‘मेरे पिया गए रंगून’ – बॉलीवुड की पहली सुर-सम्राज्ञी शमशाद बेगम की दास्ताँ!

शमशाद बेगम ने अपनी आवाज़ से कई कालजयी फ़िल्मों को सजाया, जिनमें 'मदर इंडिया', 'सीआईडी', 'अंदाज़', 'बैजू बावरा', 'लव इन शिमला' और 'मुग़ल-ए-आज़म' भी शामिल हैं।

गर आप पुराने हिन्दी गानों के शौक़ीन हैं, तो ‘ले के पहला प्यार प्यार’, ‘मेरे पिया गए रंगून’ और ‘कजरा मोहब्बत वाला’ जैसे गानों के बोल पढ़कर ही अब तक गुनगुनाने भी लगे होंगे। इन सभी गानों में जो मीठी आवाज़ है, वह भारत कोकिला लता मंगेशकर की नहीं, बल्कि हिन्दी सिनेमा के स्वर्ण-युग की मलिका ‘शमशाद बेगम’ की है!

हिन्दी फ़िल्मों की पहली पार्श्व-गायिकाओं में से एक, पद्म भूषण से सम्मानित शमशाद बेगम ने हिन्दी के अलावा बंगाली, मराठी, गुजराती, तमिल एवं पंजाबी भाषाओं में लगभग 6,000 से भी ज़्यादा गाने गाये थे।

शमशाद बेगम का जन्म 14 अप्रैल, 1919 को एक मुस्लिम परिवार में अविभाजित भारत के लाहौर में हुआ था। उनके पिता एक मैकेनिक थे और माँ एक गृहिणी। शमशाद, नौ भाई-बहनों में से एक थीं।

शमशाद के घर में गाने का कोई माहौल नहीं था, न ही उन्होंने संगीत का कोई विशेष प्रशिक्षण लिया था, पर छोटी सी उम्र से ही वह शादियों, पार्टियों और धार्मिक समारोहों में गाने लगी थीं। उन दिनों #Viral हो जाने के तो कोई साधन नहीं थे, पर इन कार्यक्रमों में जो भी शमशाद को सुनता, वह उनकी गायकी का कायल हो जाता और अपने जानने-पहचानने वालों को भी उनके बारे में ज़रूर बताता। उनके गाने के कद्रदानों में उनके चाचा अमीरुद्दीन भी शामिल थे। उन्होंने ही शमशाद के हुनर को पहचाना और उनके पिता से उन्हें पेशेवर गायिका बनाने के लिए ऑडिशन पर ले जाने की सिफारिश की।

एक इंटरव्यू के दौरान शमशाद बेगम ने इस बात का ज़िक्र भी किया था कि कैसे उनके चाचा ने उनके पिता से उनकी सिफारिश करते हुए कहा था कि शमशाद की आवाज़ तो ख़ुदा की नेमत है।

शमशाद बेगम की आवाज़ में ‘मेरे पिया गए रंगून’

शमशाद कहती हैं, “चाचा मुझे उस ऑडिशन में ले गए, जिसे कंपनी के संगीतकार मास्टर गुलाम हैदर ले रहे थे। ऑडिशन के दौरान, मैंने बहादुर शाह ज़फ़र की ग़ज़ल, ‘मेरा यार गर मिले मुझे, जान दिल फ़िदा करूँ ’और कुछ मरसिया गाया था। मास्टर साहब मेरी आवाज़ से इतने ख़ुश हुए कि उन्होंने मुझे उसी दिन 12 गानों के लिए कॉन्ट्रैक्ट साइन करने के लिए कहा। मुझे हर गाने के लिए 12.50 रुपये देने की पेशकश की गयी, जो उस समय में एक बड़ी रकम थी।”

उनकी उम्र उस समय कुछ 12-13 साल की रही होगी। गुलाम हैदर उनकी प्रतिभा को और निखारने में उनकी मदद करने लगे। हैदर के मुताबिक़, शमशाद हर तरह के गाने गा लेती थीं, इसलिए उन्होंने शमशाद को ‘चौमुखिया’ नाम दिया।

इसके कुछ साल बाद, शमशाद ने वकील गनपत लाल भट्टो से शादी कर ली। एक हिन्दू से विवाह करने के लिए उन्हें काफ़ी विरोध और आलोचना का सामना करना पड़ा। पर इसी घटना ने यह साबित कर दिया कि शमशाद उस वक़्त से ही कितनी आज़ाद-ख्याल थीं।

फ़िल्मों में आने से पहले, शमशाद ने कई भक्ति और क्षेत्रीय गीत गाए थे। कहते हैं कि एक पेशेवर गायिका के रूप में उनका पहला गाना एक हिन्दू भक्ति गीत था, जिसके लिए रिकॉर्डिंग कंपनी ने उनका नाम बदल कर ‘उमा देवी’ रख दिया था। पर जब उन्होंने लगातार गाना शुरू किया, तो उन्होंने अपना नाम बदलने से इंकार कर दिया। धीरे-धीरे उन्हें रेडियो और संगीत निर्देशकों के ऑफर आने लगे।

शुरुआत में ‘यमला जाट’ और ‘गवंडी’ जैसी पंजाबी फ़िल्मों में गाने के बाद, शमशाद ने 1941 में पहली बार हिन्दी फ़िल्म ‘खजांची’ के गाने गाये।

उन दिनों नूरजहाँ और सुरैया जैसी गायिकाओं का ज़माना था, जो गाने के साथ-साथ अभिनय भी करती थीं। शमशाद को भी अभिनय के ऑफर आने लगे। पर अपने पिता की इच्छा का आदर करते हुए, शमशाद कभी परदे के सामने नहीं आईं, बल्कि उन्होंने परदे के पीछे रहकर अपने संगीत के हुनर को और निखारा।

चालीस के दशक के शुरू होते-होते, शमशाद की आवाज़ का जादू बॉलीवुड पर छाने लगा और वह मुंबई आकर बस गयीं। मुंबई उन्हें कुछ ऐसा भाया कि 1947 में देश के विभाजन के बाद भी उन्होंने इस मायानगरी को नहीं छोड़ा। इसके बाद, शमशाद ने हर बड़े संगीत निर्देशक के साथ काम किया, जिसमें नौशाद, ओपी नैयर, शंकर-जयकिशन, एसडी बर्मन और कई दिग्गज संगीतकार शामिल थे।

शमशाद बेगम और लता मंगेशकर की आवाज़ में फ़िल्म ‘मुग्ल-ए-आज़म’ की एक कव्वाली

बीबीसी को दिए अपने एक इंटरव्यू में संगीतकार नौशाद ने कहा था कि शमशाद बेगम की आवाज़ जितनी मधुर है, उतना ही मीठा उनका स्वभाव है।

उनके उदार स्वभाव का एक उदाहरण राजू भरतनान की किताब ‘आशा भोसले – अ म्यूजिकल बायोग्राफी’ में मिलता है। इस किताब के मुताबिक़ शमशाद बेगम, संगीतकार ओपी नैयर से तब मिली थीं, जब वह एक ऑफिस बॉय का काम करते थे। जब नैयर ने अपनी पहली फ़िल्म के लिए शमशाद से गाने की गुज़ारिश की, तो वह बिना किसी शर्त मान गयीं। यही नहीं, जब लता मंगेशकर के साथ एक विवाद के बाद कोई भी गायिका ओपी नैयर के साथ काम करने के लिए राज़ी नहीं थी, तब केवल शमशाद ही थी, जिन्होंने उनके लिए गाना गाया।

शमशाद ने अपनी आवाज़ से कई कालजयी फ़िल्मों को सजाया, जिनमें ‘मदर इंडिया’, ‘सीआईडी’, ‘अंदाज़’, ‘बैजू बावरा’, ‘लव इन शिमला’ और ‘मुग्ल-ए-आज़म’ भी शामिल हैं। कोई हैरत की बात नहीं है कि शमशाद उस दौर की सबसे महंगी गायिका थीं और नयी गायिकाओं से उनकी नकल करने को कहा जाता था। उनके शुरूआती गानों के रिकॉर्ड तो मौजूद नहीं है, पर कहा जाता है कि उन्होंने अपने जीवनकाल में करीब 2000 गाने रिकॉर्ड किये थे।

इतनी मशहूर होने के बावजूद शमशाद हमेशा से पब्लिसिटी से कतराती थीं। उन्हें पार्टियों में जाना पसंद नहीं था, और न ही तस्वीर खिंचवाना। शायद यही कारण है कि इस महान गायिका की तस्वीरें ढूँढने पर भी नहीं मिलती। अपने पति के गुज़र जाने के बाद, उनका यह एकांत-पसंद स्वाभाव और भी पुख्ता हो गया और वह लोगों से दूर ही रहने लगीं।

23 अप्रैल 2013 की रोज़, एक लम्बी बिमारी के बाद 94 की उम्र में स्वर की मल्लिका, शमशाद बेगम ने आख़िरी सास ली। इससे पहले 2009 में उन्हें ओपी नैयर अवार्ड तथा पद्म भूषण से नवाज़ा गया था। पर जिस आवाज़ से उन्होंने फ़िल्मी दुनिया को नवाज़ा था, वह किसी भी अवॉर्ड या पुरस्कार से कई बढ़कर था।

शमशाद बेगम, आशा भोसले और मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ में ‘लेके पहला पहला प्यार’

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