अजमेर, रसूलपुरा गांव के 41 वर्षीय रजा मोहम्मद, कोरोना के पहले तक गांव में अपने खुद के स्कूल में पढ़ाया करते थे। लेकिन कोरोना समय में, जब स्कूल बंद हो गए और उनकी आय भी ख़त्म हो गई, तब वह रोजगार के अवसर की तलाश में थे। उनके पास अपने दो बीघा खेत भी हैं, जिसमें वह कुछ मौसमी फसलें उगाते थे, लेकिन ज्यादा मुनाफा नहीं हो पा रहा था। इसी दौरान, उन्हें मोती की खेती (pearl farming) के बारे में पता चला।
पहले तो उन्हें लगा कि शायद यह बहुत मुश्किल काम होगा, जिसमें ज्यादा समय भी देना होगा। लेकिन इसी दौरान, उन्हें राजस्थान के किशनगढ़ के नरेंद्र गरवा के बारे में पता चला, जिन्होंने काम बंद होने के बाद मोती की खेती (Pearl Farming) शुरू की थी। नरेंद्र की खेती से वह इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने भी इसे सीखने का फैसला कर लिया।
मात्र एक दिन की ट्रेनिंग के बाद शुरू की मोती की खेती (pearl farming)
जब रजा मोहम्मद ने मोती की खेती से जुड़ने का फैसला किया था, तब देश में कोरोना के हालात थे। इसलिए वह सिर्फ एक दिन ही ट्रेनिंग ले पाए थे। एक दिन की ट्रेनिंग के बाद, उन्होंने अपने खेत में ही 10/25 की जगह में एक छोटा तालाब बनवाया और इस पर तिरपाल लगाकर मोती उगाना (pearl farming) शुरू कर दिया।
उन्होंने ज़रूरी सामान जैसे दवाएं, अमोनिया मीटर, पीएच मीटर, थर्मामीटर, एंटीबायोटिक्स, माउथ ओपनर, पर्ल न्यूक्लियस जैसे उपकरण खरीदें। इसके बाद, उन्होंने सीप के लिए भोजन (गोबर, यूरिया और सुपरफॉस्फेट से शैवाल) तैयार किया।
उन्होंने अपने तालाब में डिज़ाइनर मोती के न्यूक्लियस को तक़रीबन 1000 सीपों में लगाए थे।
हर एक सीप में न्यूक्लियस डालकर छोड़ देना होता है और उसके भोजन और विकास का ध्यान रखना होता है। सब अच्छा रहा तो एक सीप से दो मोती मिलते ही हैं।
वह कहते हैं, “मोती की फसल आने में 18 महीने का समय लगता है। मैंने इस पूरी प्रक्रिया में करीबन 60 से 70 हजार का कुल खर्च किया था, जबकि मुझे कुछ दिनों में ही करीबन ढाई लाख का मुनाफा होने की उम्मीद है।”
बिलकुल कम देखभाल में हो सकती है मोती की खेती (Pearl Farming)
रजा मोहम्मद ने बताया कि इसमें उन्हें दिन के एक घंटे ही खर्च करने होते हैं। अगर आप कोई दूसरा काम कर रहे हैं, तब भी आप मोती की खेती (Pearl Farming) कर सकते हैं।
वह कहते हैं, “मुझे सिर्फ दिन में एक बार पानी का पीएच और अमोनिया लेवल देखना होता है और हफ्ते में एक बार सीप चेक करने होते हैं। इसमें पानी का पीएच स्तर 7-8 के बीच रखना होता है। हर एक जगह का तापमान अलग होता है इसलिए कभी-कभी इसमें कम या ज्यादा समय लग सकता है।
वहीं, तालाब के रखरखाव में कोई खर्च नहीं आता है, लेकिन जलस्तर, सीप का स्वास्थ्य, शैवाल की उपस्थिति आदि सुनिश्चित करनी पड़ती है और सतर्क रहना पड़ता है। सबसे महत्वपूर्ण बात, आपको एक साल के लिए धैर्य रखना होगा।”
एक बार मोती तैयार हो जाने के बाद, इसे प्रयोगशाला भेजना होता है और गुणवत्ता के आधार पर, एक मोती की कीमत 200 रुपये से लेकर 1,000 रुपये के बीच मिलती है।
रजा मोहम्मद, मोती की खेती (pearl farming) से इतने खुश हैं कि इस साल वह इसे एक बड़े स्तर पर करने की तैयारी भी कर रहे हैं। इस पूरे काम में उन्हें नरेंद्र का हमेशा सहयोग भी मिलता रहा।
अगर आपके पास भी थोड़ी बहुत जगह है और आप दिन के एक घंटे निवेश करने को तैयार हैं, तो मोती की खेती (pearl farming) मुनाफे का एक अच्छा साधन बन सकती है।
आप भी रजा मोहम्मद की तरह नरेंद्र से ट्रेनिंग लेने के लिए उन्हें 9414519379 या 8112243305 पर संपर्क कर सकते हैं। आप उन्हें nkgarwa@gmail.com पर ईमेल भी भेज सकते हैं।
संपादन- मानबी कटोच
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