किसानों की दुर्दशा और बढ़ती बिमारियों को देख, यह फ़ोटोग्राफ़र बन गया चलता-फ़िरता देशी बीजों का बैंक!

आज की तारीख में भरतभाई के पास 50 से ज़्यादा किस्मों के फल, औषधि तथा सब्ज़ियो के देशी व पारंपरिक बीज उपलब्ध है।

मौसम की मार और चोर-बाज़ारी जैसी समस्याओं से हमारे देश का किसान हमेशा से जूझता आ रहा है। पर यह सब तो बाहरी समस्याएँ हैं, जिनसे निबटना किसान के हाथों में बहुत हद तक नहीं है। लेकिन एक समस्या ऎसी भी है, जो किसानों की अपनी बनायी हुई है और यदि वे चाहें, तो इससे छुटकारा पाया जा सकता है।

यह समस्या है विदेशी तथा कृतृम रूप से बनाए गए हाइब्रिड व बीटी बीजों  की। हालाँकि, इन बीजों के उपयोग ने किसानों को शुरुआत में तो फायदा दिलाया, पर इन्हीं बीजों ने उन्हें रासायनिक खाद और कीटनाशकों का भी उपयोग करने पर मजबूर कर दिया। साथ ही इन बीजों, उर्वरकों और कीटनाशकों के लिए किसान बाज़ार पर निर्भर रहने लगा और अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा उसे इन्हें खरीदने में लगाना पड़ा। यह सिलसिला सालों-साल चलने की वजह से ही आज कई किसान कर्जे में डूबे हैं।

किसानों की समस्या को जड़ से मिटाने के लिए देश में आज उन्हें जैविक खेती की ओर मोड़ा जा रहा है, जिसमें किसी भी रसायन का प्रयोग न हो। पर यह समस्या तब तक हल नहीं हो सकती जब तक किसान विदेशी बीज अथवा कृतृम बीजों का इस्तेमाल करता रहेगा।

इसी समस्या को जड़ से मिटाने के लिए गुजरात के जूनागढ़ जिले के टीटोडी गाँव के भरतभाई पटेल ने एक अनोखी पहल की है। भरतभाई पेशे से एक फोटोग्राफर हैं, पर अपने आस-पास किसानों की हालत देखकर उनके मन में हमेशा से उनके लिए कुछ करने की इच्छा थी।

उनके गाँव में ज़्यादातर किसान कृतृम (GMO) बीज ही इस्तेमाल करते थे, जिनकी कीमत देसी बीजों के मुकाबले बहुत ज्यादा है। इन बीजों की बुआई से लेकर कटाई तक किसानों द्वारा अधिक मात्रा में हो रहे खर्च और इससे तैयार किये जाने वाले फल तथा सब्जियों से लोगों के स्वास्थ्य पर होने वाले दुष्प्रभाव से भरतभाई भलीभांति परिचित थे।

तत्काल परिस्थिति को देख कर उनको लगने लगा कि एक समय ऐसा भी आ सकता है, जब शायद कृषि जैवविविधता में देशी व पारंपरिक बीजों की किस्म ही लुप्त हो जाये। और उन्होंने इसका उपाय ढूंढने की ठानी।

फोटोग्राफी के व्यवसाय से जुड़े होने के कारण भरतभाई का जूनागढ़ जिले के अलग-अलग गाँवों में हो रहे समारोहों में आना-जाना लगा रहता था। उनके गाँव में हो रहे विशेष अवसरों पर भी शामिल लोगों का व्यवसाय या आमदनी का मुख्य स्त्रोत भी खेती ही रहता है। अपने काम के ज़रिये ही वे किसानों की किस तरह मदद करें यह सोचने पर, उनको लगा कि क्यों न इन अवसरों में उपस्थित लोगों को खाली समय में देशी व पारंपरिक बीजों की महत्ता तथा लाभ समझा कर, बीजों का नि:शुल्क वितरण भी किया जाये?

आज भरतभाई जिस गाँव में फोटोग्राफी के लिए जाते है, अवसर के खाली समय में उपस्थित किसानों का झुंड उनके इर्दगिर्द ही जमा रहता है। भरतभाई बड़ी सहजता के साथ अवसर में उपस्थित किसानों को देशी व पारंपरिक बीज की किस्मों के बारे में जागृत करते है, देशी व पारंपरिक बीज से तैयार होने वाले फल व सब्जियों में पाए जाने वाले पोषक तत्व तथा उसके उपयोग से हो रहे शारीरिक तथा आर्थिक लाभ के बारे में किसानो को जानकारी देते है। साथ ही वे उन्हें अभी उपयोग में लिए जा रहे कृतृम बीजों के हानिकारक परिणामो से भी आगाह करते है।

भरतभाई और उनकी पत्नी नीताबेन, देशी बीजों का प्रदर्शन करते हुए

भरतभाई अपने व्यवसाय के साधनों के साथ-साथ एक झोला और भी रखते है, जिसमें तरह-तरह के फल, औषधि तथा सब्जियों के देशी व पारंपरिक बीजों के छोटे-छोटे पैकिंग बने हुए रहते है। अवसर के खाली समय में समय-सूचकता को देख कर कभी-कभी गाँव में वे देशी व पारंपरिक बीज का प्रदर्शन भी आयोजित कर देते है, जिससे ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को लाभ मिल सके।

इन समारोहों में भरतभाई किसानों को नि:शुल्क बीज भी देते है। साथ में किसी गाँव में उपस्थित किसान के पास देशी व पारंपरिक बीज की उपस्थिति की जानकारी मिलने पर वे उस गाँव में किसान के पास खुद जाकर वह किस्म ले आते है। इस बीज के बदले में वे उस किसान को अपने पास मौजूद नयी देशी किस्म की बीज उपहार के तौर पर देते हैं।

उनके इस अभियान में उनके घरवाले उनका पूरा सहयोग करते हैं। बीज की सफाई, खराब बीज को चुनकर हटाना, बीज संचयन करना तथा छोटी-छोटी थैलियो में बीज को पैक करना – इन सभी कामों में उनकी धर्मपत्नी निताबेन का बहुत ज़्यादा साथ है। साथ ही उनके  भाई, भाभी तथा घर के बच्चे भी इन कामों में सहयोग देते है।

इस अभियान का लाभ गाँव के किसानों के साथ-साथ शहर के लोगों को भी मिल सके इसके लिए वे हर साल केशोद तहसील में देशी व पारंपरिक बीज का प्रदर्शन लगाते है तथा शहर के लोगों को “टेरेस वेजिटेबल गार्डनिंग” के बारे में पूरी जानकारी देकर प्रोत्साहित करते है।

“गुजरात का यह पहला चलता-फिरता बीज बैंक, किसानों के खेत से लेकर घर के किचन-गार्डन तक सभी को पारंपरिक तथा देशी बीज पहुंचा रहा है,” भरतभाई कहते हैं!

एक प्रतिष्ठित संस्थान द्वारा हर साल आयोजित किये जाने वाली शोधयात्रा के सदस्य होने के कारण अभी तक उन्होंने कई राज्य जैसे कि झारखण्ड, सिक्किम, असम, राजस्थान, अंदमान निकोबार आदि राज्यों की सैर की है। इन राज्यों के प्रगतिशील किसानों से भी वे लगातार मिलते रहते है और उनके द्वारा उगाये जाने वाले देशी व पारंपरिक किस्मो के बीज इकठ्ठा करते हैं। इन्हीं बीजों को वे अपने जिले व तहसील के किसानों को मुफ्त में बांटते हैं। आज की तारीख में भरतभाई के पास 50 से ज़्यादा किस्मों के फल, औषधि तथा सब्ज़ियो के देशी व पारंपरिक बीज उपलब्ध है। शायद इसीलिए आज केशोद की तहसील के छोटे-छोटे गाँवों में हो रहे विशेष अवसरों पर, वहां के किसानों को फोटोग्राफर भरतभाई पटेल का बेसब्री से इंतज़ार रहता है।

“देशभर में ज्यादा से ज्यादा लोग इस पारंपरिक तथा देशी बीज बैंक का लाभ उठाये और स्वास्थ्य के प्रति जागृत हो, यही मेरा सपना है!”

– भरतभाई नसीत

लेखक – अलज़ुबैर सैयद
लेखक ‘गुजरात ग्रासरूट्स इनोवेशन ऑगमेंटेशन नेटवर्क’ में सीनियर मैनेजर का पद संभाल रहे हैं। आप इनके बारे में यहाँ पढ़ सकते हैं!

 

 संपादन – मानबी कटोच


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