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विकलांग नहीं दिव्यांग है नीतू !

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल 'मन की बात' में देशवासियों से अपाहिज की जगह 'दिव्यांग' शब्द का उपयोग करने का आग्रह किया है। क्यूंकि इनमे दिव्य शक्तियां होती है। आज हम आपको एक ऐसी ही दिव्यांग से रुबरू कराने जा रहे है, जिसने बुरे वक्त में भी अदम्य इच्छाशक्ति और साहस के बूते पे ये साबित किया है कि वो सचमुच दिव्यांग है।

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल ‘मन की बात’ में देशवासियों से अपाहिज की जगह ‘दिव्यांग’ शब्द  का उपयोग करने का आग्रह किया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि, ये ऐसे लोग है जिनमें दिव्य शक्तियां होती है और हमें उनको अपाहिज या अपंग की जगह दिव्यांग के नाम से पुकारना चाहिए। आज हम आपको एक ऐसी ही दिव्यांग से रुबरू कराने जा रहे है, जिसने बुरे वक्त में भी अदम्य इच्छाशक्ति और साहस के बूते पे ये  साबित किया है कि वो सचमुच दिव्यांग है, ये कहानी है झारखंड के पिछड़े जिले गिरिडीह के  बेंगाबाद प्रखण्ड की ‘सरस्वती आजीविका समूह’ की सदस्य, नीतू देवी की।

शारीरिक रुप से  नि:शक्त नीतू के साहस, दृढ़निश्चय एवं विश्वास के आगे नतमस्तक हो जाती है सारी मुश्किलें। अपनी विकलांगता को मात देते हुए नीतू आज जिस मुकाम पर है, वो अदम्य मानवीय साहस की प्रतीक बन गई है। बचपन में अपने माता –पिता की गलती की वजह से नीतू पोलियो की शिकार बनी और जन्म के कुछ ही वर्ष बाद पोलियो की वजह से नीतू के दोनों पैर काटने पड़े। छोटी सी उम्र में नीतू ने हाथों के सहारे रेंग कर चलना शुरू किया, माता-पिता की आर्थिक हालत इतनी अच्छी नहीं थी कि वो नीतू का इलाज करा पाते।

गिरिडीह जिले के बेंगाबाद प्रखण्ड के बारासोली गांव की रहने वाली नीतू की दर्द भरी दास्तान की शुरूआत यहीं से हुई, लेकिन नीतू ने हार नहीं मानी और अपने अंदर के जज्बे को जिंदा रखने में कामयाब रही। एक मजदूर मां-बाप के घर में पैदा हुई नीतू बचपन से ही गरीबी में पली बढ़ी, लेकिन पढ़ाई से अपना नाता नीतू ने जोड़े रखा, बुरे से बुरे हालात में पढ़ाई करती रही। पहले दसवीं की परीक्षा पास की, फिर आईटीआई पास किया। लेकिन फिर भी हालत वही ढ़ाक के तीन पात की तरह थे।  घर में  दो जून की रोटी मुश्किल से जुट पाती थी।

आखिर 2014 में नीतू की मुलाकात खुशियों से हुई!

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पोलियो की वजह से नीतू के दोनों पैर काटने पड़े।

इससे पहले नीतू ने जिंदगी में ये कभी महसूस नहीं किया था कि खुशी क्या होती है। नीतू से विवाह करने के लिए एक युवक ने प्रस्ताव रखा। नीतू के मां –बाप और उसकी रजामंदी से शादी हो गई, लेकिन ससुराल वालों ने अपने बेटे और बहु दोनों को घर से निकाल दिया, खुशियों का झोंका जैसे नीतू के जीवन में पल भर के लिए आया हो। नीतू अपनी किस्मत को दोष देते हुए वापस अपने मायके में ही आकर अपने पति के साथ रहने लगी। नीतू का पति ऑटो चालक का काम करने लगा। बचपन में पोलियो की वजह से अपने दोनों पैर गंवा चुकी नीतू ने अपनी जिंदगी में कभी हार नहीं मानी।

जैसे- तैसे नीतू की जिंदगी कट रही थी तभी ‘राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन’ के तहत उस गांव में स्वयं सहायता समूह बनाने का काम शुरु किया जा रहा था। मार्च 2015 में नीतू स्वयं सहायता समूह से जुड़ी, सरस्वती आजीविका समूह से जुड़ने के बाद नीतू के जीवन में मानो खुशियां वापस लौट गई। उसने समूह से जुड़कर पहले अपनी रोजाना की जरुरतों को पूरा करने जैसे इलाज, राशन आदि के लिए 500 रुपये से 2000 रुपये तक की राशि कर्ज में ली, उसके बाद समूह से अपनी जरुरत को पूरा कर कर्ज लौटाने का दौर चलता रहा। कुछ दिन तो ऐसे थे कि समूह का साथ न होता तो घर का चुल्हा भी नहीं जलता। समूह से जुड़ने के बाद नीतू को पुस्तक संचालक का प्रशिक्षण मिला और फिर वो अपने समूह का बही-खाता लिखने का काम करने लगी। इससे नीतू को महीने में 1000 रुपये तक की कमाई होने लगी। फिर आजीविका मिशन के तहत नीतू अपने गांव की मास्टर बुक कीपर के रुप में चुनी गई और अपने गांव की सभी समूह के बही–खाते संभालने का काम करने लगी।

नीतू की कार्यकुशलता और मेहनत को देखते हुए उसे अपने गांव के महिला ग्राम संगठन की एकाउंटेंट के रुप में चुना गया।

अब वो महीने में करीब 3000 रुपये की कमाने लगी। दिव्यांग नीतू को समूह से एक पहचान मिली।

“समूह न होता तो जीवन जीना मुश्किल हो रहा था, मैने समूह से कर्ज लेकर अपने पति को भी बहुत सहयोग किया है और वे भी ऑटो चलाकर अब कमा रहे है।“

– नीतू ने बताया

समूह से जुड़ने के बाद नीतू की जान पहचान बढ़ी और अब वह समूह की दूसरी सदस्यों के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर भी पैसे कमा रही है। कुल मिलाकर अब नीतू और उसके पति 8000 रुपये महीना कमाने लगे, जो नीतू के लिए एक सपने जैसा था।

अगर जिंदगी में कुछ करने का इरादा हो तो असंभव भी संभव हो जाता है, नीतू इसकी मिसाल है।

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अतुलनीय साहस, दृढ़निश्चय और जबरदस्त हौसले की बदौलत नीतू ने कभी भी विकलांगता को अपने उपर हावी नहीं होने दिया। 15 नवंबर 2015 को झारखंड स्थापना दिवस के अवसर पर सरस्वती महिला समूह की बुक-कीपर नीतू को मुख्यमंत्री श्री रघुवर दास एवं महामहिम राज्यपाल श्रीमती द्रौपदी मर्मू के हाथों टैबलेट देकर सम्मानित किया गया। नीतू को अपने गांव के सारे समूहों के बुक-कीपिंग को सबसे अच्छे तरीके से करने के लिए ये पुरस्कार दिया गया। नीतू को टैबलेट आधारित बुक-कीपिंग का प्रशिक्षण भी दिया जा चुका है।

बातचीत के क्रम में नीतू बताती है –

“आज मैं जो कुछ भी हूं वो झारखंड सरकार, आजीविका मिशन और मेरे समूह की देन है। धन्यवाद, हमारे आदरणीय मुख्यमंत्री जी का जिन्होंने मुझे स्थापना दिवस के अवसर पर सम्मानित किया और मुझसे बातचीत भी की।”

नीतू आगे महामहिम राज्यपाल को भी धन्यवाद देते हुए बताती है कि –

“मैनें कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मैं कभी अपने राज्य के मुख्यमंत्री से मिल पाउंगी, लेकिन मेरे समूह ने इस सपने को हकिकत में बदल दिया। “

नम आंखों से नीतू कहती हैं –

“धन्यवाद मुख्यमंत्री जी का जिन्होनें स्थापना दिवस के समारोह के दौरान मुझसे मेरा कुशल–मंगल पूछा।“

नीतू अभी ग्रेजुएशन कर रही है और वो बताती है कि मेरा बस एक ही सपना है कि मैं अपने बच्चे को वो सारी खुशिया देना चाहती हूँ , जो मुझे नहीं मिली। आंखों में चमक और आत्मविश्वास से लबरेज नीतू कहती हैं कि-

“मैने ऐसे भी दिन देखे है जब लोग मुझे दुत्कारते थे।  आज मेरे समूह की वजह से मेरी एक पहचान है और ये सब सरकार द्वारा चलाए गए राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से संभव हो पाया है।”

नीतू के मुताबिक़ 15 नवंबर को मुख्यमंत्री से सम्मान मिलना उसकी जिंदगी का सबसे खुशी भरा पल था।

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नीतू को मुख्यमंत्री श्री रघुवर दास एवं महामहिम राज्यपाल श्रीमती द्रौपदी मर्मू के हाथों टैबलेट देकर सम्मानित किया गया।

भावविभोर होकर नीतू कहती है –

“उस पल ने मेरे गांव और गिरिडीह जिले में मेरी इज्जत बढ़ा दी है। अगर आपके मन में कुछ करने का जज्बा है तो भगवान का साथ जरुर मिलता है वरना आज मेरे जैसी अपाहिज महिला इस बुलंदी पर नहीं होती जहां से मैं यह गर्व से कह सकती हूं कि मैं गरीबी को मात दे रही हूं और दूसरी गरीब महिलाओं को भी गरीबी के कुचक्र से बाहर निकालने का काम करूंगी।“

आजीविका मिशन के तहत स्वयं सहायता समूह से जुड़कर नीतू ने अपने जीवन को एक नई दिशा दी है और आज अपने परिवार का भरण-पोषण कर रही है। हाथों के सहारे चलने वाली नीतू को देख कर हम अपनी मुश्किलों को भूल जाएंगे। नीतू आज अपने गांव में मिसाल बन चुकी है, मिसाल – साहस की! मिसाल – स्वयं सहायता समूह से मिले पहचान की! मिसाल – सरकारी मिशन से बदल रहे लोगों के हालात की! साहस – जिसके आगे झुक जाती है, शारीरिक विलांगता और मिसाल बनती है दिव्यांग की!


‘राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन’, भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय की फ्लैगशीप योजना है , जो देश भर के राज्यों में चलाई जा रही है। इस योजना  का उद्देश्य, ग्रामीण गरीब परिवारों की परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए, उनके लिए सशक्त एवं स्थार्इ संस्थाएं (स्वयं सहायता समूह, ग्राम संगठन) बनाकर लाभदायक स्वरोजगार एवं हुनरमद मजदूरी वाले रोजगार के अवसर प्राप्त कराकर उन्हें समर्थ बनाना है, जिससे उनकी गरीबी कम हो। और जिसके परिणामतः उनकी जीवनशैली में लगातार उल्लेखनीय सुधार हो। ’राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन’ का मकसद गरीब परिवारों को देश की मुख्यधारा से जोड़ना और विभिन्न कार्यक्रमों के जरिये उनकी गरीबी दूर करना है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए मंत्रालय ने जून, 2011 में आजीविका की शुरुआत की। इसका उददेश्य गरीब ग्रामीणों को सक्षम और प्रभावशाली संस्थागत मंच प्रदान कर उनकी आजीविका में निरंतर वद्धि करना, वित्तीय सेवाओं तक उनकी बेहतर और सरल तरीके से पहुंच बनाना और उनकी पारिवारिक आय को बढ़ाना है। झारखंड में इस मिशन को झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाईटी क्रियान्वित कर रही है। अधिक जानकारी के लिए आजीविका की वेबसाइट पर जाएँ अथवा आप www.jslps.org पर भी ज्यादा जानकारी ले सकते है।


 

 

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