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भोपाल: झुग्गी-झुग्गी जाकर मनाया बच्चों को; आज 500 से अधिक बच्चों को भेज चुकी है स्कूल!

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल निवासी माही का बस एक ही लक्ष्य है कि हर बच्चा शिक्षित हो और इसके लिए वह हर संभव प्रयास कर रहीं हैं। युवाओं की प्रेरणास्रोत बन चुकीं माही को कई मंचों पर पुरस्कृत किया जा चुका है।

ई बार आपने किसी गली-मोहल्ले से गुजरते हुए मजदूरी करते, नशे में डूबे या भीख मांगते हुए बच्चों को देखा होगा, लेकिन क्या आपने कभी उनका भविष्य संवारने के बारे में सोचा? सोचा भी तो क्या उसके लिए कोई कदम उठाया? इस सवाल का जवाब हममें से अधिकांश लोगों के पास नहीं होगा, और यदि होगा भी तो वो ‘ना’ होगा। लेकिन माही भजनी की डिक्शनरी में ‘ना’ जैसा कोई शब्द नहीं है। माही ने न केवल ऐसे अनगिनत बच्चों का भविष्य संवारने के बारे में सोचा, बल्कि अपनी सोच को मूर्तरूप भी दिया। माही के प्रयासों के चलते अब तक 500 से ज्यादा गरीब बच्चे स्कूल जाने लगे हैं। इसके अलावा 70 के आसपास बच्चे ऐसे हैं, जो पूरी तरह से नशे के चंगुल में फंसकर अपना बचपन और भविष्य दोनों बर्बाद करने की ओर बढ़ रहे थे, मगर अब उन्हें सही राह मिल गई है।

 

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल निवासी माही का बस एक ही लक्ष्य है कि हर बच्चा शिक्षित हो और इसके लिए वह हर संभव प्रयास कर रहीं हैं।

माही भजनी बच्चों के साथ

शुरुआत में कई सालों तक माही ने अकेले ही सबकुछ संभाला। फिर चाहे वह झुग्गी-बस्तियों में जाकर वहां रहने वालों को बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करना हो या उनकी शिक्षा की व्यवस्था करना। लेकिन माही शिक्षा की अलख को सीमित करना नहीं चाहती थीं, और वो यह भी जानती थीं कि अकेले वह हर जगह नहीं हो सकतीं। इसलिए 2011 में उन्होंने एक जैसी सोच वाले कुछ साथियों के साथ मिलकर अनुनय एजुकेशन एवं वेलफेयर सोसाइटी बनाई। यह सोसाइटी भोपाल और आस-पास के कई इलाकों में काम कर रही है। कुछ वक़्त पहले ही संस्था ने भोपाल के कोलार में एक सेतु सेंटर शुरू किया है। यह राजधानी में पांचवा सेंटर है, जहां बच्चों को सुनहरे भविष्य के लिए तैयार किया जाता है। अलग-अलग उम्र के गरीब और बेसहारा बच्चे यहां से शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। जिनमें से कुछ लड़कियां तो ऐसी हैं, जिन्होंने 16 साल की आयु तक भी स्कूल का रुख नहीं किया। कारण, मुफलिसी और माता-पिता का शिक्षित न होना।

    

माही बताती हैं कि शुरू में उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। गरीब-कचरा बीनने वाले बच्चों और उनके परिवार को शिक्षा के लिए तैयार करना आसान नहीं था।

“झुग्गी-बस्तियों में रहने वाले अधिकांश बच्चे ऐसे माहौल में पले-बढ़े होते हैं, जहां शिक्षा से ज्यादा तवज्जो कमाई को दी जाती है। इसलिए या तो वह खुद स्कूल जाना नहीं चाहते, या परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति उन्हें ऐसा नहीं करने देती। ऐसे में बच्चों के साथ-साथ उनके परिवारों को भी यह समझाना कि शिक्षा ही उनका भविष्य बदल सकती है, बहुत मुश्किल होता है,” माही कहती हैं!

 

कई बार माही को असफल होकर भी लौटना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। और यह उनके प्रयासों का ही नतीजा है कि आज वह केवल माही नहीं ‘गरीब बच्चों की माही दीदी’ के नाम से पहचानी जाती हैं।    

बच्चों की ‘माही दीदी’

 

माही भजनी की अनुनय एजुकेशन एवं वेलफेयर सोसाइटी बस्तियों में जाकर लोगों को शिक्षा के प्रति प्रेरित करती है। बच्चों का स्कूल में दाखिला करवाती है, और जो बच्चे पहले से ही स्कूल जा रहे हैं लेकिन पढ़ाई में कमजोर हैं, उनके लिए ट्यूशन की व्यवस्था करती है। इसके अलावा, बच्चों के बेहतर कल के लिए उन्हें स्पोकन इंग्लिश की ट्रेनिंग दी जाती है। हालांकि, बात यहीं ख़त्म नहीं होती, बच्चों की प्रतिभा निखारने के लिए उन्हें डांस, सिंगिंग और पेंटिंग जैसी गतिविधियों में भी शामिल किया जाता है।

माही कहती हैं, “कई बार बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ दूसरी गतिविधियों में भी काफी अच्छा करते हैं, लेकिन उनकी प्रतिभा सामने नहीं आ पाती। हमारी कोशिश है कि हम उन्हें साक्षर बनायें और उनकी छिपी प्रतिभा को दुनिया के समक्ष पेश करें। वैसे भी जब बच्चों को पढ़ने के साथ-साथ अपनी पसंद का कुछ करने का अवसर मिलता है, तो पढ़ाई में भी उनकी रुचि बनी रहती है।”       

 

माही के पास पत्रकारिता की डिग्री है, यदि वह चाहतीं तो किसी बड़े मीडिया हाउस में बड़ी पोजीशन हासिल कर सकती थीं, लेकिन उन्होंने घूम-घूमकर शिक्षा की अलख जगाने का कठिन काम चुना।

भोपाल की झुग्गी बस्ती में गरीब बच्चों के साथ माही भजनी

 

ऐसे में यह सवाल लाज़मी हो जाता है कि इसके पीछे क्या वजह रही?

इसके जवाब में माही कहती हैं, “बचपन में जब मैं स्कूल जाती थी, तो गरीब बच्चों को देखकर अपनी माँ से पूछती थी कि ये बच्चे मेरी तरह स्कूल क्यों नहीं जाते? धीरे-धीरे जब बड़ी हुई तो इसकी वजह समझ आई और तभी मैंने ठान लिया था कि मुझे ऐसे बच्चों के लिए कुछ करना है।” 

वैसे तो माही शुरुआत से अपने स्तर पर बच्चों की शिक्षा के लिए कुछ न कुछ कर रहीं थीं, लेकिन उनके जीवन में टर्निंग पॉइंट शादी के बाद आया। जवाहर चौक इलाके में जहां माही पहले रहती थीं, वहां से कुछ ही दूरी पर एक खाली ज़मीन थी जहां कुछ विस्थापित परिवारों ने डेरा डाला हुआ था। माही जब सुबह अपने बच्चे को स्कूल जाने के लिए तैयार करतीं, तो उनकी नज़र कचरा बीनते, परिवार का पेट पालने के लिए करतब दिखाते गरीब बच्चों पर पड़ती। हर रोज़ का यह दृश्य माही को विचलित कर देता, तभी उन्हें लगा कि अब अपने छोटे-छोटे प्रयासों को बड़े स्तर पर ले जाने का समय आ गया है।

 

माही और उनकी संस्था के लिए सबसे ख़ुशी की बात यह है कि कुछ बच्चे अपनी क्लास में पिछले कई सालों से लगातार टॉप कर रहे हैं।

 

माही कहती हैं, “अपनी मेहनत को रंग लाते देखने से बड़ी ख़ुशी और क्या हो सकती है। शुरुआत में आस-पड़ोसी और पहचान वाले मुझसे कहा करते थे कि क्यों इन बच्चों पर अपना समय बर्बाद कर रही हो, ये नहीं बदलने वाले। भिखारी हैं और भिखारी ही रहेंगे, लेकिन आज इन बच्चों ने सबको गलत साबित कर दिखाया है। कुछ बच्चों के मार्क्स आपको हैरान कर देंगे, कोई अपनी क्लास में 96 तो कोई 98% लेकर आया है।’

इस तरह के अभियानों में सबसे बड़ी समस्या फंड जुटाने की होती है और अनुनय एजुकेशन एवं वेलफेयर सोसाइटी को भी इससे दो चार होना पड़ रहा है। माही बताती हैं कि संस्था के अस्तित्व में आने से पहले वह अपने स्तर पर फंड जुटाती थीं। कुछ अपनी जेब से और कुछ दोस्तों की मदद से, इस तरह काम चल रहा था, लेकिन बच्चे बढ़ने के साथ-साथ खर्चे भी बढ़ने लगे। तब रोटरी और लॉयन्स क्लब जैसी संस्थाएं और कुछ डोनर साथ जुड़े। हालांकि, अभी भी अनुनय एजुकेशन एवं वेलफेयर सोसाइटी को फंड की ज़रूरत रहती है। माही के मुताबिक, सेंटर किराये के मकान में संचालित होते हैं, लिहाजा उनका किराया, टीचर की सैलरी के अलावा भी कई खर्चे हैं, जिन्हें उपलब्ध फंड में कर पाना मुश्किल हो जाता है।

 

माही भजनी को अपने सामाजिक कार्य के लिए कई अलग-अलग मंचों पर पुरस्कृत किया जा चुका है। कुछ वक़्त पहले उन्हें जयपुर में इंटरनेशनल वुमन ऑफ़ द फ्यूचर अवार्ड से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा भोपालरत्न, स्टेट यूथ अवार्ड और राष्ट्रीय महिला सम्मान सहित कई सम्मानों से उन्हें नवाजा गया है।

 

‘द बेटर इंडिया’ के माध्यम से माही भजनी लोगों से यह अपील करना चाहती हैं कि सड़कों पर सामान बेचते, भीख मांगते बच्चों को डांट-फटकारने के बजाये उनसे प्यार से बात करें। उनसे पूछें कि क्या वे स्कूल जाते हैं? उन्हें समझाएं कि स्कूल क्यों जाना चाहिए। यदि दिन में तीन-चार बच्चा स्कूल का जिक्र सुनेगा, तो कभी न कभी उसके मन में स्कूल जाने की इच्छा ज़रूर जागेगी और वह इस दिशा में प्रयास करना शुरू करेगा। आख़िरकार प्रयास ही सफल होते हैं।

 

यदि आप माही के इस अभियान से जुड़ना चाहते हैं, तो वॉलंटियर के रूप में उनका साथ दे सकते हैं या फिर निचे दिए माध्यमों से अनुनय एजुकेशन एवं वेलफेयर सोसाइटी की सहायता कर सकते हैं।

फेसबुक पेज

Address: Setu center, lila parishar, near danish kunj Square, Kolar Rd, Bhopal, Madhya Pradesh 462042

Mahi Bhajni Mobile: 8878070663

Email: mahibhajni@gmail.com

 


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