पर संपर्क करे। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर भेज सकते हैं।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

X