व्हील चेयर पर बैठ, स्पाइनल इंजरी के शिकार 2000 लोगों का जीवन बदल चुका है यह युवक!

व्हील चेयर पर हैं तो क्या गम है। जीना है तो ख़ुशी से जीना है, यही संदेश फैला रहे हैं स्पाइनल इंजरी के शिकार गया के शैलेष।

बिहार के जहानाबाद शहर के भीड़-भाड़ वाले बस स्टैंड पर जून की झुलसा देने वाली गरमी में दोपहर के वक्त उनसे मुलाकात हुई। वे बिहार के इस छोटे-से शहर में स्पाइनल इंजरी के शिकार मरीज़ों से मिलने आए थे। ऐसे मरीज़ों की बाकायदा एक मीटिंग आयोजित की गई थी। लेकिन इसमें सिर्फ़ दो लोग ही पहुँच पाए जो दो लोग और आने वाले थे, उनकी अचानक तबीयत खराब हो गई स्पाइनल इंजरी के मरीज़ों के लिए यह आम बात है। अक्सर उनका पेट खराब हो जाता है, लेकिन फिर भी उनके चेहरे पर हंसी, आत्मविश्वास और सकारात्मकता बनी रहती है, इसके बावजूद कि उनकी ज़िंदगी व्हील चेयर से बंधी हुई है। वे गया से जहानाबाद अपने भाई के साथ तमाम मुश्किलात झेलते हुए आए थे और इस छोटे-से शहर के अधिक से अधिक मरीज़ों की मदद करना चाहते थे यहाँ जब सिर्फ़ दो ही मरीज़ आ सके तो उन्होंने उन्हीं दो लोगों से बातचीत शुरू कर दी।

 

ये हैं गया के शैलेष कुमार, जो खुद व्हील चेयर से चलते हैं, मगर पिछले तीन-चार सालों से पूरे देश में घूम कर अपने जैसे स्पाइनल इंजरी के मरीज़ों की मदद कर रहे हैं।

शैलेश कुमार

शैलेश इन लोगों में आत्मविश्वास जगाते हैं और उन्हें सही इलाज के साथ आत्मनिर्भरता की राह भी बताते हैं। वे अब तक तकरीबन दो हज़ार ऐसे मरीज़ों से मिल कर उनकी मदद कर चुके हैं।


जहानाबाद बस स्टैंड के पास उस दिन द स्पाइनल फाउंडेशन द्वारा आयोजित उस मीट में शैलेष से मिलने पास के एक गाँव के प्रिंस पहुँचे थे। 28 साल के प्रिंस बचपन में एक हादसे में स्पाइनल इंजरी के शिकार हो गए थे और पिछले बीस साल उन्होंने बिस्तर पर गुज़ारे थे। बिस्तर पर पड़े-पड़े उनका बेड शोर इतना गंभीर हो गया था कि उन्होंने जीने की उम्मीद ही छोड़ दी थी इलाज के दौरान ही उन्हें शैलेष मिल गए और उन्होंने न सिर्फ उन्हें सही इलाज बताया, बल्कि आत्मनिर्भर जीवन जीने के लिए प्रशिक्षित भी किया। आज प्रिंस के चेहरे पर नजर आती निश्छल मुस्कान बताती है कि ऐसे लोगों के जीवन में शैलेष जैसे दोस्तों का कितना महत्व है।

शैलेष उन्हें व्हील चेयर चलाने का प्रशिक्षण देते हैं, सही इलाज कहाँ और कैसे होगा, यह बताते हैं, साथ ही करियर और खेल संबंधी सुझाव भी देते हैं।

जहानाबाद मीट में प्रिंस (बाएं) शैलेश (मध्य) के साथ

उनके कई साथी पैरा ओलिंपिक में भाग ले चुके हैं। ऐसे ही एक साथी उस रोज़ उस मीट में पहुंचे थे, जो व्हील चेयर बॉलीबाल खेलने के लिए पूरे देश में अकेले सफ़र करते हैं।

आज व्हील चेयर पर जीवन बिताने वाले स्पाइनल इंजरी के शिकार लोगों के लिए शैलेष प्रेरणा के स्रोत बन चुके हैं, लेकिन उनके लिए यह सब करना बहुत आसान नहीं था। साल 2012 में जब फुटबॉल खेलते वक्त वे इंजरी के शिकार हुए थे, तो उन्हें एक साल तक बिस्तर पर ही रहना पड़ा। वे भी बेड शोर के शिकार हो गए।


शैलेष बताते हैं कि जितने दिन उन्होंने बेड पर गुजारे, वे उनके जीवन के सबसे अधिक तनावपूर्ण दिन थे। हमेशा उन पर चिड़चिड़ाहट हावी रहती थी। उन्हें लगता कि सभी लोग उनकी उपेक्षा कर रहे हैं। उन्हें खूब गुस्सा आता और जब भी वे गुस्से से भर उठते तो खड़े होने की कोशिश करते और गिर जाते।

वे कहते हैं कि उस वक्त उनके मन में एक ही जिद सवार रहती थी कि किसी तरह खड़ा होना है।

 

उनका सौभाग्य था कि वे इलाज कराने सही जगह (सीएमएस वेल्लोर) पहुँच गए। वहाँ उनका सही इलाज हुआ। बाद में वे द स्पाइनल फाउंडेशन के संपर्क में आए, जहाँ उन्हें न सिर्फ़ आत्मनिर्भर जीवन जीने का प्रशिक्षण मिला, बल्कि उन्हें एक प्रशिक्षक और मार्गदर्शक के रूप में तैयार किया गया जो अपने जैसे दूसरे लोगों का उत्साह बढ़ा सके और उनकी मदद कर सके।


शैलेष ने 2015 से पूरे देश में घूम कर लोगों की मदद करने का काम शुरू कर दिया। इसमें द स्पाइनल फाउंडेशन से मदद मिलती थी।

 

इस दौरान उन्हें कई ऐसे मरीज़ मिले जो जीवन से निराश हो चुके थे। शैलेष की जिंदादिली देख कर उनमें जीने का उत्साह जगता और वे फिर से हौसला जुटा कर कुछ नया और अलग करने की कोशिश करते। वे बताते हैं कि उन्हें एक ऐसा ही मरीज़ मिला जो जीवन से निराश था, लेकिन जब शैलेष ने उसे प्रशिक्षण दिया तो उसने लगातार 12 घंटे व्हील चेयर चलाकर 88 किमी का सफ़र करने का देश में पहला रिकॉर्ड बनाया।

इस दौरान शैलेष के भाई ने उनका भरपूर साथ दिया। वे जहाँ-जहाँ जाते, वहाँ उनके भाई भी साथ जाते। आज भी उनके भाई अक्सर उनके साथ रहते हैं।

 

द स्पाइनल फाउंडेशन से जुड़ कर शैलेष लगातार ऐसे लोगों से मिलने की कोशिश करते हैं। वे अब छोटे-छोटे शहरों में ऐसे मीट आयोजित करते हैं, जहां नये मरीज़ मिल सकें, क्योंकि ऐसे मरीज़ों के लिए लंबी दूरी तय करके बाहर जाना आसान नहीं होता। कई बार उन्हें काफ़ी मरीज़ मिल जाते हैं, तो कई बार दो-तीन मरीज़ ही मिलते हैं। मगर वे हौसला नहीं छोड़ते और अपने काम में जुटे रहते हैं।

अंत में शैलेश कहते हैं, “अगर एक भी मरीज़ का जीवन मेरे इस काम से बदल जाए तो मेरे लिए वह दिन सार्थक हो जाता है।”

वे हमें भी अपनी संस्था का पर्चा देते हैं और इसका प्रचार करने के लिए कहते हैं। फिर वे अपने साथियों को व्हील चेयर को ऊँचा उठाने की ट्रेनिंग देने में जुट जाते हैं, ताकि रास्ते में कोई बाधा आए तो वे उसे पार कर सकें।

 

शैलेश से बात करने के लिए आप उन्हें 095760 18055 पर कॉल कर सकते हैं!

संपादन – मनोज झा


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