पुणे के इस डॉक्टर ने 350 से भी ज़्यादा ज़रूरतमंद मरीज़ों का किया है मुफ़्त इलाज!

महाराष्ट्र के पुणे में स्थित अस्पताल, रूबी हॉल क्लिनिक में एक कार्डिएक सर्जन होने के साथ-साथ डॉ. मनोज दुरैराज, मैरियन कार्डिएक सेंटर एंड रिसर्च फाउंडेशन के हेड भी हैं। यहाँ वे दिल की बिमारियों से पीड़ित मरीजों का इलाज मुफ़्त में करते हैं।

डॉ. मनोज दुरैराज के लिए उनका काम सिर्फ़ लोगों को ठीक करना नहीं, बल्कि उन्हें एक नया जीवन देना है।

महाराष्ट्र के पुणे में स्थित अस्पताल, रूबी हॉल क्लिनिक में एक कार्डिएक सर्जन होने के साथ-साथ डॉ. मनोज, मैरियन कार्डिएक सेंटर एंड रिसर्च फाउंडेशन के हेड भी हैं। यहाँ वे दिल की बिमारियों से पीड़ित मरीज़ों का इलाज मुफ़्त में करते हैं।

“मैं सच में मानता हूँ कि मैं और मेरी फाउंडेशन, जो भी अच्छा काम कर रहे हैं, उस सबके लिए प्राकृतिक शक्तियाँ ज़िम्मेदार हैं। मुझे कभी भी किसी भी मरीज़ को उसके इलाज के लिए पैसे या फिर संसाधनों की कमी के चलते मना नहीं करना पड़ा है,” डॉ. मनोज ने द बेटर इंडिया को बताया।

पिता से मिली प्रेरणा

डॉ. मनोज के पिता, डॉ. मैनुअल दुरैराज, 21 सालों तक भारतीय सेना में एक हृदय रोग विशेषज्ञ थे और उन्होंने भारत के तीन राष्ट्रपतियों- एन संजीव रेड्डी, आर वेंकटरमन और ज्ञानी ज़ैल सिंह को स्पेशल सर्जन के तौर पर अपनी सेवा दी। उन्होंने ही रूबी हॉल क्लिनिक में कार्डियोलॉजी विभाग की भी स्थापना की थी।

लेकिन समाज में उनका सबसे महत्वपूर्ण योगदान; मैरियन कार्डियक सेंटर एंड रिसर्च फाउंडेशन है, जिसकी स्थापना उन्होंने साल 1991 में की थी। डॉ. मनोज ने 2005 में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS), नई दिल्ली से अपनी शिक्षा पूरी की और उसके बाद वे भी इस फाउंडेशन में शामिल हो गये।

यह भी पढ़ें: महाराष्ट्र: 7 किमी के घने जंगल को पैदल पार कर स्कूल जाने वाली निकिता को मिली इलेक्ट्रिक-साइकिल!

अब तक के अपने सफ़र के बारे में बताते हुए डॉ. मनोज ने कहा कि उनके पिता ने उन्हें सामाजिक सुधार के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित किया था।

“मैंने हमेशा ही मेरे पिता को उन मरीज़ों की मदद करते देखा, जो कि दूर-दराज़ की जगहों से आते थे और उनके पास इतने साधन नहीं होते थे कि वे अच्छे से इलाज करवा पायें। मुझे उनकी इन बातों से काफ़ी प्रेरणा मिली,” डॉ. मनोज ने कहा।

आज क्लिनिक अपने खुद के फण्ड और साथ ही, लभगग 30 दानकर्ताओं की मदद के चलते, लगभग 300 ज़रुरतमंदों की मदद कर पाता है। 

यह भी पढ़ें: वफ़ादारी की मिसाल : 16 साल पहले बचाए गए कुत्ते ने बचाई इस डॉक्टर की जान!

उन्होंने द बेटर इंडिया को बताया कि इलाज के लिए सिर्फ़ फाउंडेशन के फंड्स पर्याप्त नहीं रहते हैं, लेकिन नेकदिल लोगों के दान के चलते बहुत मदद मिलती है।

“हमारे दानकर्ता कोई बड़े संगठन या व्यक्ति नहीं हैं। ये आम वेतन पाने वाले और सेवानिवृत्त लोग हैं, कुछ हमारे पूर्व रोगी भी हैं, जो हमारे काम को संभव बनाने के लिए कुछ न कुछ दान करते हैं,” डॉ. मनोज ने कहा।

डॉ. मनोज ने अब तक हर तरह की दिल से सम्बन्धित बिमारियों का इलाज किया है। उन्होंने 350 से भी ज़्यादा मरीज़ों की निःशुल्क सर्जरी की हैं, जिनमें ज्यादातर बच्चे और गरीब परिवार से आने वाले मरीज़ शामिल हैं। 

“दो साल पहले, हमें अहमदनगर की एक 12 वर्षीय लड़की की हृदय प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांट) सर्जरी के लिए 6.5 लाख रुपये की धनराशि मिली थी। एक ज़िंदगी को बचाने के लिए इतने सारे लोगों का एक साथ आना, किसी चमत्कार से कम नहीं। उन सभी दान कर्ताओं का धन्यवाद, जिनकी मदद से हम उस ज़रूरतमंद लड़की को 2.5 लाख रुपये से भी ज़्यादा लागत की और उच्च-गुणवत्ता वाली बाईपास सर्जरी प्रदान करने में सक्षम हुए।”

भारत में, विभिन्न सरकारी योजनाओं के माध्यम से गरीबों को स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराई जा रही है, लेकिन ऐसे लोग हैं जो भौगोलिक रूप से सीमावर्ती क्षेत्रों में रह रहे हैं या फिर बहुत-से लोगों के पास यह साबित करने के लिए जरूरी कागज़ात नहीं हैं कि वे इन मुफ़्त योजनाओं के दायरे में आते हैं।

“कभी-कभी इन योजनाओं की प्रक्रिया को पूरा करने में इतना ज़्यादा समय लग जाता है कि तब तक इंसान की ज़िंदगी ही चली जाती है। ऐसे में, हम इस फ़ासले को खत्म करने के लिए सेतु का काम करते हैं,” डॉ. मनोज ने कहा।

ऐसा करने के लिए, डॉ. मनोज महाराष्ट्र के बाहर के क्षेत्रों में भी दौरे करते हैं और अहमदनगर के धर्मार्थ ट्रस्ट में उन लोगों का इलाज करते हैं, जिनके पास राज्य का बीपीएल कार्ड नहीं है।

यह भी पढ़ें: पुणे: आदिवासी महिलाओं को पुराने कपड़ों से पैड बनाने की ट्रेनिंग दे रहा है यह युवक!

यह क्लिनिक एक और बात के लिए भी अलग है। दरअसल, यहाँ इलाज के बाद की प्रक्रिया पर भी पुरा ध्यान दिया जाता है, जो कि अक्सर सरकारी एजेंसी में नहीं होता। क्लिनिक में ऑपरेशन के बाद मरीज़ों को समय-समय पर मुफ़्त में ज़रूरी परामर्श और महीने की दवाइयां दी जाती हैं।

ऐसी ही एक मरीज है, 14-वर्षीय प्रेरणा, जो जलगाँव से है और उसका पूरा लालन-पोषण अकेले उसकी माँ ही करती है। दो साल पहले, उसकी हार्ट सर्जरी के बाद, प्रेरणा को फाउंडेशन द्वारा अपनाया गया था, और अब फाउंडेशन ही उसके सभी चिकित्सा संबंधित खर्चों को देखती है, जिनकी कीमत 10,000 से 15,000 रुपये प्रति माह है।

हालांकि, अभी सिर्फ़ प्रेरणा ही है, जिसका खर्च यह फाउंडेशन पूरी तरह से उठा रही है। पर डॉ. मनोज को विश्वास है कि कुछ ही वक़्त में वे ज़्यादा से ज़्यादा लोगों के लिए ऐसा कर पाएंगे।

यह भी पढ़ें: पुणे: बस में चोरी हुआ युवक का बटुआ, फ़ूड डिलीवरी बॉय ने की मदद!

बहुत से लोगों के लिए वे उनके मसीहा हैं। लेकिन डॉ. मनोज का मानना है कि ये तो बस एक शुरुआत है, उन्हें अभी बहुत कुछ करना है।

हम डॉ. मनोज के इस हौंसले को सलाम करते हैं और उम्मीद है कि उनकी फाउंडेशन देश के हर कोने तक फैले।

मूल लेख: अनन्या बरुआ


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter पर संपर्क करे। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर भेज सकते हैं।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

X