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भारत का पहला आर्ट डिस्ट्रिक्ट, जहाँ की हर दीवार पर सजाई गयी है एक अलग दुनिया!

एक दिवार को तैयार करने में 40 लीटर पेंट सिर्फ बेस कलर के लिए इस्‍तेमाल होता है। इसके बाद आर्टिस्‍ट की थीम और चित्र के हिसाब से बाकी पेंट का इंतजाम किया जाता है।

हर की गलियों और उन गलियों में घरों की दीवारों को भी कला के लिए कैनवास की तरह इस्‍तेमाल किया जा सकता है, इस एक खूबसूरत ख्‍़याल ने पिछले कुछ सालों में देश के तमाम शहरों की शक्‍लो-सूरत को बदल कर रख दिया है। फिर दिल्‍ली कैसे पीछे रह सकती थी। दिल्‍ली की जिस लोधी कॉलोनी की पहचान, अब तक सरकारी अफ़सरों और कर्मचारियों के घरों से होती थी, वह कॉलोनी अब देश की पहली आर्ट डिस्ट्रिक्ट बन कर देश और दुनिया के नक्‍शे पर अपनी अलग जगह बना रही है।

हाल ही में 1 मार्च को St+art India Foundation ने सीपीडब्‍ल्‍यूडी और एशियन पेंट्स के साथ मिलकर देश के पहले पब्लिक आर्ट डिस्ट्रिक्ट – लोधी आर्ट डिस्ट्रिक्ट को जनता को समर्पित किया है।

2015 में शुरू हुए इस सफ़र में लोधी कॉलोनी में पिछले साल (2018) में तकरीबन 30 नई दीवारों पर काम हुआ था। इस साल मार्च के अंत तक स्‍ट्रीट आर्ट फेस्टिवल, 2019 के खत्‍म होने तक 50 नई रंग-बिरंगी दीवारें कुछ और घरों का हिस्‍सा बन चुकी होंगी।

दीवार पर आपकी ज़िंदगी

यहाँ जो सबसे ज्यादा प्रभावित करती है, वह है सिंगापुर के आर्टिस्‍ट यिप येव चौंग की कलाकृति। फाइनेंस की बैकग्राउंड से आने वाले 50 वर्षीय चौंग ने इस दीवार पर शहर की रोजमर्रा की जिंदगी से उठाए चरित्रों को रचा है, जिसमें छज्‍जे पर अखबार पढ़ते सरदार जी, मिठाई की दुकान, गाय, बांसुरी बेचने वाला, दीवारों पर लटके हुए कालीन, नाई की दुकान जैसे आम दृश्‍य शामिल हैं। इस दीवार का हर हिस्‍सा एकदम वास्‍तविक प्रतीत होता है। चौंग की कलाकृतियों की खासियत यह है कि वे देखने वाले को क‍लाकृति का ही हिस्‍सा बन जाने के लिए आमंत्रित करती हैं।

अब देखिए न, इस कलाकृति में सी‍ढ़ी और नाई की दुकान इतनी वास्‍तविक है कि आप खुद इसका हिस्‍सा बनकर तस्‍वीरों में गुम हो जायेंगे।

 

ज़रूरी मुद्दों की बात करती दीवार 

स्‍ट्रीट आर्ट के इन विषयों में पर्यावरण, ट्रांसजेंडर, सांप्रदायिक सौहार्द, महिला सशक्तिकरण, पक्षी, संस्‍कृति, ग्रामीण परिवेश जैसे विषय शामिल हैं। ब्‍लॉक 19 की सुनहरी मछली वाली एक मुराल पिछले वर्षों में हमारे शहरों और नदियों में प्राकृतिक आवासों की भयानक हानि को रेखांकित करती है। इसका कारण प्‍लास्टिक, मानव निर्मित सामग्रियों का जल में प्रवाह और यहां तक कि ‘गोल्‍ड फिश’ जैसी एलियन प्रजातियों के दखल से नदियों की बायो डायवर्सिटी पर बुरा प्रभाव पड़ा है। ये दीवार ख़ास तौर पर दिल्‍ली की यमुना नदी की समस्‍या को उजागर करती नज़र आती है।

 

इस दीवार से ज़रा बचके…

ब्‍लॉक 12 में जर्मन आर्टिस्‍ट बांड द्वारा दीवार पर किया गया थ्री-डी प्रयोग एक तरह का ऑगमेंटेड रियलिटी का खेल है। जिसमें देखने पर लगेगा कि दीवार में से ही कुछ आकृतियां बाहर तक उभरी हुई हैं, लेकिन ऐसा है नहीं। वहां तो केवल एक सपाट दीवार ही है, बस नज़र का धोखा है और इस धोखे में दीवार में मौजूद खिडकियां और दरवाजे सब गुम हुए नज़र आते हैं।

 

 

दो देशों की दो कलाओं का मेल कराती दीवार

कुछ इसी तरह ब्‍लॉक 9 की एक और दीवार अपने चटख रंगों और आकृतियों के कारण दूर से ही देखने वाले को अपनी ओर आकर्षित करती है। आर्टिस्‍ट सेनर एडगर की ये कलाकृति मैक्सिकन और भारतीय संस्‍कृति के समान पहलुओं को प्रदर्शित करती है। सेनर के मुताबिक़ इस चित्र की प्रेरणा उन्‍हें भारतीय दर्शन की उन अवधारणाओं से मिली है, जो मैक्सिको तक पहुंची हैं। आध्‍यात्मिक पथ पर चलते हुए आत्‍म-ज्ञान से ज्ञान प्राप्‍त करने और पुनर्जन्‍म की चाह और आत्‍म-सुधार जैसे विषय इस कृति का हिस्‍सा बन गए हैं। बीच की खाली जगह के एक तरफ स्‍त्री और दूसरी तरफ एक पुरुष का चित्र सृष्टि के संतुलन को प्रदर्शित करते हैं। उनके कपड़े मैक्सिकन और हिंदू परंपराओं की पहचान कराते हैं। सेनर अपनी कलाकृतियों में अक्सर मास्‍क का प्रयोग करते हैं, जो मैक्सिकन सभ्‍यता का अभिन्‍न अंग है, जिसका इस्‍तेमाल पशुओं की आकृति के माध्‍यम से मानव की वास्‍तविक प्रकृति को दर्शाने के लिए किया जाता है।

 

सोशल मीडिया से बचाती दीवार 

तमाम विदेशी कलाकारों के अलावा यहां कुछ भारतीय कलाकारों ने भी अपनी कलाकृतियों के माध्‍यम से अभिन्‍न छाप छोड़ी है। मुंबई के आर्टिस्‍ट समीर कुलावूर की ब्‍लॉक 17 की एक कलाकृति डिजीटल युग को प्रदर्शित करती है। उन्‍होंने इस चित्र में सोशल मीडिया और लोगों पर इसके प्रभाव को मैक्रो और माइक्रो लेवल पर दर्शाया है।

 

एकता की प्रतीक ये दीवार – क्यूंकि वे भी इंसान हैं!

अरावनी आर्ट प्रोजेक्‍ट ने दिल्‍ली की ट्रांसजेंडर कम्‍युनिटी के साथ समन्‍वय में अपनी पहली मुराल यहां ब्‍लॉक 5 में एन पी सीनियर सेकेंडरी स्‍कूल के सामने तैयार की है। एकता की थीम पर तैयार इस मुराल में उन ट्रांसजेंडर महिलाओं को प्रदर्शित करने की कोशिश की गई है, जिनके साथ इस संगठन ने काम किया है। एक दिलचस्‍प बात है कि इस वॉल को तैयार करने में 15 ट्रांसजेंडर महिलाओं ने भी अपना योगदान दिया है।

 

दीवार पर कढ़ाई

आर्टिस्‍ट नेस्पून के एम्‍ब्रॉयडरी पैटर्न हमेशा देखने वाले होते हैं लेकिन इस बार यहां बात कुछ अलग तरह से कही गई है। लोधी कॉलोनी के सेमल के लाल फूलों से प्रेरणा लेकर, ब्‍लैक एंड व्‍हाइट स्‍कैच को इन चटकीले लाल पीले रंगों से इस तरह भरा है, जैसे किसी ने दीवार पर कढ़ाई कर दी हो। इसमें यूरोपियन यूनियन के साथ-साथ ईशा-ए-नूर फाउंडेशन (आगा खां फाउंडेशन की एक पहल) का भी सहयोग नीस्‍पून को मिला है। इस दीवार को अंतरराष्‍ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर लोकार्पित किया गया था।

 

ज़रा गौर से देखिएगा 

ब्‍लॉक 14 में आर्टिस्‍ट आरोन की कृति को दूर से देखने पर एक एब्‍सट्रेक्‍ट नज़र आता है, मगर एक-एक हिस्‍से को अलग-अलग करके देखने पर कुछ बातें उभर कर सामने दिखने लगती हैं। इस कृति में केले के डंठल को गौर से देखिए, जहां डंठल नहीं बल्कि दो हाथ एक दूसरे को थामे हुए हैं।

 

जब साथ मिले आम लोग 

St+Art Foundation के सह-संस्‍थापक और कंटेंट डायरेक्‍टर, अक्षत नौरियाल कहते हैं, “इस साल `हमारे कम्‍युनिटी आउटरीच प्रयासों को लोगों से अच्‍छी प्रतिक्रिया मिली है। हमने लगभग 7500 घरों से अखबारों में पेम्‍फलेट आदि के जरिए उनकी प्रतिक्रिया, उनकी रुचियों और लोधी कॉलोनी की कहानियों को जानने के लिए संपर्क किया था। बाद में तमाम वर्कशॉप, परफॉर्मेंस और क्‍यूरेटेड टूर भी आयोजित किए। इस सबके ज़रिए हम यहां के लोगों के सहयोग के लिए उनका शुक्रिया अदा करना चाहते थे।”

अक्षत की बात सही थी. इसकी तस्‍दीक यहां की एक कम्‍युनिटी वॉल ‘साथ-साथ’ भी करती है जिसे यहां के स्‍थानीय लोगों ने मिलकर रंगा है। यह एक दीवार यहां के लोगों के दिलों में लोधी आर्ट डिस्ट्रिक के प्रति गर्व और स्‍वामित्‍व की भावनाएं जगाने में सफल रही है। उस रोज आर्टिस्‍ट अखलाख अहमद इस दीवार को फाइनल टच देने में मशगूल थे। अखलाख ने बताया कि वे सिर्फ इस दीवार पर लिखे शब्‍दों को सजा रहे हैं, बाकी का पेंट यहां के बच्‍चों और लोगों ने मिलकर किया है।

दिल्ली का प्यार 

एक शहर के बीच रंगों के प्रति दीवानगी को रेखांकित करती ‘वी लव दिल्‍ली’ की दीवार तो जैसे इस आर्ट डिस्ट्रिक्ट का विजिटिंग कार्ड ही बन गई है। आप यहां आएं तो इसे देखने से न चूकें।

 

कुछ ऐसे चढ़ती हैं दीवारों पर कहानियां 

अहमदाबाद के आर्टिस्ट निकुंज ब्‍लॉक 5 में एक दीवार पर काम करने की तैयारी कर रहे हैं। उनकी टीम ने टीबीआई को बताया कि एक दिवार को तैयार करने में 40 लीटर पेंट सिर्फ बेस कलर के लिए इस्‍तेमाल होता है। इसके बाद आर्टिस्‍ट की थीम और चित्र के हिसाब से बाकी पेंट का इंतजाम किया जाता है। ये सारा पेंट एशियन पेंट्स के द्वारा उपलब्‍ध कराया जा रहा है। ऊंची दीवारों तक पहुंच के लिए क्रेन जैसी मशीन भी आर्टिस्‍ट को मुहैया कराई जाती है। इस स्‍ट्रीट आर्ट फैस्टिवल में एक समय में ऐसी चार मशीनें अलग-अलग दीवारों पर काम में जुटी हैं। एक आर्टिस्‍ट के साथ कुछ वॉलंटियर भी उनकी मदद के लिए मौजूद रहते हैं और कुछ इस तरह तैयार होती हैं ये स्‍ट्रीट आर्ट।

जानिये हर दीवार की कहानी 

यहां हर एक दीवार की अपनी अलग कहानी है जिसे कोई समझाने वाला चाहिए, वरना यूं ही इन दीवारों के चित्रों को देखकर आधा-अधूरा ही समझ आता है। इसके लिए स्‍ट्रीट आर्ट ऑर्गेनाइजेशन खुद समय-समय पर यहां वॉक आयोजित करता है। इसके अलावा KLoDB (Knowing & Loving Delhi Better) से ब्‍लॉगर और लेखिका सुष्मिता सरकार भी यहां समय-समय पर वॉक आयोजित करती हैं।तथा KLODB दिल्‍ली में नि:शुल्‍क वॉक आयोजित करता है।

स्‍थानीय लोग इस बात पर एकमत नज़र आए कि इस स्‍ट्रीट आर्ट ने उनकी कॉलानी को एक खूबसूरत शक्‍़ल दी है। उन्‍हें यहां रहना अब पहले से ज्‍यादा अच्‍छा लगता है। नीरस दीवारें अब बोलने लगी हैं और लोग उनके घरों को देखने आने लगे हैं। स्‍ट्रीट आर्ट के ज़रिए देश के शहर की सूरत बदलने के लिए St+Art का शुक्रिया का हकदार है।

 

लेखक के बारे में – सौरभ आर्य, अंग्रेजी साहित्‍य में एम.ए. और एम. फिल. की शिक्षा के उपरांत वर्तमान में केंद्रीय सचिवालय में अनुवाद अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं. कॉलेज और यूनिवर्सिटी के दिनों से पत्रकारिता और लेखन का शौक रखने वाले सौरभ देश के अधिकांश हिस्‍सों की यात्राएं कर चुके हैं. वे हिंदी के पाठकों के लिए यात्रा साहित्‍य में स्‍तरीय सामग्री उपलब्‍ध कर रहे हैं. इनके यात्रा वृत्‍तांत इनके ब्‍लॉग www.yayavaree.com पर पढ़े जा सकते हैं.

संपादन – मानबी कटोच


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