92 की उम्र में विश्व की सबसे ऊँची मूर्ती बनाने वाले इस भारतीय कलाकार की बनायी मूर्तियाँ 150 देशों की शोभा बढ़ा रहें हैं!

महाराष्ट्र के धूलिया जिले के गोन्दुर गाँव में जन्में राम वनजी सुतार जी विश्व-प्रसिद्द मूर्तिकार हैं। अब तक उन्होंने लगभग 8, 000 छोटी-बड़ी मूर्तियाँ बनाई हैं। हाल ही में, उन्होंने 'स्टेचू ऑफ़ यूनिटी' सरदार पटेल की प्रतिमा का निर्माण किया है। यह दुनिया में अब तक की सबसे ऊँची प्रतिमा है।

त्य और अहिंसा पर महात्मा गाँधी के विचारों और उनके संदेश का न सिर्फ़ भारतीय, बल्कि पूरी दुनिया में न जाने कितने ही लोग अनुकरण करते हैं। दुनिया के ज़्यादातर देशों में आपको महात्मा गाँधी के बारे में पढ़ाया जाता है। इतना ही नहीं, कई देशों में आपको उनकी प्रतिमा भी लगी मिलेगी।

पर आपको यह जानकर हैरानी होगी कि फ्रांस, इटली, इंग्लैंड, अर्जेंटीना, रूस, मलेशिया सहित लगभग 150 देशों में गाँधी जी की जो मूर्तियाँ लगी हैं, उनका निर्माण एक ही शिल्पकार ने किया है – राम वंजी सुतार!

राम वनजी सुतार

महाराष्ट्र के धूलिया जिले के गोन्दुर गाँव में जन्मे राम वंजी सुतार विश्व-प्रसिद्द मूर्तिकार हैं। अब तक उन्होंने लगभग 8,000 छोटी-बड़ी मूर्तियाँ बनाई हैं, जिनमें संसद में लगी कुछ मुख्य राजनेताओं की मूर्तियाँ, गंगा-यमुना की मूर्ति, गाँधी सागर बाँध के लिए चम्बल नदी की प्रतीकात्मक मूर्ति और अभी हाल ही में बनी, ‘स्टेचू ऑफ़ यूनिटी’ सरदार पटेल की प्रतिमा शामिल है।

94 वर्षीय सुतार अपने बेटे, अनिल सुतार के साथ उत्तर-प्रदेश के नॉएडा में रहते हैं। अनिल सुतार भी अपने पिता की ही तरह ख्यातिप्राप्त मूर्तिकार हैं। वे अपने पिता के साथ नॉएडा में स्थित उनके स्टूडियो व कार्यशाला को संभालते हैं।

शिल्पकला सुतार परिवार में पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही है और हर बार नई पीढ़ी इस कला को एक नया मुकाम देती है। द बेटर इंडिया से बात करते हुए सुतार ने बताया,

“सुतार का मतलब होता है ‘बढ़ई’ यानी कि लकड़ी का काम करने वाला। मेरे पिताजी एक आम बढ़ई थे, पर उनकी ख़ासियत थी उनकी शिल्पकला। वे अपने हर काम को बहुत ही कलात्मक ढंग से करते थे। घरों में लकड़ी के काम करने के अलावा, वे बहुत बार लकड़ी से ही मूर्ति आदि भी बनाते थे। उन्हीं से मैंने भी शिल्पकला के गुण सीखे।”

अपने बेटे अनिल सुतार के साथ राम वनजी सुतार (फोटो साभार)

उनकी रचनात्मक क्षमता से प्रभावित उनके शिक्षक भी उन्हें हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते रहते। अपने जीवन में वे अपने एक गुरु, श्री रामकृष्ण जोशी का अहम योगदान मानते हैं। उन्होंने बताया कि उनके गुरु जोशी ने ही उन्हें हमेशा कुछ नया और अनोखा करने के लिए प्रेरित किया। उनसे ही सुतार ने मिट्टी में जान डालना सीखा।

अपने स्कूल के दिनों में ही उन्होंने अपने गुरु के मार्गदर्शन में सीमेंट से गाँधी जी की एक मूर्ति बनाई। यह मूर्ति उनके गाँव में लगाई गयी। वे हंसते हुए बताते हैं,

“इस मूर्ति के मुझे 100 रूपये मिले, जो उस समय बहुत ज़्यादा थे। फिर किसी दूसरे गाँव के लोगों ने भी मूर्ति बनाने के लिए कहा और उन्होंने 300 रूपये दिए। बस वहीं से मूर्तिकला का सिलसिला शुरू हो गया था।”

उन्होंने आगे बताया कि उनके गुरु जी के प्रयासों से ही उनका बॉम्बे (अब मुंबई) के जे. जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट में दाखिला हुआ। हालांकि, उनके घर की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, पर उनके गुरु हर महीने खर्च के लिए उन्हें 25 रूपये भेजते थे।

साल 1953 में राम वंजी सुतार ने आर्ट डिप्लोमा पूरा किया और साथ ही, वे अपने बैच के टॉपर रहे। उन्हें स्वर्ण पदक से नवाज़ा गया। पढ़ाई पूरी करने के बाद ही साल 1954 में उन्हें पुरातत्व विभाग में नौकरी मिली। यहाँ उन्होंने अजंता और एलोरा की गुफाओं की मूर्तियों को संवारने का काम किया। इसके बाद वे ऑडियो-विज़ुअल पब्लिसिटी, सूचना और प्रसारण मंत्रालय, नई दिल्ली में तकनीकी सहायक (मॉडल) के रूप में शामिल हुए और 1959 तक वहां काम किया।

“मैंने सरकारी नौकरी छोड़ दी और अपना काम शुरू किया। मुझे इधर-उधर से कुछ-कुछ काम मिलने लगा। फिर मुझे मध्य-प्रदेश में गाँधी सागर बांध के लिए चम्बल नदी को समर्पित करते हुए एक मूर्ति बनाने का प्रोजेक्ट मिला। मैंने इस पर काम शुरू किया और सोचने लगा कि कैसे चम्बल नदी के समर्पण में प्रतीकात्मक मूर्ति बनाई जाए। फिर मुझे लगा कि चम्बल नदी मध्य-प्रदेश और राजस्थान, दोनों राज्यों को जोड़ती है। इसलिए, मैंने चम्बल नदी को माँ के रूप में दर्शाते हुए, उसके साथ दो बालक बनाए, जो कि मध्य-प्रदेश और राजस्थान के भाईचारे के प्रतीक हैं,” सुतार बताते हैं।

45 फीट की चम्बल नदी की यह प्रतीकात्मक मूर्ति तब तक उनके करियर का सबसे बड़ा काम था। यह मूर्ति आज भी उनके लिए बहुत ख़ास है।

चम्बल देवी (फोटो साभार)

इसके बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, “इस मूर्ति की ख़ासियत है कि इसे एक ही पत्थर से तराश कर बनाया गया है। इस बांध के उद्घाटन पर जब इस मूर्ति का अनावरण हुआ, तो उस समय पंडित नेहरु को यह प्रतिमा बहुत अच्छी लगी।”

चम्बल नदी की प्रतिमा के बाद शिल्पकला के क्षेत्र में सुतार का नाम स्थापित हो गया। लोग उन्हें जानने लगे।

“इसके बाद कई प्रोजेक्ट पर काम काम किया। फिर जब दिल्ली में इंडिया गेट के पास स्थित कैनोपी में लगी किंग जॉर्ज पंचम की मूर्ति पर विवाद चल रहा था, तो सरकार ने इसे हटाकर यहाँ महात्मा गाँधी की मूर्ति लगाने के लिए कहा। मैंने काम शुरू किया, तो किसी ने कहा कि महात्मा गाँधी की बैठे हुए मूर्ति चाहिए, तो किसी को खड़े हुए की मुद्रा में चाहिए थी,” सुतार जी ने हंसते हुए कहा।

उन्होंने दोनों मुद्राओं की मूर्तियों का डिजाईन दिया। एक डिजाईन उन्होंने गाँधी जी का बैठे हुए बनाया, जिसमें वे ध्यान कर रहे थे। वहीं दूसरा महात्मा गाँधी के ‘अस्पृश्यता विरोधी’ विषय से प्रेरित था। इसमें महात्मा गाँधी खड़े हुए हैं और उनके साथ दो ‘हरिजन’ बच्चे हैं और साथ ही, इस पर लिखा गया, ‘मेरा जीवन ही मेरा संदेश है’!

ध्यान-मुद्रा में गाँधी जी की 16 फीट की प्रतिमा (फोटो साभार)

दोनों डिजाईन देखकर, उस समय सरकार ने गाँधी जी की ध्यान-मुद्रा वाले डिजाईन को पसंद किया। 16 फीट की यह मूर्ति जब तैयार हो गयी, तो इसे कैनोपी में लगाने पर फिर से विरोध हुआ। “लोगों का कहना था कि ब्रिटिश सरकार ने इस कैनोपी का निर्माण करवाया था, यहाँ गाँधी जी की मूर्ति लगाना उचित नहीं। मूर्ति तैयार थी, पर विवाद चलता रहा और आख़िरकार, तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव की सरकार ने इस मूर्ति को संसद में लगाने का फ़ैसला किया,” उन्होंने बताया।

हालांकि, सुतार का दूसरा डिजाईन भी व्यर्थ नहीं गया। सालों बाद बिहार सरकार ने उनसे इस मूर्ति का निर्माण करवाया। साल 2013 में पटना के गाँधी मैदान में 40 फीट की यह मूर्ति लगाई गयी।

दिलचस्प बात यह है कि पद्म श्री और पद्म भूषण से सम्मानित सुतार ने अब तक अलग-अलग डिजाईन, आकार और मुद्राओं में गाँधी जी की लगभग 300-350 मूर्तियाँ बनाई हैं।

पटना के गाँधी मैदान में लगी 40 फीट की प्रतिमा

संसद में गाँधी जी की प्रतिमा के बाद और भी कई मशहूर राजनेताओं, जैसे जवाहर लाल नेहरु, इंदिरा गाँधी, मोरारजी देसाई आदि की प्रतिमाएं स्थापित हुई। अब तक उनकी बनाई लगभग 16 मूर्तियाँ संसद में लगी हैं।

सुतार के हाथों से गढ़ी गयी इन शानदार प्रतिमाओं की फ़ेहरिस्त में अब तक की दुनिया की सबसे ऊँची प्रतिमा, सरदार पटेल की ‘स्टेचू ऑफ़ यूनिटी’ (182 फीट लम्बी) का नाम भी शुमार होता है। इस उम्र में भी जिस बारीकी और समर्पण के साथ उन्होंने इस प्रतिमा को बनाया है, उससे साबित होता है कि भारत में शायद ही कोई दूसरा शिल्पकार इस मुकाम तक पहुँच पाए।

‘स्टेचू ऑफ़ यूनिटी’ (फोटो साभार)

आज की पीढ़ी के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, “पहले और अब में शायद कड़ी मेहनत और धैर्य का फर्क है। मुझे लगता है कि आजकल के कलाकारों को बस जल्दी से कुछ अलग और अनोखा करके मशहूर होना है। वे मॉडर्न आर्ट के पीछे भाग रहे हैं। पर उनमें लगातार मेहनत करते रहने का जोश नहीं है।”

मूर्तिकला के अलावा दीवारों पर भित्ति-चित्र, नक्काशी आदि में भी सुतार को महारथ हासिल है।

उनके द्वारा बनाए गये भित्ति-चित्र (दीवार पर नक्काशी)

हालांकि, इस महान कलाकार को अपने एक प्रोजेक्ट के अधूरे रह जाने का आज भी दुःख है। दरअसल, गाँधी सागर बांध के बाद जब भाखड़ा-नांगल बांध के उद्घाटन के लिए पंडित नेहरु गये, तो उन्हें अहसास हुआ कि यहाँ भी चम्बल के जैसे ही कोई यादगार प्रतिमा होनी चाहिए। पंडित नेहरु उन सभी मज़दूरों की याद में एक प्रतिमा बनवाना चाहते थे, जिनके खून-पसीने से इस बांध का प्रोजेक्ट पूरा हुआ था।

“हमारी बात हुई इस बारे में। उन्होंने मुझे मज़दूरों को समर्पित करते हुए कुछ बनाने के लिए कहा। मैंने इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर दिया और अपना डिजाईन तैयार कर लिया। लेकिन उस समय यह काम कुछ आर्थिक कारणों के चलते आगे नहीं बढ़ पाया। और नेहरु जी के जाने के बाद फिर किसी ने भी इस प्रोजेक्ट पर चर्चा नहीं की। पर मुझे लगता है कि यदि आज भी यह प्रोजेक्ट आगे बढ़े, तो एक बहुत यादगार प्रतिमा बनेगी,” सुतार कहते हैं।

सुतार जी का स्टूडियो

आज भी वे अपने काम के प्रति उतने ही सक्रीय हैं, जितने कि युवावस्था में हुआ करते थे। उन्हें बस चलते रहना है। वे अपने हर एक प्रोजेक्ट पर पूरी ईमानदारी और मेहनत के साथ काम करते हैं, फिर वह चाहे छोटा हो या बड़ा।

अंत में वे सिर्फ़ इतना कहते हैं, “कलाकार को अपनी राह खुद बनानी पड़ती है। जिसकी जितनी भूख होती है, उसे उतना काम मिल ही जाता है। मुझे हमेशा से ही काम की भूख थी और मुझे काम मिलता गया। बस मेहनत करते रहें।”

राम वंजी सुतार द्वारा बनाई गयीं और भी प्रतिमाएं देखने के लिए व उनके अन्य प्रोजेक्ट्स के बारे में जानने के लिए यहाँ क्लिक करें!

(संपादन – मानबी कटोच)


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