डॉक्टर और आइएएस अफ़सर विजयकार्तिकेयन की छात्रों को सलाह : ‘प्लान बी’ हमेशा तैयार रखें!

डॉ. विजयकार्तिकेयन कोयंबटूर सिटी म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के कमिश्नर हैं। एक अच्छे डॉक्टर और अब एक आईएएस अफ़सर होने के साथ-साथ डॉ. विजयकार्तिकेयन के कई किताबें भी लिखीं हैं। उन्होंने अपने अनुभव को साँझा करते हुए बताया कि बहुत से लोगों के लिए सिविल सर्विस की तैयारी करने के साथ प्लान-बी होना भी बेहद जरूरी होता है।

यूपीएससी की तैयारी करने वाले बहुत-से छात्र, अक्सर विकल्प के तौर पर कुछ न कुछ सोच कर रखते है। जैसे कि कोई कॉर्पोरेट जॉब या फिर कोई सरकारी प्रोजेक्ट, कुछ भी। जिससे अगर उनका चयन सिविल सर्विस के लिए ना भी हो, तो उनके पास कुछ तो रहे।

डॉ. विजयकार्तिकेयन के लिए भी उनका प्लान-बी था मेडिसिन, जबकि उनका सपना आईएएस अफ़सर बनने का था।

द बेटर इंडिया से बातचीत के दौरान, उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा दी, इस पूरे समय में किन चुनौतियों का सामना किया और अब कोयंबटूर सिटी म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन का कमिश्नर होने पर वे कैसा महसूस करते हैं!

शहर के सबसे युवा कमिश्नर के तौर पर, डॉ. विजयकार्तिकेयन ने अपने करियर के कुछ ही समय में अपार सफलता हासिल की है। उन्होंने कई किताबें भी लिखी हैं।

हाल ही में प्रकाशित हुई उनकी किताब, ‘वन्स अपॉन एन आइएएस एग्ज़ाम’ में उन्होंने विशी नाम के एक लड़के की ज़िंदगी के बारे में लिखा है।

Coimbatore Doctor Commissioner
डॉ. विजयकार्तिकेयन

पिता से मिली प्रेरणा

डॉ कार्तिकेयन के पिता भारतीय वन सेवा में कार्यरत थे और उन्हें देखकर ही, उन्होंने भी सिविल सर्विस ज्वाइन करने का फ़ैसला किया। उन्होंने कहा,

“मैंने हमेशा पापा को आदिवासियों के विकास और इको-टूरिज्म के क्षेत्र में काम करते हुए देखा है। इसलिए मुझे लगा कि प्रशासनिक सेवाओं के माध्यम से आप आम लोगों के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं। पर मुझे हमेशा से यह भी पता था कि सिविल सेवा की परीक्षा बहुत कठिन होती है और इसलिए मुझे प्लान-बी की जरूरत थी। मेडिकल की पढ़ाई ने भी मुझे लोगों से मिलने और किसी तरह उनकी मदद करने के अवसर दिए।”

सिविल सेवा और प्लान बी

मेडिकल कॉलेज में पांच साल बिताने के बाद, कड़ी मेहनत और घंटों की पढ़ाई, विजयकार्तिकेयन के लिए कोई नई बात नहीं थी। मेडिकल कॉलेज से ग्रेजुएट होने के बाद, उन्होंने सिविल सर्विस की परीक्षा दी। पर बदकिस्मती से, उनका यह प्रयास विफल रहा।

पर कहते है ना कि असफलता ही सफलता की पहली सीढ़ी है। इसके बाद उन्होंने अपना आत्म-निरिक्षण किया और फिर से परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी। हर रोज़, 7 से 8 घंटे उन्होंने पढ़ाई के लिए दिए।

उन्हें समझ में आया कि इस परीक्षा में हर विषय पर ज्ञान होना बहुत जरूरी है। इस बात का ध्यान रखना होगा कि आप सभी विषय पर सब कुछ नहीं जान सकते, पर आपको इन विषयों पर कुछ जानकारी तो होनी ही चाहिए। उन्होंने कहा,

“पांच साल की मेडिकल की पढ़ाई के अनुभव ने मेरी काफ़ी मदद की। इससे मुझे सिस्टेमेटिक तौर पर पढ़ने में मदद मिली। जैसे कि, अगर कोई चैप्टर 25 पन्नों का है, तो मैं इसके पूरे सिलेबस को पॉइंटर्स में लिखकर पढ़ सकता हूँ।”

‘पीपल्स स्किल’ का महत्व

मेडिकल की पढ़ाई के दौरान, डिबेट, क्विज़ आदि में भाग लेने के चलते उनके व्यक्तित्व में भी निखार आया। उन्होंने कहा,

“लोगों से कैसे बातचीत करनी है, यह सीखना बेहद जरूरी है। इसके लिए प्रतियोगिताओं में भाग लेना अच्छा है-क्विज़, भाषण प्रतियोगिता, वाद विवाद, रचनात्मक लेखन आदि सब बहुत महत्वपूर्ण है। एक प्रशासनिक अधिकारी अपने काम के दौरान विभिन्न प्रकार के लोगों से मिलता है और उन लोगों को समझने और उनसे घुलने-मिलने की क्षमता होना बहुत आवश्यक है। “

वन्स अपॉन एन आईएएस एग्जाम- किताब

यह किताब आपको इसके मुख्य किरदार, विशी की कहानी बताती है, जिसका सबसे बुरा सपना सच हो जाता है कि वह आईएएस की परीक्षा में फेल हो गया है। यह किताब आपको उसके डर, संदेह और असुरक्षा के अहसास के भावनात्मक सफ़र से रूबरू कराती है।

यह कहानी है कि कैसे एक 25 साल का युवा अपने भविष्य के बारे में अनिश्चितता और भ्रम को दूर करने की कोशिश करता है।

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उनकी किताब का कवर फोटो

जब उनसे पूछा गया कि उन्हें सबसे ज्यादा किस बात ने प्रेरित किया, तो डॉ. कार्तिकेयन कहते हैं, “मेरे पहले प्रयास में, मैं सफल नहीं हुआ था, और यही असफलता मेरे लिए प्रेरणा बनी कि मुझे और भी बेहतर करना है। यह मेरे जीवन की पहली असफलता थी और इसलिए इससे मैंने बहुत-कुछ सीखा।

उन्होंने आगे कहा, “मुझे ऐसा लगा कि अपनी यह कहानी भावी प्रतिभागियों के साथ साझा करनी चाहिए, पर एक फिक्शन के तौर पर, जो किसी आत्मकथा और संस्मरण से ज्यादा अपील रखती है।”

अपनी किताब में, डॉ. विजयकार्तिकेयन ने आईएएस कोचिंग सेंटरों की भूमिका पर भी प्रकाश डाला है।

किताब का एक अंश…

कोचिंग सेंटर #1
‘फुल या पार्ट?’ रिसेप्शनिस्ट ने पूछा।
‘फुल-टाइम कोर्स,’ विशी ने कहा।
‘मैंने फीस के बारे में पूछा है- पूरी भरनी है या फिर आधी?’
‘पूरी फीस,’ विशी ने पूरे आत्म-विश्वास के साथ कहा, क्योंकि उसके जेब में पूरे 10, 000 हज़ार रूपये थे।
‘ठीक है, पूरी फीस आपको टैक्स आदि लगाकर 1,32,000 रुपये होगी।’
‘एक्सक्यूज़ मी, यह एक आईएएस कोचिंग सेंटर है, है ना?’
‘हाँ,’ रिसेप्शनिस्ट ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
‘आपको नहीं लगता कि इतनी फीस कुछ ज्यादा है।’
‘सर, वैकल्पिक विषय के लिए 50,000 रुपये, सामान्य अध्ययन के लिए 50,000 रुपये, टेस्ट सीरीज़ के लिए 20,000 रुपये है, और बाकी टैक्स है। अब तो नर्सरी-स्कूल में भी सीटों की कीमत 20,000 रुपये है, सर, आप तो आईएएस अधिकारी बनने जा रहे हैं, फिर क्या?’
’ठीक है, मैं बाद में आता हूँ!’
विशी जल्दी से पहले कोचिंग सेंटर से बाहर चला गया।

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किताब के लॉन्च पर डॉ. विजयकार्तिकेयन

बहुत से बौद्धिक प्रतिभागी होते हैं, जो एक ही बार में परीक्षा पास कर लेते हैं, जबकि बहुत से लोग एक या दो बार प्रयास करने के बाद कुछ और विकल्प ढूंढते हैं।

डॉ. विजयकार्तिकेयन की यह किताब हमें उन लोगों की ज़िंदगी के बारे में बताती है, जो अपने युवा जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा सिविल सर्विस की तैयारी में लगाते हैं।

अगर आप यह किताब पढ़ना चाहते हैं, तो इस लिंक पर जाएँ।

मूल लेख: विद्या राजा

संपादन: निशा डागर


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