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ढाई वर्ष, 22 देश, यात्रा में बनाए कई घर, बचाई कई जिंदगियाँ

वसुधैव राइड एक ऐसी यात्रा थी, जिसके तहत प्रशांत और बेन ने मोटर साइकिल से 30 महीने में भारत से नेपाल, तिब्बत, चीन, यूनान, स्कॉटलैंड जैसे 22 देशों की यात्रा कर डाली।

‘वसुधैव कुटुम्बकम’ सदियों से हमारी परंपरा रही है। इसी परंपरा को एक कदम और आगे ले जाने के लिए, बिहार के आरा के अपसाइक्लिंग आर्टिस्ट प्रशांत और कनाडाई शिक्षक बेन रीड-हॉवेल्स ने ‘वसुधैव राइड’ की पहल की।

वसुधैव राइड एक ऐसी यात्रा थी, जिसमें उन्होंने मोटर साइकिल से 30 महीने में भारत से नेपाल, तिब्बत, चीन, यूनान, स्कॉटलैंड जैसे 22 देशों की यात्रा कर डाली। 

Vasudhaiv Ride
अप साइकिलिंग आर्टिस्ट प्रशांत

अपनी इस यात्रा के बारे में प्रशांत ने द बेटर इंडिया को बताया, “इस यात्रा के तहत हमारा उद्देश्य वसुधैव कुटुम्बकम के संदेश को अपनाते हुए दुनिया के अलग-अलग समुदायों को एक साथ लाकर शांति, सतत जीवन, और सामुदायिक कल्याण को बढ़ावा देना था। यह यात्रा हमने आत्म-अन्वेषण के लिए की थी, लेकिन जितना सोचा था, उससे कहीं अधिक सीखने को मिला।”

अपनी ढाई वर्षों की यात्रा के दौरान, प्रशांत और बेन ने, प्रोजेक्ट पुष्कर, प्रोजेक्ट बिहार, प्रोजेक्ट लेस्बोस, आदि जैसे कई बड़ी परियोजनाओं को अंजाम दिया है। लेकिन, उनका यह सफर इतना आसान नहीं था।

प्रशांत कहते हैं, “शुरुआत में यह स्पष्ट नहीं था कि हम इस यात्रा को कैसे पूरा करेंगे। फंड का अभाव था। ऐसी स्थिति में, हमने बीच का रास्ता निकाला और तय किया कि हम ऐसे प्रोजेक्ट करेंगे, जिससे कि स्थानीय समुदायों को लाभ होने के साथ-साथ हम भी सक्षम हों।”

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प्रशांत(दायें ), रीड-हॉवेल्स(बायें)

यहाँ इस यात्रा के दौरान पूरी की गई मुख्य योजनाओं की जानकारी है:

प्रोजेक्ट पुष्कर – 2017

प्रशांत और बेन ने अपने यात्रा की शुरुआत मुंबई से की थी, जहाँ उन्होंने यूडब्ल्यूसी महिन्द्रा कॉलेज की मदद से, जीजामाता नगर स्थित साईं बाबा पथ स्कूल के बच्चों को सस्टेनेबिलिटी और अपसाइक्लिंग के विषय में सीख दी। इसके बाद, उन्होंने उत्तरी राजस्थान के पुष्कर का दौरा किया। इस क्रम में उन्होंने सिर्फ 24 दिनों में प्राकृतिक और बेकार संसाधनों का उपयोग कर, केवल एक लाख रुपए में परिवार के रहने लायक घर बना दिया।

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प्रोजेक्ट पुष्कर

इसके बारे में प्रशांत कहते हैं, “आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए 5-10 लाख रुपए खर्च कर घर बनाना आसान नहीं होता है। तो हमने घर बनाने की तकनीक को नए सिरे से परिभाषित करने का फैसला किया। इसके तहत, हमने बाँस, गोबर, मिट्टी, प्लास्टिक और काँच की बोतल, घास आदि से बेहद सस्ता और स्थानीय शैली में घर बनाया।”

वह आगे कहते हैं, “घर बनाने में कार्बन फुटप्रिंट का ध्यान रखना जरूरी है। इसलिए, हमने इस घर को जीरो वेस्ट कंस्ट्रक्शन के लक्ष्यों के तहत विकसित किया। सामान्यतः घर को बनाने में काफी संसाधन बर्बाद होते हैं, लेकिन इस घर को बेकार वस्तुओं से ही बनाया गया था।”

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बिहार प्रोजेक्ट – 2017

इस प्रोजेक्ट को लेकर प्रशांत कहते हैं, “मैं बिहार में सतत जीवन को लेकर एक ऐसी मुहिम छेड़ना चाहता हूँ, जो पूरे देश और दुनिया को एक नई दिशा दिखाए। इसलिए, मैंने आरा में एक कौशल प्रशिक्षण केन्द्र बनाने का फैसला, जो प्राकृतिक और बेकार संसाधनों से निर्मित होने के साथ-साथ स्थानीय समस्याओं को भी हल करता है।”

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कौशल प्रशिक्षण केन्द्र, आरा, बिहार

प्रशांत कहते हैं, “हमारे यहाँ काफी तेजी से विकास हुआ है, लेकिन यह सुनियोजित नहीं है। यहाँ एक ओर ड्रेनेज सिस्टम की स्थिति दयनीय है, तो दूसरी ओर पेड़ों को उजाड़ा जा रहा है। इसलिए, हमने सस्टेनेबिलिटी का ऐसा मॉडल तैयार किया है, जहाँ छत पर भोजन का उत्पादन हो सकता है, तो बेकार पानी को शुद्ध करने के लिए इन-हाउस वाटर ट्रीटमेंट प्लांट सिस्टम और ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने के लिए सोलर लगाया गया है।”

प्रशांत ने अपने कौशल विकास परियोजना के तहत अभी तक 15 से अधिक लोगों को अपसाइक्लिंग, मेटल क्राफ्टिंग, वुड क्राफ्टिंग, बम्बू क्राफ्टिंग का प्रशिक्षण दिया है।

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प्रोजेक्ट बिहार की टीम

यहाँ ट्यूनीशिया, चेक गणराज्य, मैक्सिको, चिली, कनाडा और दक्षिण कोरिया आदि जैसे 30 से अधिक देशों के छात्र इंटर्नशिप कर चुके हैं। इसके अलावा, प्रशांत स्थानीय संसाधनविहीन बच्चों को कौशल सिखाकर, उनकी जिन्दगी को एक नया आयाम भी दे रहे हैं।

इतना ही नहीं, इस प्रोजक्ट के तहत प्रशांत, कई और बड़ी योजनाओं पर काम कर हैं, जिससे बड़े पैमाने पर लोगों को बाढ़ की समस्या से भी निजात मिल सकती है।

नेपाल में आधी लागत में बनाया स्कूल

नेपाल प्रोजेक्ट

नेपाल में साल 2015 में एक प्रलंयकारी भूकंप आया था। इस भूकंप में, जान-माल की भारी क्षति हुई थी। इसी कड़ी में, प्रशांत को काठमांडू के नजदीक, कगाति गाँव में एक टूटे सरकारी स्कूल में खेल के मैदान को डिजाइन करने का मौका मिला। जिसे उन्होंने अपसाइकिल्ड वस्तुओं से, आधी लागत पर बना दिया।

इसके बाद, वह तिब्बत, चीन, कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान आदि होते हुए ग्रीस पहुँचे। 

प्रोजेक्ट लेस्बोस – 2018

प्रोजक्ट लेस्बोस

नवंबर, 2018 में प्रशांत और बेन ग्रीस पहुँचे। जहाँ लेस्बोस द्वीप पर, पश्चिमी दुनिया का सबसे बड़ा शरणार्थी शिविर है। 

इस यात्रा के बारे में प्रशांत कहते हैं, “इस कैम्प में अफग़ानिस्तान, पाकिस्तान, अफ्रीका, मध्य-पूर्व, बंग्लादेश आदि जैसे कई देशों के शरणार्थी थे। यहाँ जिंदगी काफी कठिन थी और जब हम यहाँ आए, तो सर्दी बढ़ रही थी। जिससे बचना उस वक्त की सबसे बड़ी चुनौती थी।”

वह आगे कहते हैं, “एक हफ्ते में, समस्या को समझने के बाद हमने एक स्टोव का प्रोटोटाइप बनाया, जिसे कचरे के ढेर में पड़े रेफ्रीजरेटर के कम्प्रेशर से बनाया गया था। इसे एक बार चार्ज करने के बाद और उसमें से जब धुआँ निकल गया, तो उसे हमने कैम्प के अंदर रख दिया, जिससे कि कैम्प 4-5 घंटे तक गर्म रहा।”

इस तरह, यह वहाँ के लोगों के लिए एक जीवनरक्षक उपकरण बन गया, लेकिन कैम्प में 3 हजार लोगों के लिए इस तरह के और उपकरणों को बनाना चुनौतीपूर्ण था। क्योंकि ऐसे कैम्प में पानी के एक बोतल को भी दूसरे को देने की अनुमति नहीं होती है।

इसे लेकर प्रशांत कहते हैं, “काफी विचार करने के बाद हमने शरणार्थियों का समूह बनाना शुरू किया। हमने हर समूह में 15-20 स्किल्ड लोगों को रखा। इसके बाद, फंड जमा करके हमने एक स्थानीय किसान से जमीन ली और योजना पर काम करना शुरू किया। इस तरह 20-25 दिनों में हमने पर्याप्त स्टोव बना लिए।”

इस प्रोजक्ट को पूरा होने के बाद प्रशांत और बेन की यात्रा का आखिरी पड़ाव, स्कॉटलैंड था। जहाँ दोनों छह महीने रहे और उन्होंने कई लोगों को अपसाइक्लिंग की ट्रेनिंग दी। 

फिलहाल, प्रशांत के समुदाय आधारित सतत जीवन के उद्दश्यों से प्रेरित होकर, कनाडा, यूके, जर्मनी, फ्रांस आदि जैसे 50 से अधिक देशों के युवा इस दिशा में काम कर रहे हैं। 

कैसे बनें अपसाइक्लिंग आर्टिस्ट

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लोगों को अपसाइकिलिंग की जानकारी देते प्रशांत

प्रशांत साल 2006 में, इंजीनियरिंग करने के लिए पुणे गए थे। इसी दौरान, वह एक रेसिंग टीम का हिस्सा बने और वे गाड़ियाँ भी बनाने लगे। 

प्रशांत बताते हैं, “इंजीनियरिंग के आखिरी सेमस्टर में, मैंने तय किया कि मुझे नौकरी के बजाय अपसाइक्लिंग की दिशा में कुछ अपना शुरू करना है और कॉलेज खत्म होने बाद मैंने वेस्ट मैटेरियल से गाड़ियाँ बनानी शुरू कर दी। फिर, एक वक्त के बाद मुझे आत्म-अन्वेषण की दिशा में कुछ पहल का विचार आया और पुणे में एक फेस्ट के दौरान बेन से मुलाकात होने के बाद, हमने वसुधैव राइड शुरू की।”

प्रकृति के प्रति समाज के व्यवहार को बदलने की देते हैं नसीहत

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प्रशांत कहते हैं, “आज जलवायु परिवर्तन की उभरती चुनौतियों के कारण मानव जाति पर संकट के बादल छाए हुए हैं। इससे निजात पाने के लिए हमें हर पैमाने पर प्रकृति पर केन्द्रित विकास के लक्ष्यों को तय करना होगा। हमें बचपन से सिखाया जाता है कि हमें प्रकृति का ध्यान रखना चाहिए, लेकिन तेजी से बदलते परिवेश को देखते हुए, हमें अपने व्यवहार को बदलना होगा। हमें समझने की जरूरत है कि हम प्रकृति का हिस्सा नहीं, बल्कि खुद ही प्रकृति हैं। यदि हम प्रकृति को क्षति पहुँचा रहे हैं, तो खुद को दांव पर लगा रहे हैं।”

प्रशांत कहते हैं कि इस मुहिम में युवाओं की भागीदारी सबसे महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि युवाओं को बेहतर कल के लिए आगे आना होगा। 

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