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सुनो दिलजानी मेरे दिल की कहानी [मुस्लिम ताज बीबी का कृष्ण प्रेम]

भगवान आपका अपना मुआमला है किसी को हक़ नहीं कि आपको सिखाये कि किस तरह से पूजा करनी है. न आपका हक़ बनता है किसी के धर्म, कर्म, विश्वास पर प्रश्नचिन्ह लगाने का!

क्या हिन्दू क्या मुसलमान, कृष्ण सभी को अपनी ओर आकर्षित करते रहे हैं. मीराबाई की दीवानगी की कितनी कहानियाँ  हम सबने सुनी हैं. उसी वक़्त की बात है पर्शिया तक ये कहानियाँ पहुँचीं और वहॉं एक मुसलमानी ताज बीबी कृष्ण के बारे में सुन सुन कर कि वो सबको मोह लेता है, इस क़दर कौतूहल में डूबीं कि वे उनसे मिलने के लिए भारत चली आयीं. उसके बाद का क़िस्सा (किवदंती) आप वीडियो में सुनिए 🙂

एक तरफ़ मीराबाई कहती हैं, ‘तुम बिन नैन दुखाणा म्हारे घर आ प्रीतम प्यारा’ और इधर ताजबीबी की फ़रियाद है, ‘सुनो दिलजानी, मेरे दिल की कहानी’. यह भक्ति है? प्रेम है? क्या भक्ति समर्पण होती है? सबकी भक्ति अलग होती है, सबका प्रेम जुदा होता है. विद्वान इस विषय पर ग्रन्थ लिख सकते हैं.

यही भारत के धर्मों की सुंदरता है कि कोई ख़ुसरो अपने निज़ाम के हुस्न में नाचने लगता है और कोई बच्चा कहता है कि ‘हनुमान मेरा दोस्त है’. भगवान आपका दोस्त, प्रेमी, बच्चा, बुज़ुर्ग सब कुछ हो सकता है. आप भगवान को किसी भी तरह से प्यार कर सकते हैं, किसी भी तरह से लताड़ सकते हैं.  हिन्दू किसी मज़ार पर चादर चढ़ा आते हैं, मुसलमान गुरूद्वारे मत्था टेक आते हैं, सिख कभी चर्च चले जाते हैं.

‘हिन्दी कविता’ (हमारे प्रॉजेक्ट) की उपस्थिति सोशल मीडिया में है और वहाँ कभी कभी पाठकों की
संकुचित विचारधारा देखने मिलती है, जो झूठ नहीं कहूँगा परेशान करती है कि क्यों नहीं हम खुले दिल से सभी विचारधाराओं को अपनाते हैं. कोई बुल्ला कंजड़ी बन यार नूँ मनाना चाहे तो मना ले भाई, दूसरा कौन सिखाने वाला होता है कि ‘जी इस तरह नाचना ग़लत है’ ‘जी आप मर्द हैं ख़ुदा की प्रेमिका न कहें अपने आपको’ – हमें कोफ़्त होती है कि कोई कहे कि आपने शंकर कहा आपको ‘शंकरजी’ कहना चाहिए. भाई, हमारे शंकर हैं, उनके गले में हाथ डालें, या चिलम पियें या महामृत्युञ्जय का जाप करें.. आपको क्या? यह कोई कर्मकाण्ड वाला ऋग्वेद का काल नहीं है.. कोई किताब कोई पंडित कोई मुल्ला नहीं बताएगा कि क्या करना है आपको अपने भगवान के साथ. हर एकादशी पर सत्यनारायण की पूजा करके कोई ज़्यादा हिन्दू नहीं हो जाता न पाँच वक़्त की नमाज़ पढ़नेवाला ज़्यादा मुसलमान. न ही भगवान् को नहीं मानने वाला काफ़िर है.

भगवान आपका अपना मुआमला है किसी को हक़ नहीं कि आपको सिखाये कि किस तरह से पूजा करनी है. न आपका हक़ बनता है किसी के धर्म, कर्म, विश्वास पर प्रश्नचिन्ह लगाने का!

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लेखक –  मनीष गुप्ता

हिंदी कविता (Hindi Studio) और उर्दू स्टूडियो, आज की पूरी पीढ़ी की साहित्यिक चेतना झकझोरने वाले अब तक के सबसे महत्वपूर्ण साहित्यिक/सांस्कृतिक प्रोजेक्ट के संस्थापक फ़िल्म निर्माता-निर्देशक मनीष गुप्ता लगभग डेढ़ दशक विदेश में रहने के बाद अब मुंबई में रहते हैं और पूर्णतया भारतीय साहित्य के प्रचार-प्रसार / और अपनी मातृभाषाओं के प्रति मोह जगाने के काम में संलग्न हैं.


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