झारखंड: चपरासी का काम करते हुए भी बेटों को बनाया आईएएस, डॉक्टर और इंजिनियर!

यह इस माँ के लिए गर्व का क्षण था जिसने जीवन की हर एक विपत्ति और कठिनाई का सामना करते हुए अपने बच्चों पालन-पोषण किया।

रिटायरमेंट का दिन हर किसी के लिए यादगार होता है। लेकिन झारखंड में रजरप्पा के सेंट्रल कोलफील्ड लिमिटेड टाउनशिप में चपरासी के पद पर काम करने वाली 60 वर्षीय सुमित्रा देवी का विदाई समारोह हर तरह से बहुत ख़ास था!
सुमित्रा की विदाई में उनके सहकर्मी और टाउनशिप के सभी निवासियों के अलावा, उनके तीनों बेटे भी उपस्थित थे। उनके बेटे आज ऊँचे पदों पर कार्यरत हैं- एक जिला कलेक्टर है, तो दूसरा बेटा डॉक्टर और तीसरा बेटा रेलवे इंजिनियर है!

प्रतीकात्मक तस्वीर (स्त्रोत)

यह इस माँ के लिए गर्व का क्षण था, जिसने जीवन की हर एक विपत्ति और कठिनाई का सामना करते हुए अपने बच्चों पालन-पोषण किया। वीरेन्द्र कुमार एक रेलवे इंजिनियर है, धीरेन्द्र कुमार एक डॉक्टर हैं और महेंद्र कुमार बिहार में सिवान के जिला कलेक्टर हैं।

अपने बेटों को अच्छी नौकरी मिलने के बाद भी सुमित्रा देवी ने सीसीएल में ग्रुप चार की यह नौकरी नहीं छोड़ी। इस स्वावलंबी महिला ने 30 साल पहले सीसीएल टाउनशिप की सड़कों की साफ़-सफाई से शुरुआत की थी और वे अंत तक इस काम को करते हुए गर्व के साथ रिटायर होना चाहती थीं।

फाइनेंसियल एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, सुमित्रा के बच्चों ने इस अवसर पर अपनी माँ के बारे में बातें की और वहां मौजूद लोगों के साथ उन यादों को साझा किया जब हर कदम पर सुमित्रा ने उनके लिए त्याग किया था। उन्होंने कभी भी अपने बच्चो के पालन-पोषण में कोई कमी नहीं आने दी।

महेंद्र कुमार ने कहा, “जीवन में कोई भी काम मुश्किल नहीं है। इमानदारी से की हुई कड़ी मेहनत से सब संभव हो जाता है। मेरी माँ और हमने अपने जीवन में मुश्किल समय देखा है पर फिर भी उन्होंने हमें कभी टूटने या निराश नहीं होने दिया। मुझे गर्व है कि हम सब उनकी कड़ी मेहनत और उम्मीदों पर खरे उतर पाए हैं।”

अपने बच्चों के प्यार और सम्मान भरे शब्दों को सुन कर सुमित्रा देवी अपने आंसू रोक नहीं पायी। इंडिया टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार गर्व से भरी इस माँ ने अपने बेटों को वरिष्ठ अधिकारियों से मिलवाते हुए कहा, “साहब, 30 साल तक मैंने इस कॉलोनी की सड़कों की सफाई की है, पर आज मेरे बच्चे आपकी तरह साहब है।”

कवर फोटो: इंडिया टाइम्स

मूल लेख: अदिति पटवर्धन
संपादन: निशा डागर


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