आई आई टी खडगपुर के छात्रों ने बनायी, विकलांगो की सहूलियत के लिए बिना ड्राईवर की बाइक!

जो लोग विकलांग होने के कारण स्टीयरिंग या पेडल नहीं चला सकते, उनके लिए साइकिल स्टेशन बनाने के लिए और वातावरण के मसलों को सुलझाने के लिए आई आई टी खड़गपुर के छात्रों ने बिना ड्राईवर की बाइक बनाई है। आइये इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।

जो लोग विकलांग होने के कारण स्टीयरिंग या पेडल नहीं चला सकते, उनके लिए साइकिल स्टेशन बनाने के लिए और वातावरण के मसलों को सुलझाने के लिए आई आई टी  खड़गपुर के छात्रों ने बिना ड्राईवर की बाइक बनाई है। आइये इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।

“हमने कुछ विभिन्न क्षमता वाले लोगों को देखा जो साइकिल तो चला सकते थे पर उन्हें पार्किंग स्पेस से अपनी बाइक निकालने में काफी दिक्कत आती थी, क्यूंकि ऐसी जगहें उनके हिसाब से नहीं बनी होती। इस समस्या को सुलझाने के लिए हमने एक बाइक बनाई जो वायरलेस पद्धति से नियंत्रित होती है –आयुष जो आई आई टी खड़गपुर में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में चौथे वर्ष के छात्र है कहते हैं।

उन्होंने एक अनोखी, विकलांगो के लिए सहायक बाइक बनाई जो किसी लोकेशन भी की तरफ अपने आप आ जाती है।

आयुष पाण्डेय और शुभमय महाजन के दिमाग की उपज इस आई- बाइक का स्टीयरिंग, ब्रेक, संतुलन सबकुछ आटोमेटिक है।

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इस बाइक को इसकी दोहरी गति तकनीक के कारण  अपनी मर्ज़ी के हिसाब से भी चलाया जा सकता है इसमें आई बाइक के लिए निर्मित एक एंड्राइड एप्प है। यह साइकिल जीपीएस का इस्तेमाल करती है और उसके हिसाब से एसएम्एस में आये दिशा निर्देश के हिसाब से चलती है। रास्ते  में आने वाली रुकावटों से बचने के लिए इस बाइक में लेज़र और सोनर तकनीक उपलब्ध है। इसकी सॉफ्टवेयर बनावट सस्ती और अनूठी है जिस से ये साइकिल के लिए बने रास्तों को चिन्हित करके उन पर चल सकती है और सभी रुकावटों से बाख सकती है। ऐसे रास्ते उन देशों में उपलब्ध है, जहाँ साइकिल सेंटर बने हुए हैं। यह साइकिल वायरलेस मोबाइल नेटवर्क के संपर्क में रहती है जिसके कारण इसका वायरलेस कण्ट्रोल उपलब्ध है और इसे लाइव ट्रैक भी किया जा सकता है

जैसे की अगर किसी ऐसे व्यक्ति को ये आई बाइक इस्तेमाल करना है जिसके हाथ कटे हुए हैं तो उसे बस इतना करना होगा कि उसे एंड्राइ एप जिसमे एक आप्शन है- “call the bike to my location”  से इस बाइक को एक एसएम्एस भेजना होगा। जीपीएस लोकेशन एक ऐसे सर्वर पर सुरक्षित होगी जिसके सेंसर बाइक पर लगे होंगे। लोकेशन मिलते ही ये बाइक अपने आप गंतव्य स्थान की और चल पड़ेगी। फिट बाइक-सवार एक नया गंतव्य स्थान एप में डाल कर आटोमेटिक स्टीयरिंग की मदद से उस स्थान तक पहुच सकता है।

इस प्रोजेक्ट पर एक साल तक काम करने के बाद आयुष और शुभमय की इस बाइक में पार्किंग के अलावा भी कई सुविधाएं दी जा सकती हैं जो विकलांगों के लिए सहायक होंगी।

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“हमें लगा कि यह उन साइकिल स्टेशनों में भी उपयोगी होगी जो कि दुनिया भर के कई विकसित शहरों में चलते हैं और जिनके लिए भारत में भी योजना बनाई जा रही है। इस तरह की व्यवस्था में, आप एक स्टेशन से एक साइकिल लेते हैं, उसे चलाते हैं  और फिर एक दुसरे स्टेशन पर छोड़ देते हैं। हर बार साइकिल को छोड़ने के लये आपको एक स्टेशन ढूंढना होगा और ऐसे स्टेशन बनाने के लिए सरकार को काफी  पैसे खर्च करने होंगे। लेकिन अगर साइकिल आटोमेटिक है, तो घर पहुँचने के बाद  उपयोगकर्ता द्वारा इसे स्टेशन के लिए वापस भेजा जा सकता है। इस तरह, हम पूरी तरह से बाइक साझा प्रणाली को बदल सकते हैं “, आयुष कहते हैं।

आई – बाइक टीम में आईआईटी खड़गपुर के विभिन्न विभागों के १३ स्नातक छात्र शामिल हैं। आयुष और शुभमय ने अक्टूबर २०१४  में इस परियोजना को शुरू किया था तब से इसने विभिन्न छात्र प्रतियोगिताओं में कई पुरस्कार जीते है।

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केपीआईटी टेक्नोलॉजीज द्वारा आयोजित हाल ही में संपन्न राष्ट्रव्यापी नवाचार चुनौती में , आई- बाइक को प्रथम पुरस्कार मिला और ५  लाख की पुरस्कार राशि के साथ सम्मानित किया गया।

प्रतियोगिता का विषय ‘ऊर्जा और परिवहन के लिए स्मार्ट समाधान’ था और  आई बाइक ने १७०० अन्य विचारों के बीच में ये पुरस्कार जीता। टीम वर्तमान में उत्पाद डिजाइन के लिए एक पेटेंट हासिल करने में लगी  है

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“इस में सबसे अच्छी बात यह है कि यह केवल बाहरी संशोधनों के साथ एक सामान्य साइकिल है। सभी संशोधन प्रतिवर्ती  हैं और यह केवल एक स्विच द्वारा एक सामान्य बाइक के रूप में कार्य कर सकता  हैं। इसलिए कोई भी कॉल करने के बाद इसका इस्तेमाल अपनी ज़रूरत के हिसाब से कर सकता है। ऐसा कोई डिजाइन दुनिया में मौजूद नहीं  है “, आयुष कहते हैं।

इस बाइक का स्टीयरिंग एक अलग तरीके के गियर से चलता है जिसमे एक लैक के द्वारा मानव-चलित और आटोमेटिक मोड दोनों उपलब्ध हैं।

संतुलन बनाये रखने के लिए इसमें विशेष प्रकार के ट्रेनर पहिये लगे हैं जिन्हें स्विच की सहयता से समेटा  भी जा सकता है।

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आई- बाइक के साथ ये टीम कई शहरो की आखरी पड़ाव तक यातायात साधन की समस्या भी सुलझा देगी। यह साइकिल मुख्य रूप से विकलांगो के लिए है जैसे कि ऐम्प्युटी या दृष्टिहीन पर ये उन लोगों के लिए भी उपयोगी है जो लोकल मेट्रो , ट्रेन और बसों से उतरने के बाद यातायात के सस्ते साधन ढूँढने के लिए संघर्ष करते हैं।

यह टीम  पेटेंट हासिल करने के बाद कंपनियों के साथ मिल कर पुरे देश में साइकिल केंद्र स्थापित करना चाहता हैं।

आयुष से संपर्क करने के लिए आप उन्हें ayush.9.pandey@gmail.com पर ईमेल कर सकते है।

मूल लेख तान्या सिंह द्वारा लिखित।

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