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‘स्पर्शज्ञान’: नेत्रहीनों के लिए देश का पहला ब्रेल अख़बार!

महाराष्ट्र के स्वागत थोराट, फरवरी 2008 से भारत का पहला ब्रेल अख़बार 'स्पर्शज्ञान' चला रहे हैं। मराठी भाषा में प्रकाशित हों वाला 50 पन्नों का यह अख़बार, हर महीने की 1 तारीख़ और 15 तारीख़ को प्रकाशित होता है। स्वागत थोराट पेशे से स्वतंत्र पत्रकार और थियेटर निर्देशक रहे हैं।

हाराष्ट्र के स्वागत थोराट, फरवरी 2008 से भारत का पहला ब्रेल अख़बार ‘स्पर्शज्ञान’ चला रहे हैं। मराठी भाषा में प्रकाशित होने वाला 50 पन्नों का यह अख़बार, महीने की 1 तारीख़ और 15 तारीख़ को प्रकाशित होता है। ‘स्पर्शज्ञान’ का मतलब होता है ‘स्पर्श करके ज्ञान अर्जित करना’!

स्वागत थोराट का यह अख़बार महाराष्ट्र के 31 जिलों में मौजूद नेत्रहीन स्कूलों और नेत्रहीनों के विकास से जुड़ी विभिन्न स्वंय सेवी संस्थाओं को मुफ्त में दिया जाता है। एक इंटरव्यू के दौरान थोराट ने बताया था कि उनकी शुरुआत अख़बार की 100 प्रतियों के साथ हुई थी, लेकिन अब वे 400 से ज्यादा प्रतियाँ प्रकाशित करते हैं।

स्वागत थोराट पेशे से स्वतंत्र पत्रकार और थियेटर निर्देशक रहे हैं। वे नियमित अन्तराल पर दूरदर्शन और कई अन्य मीडिया संस्थानों के लिए डॉक्युमेंट्री बनाते थे।

स्वागत थोराट (बाएं), एक थिएटर नाटक निर्देशित करते हुए (दाएं)

इसी सिलसिले में उनको एक बार दूरदर्शन के ‘बालचित्र वाहिनी’ कार्यक्रम के लिए डॉक्यूमेंट्री बनाने का मौका मिला जो कि नेत्रहीनों के बारे में थी। इसी दौरान थोराट को नेत्रहीन बच्चों से सीधा मिलने, उन्हें जानने और उनके बारे में ज्यादा से ज्यादा समझने का मौका मिला। थोराट ने जाना कि कोई भी शारीरिक अक्षमता इन बच्चों की कल्पना और आगे बढ़ने के जज़्बे को नहीं रोक सकती।

साल 1997 में थोराट ने एक मराठी नाटक ‘स्वतंत्रयाची यशोगथा’ का निर्देशन किया। इस नाटक में पुणे के दो स्कूलों के 88 नेत्रहीन बच्चों ने हिस्सा लिया। यह नाटक इतना सफल रहा कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसकी चर्चा हुई। इस नाटक में  88 नेत्रहीन कलाकारों को शामिल करने के लिए इसका नाम गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया गया। थोराट ने बताया,

“जब मैं इस नाटक के मंचन के लिए इन बच्चों के साथ यात्रा कर रहा था तो मैंने देखा कि ये बच्चे आपस में देश दुनिया की उन चीजों के बारे में बात कर रहे थे जो इन्होने पहले कहीं पढ़ी थी या सुनी थी। तब मुझे अहसास हुआ कि ये बच्चे और ज्यादा जानने को इच्छुक हैं और ये उनकी जरूरत भी है।”

इसके बाद थोराट ने ठान लिया कि वे देश में नेत्रहीन लोगों के लिए जरुर कुछ करेंगे। इसके लिए उन्होंने अपनी बचत से लगभग 4 लाख रूपये खर्च कर एक ब्रेल मशीन खरीदी और मुंबई में एक ऑफिस भी किराये पर लिया। जिसके बाद 15 फरवरी, 2008 को ‘स्पर्शज्ञान’ का पहला अंक प्रकाशित हुआ।

थोराट कहते हैं कि हमारे समाज में नेत्रहीन लोगों के लिए बहुत कुछ होने की जरूरत है। आज उनकी टीम में छह लोग हैं। उन्हीं के प्रयासों के चलते साल 2012 में रिलायंस फाउंडेशन ने भी ब्रेल लिपि में एक हिंदी अख़बार ‘रिलायंस दृष्टि’ की शुरुआत की। रिलायंस दृष्टि का संपादन भी स्वागत थोराट ही करते हैं।

स्वागत थोराट के जैसे ही एक और समाज सेवी उपासना मकाती ने भी साल 2013 में नेत्रहीन लोगों के लिए ब्रेल लिपि में एक लाइफस्टाइल मैगज़ीन ‘व्हाइट प्रिंट‘ शुरू की। अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित होने वाली यह मैगज़ीन देश की पहली लाइफस्टाइल ब्रेल मैगज़ीन है।

उपासना मकाती

थोराट का कहना है कि सभी पुस्तकालयों में दृष्टिहीन छात्रों के लिए ब्रेल लिपि में पुस्तकों का एक विभाग अलग से होना चाहिए। हालांकि, शुरू में लोगों को थोराट का काम समझ नहीं आता था पर अब उनके और भी दोस्त व साथी उनका साथ दे रहे हैं।

इस अख़बार में सामाजिक मुद्दों, अंतरराष्ट्रीय मामलों, प्रेरक जीवनी के अलावा शिक्षा, स्वास्थ्य, राजनीति, संगीत, फिल्म, थियेटर, साहित्य और खानपान से जुड़ी ख़बरें होती हैं।

आज हमारे देश में इस तरह के अख़बारों की मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है और इस पर थोराट कहते हैं,

“मैं उस दिन का सपना देख रहा हूँ जब इन लोगों (दृष्टिहीन) को इनका एक एक दैनिक अख़बार मिलेगा। मुझे उम्मीद है कि कोई एक मीडिया हाउस तो ऐसा अख़बार शुरू करेगा, और अगर नहीं तो कुछ सालों में, मैं एक दैनिक ब्रेल अख़बार जरुर शुरू करूँगा।”

ये स्वागत थोराट और उनके जैसे कुछ अन्य संवेदनशील लोगों के सतत प्रयासों का ही परिणाम है कि आज भारतीय संविधान को देश के दृष्टिहीन नागरिकों के लिए ब्रेल लिपि में उपलब्ध करवाया गया है।

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हमें उम्मीद है कि देश में और भी लोग स्वागत थोराट और उपासना मकाती से प्रेरित होंगें।


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