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शिक्षक के बगैर विद्यालय; क्यूंकि यहाँ खुद सीखते है बच्चे !

ज़रा सोचिये एक ऐसे नवयुवक के बारे में, जिसने शहर की आराम भरी ज़िन्दगी छोड़, गाँव की और रुख करने का सोचा। क्या किया होगा उसने वहां? मिलते हैं अभिजित सिन्हा से, जिसने एक स्कूल की शुरुआत की, एक ऐसा स्कूल जिसमे टीचर की आवश्यकता ही न हो।

रा सोचिये एक ऐसे नवयुवक के बारे में, जिसने शहर की आराम भरी ज़िन्दगी छोड़, गाँव की और रुख करने का सोचा। क्या किया होगा उसने वहां? मिलते हैं अभिजित सिन्हा से, जिसने एक स्कूल की शुरुआत की, एक ऐसा स्कूल जिसमे टीचर की आवश्यकता ही न हो।

अभिजित बताते हैं, “मैं एक आईटी कंपनी के साथ काम कर रहा था जब मुझे यह एहसास हुआ कि यह काम मुझे वह संतुष्टि नहीं दे पा रहा जो मुझे चाहिए थी। इसी दौरान मेरा संपर्क जागा नाम की एक स्वयंसेवी संस्था से हुआ जो एक प्रोजेक्ट के लिए बंगलुरु  के पास के गाँव बन्जरापलाया  जा रही थी। मैं भी उनके साथ हो लिया। और इसी तरह DEFY ( Design Education For Yourself) की शुरुआत हुई।”

इस संस्था ने अभिजित को शुरुआत करने के लिए  एक रूम और दो कंप्यूटर दिए। धीरे धीरे, गाँव के बच्चो का भी आना शुरू हो गया और वे खुद ही कंप्यूटर सीखने लगे। उन्होंने उसपर गेम खेलने का तरीका भी खुद ही खोज निकाला।

वे बताते हैं, ” जब मैंने ये देखा तो मुझे महसूस हुआ कि कंप्यूटर पर गेम खेलने से शायद ही इन बच्चो को कुछ फायदा मिले। तब मैंने इन्हें कुछ नया सीखने को प्रोत्साहित किया और इनका परिचय इन्टरनेट की दुनिया से करवाया। “

इन बच्चो ने छोटे छोटे प्रोजेक्ट लेना आरम्भ किया। उन्होंने नयी चीज़े बनाना, सवाल हल करना और ऑनलाइन सवालो के हल ढूंढना शुरू किया।

अभिजित की कोशिश रंग लाने लगी।

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अब अभिजित के पास सिर्फ छोटे बच्चे ही नहीं, ऐसे किशोर वर्ग के बच्चे भी आने लगे जिन्हें किसी  कारणवश अपनी पढाई छोडनी पड़ गयी थी और कुछ ऐसे व्यस्क भी थे जो कुछ नया सीखना चाहते थे। इन लोगों ने उस जगह आकर, जिसका नाम बन्जरापल्या मेकर्स स्पेस  रख दिया गया, कुछ नया बनाने की कोशिश करने लगे।

मेकर्स स्पेस  में, लोग हर दिन कुछ नया सीख रहे थे। पेंटिंग, विज्ञानं, संगीत, नृत्य, टेक्नोलॉजी.. सभी अपनी इच्छा स्वरुप अपनी जिज्ञासा को शांत करने लगे। इस वर्ग ने खुद ही इस स्थान को इन्टनेट से मार्गदर्शन ले कर एक अलग रूप दिया।

बच्चो ने जो पहली चीज़ बनायीं वो एक सब्जी काटने की मशीन थी जिसे बाल्टी और पुरानी पड़ी चाकुओं की मदद से बनाया गया था।

जब ये लोग कुछ भी नया बनाना चाहते थे तो अभिजित या उसकी टीम उन लोगों को प्रत्यक्ष रूप से मदद न कर उन्हें खुद ही उसका हल इन्टरनेट पर ढूँढने  को प्रोत्साहित करती।

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उदहारण के लिए, गाँव का एक व्यक्ति एक ऐसी नौका बनाना चाहता था जिससे तालाब के प्रदुषण के स्तर का पता चल पाए।

अभिजित बताते हैं, ” उसने गत्ते से ये नाव बनाना आरम्भ किया, तब उसे  महसूस हुआ कि वह डूब जायेगी। अब वह इन्टरनेट की मदद से किसी और सामग्री से नाव बना रहा है ।

अभिजित टीचर मुक्त कक्षा की पुरजोर वकालत करते हैं।

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उन्हें लगता है कि सामान्य स्कूल में बच्चे वैसे भी कुछ ख़ास सीख नहीं पाते। और व्यवहारिक तरीके से पढना निश्चित ही एक बेहतर विकल्प है। प्रोजेक्ट DEFY के अंतर्गत बनने वाले सारे सामान की लागत बहुत कम आती है, क्यूंकि इन्हें ज़्यादातर कबाड़ के सामानों का उपयोग कर बनाया जाता है।

शिक्षा की ओर किये जा रहे इनके प्रयास को काफी सराहना मिली है। प्रोजेक्ट DEFY ने 1600 अन्य शैक्षणिक प्रोग्राम को पिछाड कर अंतर्राष्टीय अवार्ड , ग्लोबल जूनियर चैलेंज’ भी  जीता है।

अभिजित और उसकी टीम अब बल्लारी, नेल्लोर, मात्तेंचेरी और बंगलुरु जैसे जगहों में इस प्रोजेक्ट का विस्तार करने को इच्छुक है।

इसके विस्तार के लिए प्रोजेक्ट DEFY धनराशी इकठ्ठे करने में जुटी है। इनकी इच्छा है कि ये एक ऐसा मोबाइल-ट्रक बनाये जिसके अन्दर एक रचनात्मक जगह हो और उसे कर्नाटक के अन्य गाँव में ले जाना भी आसान हो ।
इस प्रोजेक्ट में मदद करने को इच्छुक व्यक्ति इन्हें इनके पेज BitGiving पर संपर्क कर सकता है।

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