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बिल क्लिंटन भी देखते रह गये, कुछ ऐसा है इस मूर्तिकार का जादू!

अब तक वे इस कला में 10,000 से अधिक शिष्यों को तैयार कर चुके हैं।

7 अप्रैल, 2010 को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील ने मूर्ति कला के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए अर्जुन प्रजापति को देश के चौथे नागरिक अलंकरण सम्मान ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया। वे आज देश-दुनिया के लोकप्रिय मूर्तिकारों में शुमार किए जाते हैं, पर विनम्रता में उनका कोई सानी नहीं।

‛द बेटर इंडिया’ से बात करते अर्जुन प्रजापति कहते हैं, “इस मुकाम तक पहुँचने के लिए मैं अपने गुरुजनों का आभारी हूँ, जिनसे मुझे लगातार  सीखने को मिला। छेनी-हथौड़ी से पत्थर पर पहली चोट से लेकर आज तक की गौरवमय यात्रा के लिए मैं अपने गुरुजनों स्वर्गीय महेन्द्रदासजी, स्वर्गीय द्वारका प्रसादजी शर्मा और आन्नदीलालजी वर्मा के योगदान को कभी नहीं भुला सकता।”

9 अप्रैल, 1957 को बालचन्दजी के घर जन्मे अर्जुन का 1972 में मूर्ति कला के प्रति प्रेम जागा। उनका बचपन जयपुर के परम्परागत मूर्ति मोहल्ले में बीता, जो खजाने वालों के रास्ते में है।

अर्जुन प्रजापति

वे बताते हैं, “मैं पारम्परिक कला का पक्षधर हूँ, वैसे आधुनिक और अत्याधुनिक कला में हाथ आजमाने से भी मुझे गुरेज नहीं है। मैं खुद को ‘ऑल राउंडर’ कहना ज्यादा पसंद करता हूँ। मैं मार्बल, टेराकोटा, ब्रॉन्ज, प्लास्टर ऑफ पेरिस और फाइबर ग्लास में भी मूर्तियाँ बनाता हूँ।”

परंपरागत बणी-ठणी में किया मोडिफिकेशन

उन्होंने परम्परागत कला ‘बणी-ठणी’ को नया रूप प्रदान किया, जो देखने वालों के दिलों को भा गया। यह कला ‛अर्जुन की बणी-ठणी’ कहलाई। उन्होंने इस मूर्ति कला के ज़रिए नारी के आकर्षक चेहरे, वक्षों और सुडौल शरीर में जिस सजीवता के साथ जान फूँकने की कारीगरी दिखलाई, वह कला समीक्षकों की नजर में इनकी कला साधना का उल्लेखनीय पहलू है। इन्होंने नारी के सौन्दर्य को उसकी संपूर्णता में उभारा।

कहलाते हैं क्लोनिंग के महारथी

वे भारत के पहले ऐसे मूर्तिकार हैं जो मात्र 20 मिनट में किसी को भी अपने सामने बैठाकर उसका क्लोन तैयार कर देते हैं। इसी कला के चलते उन्हें ‘क्लोनिंग के महारथी’ के खिताब से नवाज़ा गया। वे खेल, कला जगत और सिनेमा से जुड़ी हजारों हस्तियों सहित ब्रिटेन के प्रिंस चार्ल्स, मॉरिशस के सर नवीन चन्द्र रामगुलाम, अभिनेत्री मनीषा कोइराला, उद्घोषक पद्मश्री जसदेव सिंह, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन, पद्मश्री पण्डित विश्वमोहन भट्ट आदि के क्लोन बना चुके हैं।

क्लोनिंग से जुड़ी एक याद को साझा करते हुए वे बताते हैं, “जब अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन का क्लोन मात्र 20 मिनट में बनाकर दिखाया तो उन्होंने बदले में 20 मिनट तक माटी से सने मेरे हाथों को अपने हाथों में थामे रखा। उन्होंने पूछा कि अर्जुन इन उंगलियों में आखिर क्या खास है। इतना ही नहीं, उन्होंने तो मुझे ‘मूर्तिकला का जादूगर’ का खिताब देकर भी सम्मानित किया।”

वे अब भारत रत्न लता मंगेशकर, बल्ले के जादूगर सचिन तेंदुलकर सहित कई दिग्गज हस्तियों के सामने अपने इस क्लोनिंग आर्ट का हुनर दिखाने को बेताब हैं।

बनाया है मूर्तिकला संग्रहालय, नाम दिया ‘माटी मानस’

2004-05 के दौरान उन्हें एक दिन ऐसे ही बैठे-बैठे ख्याल आया कि क्यों न एक ऐसी कला दीर्घा (आर्ट गैलरी) बनाई जाए, जिसमें देश और राज्य का श्रेष्ठतम कला शिल्प संजोया जा सके। 2008 में ‘माटी मानस’ नाम की इस कला दीर्घा की नींव का पहला पत्थर भैरोंसिह शेखावत ने अपने हाथों से रखा। माटी मानस राजस्थान का पहला मूर्ति शिल्प संग्रहालय है, जो लगभग सवा बीघा भूमि में जयपुर-दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग (नेशनल हाईवे नंबर 8, चिमनपुरा, आमेर) पर मूर्त रूप ले चुका है।

बिग बी ने भी सराहा
उनके हाथों में जादू है

संग्रहालय में देश के कई शीर्ष कलाकारों की कलाकृतियां शामिल हैं। सूरजनारायण चौहान, पद्मश्री रामगोपाल विजयवर्गीय, कृपालसिंह शेखावत, महेन्द्रदास, द्वारका प्रसाद शर्मा, वेद प्रकाश बन्नू, महावीर स्वामी, नाथूलाल वर्मा, विद्यासागर उपाध्याय, शिवकुमार चौगान, भूरसिंह, सत्यपाल वर्मा, खेतांची, समन्दरसिंह शेखावत, सुखदेव मुनि और कुमारी चन्द्रा व्यास के कलाशिल्प यहाँ की शोभा बढ़ा रहे हैं।

10,000 से ज्यादा लोगों को सिखलाई यह कला

वे कहते हैं, “इस कला के व्यापक प्रचार-प्रसार के प्रति मेरा रवैया जरा भी व्यावसायिक नहीं रहा। कोई 20 साल पहले मैंने जयपुर में एक गैर व्यावसायिक संस्थान की स्थापना ‘मूर्ति उद्योग प्रशिक्षण केन्द्र’ के नाम से की, जहाँ मूर्ति कला की बारीकियाँ सिखलाई जाती हैं। अब तक इस संस्थान ने 10,000 से भी ज्यादा दक्ष मूर्तिकार देश को दिए हैं।’’

अपनी हर उपलब्धि को अपने गुरुजनों का आशीर्वाद मानने वाले अर्जुन को 1983, 1984, 1990 में राजस्थान ललित कला अकादमी द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। 1994 में ‘राष्ट्रीय कालिदास सम्मान’ भी उन्हें मिल चुका है। 1998 में उदयपुर के महाराणा मेवाड़ फाउण्डेशन द्वारा भी उन्हें सम्मानित किया गया। फॉरहेक्स का अति प्रतिष्ठित  ‘क्राफ्ट सीजन-2010’ पुरस्कार भी इन्हें मिला। 2002-03 में ही राष्ट्रीय दक्षता प्रमाण पत्र के लिए इन्हें चुन लिया गया, तो 2004 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे कलाम ने इन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया।

कलाम जी द्वारा सम्मानित
मिला है पद्मश्री भी

देश के कई कला संग्रहालयों, होटलों, कला दीर्घाओं व प्रतिष्ठित चौराहों पर आप अर्जुन की मूर्ति कला के नमूने देख सकते हैं। रॉयल अल्बर्ट पैलेस, लंदन और यूएसए की इंडियन कल्चरल सोसाइटी में भी इनका मूर्ति शिल्प संजोया जा चुका है।

वे कहते हैं, “मेरे काम के कद्रदानों की लंबी सूची है। कुछ प्रमुख नाम हैं बिल क्लिंटन, प्रिंस चार्ल्स, मॉरिशस के सर रामगुलाम, पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम, डॉ. शंकर दयाल शर्मा, ज्ञानी जैलसिंह, डॉ. केआर नारायणन्, पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर, इन्द्रकुमार गुजराल, प्रतिभा पाटील, मनमोहन सिंह, मदनलाल खुराना, एनसी जैन, बलराम भगत, एसके सिंह, जगदीश टाइटलर, रामनिवास मिर्धा, लता मंगेशकर, अमिताभ बच्चन, जगजीत सिंह, पण्डित जसराज, श्रीश्री रविशंकर, मोरारी बापू, राहुल द्रविड़, नवजोत सिंह सिद्धू, सोनिया गांधी, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, प्रभा राव, वसुन्धरा राजे, महाराजा करणसिंह आदि ने मेरा कला शिल्प और आर्ट गैलरी देखा तो मेरी कला के प्रशंसक बन बैठे।’’

संपादन – मनोज झा


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