भूरी बाई: जिस भारत-भवन के निर्माण में की दिहाड़ी-मजदूरी, वहीं पर बनीं मशहूर चित्रकार!

भूरी बाई अपने पति जौहर सिंह के साथ भोपाल आयीं। यहाँ उनके पति का परिवार झुग्गी-झोपड़ियों में रहता था और सभी दिहाड़ी-मजदूरी करते थे।

ध्य-प्रदेश जनजातीय संग्राहलय में कलाकार के पद पर काम करने वाली भील चित्रकर भूरीबाई बरिया आज कला और संस्कृति जगत का प्रसिद्द नाम है। उनकी बनाई पेंटिंग्स मध्य-प्रदेश के संग्रहालय से लेकर अमेरिका तक अपनी छाप छोड़ चुकी हैं।

कला के क्षेत्र में मध्य-प्रदेश का सर्वोच्च शिखर सम्मान, देवी अहिल्या बाई सम्मान, रानी दुर्गावती सम्मान और न जाने कितने अवॉर्ड उनके नाम दर्ज हैं। 

भूरी बाई को मिले कुछ सम्मान

आज वे भारत के अलग-अलग राज्यों में जाकर भील आर्ट तथा पिथोरा आर्ट पर वर्कशॉप कराती हैं। भारत की इन लोक-कलाओं को कुछ अन्य उम्दा चित्रकारों के साथ मिलकर भूरी बाई ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक पहुँचाया है।

यह भी पढ़ें: बदलाव : कभी भीख मांगकर करते थे गुज़ारा, आज साथ मिलकर किया गोमती नदी को 1 टन कचरे से मुक्त!

हालांकि, अगर कोई उनसे बात करे, तो शायद ही पहली बार में भांप पाए, कि वे इतनी बड़ी चित्रकार हैं। उनके सादा, सरल स्वभाव से आप उनके हुनर का अंदाज़ा ही नहीं लगा पाएंगे। उनसे बात करने के बाद पता चलता है कि यदि आपके पास हुनर है, तो एक न एक दिन आप अपना मुकाम हासिल कर ही लेते हैं। बस आपको अपने जीवन में परिस्थितियों के अनुसार ढलना है और ‘हार मानने’ को कभी भी एक विकल्प के तौर पर नहीं लेना है।

एक आम आदिवासी लड़की से मशहूर चित्रकार बनने का भूरी बाई का सफ़र इन्हीं दो बातों को साबित करता  है!

“मैंने तो कभी सोचा भी नहीं था कि मेरा चित्रकारी का शौक ही मेरी पहचान बन जायेगा। बाहर देश जाना तो दूर की बात, मुझे तो ठीक से हिंदी बोलना भी नहीं आता था। मेरा पूरा बचपन तो गरीबी में चला गया, पता ही नहीं चला कि कभी ठीक से जिया भी या नहीं, पर खुशी है कि मैं मेरे बच्चों के लिए कुछ कर पाई,” द बेटर इंडिया से बात करते हुए भूरी बाई ने कहा।

मध्य-प्रदेश के झाबुआ जिले में मोरी बावड़ी इलाके के पिटोल गाँव से ताल्लुक रखने वाली भूरी बाई लगभग 50 की उम्र पार कर चुकी हैं। वे भील आदिवासी समुदाय से हैं। उनके गाँव में ज़्यादातर सभी लोग एक ख़ास तरह की ‘पिथोरा चित्रकारी’ करते थे। इसलिए बचपन से ही भूरी बाई का रिश्ता चित्रकारी से जुड़ गया।

यह भी पढ़ें: बिहार: 14 साल की उम्र में बनाई ‘फोल्डिंग साइकिल,’ अपने इनोवेशन से दी पोलियो को मात!

भूरी बाई बरिया

‘पिथोरा कला’  भील आदिवासी समुदाय की कला-शैली है। जब भी यहाँ के गाँव के मुखिया की मृत्यु हो जाती है, तो उन्हें हमेशा अपने बीच याद रखने के लिए गाँव से कुछ कदमों की दूरी पर पत्थर लगाया जाता है। फिर इस पत्थर पर एक विशेष किस्म का घोड़ा बनाया जाता है। यह विशेष किस्म का घोड़ा ही पिथोरा चित्रकला को ख़ास पहचान देता है।

हालांकि, भीलों में यह विशेष किस्म का घोड़ा बनाने की इजाज़त केवल पुरुषों को ही दी जाती है। पर हुनर कहाँ किसी इजाज़त का मोहताज होता है। भूरी बाई ने इस कला-शैली में अपने डिजाईन बनाए। उनकी पेंटिंग्स सिर्फ़ अलग-अलग तरह के घोड़े को ही नहीं, बल्कि लोगों की जीवन शैली भी दर्शाती हैं।

भूरी बाई द्वारा बनाई गयी एक पेंटिंग

“बचपन तो हमारा दिहाड़ी-मजदूरी में ही चला गया। मैं और मेरी बहन अपने पिता जी के साथ कभी कहीं, तो कभी कहीं काम की तलाश में जाया करते थे। अगर काम नहीं करते, तो खाने को कैसे मिलता। हम इधर-उधर मजदूरी करते, फिर जंगल से लकड़ियाँ इकट्ठा करके लाते और ट्रेन में बैठकर बेचने जाते थे। पर इस सबके बीच भी मैं चित्रकारी करती रहती थी। गाँव में जो भी कच्चा-पक्का घर था उसे ही गोबर-मिट्टी से लीपकर, दीवारों पर चित्र बनाकर सजाया करती थी,” भूरी बाई ने याद करते हुए बताया।

आस-पड़ोस के लोग भी भूरी बाई को अपना घर सजवाने के लिए बुलाते थे। “उस जमाने में रंग-ब्रश के बारे में कुछ पता ही नहीं था। मैं तो घर की चीज़ों से ही जैसे गेरू, खड़िया, हल्दी से रंग बनाती थी, काले रंग के लिए तवे को खुरच लेती थी, तो पत्तों से हरा रंग बना लेती थी। बस तरह-तरह के डिजाईन, कभी मोर, हाथी, चिड़िया तो कभी कुछ और बना लेती थी।”

यह भी पढ़ें: एक्सक्लूसिव : 9 साल तक लगातार बैडमिंटन चैंपियनशिप जीतने वाली भारत की स्टार खिलाड़ी अपर्णा पोपट!

पेंटिंग करती भूरी बाई

अपने जीवन में भूरी बाई ने न जाने कितनी मुश्किलों का सामना किया। जहाँ एक तरफ उनके परिवार के लिए दो वक़्त की रोटी जुटाना मुश्किल था, वहीं किसी ने एक बार उनके घर को आग लगा दी थी। इस दुर्घटना से जैसे-तैसे उनका परिवार बचा।

“अब फिर से ज़िंदगी शुरू करनी थी। न तो सिर पर छत थी और न ही पैसा कि कुछ हो। घास की झाड़ियाँ इकट्ठी कर, उनसे रहने लायक झोपड़ी बनायी। हर रोज़ काम की तलाश में निकलते कि कुछ तो रोज़गार हो। गर्मी, सर्दी, बारिश, हर एक मौसम में बस किसी तरह गुज़ारा करते। फिर एक काम मिलने पर गुजरात के दादोह जिले में आ गये और यहीं पर 16-17 साल की उम्र में हमारी शादी हो गयी,” भूरी बाई ने कहा।

भूरी बाई अपने पति जौहर सिंह के साथ भोपाल आयीं। यहाँ उनके पति का परिवार झुग्गी-झोपड़ियों में रहता था और सभी दिहाड़ी-मजदूरी करते थे। बाकी लोगों के साथ भूरी बाई ने भी मजदूरी पर जाना शुरू किया। उस समय भोपाल में भारत भवन का निर्माण- कार्य चल रहा था। यहीं पर भूरी बाई हर रोज़ काम करने आती।

यह भी पढ़ें: पुरुष-प्रधान सोच को चुनौती देती भारत की ‘ढोल गर्ल’, जहान गीत सिंह!

भूरी बाई द्वारा बने गयीं कुछ पेंटिंग्स

“हम लोग काम कर रहे थे कि एक दिन एक आदमी आया और हमसे हमारे बारे में पूछने लगा। मुझे तो हिंदी भी समझ नहीं आती थी और न ही ढंग से बोल पाती थी। अब समझ न आये कि क्या कहूँ? तो उनके साथ आये एक-दो लोगों ने समझाया कि तुम्हारे गाँव और तुम लोगों के समुदाय के बारे में पूछ रहे हैं। जैसे-तैसे करके मैंने उन्हें बताया कि मैं आदिवासियों के भील समुदाय से हूँ। हमारे यहाँ पिथोरा बाबा की पूजा होती है और पिथोरा बाबा के लिए अलग-अलग तरह की चित्रकारी होती है। चित्रकारी का सुनते ही उस आदमी ने मुझे कुछ बनाने के लिए कहा। अब मैंने तो पहले कभी ऐसे कागज़, ब्रश और रंगों से चित्र नहीं बनाए थे। बड़ी उलझन में मैंने ये बात उन्हें बताई, पर उन्होंने कहा कि नहीं तुम बनाओ, जैसे भी तुमसे बने,” भूरी बाई ने हंसते हुए कहा।

यह भी पढ़ें: महाराष्ट्र : ‘पेयर रो सिस्टम’ से खेती कर, सालाना 60 लाख रूपये कमा रहा है यह किसान!

उन्होंने आगे बताया कि वह आदमी और कोई नहीं बल्कि मशहूर चित्रकार, जगदीश स्वामीनाथन थे। स्वामीनाथन ने उनके समुदाय और वहाँ की कला के बारे में सुनकर उनसे चित्र बनाने के लिए कहा। पर भूरी बाई हिचक रही थीं, क्योंकि अगर वे चित्र बनाएं, तो उनकी जगह मजदूरी कौन करेगा। उस समय उन्हें मजदूरी के लिए एक दिन के 6 रूपये मिलते थे। लेकिन स्वामीनाथन ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे उनके लिए चित्र बनाएंगी, तो वे उन्हें दिन के 10 रूपये देंगें। यह सुनकर भूरी बाई खुश हो गयीं और उन्होंने कहा कि उन्हें बस 6 रूपये ही चाहिए, ज़्यादा नहीं।

जगदीश स्वामीनाथन

भूरी बाई ने जो भी चित्र बनाए वे स्वामीनाथन को बहुत पसंद आये और वे उन चित्रों को अपने साथ दिल्ली ले गये। भूरी बाई बताती हैं,

“लगभग एक साल के बाद स्वामीनाथन जी फिर आये, इस बार वे मेरे घर पर आये थे। उन्होंने मुझे और भी पेंटिंग बनाने के लिए कहा और उन दस चित्रों के मुझे 1,500 रूपये मिले। मुझे उस समय भी समझ नहीं आया कि आख़िर ऐसा क्या ख़ास है इस चित्रकारी में, जो ये मुझे इतने ज़्यादा पैसे दे रहे हैं।”

हालांकि, वे अपने काम से खुश थीं, क्योंकि उन्हें उनकी कला के लिए पैसों के साथ-साथ सम्मान भी मिल रहा था। पर यहाँ उनकी परेशानियाँ खत्म न हुईं। उनके परिवार और आस-पड़ोस के लोगों ने उनके पति के कान भी भरना शुरू कर दिया कि भूरी बाई अचानक से कैसे इतने पैसे कमा रही है। भला कौन सिर्फ़ कुछ चित्रों के इतने ज़्यादा पैसे देगा। इसीलिए अक्सर उनके परिवार में कलह रहने लगी।

यह भी पढ़ें: जब भारतीय महिला आइस हॉकी टीम की जीत पर रेफरी की आँखें भी हो गयी थी नम!

लेकिन अब कोई भी चुनौती भूरी बाई को नहीं रोक सकती थी। वे अब किसी के लिए भी अपनी कला को नहीं छोड़ना चाहती थी, इसलिए उन्होंने स्वामीनाथन जी से बात की, जिन्हें वे अपना गुरु मानती हैं।

“उन्होंने मेरे पति को भारत भवन में चौकीदारी का काम दिला दिया। यहाँ काम करते हुए वह मुझे चित्र बनाते देखता और फिर उसे भी समझ में आया कि मैं इज्ज़त का काम कर रही हूँ। उसने भी यह चित्रकारी करना सीखा और हम दोनों ही भारत भवन से जुड़ गये,” भूरी बाई ने कहा।

इसके कुछ समय बाद ही, मध्य-प्रदेश सरकार ने उनकी कला से प्रभावित होकर उन्हें ‘शिखर सम्मान’ देने की घोषणा की। यह ख़बर जब अख़बार में छपी, तो हर कोई अचम्भित था। यहाँ तक कि खुद भूरी बाई को समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है! उन्होंने बताया, “मुझे आकर किसी ने कहा कि तुम्हारा नाम अख़बार में आया है। मुझे तो यह भी नहीं पता था कि अख़बार में कैसे नाम आता है? और मेरा नाम क्यों आया, कैसा सम्मान? उस समय तो कुछ समझ नहीं पड़ती थी।”

यह भी पढ़ें: उड़ीसा : न स्कूल था न पैसे, फिर भी अपने बलबूते पर किसान की बेटी ने की सिविल सर्विस की परीक्षा पास!

हालांकि, इसके बाद उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज न सिर्फ़ वे खुद, बल्कि उनकी दोनों बेटियाँ और बेटे भी ‘पिथोरा चित्रकारी’ करते हैं।

पिछले कई सालों से वे जनजातीय संग्रहालय के साथ काम कर रही हैं और यहीं की एक 70 फीट लम्बी दीवार पर उन्होंने अपनी ज़िंदगी की कहानी को चित्रों के माध्यम से प्रदर्शित किया है।

 

“हम अभी भी अपने गाँव, अपने परिवार से काफ़ी जुड़े हुए हैं। घर में कोई शादी-ब्याह हो, तो हम गाँव से ही काम करते हैं। बहुत बार मैं कोशिश करती हूँ कि हमारे यहाँ जो युवा बच्चे हैं, उन्हें यह कला सिखाकर किसी मुकाम तक पहुँचाने का मौका मिले। मेरा मानना है कि अगर हम उन्हें एक मंच देंगें, तो आगे आने वाले समय में इस कला को और भी सहेजा जा सकेगा। इसलिए, मुझे जब भी मौका मिलता है, तो मैं वर्कशॉप करवाने के लिए जाती हूँ,” भूरी बाई ने कहा।

भूरी बाई और उनका पूरा परिवार भारत की कला और संस्कृति को सहेजकर उसे संवार रहा है। इसके साथ ही, उनकी कोशिश है कि आदिवासी समुदायों और ग्रामीण कलाकारों को भी इस तरह के मौके मिले, जैसा उन्हें स्वामीनाथन जी ने दिया।

यदि आप भूरी बाई बरिया से किसी भी वर्कशॉप के लिए जुड़ने के लिए या फिर उनकी बनाई कोई पेंटिंग्स/तस्वीरें खरीदने के लिए 9752291976 पर संपर्क करें।

(संपादन – मानबी कटोच)


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter पर संपर्क करे। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर भेज सकते हैं।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

X