साठ बर्षो से जल, जंगल और जमीन बचाने की मुहीम चला रहा है झारखंड का ये वाटरमैन !

बीते 60 वर्ष से सिमोन की जिंदगी में कुछ भी नहीं बदला लेकिन हजारों गांव वालों की जिंदगी में बदलाव लाने का श्रेय इस शख्स को जाता है। 84 साल की उम्र में भी सिमोन ऊरांव सुबह साढ़े चार बजे उठकर खेत और जंगल की ओर निकल पड़ते है, कई तरह की मुसीबतों का सामना कर सिमोन ने अपने गांव के पास सालों पहले पौधारोपण किया था , जो आज जंगल का रूप ले चुके है और रोजाना सुबह उठकर वो इन पेड़ों और पौधो की एक झलक लेने निकल जाते है।

बीते 60 वर्षो से सिमोन की जिंदगी में कुछ भी नहीं बदला लेकिन हजारों गांव वालों की जिंदगीयों में बदलाव लाने का श्रेय इस शख्स को जाता है। 84 साल की उम्र में भी सिमोन ऊरांव सुबह साढ़े चार बजे उठकर खेत और जंगल की ओर निकल पड़ते है, कई तरह की मुसीबतों का सामना कर सिमोन ने अपने गांव के पास सालों पहले पौधारोपण किया था , जो आज जंगल का रूप ले चुके है और रोजाना सुबह उठकर वो इन पेड़ों और पौधो की एक झलक लेने निकल जाते है।

रांची के बेड़ो प्रखण्ड के खक्सी टोली गांव के निवासी सिमोन ऊरांव अपने इलाके में बाबा के नाम से लोकप्रिय है, वहीं मीडिया के बीच में वो वाटरमैन के नाम से जाने जाते है।

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बेड़ो के इस बाबा ने हजारों परिवारों की जिंदगी खुशियों से भर दी है और इन खुशियों को इन परिवारों तक पहुंचाने के लिए इन इलाकों में गांव के आम लोगों को जोड़कर भारी तादाद में कुआं व तालाब निर्माण, जल संचयन एवं वृक्षारोपण ड्राइव चलाया।

गरीबी की वजह से सिमोन अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी नहीं कर सके। बचपन में सिमोन गरीबी व अपने घर वालों व गांव वालों की रोजी-रोटी की दिक्कतों से परेशान रहते। वे हमेशा किसी ऐसे उपाय के बारे में सोचा करते, जिससे उनके घर वालों व गांवों वालों की तकलीफ दूर हो और लोगों को भर-पेट खाना मिले और वे आर्थिक उन्नति कर सकें। जब सिमोन युवा हुए तो उस समय देश को नयी-नयी आजादी मिली थी, अंग्रेज़ चले गये और अपनों का शासन आया। परन्तु अपनों के शासन में हालात बहुत नहीं बदले।

गांव के जंगल पर वन विभाग ने दावा कर दिया, ठेकेदार को वन कटाई के ठेके दिये जाने लगे और यह तर्क दिया गया कि जब पुराने पेड़ कटेंगे तो उसकी जगह नये पौधे जन्म लेंगे। लकड़ी तस्करों की जैसे बाछे खिल गई, उनके गांव के आस-पास के जंगल साफ होने लगे, बड़े –बड़े ट्रक उनके गांव में आने लगे। सिमोन उरांव को यह बात नहीं जंची, उनका स्पष्ट मानना था कि गांव के जंगल पर गांव के लोगों का अधिकार है, उन्होंने ग्रामीणों के समर्थन के साथ एलान किया कि वे लोग इस कानून को नहीं मानेंगे. जमीन पर गांव वालों का अधिकार है। बरखा, पानी, जंगल-झाड़ भगवान देते हैं। तीर-धनुष लेकर भी उन्होंने जंगल की कटाई का विरोध किया। सिमोन की अगुवाई में एक गांव से शुरू हुए इस विरोध में लोग जुड़ते चले गए और अंत में जंगल तस्करों को मुंह की खानी पड़ी।

टीबीआई से बात करते हुए पद्ममश्री के लिए चयनित सिमोन ने बताया कि, “गांव के लोगों को संगठित कर मैने वन रक्षा और जल संचयन के मिशन को सफल बनाया है।”

सिमोन पुराने दिनों को याद करते हुए शांत हो जाते है। उन्होंने  ने बताया कि शुरूआती दिनों में वन रक्षा के लिए हरिहरपुर के जामटोली, खक्सी टोली, बैरटोली के ग्रामीणों को इकट्ठा किया. इन तीन टोलियों के लोग एक साथ बैठे।

सिमोन ने लोगों को समझाया कि लकड़ी तस्कर इस जंगल को बरबाद कर देंगे। इस बैठक में आसपास के गांवों के 10-10 लोगों को तैयार किया और उन्हें जंगल रक्षा की जिम्मेदारी दी। रक्षा करने वालों को 20 पैला सालाना चावल देने का फैसला लिया गया, जलावन के लिए, घर बनाने के लिए लकड़ी की कटाई पर 50 पैसे का शुल्क तय किया गया। अब वह शुल्क बढ़ा कर दो रुपये कर दिया गया है। सालों से आज भी हर हफ्ते गुरुवार को सुबह छह बजे गांव में बैठक होती है, जिसमें वन रक्षा, जल संचय सहित कई दूसरे विषयों पर चर्चा होती है।

सिमोन बाबा ने गांव वालों के लिए नियम बनाया है कि एक पेड़ काटो तो दस पेड़ लगाओ।

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सिमोन बताते है कि तालाब और बांध बनाने का काम 1955 से 1970 तक जोरदार तरीके से किया।लेकिन शुरूआती समय में पानी के तेज बहाव से बांध टूट जाते थे, खासकर मानसून के समय में बारिश बांध को साथ में ले जाती थी, ऐसे समय में सिमोन और गांव के लोगों का साथ देने जल संसाधन विभाग आगे आया और बांध को साइज और ठोस कंक्रीट करने में मदद की। इसके बाद सिमोन ने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा। जल संचयन के लिए सैकड़ों बांध बनाये और सभी तालाबों को डैम से जोड़कर जलाशय का निर्माण कर डाला, जिससे आज भी बेड़ों के 51 गांवो में पानी की सप्लाई की जाती है , जो झारखंड के किसी भी गांव के लिए एक दूर का सपना है।

टीबीआई से बात करते हुए सिमोन खुशी जाहिर करते हुए कहते है कि, “हम लोगों ने जंगलों को बचाने और संवारने के लिए बहुत मेहनत की है, ये जंगल के भगवान की मेहरबानी है कि बेड़ों के 1600 परिवार के लोग, 2100 एकड़ जमीन पर तीन तरह के मौसमी फसल उपजा रहे है। इससे एक ओर जहां पलायन रूका है वहीं दूसरी तरफ बड़े शहरों में हम सब्जियों की सप्लाई कर रहे है।”

करीब 25000 मैट्रीक टन सब्जियों की सप्लाई यहां से होती है। इन 51 गांवों में सिमोन भगवान की तरह पूजे जाते है। गांव के आस-पास जंगल, जल और जमीन तीनों प्राकृतिक सौंदर्य को बनाए हुए है और यह सब संभव हो पाया है सिर्फ जल संरक्षण और जंगल बचाने के मिशन को सफल बनाकर।

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पद्मश्री के लिये चयन होने की बात पर सिमोन बाबा ने बताया कि उन्हे इस बात की खबर एक मीडिया के मित्र से मिली थी।

सिमोन कहते है, “मैने जो कुछ भी किया गांव के लोगों के साथ की वजह से कर पाया इसलिए इस सम्मान के हकदार गांव के लोग है।”

सादा जीवन, उच्च विचार के कथन को चरितार्थ करते हुए सिमोन आज भी जल संरक्षण और जंगल बचाने के लिए प्रयासरत है। आज भी वो अकेले जंगलों के चक्कर काटते है और नए पौधों की देख-रेख करते है।

सीमोन कहते है, “हर साल कम से कम 1000 पेड़ लगाना मेरा का मिशन है और मैं जब तक जिंदा रहूँगा पेड़ लगाता रहूँगा। वृक्ष हमें जीवन देते है और ये हमारा काम है कि हम उनकी रक्षा करें।”

सिमोन की सादगी और कर्मठता ने ये साबित कर दिया है कि अगर आप में कुछ कर गुजरने का इरादा हो तो कुछ भी मुश्किल नहीं है। सिमोन को पद्मश्री के लिए नामित किया गया है वहीं ग्रामीण विकास विभाग , झारखंड सरकार ने सिमोन को जल-छाजन मिशन का ब्रांड एंबेसडर नियुक्त किया है। झारखंड के नायक सिमोन बाबा को टीबीआई का सलाम !

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